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ये कहाँ आ गये हम - ४

5 फरवरी 2022

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*यह संसार बड़ा रहस्यमय है ! पग पग पर रहस्यों से भरा हुआ यह संसार एक अबूझ पहेली सिद्ध होता रहा है | सृष्टि के विषय में , समाज के विषय में , धर्मग्रंथों में वर्णित विषयों के विषय में मनुष्य सदैव से जिज्ञासु रहा है | जिज्ञासा उत्पन्न होना मनुष्य का सहज स्वभाव है |  सनातन धर्म में जितने भी धर्मग्रंथ हैं सब किसी न किसी जिज्ञासा के समाधान में ही लिखे गए हैं | नैमिषारण्य में शौनक इत्यादि अट्ठासी हजार ऋषियों का सत्संग अनवरत चलता रहता था जिसका समाधान सूत जी महाराज किया करते थे और उन्हीं समाधानों पर आधारित होकर ग्रंथों की रचना की गई |  जिज्ञासा उत्पन्न होना बहुत ही सकारात्मक मानसिकता का प्रमाण है परंतु उसका समाधान भी सकारात्मकता से किया जाय तो एक नवीन ज्ञान उत्पन्न होता है और यही हमारे यहां होता चला आया है | किसी की जिज्ञासा के समाधान में जब विद्वान अपना वक्तव्य देते थे तो एक नवीन ज्ञान इस सृष्टि में प्रकाशित होता था | इसीलिए हमारे देश भारत में विशेषकर सनातन धर्म में सत्संग को अधिक महत्व दिया गया है क्योंकि सत्संग ही वह माध्यम है जहां से नित्य नए-नए ज्ञान का उदय होता था |  भगवान की नौ प्रकार की भक्ति में प्रथम स्थान सत्संग को ही दिया गया है क्योंकि सत्संग किए बिना कोई भी कुछ नहीं प्राप्त कर सकता | सत्संग का अर्थ यह कदापि नहीं लगाना चाहिए की धार्मिक विषयों पर ही चर्चा की जाय किसी भी विषय पर जिज्ञासु बनकर सत्संग किया जा सकता है | यदि मनुष्य के अंदर जिज्ञासा ना होती तो शायद आज इतना विकास ना हुआ होता , विकास का आधार सत्संग एवं उनमें प्रकट की गई जिज्ञासायें ही है | इसलिए प्रत्येक मनुष्य को सत्संग के महत्व को समझते हुए इस में भाग लेना चाहिए और अपने हृदय में उत्पन्न हो रही सकारात्मक जिज्ञासाओं को विद्वानों के समक्ष रखना चाहिए जिससे कि उनको उसका उचित समाधान मिल सके और अज्ञान का अंधकार दूर हो | हमारा देश भारत यदि विश्वगुरु बना था तो उसका आधार यही सत्संग तथा सत्संग में रखी गई जिज्ञासा और उनके समाधान में प्रसारित नवीन ज्ञान ही था परंतु आज हम अपने मार्ग से भटक रहे है |*

