*भारत का इतिहास बहुत ही समृद्धशाली रहा है ! सनातन संस्कृति अपने आप में देदीप्यमान एवं संरक्षित / सुरक्षित रही है ! यदि इतिहास देखा जाए तो सनातन को यदि क्षत-विक्षत करने का प्रयास किया गया या सनातन पर कुठाराघात करने का प्रयास किया गया तो उसके पीछे कोई न कोई सनातनी ही अवश्य रहा है ! यदि कुल्हाड़ी लकड़ी को काटती है तो उस कुल्हाड़ी में लकड़ी का ही वेंट लगा होता है । लोग बड़ी ही मस्ती के साथ उदाहरण दे देते हैं यदि विभीषण ना होता तो लंका न जली होती यहां चर्चा मात्र विभीषण की नहीं बल्कि प्रत्येक उस सनातन धर्मी की होनी चाहिए जो सनातन के विरोधियों के साथ बैठकर गप्पे मारता है । स्वयं को हिंदू एवं सनातनी कहने वाला जब सनातन के विरोध में भाषण देने लगता है या ऐसे मुद्दों पर बात करने लगता है जो सनातन को क्षति पहुंचाने वाले हो तो ऐसे लोगों को विभीषण की संज्ञा दिया जाना कदापि अनुचित नहीं है । सनातन सदैव से देदीप्यमान रहा है और रहेगा क्योंकि सत्य कभी पराजित नहीं होता । सृष्टि के आदिकाल से सनातन धर्म इस भूभाग पर विद्यमान है और प्रलय काल तक विद्यमान रहेगा इसे मिटाने वाले मिट गए इसका विरोध करने वाले धरातल में चले गए परंतु सनातन आज भी धर्म ध्वजा को पहरा रहा है । आज समाज के तथाकथित ठेकेदार जो स्वयं को सनातनी कहते हैं जिसमें ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य सभी वर्ण सम्मिलित है परंतु जहां सनातन की बात आती है वे सनातन के विरोध में ही बोलते हैं । जब विरोध ही करना है तो सनातनी किस बात का ? ऐसे लोगों का बहिष्कार ना करके हम सभी भी सनातन का विरोध ही कर रहे हैं ।*
*आजकल समाज में गांव से लेकर शहर तक एक ही चर्चा सुनाई पड़ रही है फिल्म जगत की । फिल्म जगत ने एक फिल्म बनाकर परोसी है जिसे नाम दिया है "आदि पुरुष" । आज चारों ओर आदि पुरुष की चर्चा एवं विरोध के श्वर सुनाई पड़ रहे हैं । आदि पुरुष फिल्म बनाने वाले दुर्भाग्य से सनातन धर्म के है परंतु उन मूर्खों को शायद यह नहीं पता है कि भगवान श्री राम आदि पुरुष नहीं बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम है जिसे हमारे पुराणों ने पुरुषोत्तम की संख्या दी है उसे मात्र पुरुष कहकर और अमर्यादित भाषा का प्रयोग उनसे कराके किस सनातन धर्म का पालन किया जा रहा है । मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" तो यह कहना चाहता हूं कि आज यदि ऐसे विषयों का विरोध करना है तो ऐसे लोगों का त्याग कर देना चाहिए जो समाज में इस प्रकार के विरोधाभासी विषयों को लेकर आते हैं । ऐसे लोगों की प्रसिद्धि का कारण भी हम आप ही हैं । घटिया संवादों के साथ सनातन संस्कृति को मिटाने का जो कुत्सित प्रयास फिल्म जगत के द्वारा किया गया है और उनके दे वाला किया गया है जो स्वयं को सनातन धर्मी कहते हैं तो यह स्वयं उनके लिए डूब मरने की बात है और साथ ही उन लोगों के लिए भी डूब मरने की बात है जो ऐसी फिल्मों को देखने जा रहे हैं । सनातन सदैव से "सर्वे भवंतू सुखिन:" का मार्ग अपनाता रहा है परंतु सनातन पर समय-समय पर कुठाराघात होता रहा है और यह कुठाराघात तथाकथित सनातनियों के द्वारा ही होता है इससे सनातन धर्म का कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं है परंतु इस प्रकार के विषयों को समाज में ले कर आने वालों का पतन अवश्य निश्चित हैं । जिसने भी सनातन के साथ अनर्गल कृत्य करने का प्रयास किया है उसके साथ प्रकृति स्वयं न्याय कर दिया है क्योंकि कर्म फल का सिद्धांत अटल है ।*
*आदिपुरुष उन लोगों के लिए एक सबक है जो फिल्म जगत को ही अपना भगवान मानते हैं । समय आ गया है कि ऐसे लोगों के मन्तव्य को समझा जाय ।*