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वर्ण व्यवस्था एवं समाज :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अक्टूबर 2022

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*सृष्टि के आदिकाल में विराट भगवान के शरीर से मनुष्य की उत्पत्ति हुई ! हमारे वेदों के अनुसार भगवान के मुख से ब्राह्मण , भुजाओं से क्षत्रिय , उदर से वैश्य एवं पैरों से शूद्र का प्राकट्य हुआ !  इस प्रकार मानव समाज चार वर्णों में विभाजित हुआ ! यदि वैदिक काल की वर्ण व्यवस्था देखी जाय तो वहां पर कर्म के आधार पर वर्ण का निर्धारण किया गया है ! चारों ही वर्ण मानव समाज के आधार स्तंभ है , एक दूसरे के बिना समाज में इनका रह पाना असंभव है !  ब्राह्मण मुख माना गया है , मनुष्य अपना जीवन यापन करने के लिए मुख के द्वारा ही भोजन ग्रहण करता है जिससे उसका जीवन यापन होता है , तो वही भुजा को क्षत्रिय कहा गया है जब तक हाथ का प्रयोग नहीं किया जाएगा तब तक मुख में भोजन नहीं जा सकता ! भोजन जाएगा तो कहाँ ? उदर में ! उदर क्या है ? वैश्य !  उदरपूर्ति के लिए मनुष्य को अपने पैरों पर चलकर ही परिश्रम करना होगा ! पैर की संज्ञा शूद्र को दी गई है ! इस प्रकार यदि देखा जाय तो जब तक चारों वर्णों का सामंजस्य नहीं होगा तब तक ना तो मानव शरीर व्यवस्थित रह सकता है और ना ही यह समाज ! चारों ही वर्ण मिलकर के समाज का निर्माण करते हैं ! एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही नहीं है !  ब्राम्हण को मस्तक माना गया है ! जिस प्रकार मानव शरीर मस्तिष्क से संचालित होता है उसी प्रकार यह समाज भी ब्राह्मण के बताए हुए कर्मों - धर्मों का पालन करके उन्नति को प्राप्त करता है !  यदि मस्तिष्क यह चाहे फिर मैं अकेले ही रहूं बाकी शरीर के सारे अंग व्यर्थ है तो विचार कीजिए शरीर में भुजा , उदर एवं पैर ना रह जायं तो अकेला मस्तिष्क क्या कर सकता है ! मानव शरीर के मुख की शोभा उसके सभी अंगों से हैं यदि एक भी अंग विकृत हो जाता है तो मुख की शोभा कांतिहीन हो जाती है और उसे अंगहीन कहकर पुकारा जाने लगता है !  सनातन धर्म का सबसे प्राचीन धर्मग्रंथ वेदों को कहा गया है ! वेदों में चारों वर्णों को सामान बताते हुए उनके कर्मों के अनुसार वर्गीकरण किया गया है ! मानव शरीर का आधार उसके पैर ही है शायद इसीलिए वेदों  में अति परिश्रमी कठिन कार्य करने वाले को शूद्र कहा है "तपसे शूद्रम्" और इसीलिए पुरुष सूक्त शूद्र को सम्पूर्ण मानव समाज का आधार स्तंभ कहता है ! समाज में वर्ण व्यवस्था का बहुत महत्व है , एक भी वर्ण यदि असुरक्षित हो जाता है तो संपूर्ण समाज असुरक्षित होने लगता है !*