*आज सत्संगशालायें विलुप्त होती जा रही है , सत्संग का स्थान आज इंटरनेट के सशक्त माध्यम व्हाट्सएप आदि ने ले लिया है , जहां पर अनेक विद्वान एकत्र होकर के सत्संग करते हैं | कहीं जिज्ञासाओं का समाधान किया जाता है तो कहीं रामचरित मानस की चौपाइयों के भाव लिखकर सत्संग किया जा रहा है | परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज सत्संग में अधिकतर विद्वान अपने शास्त्रों का अध्ययन नहीं करना चाहते बल्कि इंटरनेट के सशक्त माध्यम गूगल से उठाकर समाधान कर देना चाहते हैं और जो समाधान वो कर रहे हैं शायद उसको वह भी पूरा नहीं पढ़ते | घर-घर में मानस का पाठ होता है परंतु जब मानस के किसी चौपाई पर अपना भाव लिखना होता है तो भी हमारे विद्वान एक शब्द नहीं लिखना चाहते और गूगल से ही कॉपी करके समाधान एवं भाव के रूप में उसको समूहों में प्रस्तुत करके वाहवाही लूट रहे हैं | बड़ा हास्यास्पद लगता है कि जिस सत्संग को आधार बनाकर हमारे पूर्वजों ने गूढ़ से गूढ़तम ज्ञान प्राप्त किया था आज वही सत्संग वाहवाही लूटने के साथ-साथ मनोरंजन का साधन बनता जा रहा है |  लोग विचार करते हैं कि आखिर कौन से जिज्ञासा रखूँ ? जिज्ञासा का अर्थ ही नहीं समझ पाते | यदि आधुनिक युग की बात की जाय तो एक बैज्ञानिक के मस्तिष्क में यदि जिज्ञासायें न उत्पन्न होती तो शायद इतना विकास ना हो पाता |  वैज्ञानिकता का आधार भी जिज्ञासा ही है इसलिए प्रत्येक मनुष्य को जिज्ञासा के समाधान में अपने शास्त्रों का अध्ययन करके सटीक समाधान करने का प्रयास करना चाहिए | मानस की चौपाइयों पर अपने भाव लिखकर के प्रस्तुत करना चाहिए परंतु आज विद्वान बनने की होड़ में लोग एक शब्द भी नहीं लिखना चाहते और जल्दी से जल्दी अपना भाव प्रस्तुत कर देना चाहते हैं | ऐसे में हमको क्या प्राप्त हो रहा है यह हम स्वयं नहीं जान पाते |*

*हमने अपने पूर्वजों के द्वारा स्थापित किए गए मानदंडों को भूलने का कार्य किया है ! हम वह थे जिसके समक्ष समस्त विश्व नतमस्तक होता था परंतु हम क्या हो गए हैं यह चिंतनीय विषय है ! प्रायः मन में यह विचार आता है कि आखिर "ये कहां आ गए हम" !*
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रचनाएँ
ये कहाँ आ गये हम
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आदिकाल से हमारे संस्कार बहुत ही दिव्य रहे हैं इन्हीं संस्कारों को आधार बना कर हमने विश्व पर शासन किया है ! जहां संस्कारों की बात होती थी सारा विश्व हमारी ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था परिवार , समाज , राजनीति , कूटनीति आदि की शिक्षा सारे विश्व ने हमारे देश भारत से ही प्राप्त किया है परंतु आज हम अपनी मूल संस्कृति को भूलकर आधुनिक होने का दिखावा करने में लगे हुए हैं जिसके कारण आज हम संस्कार विहीन होते चले जा रहे हैं और मन में यह विचार उठता है कि हम क्या थे और क्या हो गए ! आखिर "ये कहां आ गए हम" |
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ये कहाँ आ गये हम - १

2 फरवरी 2022
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*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इस जीवन को पाकर जिसने अपने कर्मों के द्वारा अपना लोक परलोक नहीं सुधार लिया समझ लो उसने खाने और सोने में पूरा जीवन व्यतीत करके व्यर्थ ही इस जीवन को गवा दिया | मानव जीवन में

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ये कहाँ आ गये हम - २

3 फरवरी 2022
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*संसार में जीव माता पिता के माध्यम से आता है , इसीलिए सनातन धर्म में माता-पिता को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है ! और "मातृ देवोभव पितृ देवोभव" की उद्घोषणा की गई थी ! माता पिता के ऋण से कभी भी उऋण न

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ये कहाँ आ गये हम - ३

4 फरवरी 2022
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*इस संसार में चौरासी लाख योनियों के बीच मनुष्य सर्वश्रेष्ठ कहा गया है और मनुष्य ने अपनी वीरता , बुद्धि - विवेक के बल पर समस्त सृष्टि पर शासन भी किया है | सबको एक सूत्र में बांधकर चलने का विवेक ईश्वर न

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ये कहाँ आ गये हम - ४

5 फरवरी 2022
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*यह संसार बड़ा रहस्यमय है ! पग पग पर रहस्यों से भरा हुआ यह संसार एक अबूझ पहेली सिद्ध होता रहा है | सृष्टि के विषय में , समाज के विषय में , धर्मग्रंथों में वर्णित विषयों के विषय में मनुष्य सदैव से जिज्

