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ये कहाँ आ गये हम - ५

6 फरवरी 2022

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*मानव जीवन एक यात्रा है | इस जीवन यात्रा में मनुष्य अनेकों पड़ावों को पार करता है | इसी जीवन यात्रा का एक मुख्य पड़ाव है विवाह संस्कार | सनातन धर्म में मानव जीवन को चार भागों में विभक्त किया गया है जिन्हें चार आश्रम का नाम दिया गया है | इन्हीं चार आश्रमों में मनुष्य का पूरा जीवन व्यतीत हो जाता है | इन चारों आश्रमों में धन्य एवं महत्वपूर्ण गृहस्थ आश्रम को बताया जाता है | ब्रह्मा जी ने जो सृष्टि की है इसे मैंथुनी सृष्टि कहा जाता है जिसका अर्थ होता है कि जहां नर और नारी मिलकर संतानोत्पत्ति करके सृष्टि का विस्तार करें और यह संभव विवाह संस्कार के बाद ही है , इसलिए विवाह संस्कार जीवन का एक महत्वपूर्ण क्षण है | विवाह को संस्कार का नाम दिया गया है | विवाह में वर को भगवान श्री विष्णु का स्वरूप मानते हुए उसका पूजन किया जाता है और कन्यादान के संकल्प में कन्या के पिता के द्वारा यह कहा जाता है कि मैं अपनी कन्या संतानोत्पत्ति करने के लिए विष्णु स्वरूप वर को प्रदान कर रहा हूं |  जब वर को भगवान विष्णु का स्वरूप मान लिया गया तो वर में गंभीरता भी देखी जाती थी क्योंकि भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता है और विवाह के बाद वर भी पालनकर्ता के स्थान को ग्रहण करता है क्योंकि विवाह के बाद से कन्या (अपनी पत्नी एवं परिवार) के पालन एवं संरक्षण की जिम्मेदारी वर के ऊपर आ जाती है | धीर - गंभीर होकर विवाहवेदी पर वर एवं कन्या सप्तपदी के माध्यम से अपने कर्तव्यों को जानते थे | जीवन में क्या करना है ? क्या नहीं करना है ? इसका ज्ञान होता था | पूर्वकाल में इस दिव्य सनातनी वातावरण में दो अनजान पथ के पथिक एक मार्ग के अनुगामी होते थे और उनका जीवन बहुत ही संतुलित एवं धीर गंभीर होता था | वैवाहिक जीवन को सुंदर एवं सुचारू रूप से चलाने के लिए माताएं अपनी कन्या को शिक्षा देती थी तब नव दंपति अपनी गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करते थे और उनका जीवन बहुत ही मधुरता के साथ व्यतीत होता था | समाज में कहीं भी परिवार के विघटन अर्थात संबंध विच्छेद की घटना नहीं सुनाई पड़ती थी ,  परंतु अब समय परिवर्तित हो गया है अब हम आधुनिक हो गए हैं |*