*आज वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गई है ! ब्राह्मण , क्षत्रिय ,  वैश्य , शूद्र यह वर्ण न रहकर के जातियों में बदल गयी हैं , और प्रत्येक जाति में कुछ मदांध लोग जो स्वयं को इन जातियों का ठेकेदार मानते हैं एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं ! उनको शायद यह नहीं पता है कि जिस ब्राह्मण को विराट भगवान का मुख कहा गया है जिस के मुखमंडल में मस्तिष्क होता है वह किसी को प्रणाम करते समय शूद्र कहे जाने वाले पैरों पर ही गिरता है !  ब्राह्मणवर्णी मस्तिष्क (सिर) शुद्रवर्णी पैरों पर गिर करके प्रणाम करता है !  इसका कारण मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" जहां तक समझ पा रहा हूं उसके अनुसार यही है कि जिस प्रकार मानव शरीर में पैर एक महत्वपूर्ण अंग है उसी प्रकार समाज में प्रत्येक वर्णों के साथ-साथ शूद्र वर्ण का विशेष स्थान है इनके परिश्रम के कारण ही आज पूरा समाज आनंद मना रहा है ! क्षत्रिय वर्ण ना होता तो देश की रक्षा ना हो पाती !  यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि वीरोचित कर्म करने वाले को ही क्षत्रिय कहा गया है , जिनके बल कौशल के द्वारा देश एवं समाज की रक्षा की जाती है ! यदि वैश्यवर्ण ना होता तो शायद मानव समाज की उदरपूर्ति ना हो पाती !  कहने का तात्पर्य है कि कोई भी वर्ण हो वह ना तो किसी से कम है ना ही उनकी उपयोगिता कम है परंतु कुछ लोग अपने पद के अहंकार में इतना ज्यादा अंधे हो चुके हैं उनको स्वयं के अतिरिक्त और कोई दिखता ही नहीं है ! यही विचार समाज के लिए घातक ही सिद्ध हो रहा है ! समाज में विघटन होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि आज लोग एक दूसरे को नीचा दिखा कर दोषारोपण करने का प्रयास कर रहे हैं ! हमारे वेदों के वक्तव्य को समझ कर के उनकी सूक्तियों का पाठ करके मानव समाज को यह समझने का प्रयास करना होगा कि चारों ही वर्ण विराट भगवान के ही अंग है और सब की उपादेयता अपने अपने स्थान पर सही है ! आज समाज के प्रबुद्ध लोगों को इस पर विचार करने की आवश्यकता है !*

*वर्ण व्यवस्था से जाति व्यवस्था पर आ गए समाज को व्यवस्थित एवं संगठित करने का कार्य प्रत्येक वर्ण के प्रबुद्ध लोगों को करने का प्रयास करना चाहिए अन्यथा वह दिन दूर नहीं है जब कुछ मदान्ध लोग अपने षड़यंत्र में सफल हो जाएंगे और मानव जाति विनाश के मुख मैं चली जाएगी !*
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रचनाएँ
ये कहाँ आ गये हम
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आदिकाल से हमारे संस्कार बहुत ही दिव्य रहे हैं इन्हीं संस्कारों को आधार बना कर हमने विश्व पर शासन किया है ! जहां संस्कारों की बात होती थी सारा विश्व हमारी ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था परिवार , समाज , राजनीति , कूटनीति आदि की शिक्षा सारे विश्व ने हमारे देश भारत से ही प्राप्त किया है परंतु आज हम अपनी मूल संस्कृति को भूलकर आधुनिक होने का दिखावा करने में लगे हुए हैं जिसके कारण आज हम संस्कार विहीन होते चले जा रहे हैं और मन में यह विचार उठता है कि हम क्या थे और क्या हो गए ! आखिर "ये कहां आ गए हम" |
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ये कहाँ आ गये हम - १

2 फरवरी 2022
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*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इस जीवन को पाकर जिसने अपने कर्मों के द्वारा अपना लोक परलोक नहीं सुधार लिया समझ लो उसने खाने और सोने में पूरा जीवन व्यतीत करके व्यर्थ ही इस जीवन को गवा दिया | मानव जीवन में

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ये कहाँ आ गये हम - २

3 फरवरी 2022
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*संसार में जीव माता पिता के माध्यम से आता है , इसीलिए सनातन धर्म में माता-पिता को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है ! और "मातृ देवोभव पितृ देवोभव" की उद्घोषणा की गई थी ! माता पिता के ऋण से कभी भी उऋण न