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ये कहाँ आ गये हम - ५

6 फरवरी 2022
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*मानव जीवन एक यात्रा है | इस जीवन यात्रा में मनुष्य अनेकों पड़ावों को पार करता है | इसी जीवन यात्रा का एक मुख्य पड़ाव है विवाह संस्कार | सनातन धर्म में मानव जीवन को चार भागों में विभक्त किया गया है जि

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ये कहां आ गए हम - भाग ६

12 मार्च 2022
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*इस समाज में अनेको प्रकार के लोग होते हैं जो एक दूसरे के कार्यों की समीक्षा करते हैं ! किसी कार्य के लिए मनुष्य की प्रशंसा होती है तो किसी कार्य के लिए उसकी निंदा भी की जाती है ! प्रशंसा और निंद

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ये कहाँ आ गये हम - भाग - ७

12 अप्रैल 2022
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*सनातन धर्म में जहां एक और सबको समान अधिकार मिले हैं वहीं दूसरी ओर कुछ कृत्य कुछ लोगों के लिए वर्जित भी बताये गये हैं | सनातन धर्म का प्राण हैं भगवान की कथाएं , जिसे कहकर और सुनकर मनुष्य आनंद तो प्राप

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ये कहाँ आ गये हम भाग - ८

25 अप्रैल 2022
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*इस संसार में बिना आधार के कुछ भी नहीं है ! जिस प्रकार एक वृक्ष का आधार उसकी जड़ होती है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु का भी एक आधार होता है | सनातन धर्म के आधार हनारे धर्मग्रन्थ माने जाते हैं

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ये कहाँ आ गये हम - ९ (अहंकार)

7 मई 2022
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*मनुष्य इस संसार में जन्म लेने के बाद अनेक कर्म करता है और उसके सभी कर्म सुख प्राप्त करने की दिशा में ही होते हैं | मनुष्य का लक्ष्य सुख प्राप्त करना होता है | येन केन प्रकारेण मनुष्य के सुख की कामना

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ये सहाँ आ गये हम भाग - १० (जीवन एक परीक्षा)

5 जुलाई 2022
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*चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करके जीव को सुंदर मनुष्य का तन मिलता है !  मानव जीवन पाकर के मनुष्य अपनी इच्छा अनुसार सुंदर जीवन यापन करता है ! इस मानव जीवन में पग पग पर मनुष्य को परीक्षाएं देनी होती है

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वर्ण व्यवस्था एवं समाज :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अक्टूबर 2022
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*सृष्टि के आदिकाल में विराट भगवान के शरीर से मनुष्य की उत्पत्ति हुई ! हमारे वेदों के अनुसार भगवान के मुख से ब्राह्मण , भुजाओं से क्षत्रिय , उदर से वैश्य एवं पैरों से शूद्र का प्राकट्य हुआ ! इस प

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दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2023
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*चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ है मानव योनि ! बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर प्राप्त होता है ,&

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फिल्म जगत एवं सनातन :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जून 2023
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*भारत का इतिहास बहुत ही समृद्धशाली रहा है

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आज का समाज एवं ब्राह्मण: - आचार्य अर्जुन तिवारी

28 दिसम्बर 2023
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*सनातन धर्म की दिव्यता एवं भव्यता आदिकाल से ही रही है ! यदि सनातन धर्म इतना दिव्य एवं भव्य रहा है तो उसका कारण है सनातन के संस्कार एवं संस्कृति ! सनातन के प्रत्येक अनुष्ठान , पूजा पद्धति एवं संस्कारों

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शुक्र एवं गुरु अस्त होने पर न करें विवाह :- आचार्य अर्जुन तिवारी

9 मई 2024
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*सनातन धर्म में संस्कारों का बड़ा महत्व है ! सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का विधान बताया गया है ! जन्म के पहले से लेकर मृत्यु पर्यंत यह सोलह संस्कार मानव जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ! इन

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इंसानियत

8 अगस्त 2024
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इंसानियत इंसान की पहचान है ! इंसानियत होने से वह इंसान है !! इंसानियत जिसमें नहीं इंसान क्या ! इंसान होकर भी पशु के समान है !! १ आज करुणा प्रेम गायब हो गये ! मन के सारे भाव शायद सो गये !! कुटिल

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