*आज सनातन धर्म के सारे संस्कार आधुनिकता की भेंट चढ़ते चले जा रहे हैं जिसमें से जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार कहा जाने वाला विवाह संस्कार तो सबसे अधिक आधुनिक होता दिख रहा है | जिस विवाह संस्कार को गृहस्थ आश्रम में प्रवेश का द्वार कहा जाता है वही विवाह संस्कार आज अपनी गंभीरता का त्याग कर चुका है | सारे विधान दिखावा मात्र बनकर रह गए हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के वैवाहिक समारोहों को देखकर यह विचार करता हूं कि जिस वर को विष्णु स्वरूप माना गया था वह वर अपनी मर्यादा एवं अपनी गंभीरता का त्याग कर चुका है | कन्या के द्वार पर पहुंचकर कुछ मित्रों के साथ आज दूल्हा नृत्य करता है यह कहां तक उचित है ? द्वारपूजन में कुछ मित्रों के उकसावे में आकर जब दूल्हा कन्या के द्वार पर नाचता है तो उसके बाद जीवन भर वह नाचता ही रहता है क्योंकि विवाह को ही गृहस्थाश्रम का प्रवेश द्वार कहा जाता है |  जो नाचते हुए किसी घर में प्रवेश करेगा वह घर के अंदर भी पहुंचकर नाचेगा ही ,  इसीलिए आजकल के युवक विवाह करने के बाद नाचते रहते हैं | इतना ही नहीं जयमाल के मंच पर वर एवं कन्या दोनों को नचाया जाता है | जब कन्या को मंच के ऊपर सर्व समाज के समक्ष नृत्य कराया जाता है उसके बाद फिर उस कन्या से ससुराल में पहुंचकर मर्यादा के पालन की अपेक्षा की जाय तो शायद यह मूर्खता ही कही जाएगी | और तो और पुरोहित को शुभ विवाह संस्कार विधिवत पूर्ण करने का समय ही नहीं मिलता जिससे पुरोहित भी भावर करा देने को विवाह संपन्न करने की घोषणा कर देते हैं , क्योंकि उनके पास वर कन्या में संस्कारों का आरोपण करने का समय ही नहीं बचता | यही कारण है कि आज चारों आश्रमों में यदि किसी आश्रम में विघटन एवं अमर्यादित जीवन देखा जाता है तो वह गृहस्थाश्रम दिखाई पड़ता है | जिस गृहस्थाश्रम को हमारे वेदों - पुराणों ने धन्य कहा था आज वही गृहस्थाश्रम नृत्य करता दिखाई पड़ रहा है | इसका एक ही कारण है कि आज विवाह संस्कार समुचित ढंग से संपन्न नहीं हो पा रहे हैं | डीजे की धुन पर नाच लेना , जयमाल के मंच पर अमर्यादित प्रदर्शन करना ही विवाह की पहचान बनता चला जा रहा है | आज पुनः आवश्यकता है कि हम अपने विधानों को जानने का प्रयास करें और विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार को विधिवत संपन्न करने का बीड़ा उठायें , अन्यथा जीवन में कटुता एवं उपेक्षा पूर्ण व्यवहार की वृद्धि होते होते स्थिति संबंध विच्छेद तक पहुंचती ही रहेगी | आज हमने अपनी दिव्यता को , अपने संस्कारों का त्याग कर दिया है यही कारण है कि हम पतित होते चले जा रहे हैं |*

*कितने दिव्य थे हमारे संस्कार जिन्होंने हमारे पूर्वजों को महान बनाया | हमने अपने ही पूर्वजों के संस्कारों का त्याग करने का दुस्साहस किया है | मन में यही विचार उठता है कि "ये कहां आ गए हम" |*
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रचनाएँ
ये कहाँ आ गये हम
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आदिकाल से हमारे संस्कार बहुत ही दिव्य रहे हैं इन्हीं संस्कारों को आधार बना कर हमने विश्व पर शासन किया है ! जहां संस्कारों की बात होती थी सारा विश्व हमारी ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था परिवार , समाज , राजनीति , कूटनीति आदि की शिक्षा सारे विश्व ने हमारे देश भारत से ही प्राप्त किया है परंतु आज हम अपनी मूल संस्कृति को भूलकर आधुनिक होने का दिखावा करने में लगे हुए हैं जिसके कारण आज हम संस्कार विहीन होते चले जा रहे हैं और मन में यह विचार उठता है कि हम क्या थे और क्या हो गए ! आखिर "ये कहां आ गए हम" |
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ये कहाँ आ गये हम - १

2 फरवरी 2022
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*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इस जीवन को पाकर जिसने अपने कर्मों के द्वारा अपना लोक परलोक नहीं सुधार लिया समझ लो उसने खाने और सोने में पूरा जीवन व्यतीत करके व्यर्थ ही इस जीवन को गवा दिया | मानव जीवन में

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ये कहाँ आ गये हम - २

3 फरवरी 2022
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*संसार में जीव माता पिता के माध्यम से आता है , इसीलिए सनातन धर्म में माता-पिता को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है ! और "मातृ देवोभव पितृ देवोभव" की उद्घोषणा की गई थी ! माता पिता के ऋण से कभी भी उऋण न

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ये कहाँ आ गये हम - ३

4 फरवरी 2022
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*इस संसार में चौरासी लाख योनियों के बीच मनुष्य सर्वश्रेष्ठ कहा गया है और मनुष्य ने अपनी वीरता , बुद्धि - विवेक के बल पर समस्त सृष्टि पर शासन भी किया है | सबको एक सूत्र में बांधकर चलने का विवेक ईश्वर न