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ये कहाँ आ गये हम - ३

4 फरवरी 2022
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*इस संसार में चौरासी लाख योनियों के बीच मनुष्य सर्वश्रेष्ठ कहा गया है और मनुष्य ने अपनी वीरता , बुद्धि - विवेक के बल पर समस्त सृष्टि पर शासन भी किया है | सबको एक सूत्र में बांधकर चलने का विवेक ईश्वर न

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ये कहाँ आ गये हम - ४

5 फरवरी 2022
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*यह संसार बड़ा रहस्यमय है ! पग पग पर रहस्यों से भरा हुआ यह संसार एक अबूझ पहेली सिद्ध होता रहा है | सृष्टि के विषय में , समाज के विषय में , धर्मग्रंथों में वर्णित विषयों के विषय में मनुष्य सदैव से जिज्

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ये कहाँ आ गये हम - ५

6 फरवरी 2022
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*मानव जीवन एक यात्रा है | इस जीवन यात्रा में मनुष्य अनेकों पड़ावों को पार करता है | इसी जीवन यात्रा का एक मुख्य पड़ाव है विवाह संस्कार | सनातन धर्म में मानव जीवन को चार भागों में विभक्त किया गया है जि

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ये कहां आ गए हम - भाग ६

12 मार्च 2022
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*इस समाज में अनेको प्रकार के लोग होते हैं जो एक दूसरे के कार्यों की समीक्षा करते हैं ! किसी कार्य के लिए मनुष्य की प्रशंसा होती है तो किसी कार्य के लिए उसकी निंदा भी की जाती है ! प्रशंसा और निंद

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ये कहाँ आ गये हम - भाग - ७

12 अप्रैल 2022
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*सनातन धर्म में जहां एक और सबको समान अधिकार मिले हैं वहीं दूसरी ओर कुछ कृत्य कुछ लोगों के लिए वर्जित भी बताये गये हैं | सनातन धर्म का प्राण हैं भगवान की कथाएं , जिसे कहकर और सुनकर मनुष्य आनंद तो प्राप

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ये कहाँ आ गये हम भाग - ८

25 अप्रैल 2022
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*इस संसार में बिना आधार के कुछ भी नहीं है ! जिस प्रकार एक वृक्ष का आधार उसकी जड़ होती है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु का भी एक आधार होता है | सनातन धर्म के आधार हनारे धर्मग्रन्थ माने जाते हैं

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ये कहाँ आ गये हम - ९ (अहंकार)

7 मई 2022
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*मनुष्य इस संसार में जन्म लेने के बाद अनेक कर्म करता है और उसके सभी कर्म सुख प्राप्त करने की दिशा में ही होते हैं | मनुष्य का लक्ष्य सुख प्राप्त करना होता है | येन केन प्रकारेण मनुष्य के सुख की कामना

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ये सहाँ आ गये हम भाग - १० (जीवन एक परीक्षा)

5 जुलाई 2022
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*चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करके जीव को सुंदर मनुष्य का तन मिलता है !  मानव जीवन पाकर के मनुष्य अपनी इच्छा अनुसार सुंदर जीवन यापन करता है ! इस मानव जीवन में पग पग पर मनुष्य को परीक्षाएं देनी होती है

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दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2023
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*चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ है मानव योनि ! बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर प्राप्त होता है ,&

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फिल्म जगत एवं सनातन :- आचार्य अर्जुन तिवारी

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*सनातन धर्म की दिव्यता एवं भव्यता आदिकाल से ही रही है ! यदि सनातन धर्म इतना दिव्य एवं भव्य रहा है तो उसका कारण है सनातन के संस्कार एवं संस्कृति ! सनातन के प्रत्येक अनुष्ठान , पूजा पद्धति एवं संस्कारों

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शुक्र एवं गुरु अस्त होने पर न करें विवाह :- आचार्य अर्जुन तिवारी

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*सनातन धर्म में संस्कारों का बड़ा महत्व है ! सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का विधान बताया गया है ! जन्म के पहले से लेकर मृत्यु पर्यंत यह सोलह संस्कार मानव जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ! इन

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