*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इस जीवन को पाकर जिसने अपने कर्मों के द्वारा अपना लोक परलोक नहीं सुधार लिया समझ लो उसने खाने और सोने में पूरा जीवन व्यतीत करके व्यर्थ ही इस जीवन को गवा दिया | मानव जीवन में संस्कारों का बहुत बड़ा महत्व है , यही संस्कार मनुष्य के पूरे जीवन में परिलक्षित होते दिखाई पड़ते हैं | मनुष्य के जीवन में संस्कारों का आरोपण गर्भ से ही होने लगता है | गर्भकाल में माता का जैसा आचरण होता है वैसी संतान उत्पन्न होती है | यह संस्कारों का महत्व है कि राक्षसों के राजा हिरणाकश्यप के यहां प्रहलाद तथा पुलस्त्य जैसे उच्च कुलीन ऋषि के कुल में रावण जैसे दुर्दांत निशाचर का जन्म होता है | यदि ऐसा घोर आश्चर्य हुआ तो इसमें माता के कृत्य ही मुख्य हैं | जहां प्रहलाद की माता कयाधू गर्भकाल में मुनियों के आश्रम में रहकर श्री राम नाम का संकीर्तन श्रवण करती थी वही रावण की माता केकशी राक्षसोचित कर्म करती थी | पूर्व काल में जब गृहिणी गर्भधारण करती थी तो उसे रामायण - गीता का पाठ सुनाया जाता था , धार्मिक कथाएं सुनाई जाती थी और उसके द्वारा सद्कार्य कराए जाते थे जिसका प्रभाव सीधे-सीधे बालक के मन पर पड़ता था और बालक गर्भ से ही संस्कार धारण करने लगता था | तब प्रह्लाद , ध्रुव , राम - कृष्ण तथा विवेकानंद जैसे संताने प्राप्त होती थी | बालक के जीवन पर उसके नाम का भी बड़ा प्रभाव पड़ता है | "यथा नाम तथा गुण" कहा गया है | बालक का जैसा नाम होता है उसका जीवन उसी प्रकार ढलने लगता है ! इसीलिए हमारे पूर्वज अपनी संतानों का नाम राम , कृष्ण , रामशंकर , रामनाथ , कृपाशंकर आदि रखते थे ! कन्या का नाम सीता , सावित्री , गायत्री , अनुसूया आदि रखा जाता था | इसका लाभ यह होता था कि माता-पिता अपने बच्चे का नाम पुकारने के साथ ही भगवन्नाम का उच्चारण भी करते थे , और यह नामकरण पुरोहित के द्वारा कराया जाता था , जिसमें बालक के जन्म समय के ग्रह गोचर देख करके तब उनका नामकरण किया जाता था | इन सबके साथ सबसे महत्वपूर्ण होता था कि परिवार का संस्कार कैसा है ! परिवार का जैसा परिवेश होता है बालक वैसा ही आचरण करना प्रारंभ कर देता है | जिस गर्भवती माता ने गर्भकाल में अपने बच्चे के सुरक्षित भविष्य के लिए अपने कर्मों को सकारात्मक रखा , नामकरण भी विधिवत कराया और परिवार को संस्कारित किया उसी परिवार में जन्म लेने के बाद बालक संस्कारी बनकर समाज में माता-पिता का नाम उज्जवल करता था , परंतु आज पुरातन के रीति रिवाज लगभग समाप्त होते दिख रहे हैं |*
*आज समाज से संस्कार लगभग समाप्त होते दिख रहे हैं | सृजनकर्त्री माता आज आधुनिक हो गई है | गर्भधारण करने के बाद जहां पूर्व काल में माताएं सदकार्य करते हुए धार्मिक प्रवचनों का श्रवण एवं धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन आदि करती थी उन्हें कथाएं सुनाई जाती थी वही आज इन धार्मिक प्रवचनों - कथाओं का स्थान टेलीविजन ने ले लिया है | जहां दिनभर एक्शन एवं मारधाड़ से भरपूर फिल्में तथा सास बहू के धारावाहिक देख कर माताएं अपना समय व्यतीत कर रही हैं | जिसका प्रभाव बालक के मन पर होता दिख रहा है | यही कारण है कि आज अधिकतर संतानें जन्म से ही क्रोधी एवं कूटनीति , छल - कपट करने वाली हो रही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि इसमें बालक का कोई दोष नहीं है क्योंकि गर्भकाल में जो संस्कार उसमें आरोपित किए गए हैं उन्हीं संस्कारों को लेकर वह इस संसार में पदार्पण करता है | नामकरण करने के लिए आज पुरोहित को बुलाना लोगों को खर्चे वाला काम लगता है और अपने मन से लोग बड़े प्रेम से अपने संतान का नाम बबलू , डब्लू , कल्लू , लल्लू , डॉली , गुड़िया , पिंकी , रिंकी आदि ही रख लेते हैं | जिसका प्रभाव है कि आज अधिकतर संतानें लल्लू बनकर ही घूमा करती है | परिवार का परिवेश आज बहुत अच्छा नहीं दिख रहा है | लोग यह तो चाहते हैं कि हमारी संतान सुबह उठकर हमारे पाँव छुए लेकिन वे स्वयं अपने माता-पिता के पांव नहीं छूना चाहते | बालक का मन बड़ा कोमल होता है वह परिवार में जो भी देखता है उसके मस्तिष्क पर उसका सीधा प्रभाव पड़ता है | आज अपनी संतानों के सामने ही अपने माता पिता को अपशब्द कहकर तिरस्कृत करने वाले यदि यह सोचते हैं कि हमारी संतान हमारा बड़ा आदर करेगी तो यह उनकी मूर्खता ही है क्योंकि वह बालक देख रहा है कि हमारे परिवार में माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है | वही प्रभाव उसके मस्तिष्क पर भी पड़ता है और आगे चलकर वही बालक आपके साथ वही व्यवहार करेगा जो आपने अपने माता-पिता के साथ किया है | यही सारे संस्कार लेकर बालक समाज में भी जाता है | यदि अपने बालक को ध्रुव , प्रहलाद जैसा बनाना है तो गर्भकाल से ही उसकी तैयारी करनी होगी | सृष्टि रचना के पहले ब्रह्मा जी ने भी तपस्या की थी तब इतनी सुन्दर सृष्टि की रचना हो पाई है | किसी बालक को जन्म देना सृष्टि रचना ही है इसलिए माता-पिता को तपस्या करनी ही होगी अन्यथा संस्कार विहीन समाज इसी प्रकार के कुकृत्य करता रहेगा |*
*विचार कीजिए कि हम कहां थे और कहां आ गए | यदि आज एक विशेष परिवर्तन दिख रहा है तो इसका कारण कोई दूसरा नहीं बल्कि हम स्वयं हैं क्योंकि हमने अपने संस्कारों को भुला दिया है |*