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ये कहाँ आ गये हम - ४

5 फरवरी 2022
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*यह संसार बड़ा रहस्यमय है ! पग पग पर रहस्यों से भरा हुआ यह संसार एक अबूझ पहेली सिद्ध होता रहा है | सृष्टि के विषय में , समाज के विषय में , धर्मग्रंथों में वर्णित विषयों के विषय में मनुष्य सदैव से जिज्

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ये कहाँ आ गये हम - ५

6 फरवरी 2022
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*मानव जीवन एक यात्रा है | इस जीवन यात्रा में मनुष्य अनेकों पड़ावों को पार करता है | इसी जीवन यात्रा का एक मुख्य पड़ाव है विवाह संस्कार | सनातन धर्म में मानव जीवन को चार भागों में विभक्त किया गया है जि

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ये कहां आ गए हम - भाग ६

12 मार्च 2022
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*इस समाज में अनेको प्रकार के लोग होते हैं जो एक दूसरे के कार्यों की समीक्षा करते हैं ! किसी कार्य के लिए मनुष्य की प्रशंसा होती है तो किसी कार्य के लिए उसकी निंदा भी की जाती है ! प्रशंसा और निंद

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ये कहाँ आ गये हम - भाग - ७

12 अप्रैल 2022
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*सनातन धर्म में जहां एक और सबको समान अधिकार मिले हैं वहीं दूसरी ओर कुछ कृत्य कुछ लोगों के लिए वर्जित भी बताये गये हैं | सनातन धर्म का प्राण हैं भगवान की कथाएं , जिसे कहकर और सुनकर मनुष्य आनंद तो प्राप

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ये कहाँ आ गये हम भाग - ८

25 अप्रैल 2022
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*इस संसार में बिना आधार के कुछ भी नहीं है ! जिस प्रकार एक वृक्ष का आधार उसकी जड़ होती है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु का भी एक आधार होता है | सनातन धर्म के आधार हनारे धर्मग्रन्थ माने जाते हैं

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ये कहाँ आ गये हम - ९ (अहंकार)

7 मई 2022
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*मनुष्य इस संसार में जन्म लेने के बाद अनेक कर्म करता है और उसके सभी कर्म सुख प्राप्त करने की दिशा में ही होते हैं | मनुष्य का लक्ष्य सुख प्राप्त करना होता है | येन केन प्रकारेण मनुष्य के सुख की कामना

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ये सहाँ आ गये हम भाग - १० (जीवन एक परीक्षा)

5 जुलाई 2022
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*चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करके जीव को सुंदर मनुष्य का तन मिलता है !  मानव जीवन पाकर के मनुष्य अपनी इच्छा अनुसार सुंदर जीवन यापन करता है ! इस मानव जीवन में पग पग पर मनुष्य को परीक्षाएं देनी होती है

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वर्ण व्यवस्था एवं समाज :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अक्टूबर 2022
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*सृष्टि के आदिकाल में विराट भगवान के शरीर से मनुष्य की उत्पत्ति हुई ! हमारे वेदों के अनुसार भगवान के मुख से ब्राह्मण , भुजाओं से क्षत्रिय , उदर से वैश्य एवं पैरों से शूद्र का प्राकट्य हुआ ! इस प

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दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2023
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*चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ है मानव योनि ! बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर प्राप्त होता है ,&

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फिल्म जगत एवं सनातन :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जून 2023
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*भारत का इतिहास बहुत ही समृद्धशाली रहा है

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आज का समाज एवं ब्राह्मण: - आचार्य अर्जुन तिवारी

28 दिसम्बर 2023
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*सनातन धर्म की दिव्यता एवं भव्यता आदिकाल से ही रही है ! यदि सनातन धर्म इतना दिव्य एवं भव्य रहा है तो उसका कारण है सनातन के संस्कार एवं संस्कृति ! सनातन के प्रत्येक अनुष्ठान , पूजा पद्धति एवं संस्कारों

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शुक्र एवं गुरु अस्त होने पर न करें विवाह :- आचार्य अर्जुन तिवारी

9 मई 2024
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*सनातन धर्म में संस्कारों का बड़ा महत्व है ! सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का विधान बताया गया है ! जन्म के पहले से लेकर मृत्यु पर्यंत यह सोलह संस्कार मानव जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ! इन

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