*सनातन धर्म में संस्कारों का बड़ा महत्व है ! सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का विधान बताया गया है ! जन्म के पहले से लेकर मृत्यु पर्यंत यह सोलह संस्कार मानव जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ! इन सोलह संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है "विवाह संस्कार" क्योंकि विवाह संस्कार संपन्न होने के बाद ही मनुष्य दांपत्य जीवन में प्रवेश करता है ! इसलिए हमारे मनीषियों ने विवाह संस्कार संपन्न करने के लिए अनेक विधान बताये हैं ! ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों का मानव जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है ! नवग्रह एवं बारह राशियां प्रत्येक मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती हैं ! विवाह संस्कार में राशि एवं ग्रहों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है ! इसलिए जीवन के महत्वपूर्ण संस्कार विवाह विधान में इन ग्रहों एवं राशियों का विशेष ध्यान रखकर इसे संपन्न करना चाहिए ! प्रत्येक ग्रह मनुष्य के जीवन के किसी न किसी पहलू को प्रभावित करता है ! इसी प्रकार विवाह में भी शुक्र ग्रह एवं गुरु ग्रह को विशेष महत्व दिया गया है ! शुक्रास्त होने पर या गुरु अस्त होने पर विवाह विधान कदापि भी नहीं संपन्न किया जा सकता है , क्योंकि विवाह का कारक शुक्र ग्रह जब अस्त होता है तो भला वैवाहिक कार्यक्रम कैसे संपन्न किया जा सकता है ? जहां शुक्रास्त होने पर मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं वही एक महत्वपूर्ण (विवाह) संस्कार जो जीवन को नई दिशा और दशा प्रदान करता है वह विवाह संस्कार भला कैसे संपन्न किया जा सकता है ! हमारे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्र ग्रह भोग विलास का नैसर्गिक कारण होने के कारण दांपत्य सुख का प्रतिनिधि होता है , वहीं गुरु ग्रह कन्या के लिए पति कारक होता है ! इन दोनों ग्रहों का अस्त होना दांपत्य जीवन के लिए हानिकारक माना गया है ! विवाह मुहूर्त निकालते समय यदि गुरु व शुक्र अस्त हो तो विवाह कदापि नहीं करना चाहिए ! गुरु और शुक्र के उदय होने पर ही विवाह करना शास्त्र सम्मत है ! परंतु आज समाज की धारणा शायद परिवर्तित हो गयी , और इसमें पौरोहित्य करने वाले कुछ तथाकथित विद्वानों की भी भागीदारी देखी जा रही है जो अपने यजमान की इच्छा के आगे शास्त्रमत को किनारे करते दिख रहे हैं !*
*आज समाज सारे विधान अपनी सुविधा के अनुसार करना चाहता है ! ऐसे में समाज के कुछ पुरोधा या तथाकथित विद्वान शुक्रास्त एवं गुरुवस्त में भी अबूझ मुहूर्त बता कर यजमानों को विवाह , सगाई , गोद भराई या वर वरण आदि का मुहूर्त बताते हुए दिख रहे हैं ! आने वाले समय में जबकि शुक्र एवं गुरु अस्त है तो भी कुछ विद्वानों के द्वारा अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त बता करके विवाह संपन्न कर लेने की सलाह दी जा रही है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे सभी तथा कथित विद्वानों एवं यजमानों से यही पूंछना चाहता हूं कि जब विवाह का कारक शुक्र ग्रह अस्त है , कन्या के लिए पति का कारक गुरु ग्रह भी अस्त है तो ऐसे में विवाह संपन्न कराने की सलाह देना कहां तक उचित है ? यह सत्य है कि अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त है , परंतु क्या यह अबूझ मुहूर्त विवाह आदि संपन्न करने के लिए उचित है ? जबकि हमारे शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है की शुक्र अस्त होने पर यदि विवाह संपन्न किया जाता है तो वैवाहिक जीवन में विषम परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं ! यहां तक कि कभी-कभी वैवाहिक संबंध विच्छेद भी होते देखे गए हैं ! यदि अबूझ मुहूर्त को विवाह संपन्न कराया जा सकता तो पंचांगकारों ने इसका वर्णन क्यों नहीं किया ! क्या उनको इस विषय का ज्ञान नहीं था ! समाज को सही दिशा देने का दायित्व जिनके ऊपर है जब वही अपने दायित्व का निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं तो साधारण मनुष्य भला इन सब विषयों को कैसे जान पाएगा ! आवश्यकता है कि समाज को उचित ज्ञान देते हुए सही दिशा निर्देश दिया जाय ! विवाह संस्कार एक दिन का खेल नहीं है यह जीवन भर का साथ होता है , इसलिए सभी पहलुओं पर विचार करके ही विवाह की तिथि निश्चित करना चाहिए ! परंतु आज लोग मनमाना व्यवहार कर रहे हैं और पुरोहित भी यजमान की इच्छानुसार कार्य कर रहे हैं ! यही कारण है कि आज समाज में अनेकों प्रकार की विकृतियां स्पष्ट दिखाई पड़ रही है !*
*शुक्र एवं गुरु के अस्त होने पर वैवाहिक कार्यक्रम नहीं संपन्न होना चाहिए ! जो ऐसा कर रहे हैं वह अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं और अपने बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं !*