*सनातन धर्म की दिव्यता एवं भव्यता आदिकाल से ही रही है ! यदि सनातन धर्म इतना दिव्य एवं भव्य रहा है तो उसका कारण है सनातन के संस्कार एवं संस्कृति ! सनातन के प्रत्येक अनुष्ठान , पूजा पद्धति एवं संस्कारों के साक्षी रहे हैं ब्राह्मण ! बिना ब्राह्मण (पुरोहित - आचार्य ) के कोई भी धार्मिक कृत्य सम्भव नहीं है ! आदिकाल से ब्राह्मणों ने अपने यजमान के हितार्थ बिना कोई मोलभाव किये ही समस्त कृत्य सम्पन्न करे ये हैं ! यजमान भी अपने पुरोहित (ब्राह्मण) को यथाशक्ति दक्षिणा देकर संतुष्ट करते थे , संतुष्ट होकर ब्राह्मण भी आशीर्वाद देकर जाते थे और यजमान का मंगल होता था ! किसी भी धार्मिक कृत्य में समाज के अनेक लोगों को जोड़कर ही ब्राह्मण ऐसे कृत्य सम्पन्न कराते रहे हैं ! समाज के प्रथम नागरिक होने का सौभाग्य ब्राह्मण को प्राप्त था ! ब्राह्मण सदैव लोकोपकार की दृष्टि से कार्य करता रहा है बदले में उसे जो भी प्राप्त हो जाता था वह उसी में संतुष्ट रहता है क्योंकि उसे यजमान पूर्ण मन से दान - दक्षिणा देकर तब विदा करता था ! लोगों के एक कुल पुरोहित एवं आचार्य निश्चित होते थे बिना उनके पूछे लोग कोई भी कार्य नहीं सम्पन्न करते थे ! शुभ मुहूर्त देखकर ब्राह्मण अपने पुरोहित के कार्य सम्पन्न कराते थे , ऐसा होने पर समाज के लोग सुखी एवं सम्पन्न होते थे ! ब्राह्मण का सम्मान पूरा समाज करता था ! पुरोहित भले ही कम पढा लिखा हो परंतु लोग अपने कुल पुरोहित को छोडकर किसी दूसरे ब्राह्मण को नहीं बुलाते थे क्योंकि प्राचीन मान्यता थी कि ब्राह्मण का आशीर्वाद ही बहुत है ! लोग अपने वचन के पक्के होते थे यदि अपने पुरोहित को कोई कार्य सम्पन्न कराने के लिए कह देते थे तो यदि उनको देवगुरु वृहस्पति भी मिल जाते तो भी वे अपने पुरोहित को जबाब नहीं देते थे और सारा कार्य अपने पुरोहित से ही सम्पन्न कराते थे , परंतु आज आधुनिकता ने पूरे समाज पर ही प्रभाव डाला है , आज स्थितियां परिवर्तित हो गयी हैं , आज जो देखने एवं सुनने को मिल रहा है वह अपने आप में एक निम्न मानसिकता का उदाहरण ही कहा जायेगा !*
*आज कोई भी धार्मिक अनुष्ठान हो या कोई संस्कार उसकी भव्यता दिखाने के लिए तो चार गुना बढ़ गई है परंतु पूर्व काल में जो भव्यता ब्राह्मण के आशीर्वाद एवं उसके संपन्न कराए गए संस्कारों से होती थी वह शायद आज नहीं दिख रही है ! आज लोग कोई भी कार्यक्रम करने की सोचते हैं तो सबसे पहले छाया के लिए टेंट , ध्वनि वर्धक यंत्र एवं भोजन बनाने के लिए रसोइया की व्यवस्था करते हैं और यह सब ऐसे नहीं मिल जाते हैं इन सबको अग्रिम भुगतान करना होता है ! अग्रिम भुगतान करके इन सबको आरक्षित कर लिया जाता है परंतु विचारणीय है कि जो इन कार्यक्रमों के केंद्र में होता है उस ब्राह्मण को अग्रिम भुगतान नहीं किया जाता , उसे सिर्फ तिथि लिखा देते हैं और ब्राह्मण भी बिना अग्रिम भुगतान लिए सब कुछ करने को तैयार हो जाता है ! परंतु प्राय: देखा जाता है कि किसी ब्राह्मण को तिथि लिखवाने के बाद यजमान किसी दूसरे ब्राह्मण को निमंत्रित कर देता है और पहले वाले ब्राह्मण को जवाब दे देता है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" समाज के ऐसे लोगों से इतना ही पूछना चाहता हूं कि आपका टेंट वाला या रसोईया क्यों नहीं निरस्त किया गया क्योंकि उसको अपने अग्रिम भुगतान दे रखा है यदि आप उसको निरस्त करेंगे तो आपकी दी हुई धनराशि उसके द्वारा वापस नहीं की जाएगी ! वहीं एक ब्राह्मण ने आपसे अग्रिम भुगतान नहीं लिया इसलिए आप उसे निरस्त करके किसी दूसरे ब्राह्मण को कह तो दे रहे हैं परंतु निरस्त हुए ब्राह्मण के हृदय से भले ही श्राप न निकले परंतु हृदय से हाय जरूर निकलती है ! ऐसे लोग विचार करें कि जहां आज महंगाई बढ़ गई है वही ब्राह्मण की दक्षिणा में कोई बढ़ोतरी क्यों नहीं हो पाई ? इस अर्थप्रधान युग में यदि सबसे सस्ता कुछ है तो वह ब्राह्मण है , क्योंकि मैं नगरीय ब्राह्मणों की बात तो नहीं कर सकता परंतु गांव में आज भी ब्राह्मण की दक्षिण नियत नहीं होती ! बिना दक्षिणा नियत किए कार्य संपन्न करने वाला ब्राह्मण यदि मौके पर निरस्त कर दिया जाता है तो उसके हृदय से आशीर्वाद तो नहीं निकलेगा ! अपना पुरोहित चाहे जैसा हो कभी उसका असम्मान नहीं करना चाहिए ! आज लोगों के दुखी रहने का एक कारण यह भी कहा जा सकता है कि उनके द्वारा जाने अनजाने ब्राह्मण का अपमान किया जा रहा है इसे समझने की आवश्यकता हैं !*
*कोई भी ब्राह्मण यह कहने नहीं जाता कि हमसे यह कार्य संपन्न करवा लो तो कोई ब्राह्मण यह भी अपेक्षा नहीं रखता होगा कि हमें कार्यक्रम में बुलाने के बाद निरस्त करके किसी दूसरे को बुला लिया जाय ! इससे ब्राह्मण दुखी होता है और दुख भरे हृदय से आशीर्वाद कदापि नहीं निकल सकता !*