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आज का समाज एवं ब्राह्मण: - आचार्य अर्जुन तिवारी

28 दिसम्बर 2023

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*सनातन धर्म की दिव्यता एवं भव्यता आदिकाल से ही रही है ! यदि सनातन धर्म इतना दिव्य एवं भव्य रहा है तो उसका कारण है सनातन के संस्कार एवं संस्कृति ! सनातन के प्रत्येक अनुष्ठान , पूजा पद्धति एवं संस्कारों के साक्षी रहे हैं ब्राह्मण ! बिना ब्राह्मण (पुरोहित - आचार्य ) के कोई भी धार्मिक कृत्य सम्भव नहीं है ! आदिकाल से ब्राह्मणों ने अपने यजमान के हितार्थ बिना कोई मोलभाव किये ही समस्त कृत्य सम्पन्न करे ये हैं ! यजमान भी अपने पुरोहित (ब्राह्मण) को यथाशक्ति दक्षिणा देकर संतुष्ट करते थे , संतुष्ट होकर ब्राह्मण भी आशीर्वाद देकर जाते थे और यजमान का मंगल होता था ! किसी भी धार्मिक कृत्य में समाज के अनेक लोगों को जोड़कर ही ब्राह्मण ऐसे कृत्य सम्पन्न कराते रहे हैं ! समाज के प्रथम नागरिक होने का सौभाग्य ब्राह्मण को प्राप्त था ! ब्राह्मण सदैव लोकोपकार की दृष्टि से कार्य करता रहा है बदले में उसे जो भी प्राप्त हो जाता था वह उसी में संतुष्ट रहता है क्योंकि उसे यजमान पूर्ण मन से दान - दक्षिणा देकर तब विदा करता था ! लोगों के एक कुल पुरोहित एवं आचार्य निश्चित होते थे बिना उनके पूछे लोग कोई भी कार्य नहीं सम्पन्न करते थे ! शुभ मुहूर्त देखकर ब्राह्मण अपने पुरोहित के कार्य सम्पन्न कराते थे , ऐसा होने पर समाज के लोग सुखी एवं सम्पन्न होते थे ! ब्राह्मण का सम्मान पूरा समाज करता था ! पुरोहित भले ही कम पढा लिखा हो परंतु लोग अपने कुल पुरोहित को छोडकर किसी दूसरे ब्राह्मण को नहीं बुलाते थे क्योंकि प्राचीन मान्यता थी कि ब्राह्मण का आशीर्वाद ही बहुत है ! लोग अपने वचन के पक्के होते थे यदि अपने पुरोहित को कोई कार्य सम्पन्न कराने के लिए कह देते थे तो यदि उनको देवगुरु वृहस्पति भी मिल जाते तो भी वे अपने पुरोहित को जबाब नहीं देते थे और सारा कार्य अपने पुरोहित से ही सम्पन्न कराते थे , परंतु आज आधुनिकता ने पूरे समाज पर ही प्रभाव डाला है , आज स्थितियां परिवर्तित हो गयी हैं , आज जो देखने एवं सुनने को मिल रहा है वह अपने आप में एक निम्न मानसिकता का उदाहरण ही कहा जायेगा !*

*आज कोई भी धार्मिक अनुष्ठान हो या कोई संस्कार उसकी भव्यता दिखाने के लिए तो चार गुना बढ़ गई है परंतु पूर्व काल में जो भव्यता ब्राह्मण के आशीर्वाद एवं उसके संपन्न कराए गए संस्कारों से होती थी वह शायद आज नहीं दिख रही है ! आज लोग कोई भी कार्यक्रम करने की सोचते हैं तो सबसे पहले छाया के लिए टेंट , ध्वनि वर्धक यंत्र एवं भोजन बनाने के लिए रसोइया की व्यवस्था करते हैं और यह सब ऐसे नहीं मिल जाते हैं इन सबको अग्रिम भुगतान करना होता है !  अग्रिम भुगतान करके इन सबको आरक्षित कर लिया जाता है परंतु विचारणीय है कि जो इन कार्यक्रमों के केंद्र में होता है उस ब्राह्मण को अग्रिम भुगतान नहीं किया जाता , उसे सिर्फ तिथि लिखा देते हैं और ब्राह्मण भी बिना अग्रिम भुगतान लिए सब कुछ करने को तैयार हो जाता है !  परंतु प्राय: देखा जाता है कि किसी ब्राह्मण को तिथि लिखवाने के बाद यजमान किसी दूसरे ब्राह्मण को निमंत्रित कर देता है और पहले वाले ब्राह्मण को जवाब दे देता है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी"  समाज के ऐसे लोगों से इतना ही पूछना चाहता हूं कि आपका टेंट वाला या रसोईया क्यों नहीं निरस्त किया गया क्योंकि उसको अपने अग्रिम भुगतान दे रखा है यदि आप उसको निरस्त करेंगे तो आपकी दी हुई धनराशि उसके द्वारा वापस नहीं की जाएगी ! वहीं एक ब्राह्मण ने आपसे अग्रिम भुगतान नहीं लिया इसलिए आप उसे निरस्त करके किसी दूसरे ब्राह्मण को कह तो दे रहे हैं परंतु निरस्त हुए ब्राह्मण के हृदय से भले ही श्राप न निकले परंतु हृदय से हाय जरूर निकलती है ! ऐसे लोग विचार करें कि जहां आज महंगाई बढ़ गई है वही ब्राह्मण की दक्षिणा में कोई बढ़ोतरी क्यों नहीं हो पाई ? इस अर्थप्रधान युग में यदि सबसे सस्ता कुछ है तो वह ब्राह्मण है , क्योंकि मैं नगरीय  ब्राह्मणों की बात तो नहीं कर सकता परंतु गांव में आज भी ब्राह्मण की दक्षिण नियत नहीं होती ! बिना दक्षिणा नियत किए कार्य संपन्न करने वाला ब्राह्मण यदि मौके पर निरस्त कर दिया जाता है तो उसके हृदय से आशीर्वाद तो नहीं निकलेगा !  अपना पुरोहित चाहे जैसा हो कभी उसका असम्मान नहीं करना चाहिए ! आज लोगों के दुखी रहने का एक कारण यह भी कहा जा सकता है कि उनके द्वारा जाने अनजाने ब्राह्मण का अपमान किया जा रहा है इसे समझने की आवश्यकता हैं !*

*कोई भी ब्राह्मण यह कहने नहीं जाता कि हमसे यह कार्य संपन्न करवा लो तो कोई ब्राह्मण यह भी अपेक्षा नहीं रखता होगा कि हमें कार्यक्रम में बुलाने के बाद निरस्त करके किसी दूसरे को बुला लिया जाय ! इससे ब्राह्मण दुखी होता है और दुख भरे हृदय से आशीर्वाद कदापि नहीं निकल सकता !*article-image
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रचनाएँ
ये कहाँ आ गये हम
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आदिकाल से हमारे संस्कार बहुत ही दिव्य रहे हैं इन्हीं संस्कारों को आधार बना कर हमने विश्व पर शासन किया है ! जहां संस्कारों की बात होती थी सारा विश्व हमारी ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था परिवार , समाज , राजनीति , कूटनीति आदि की शिक्षा सारे विश्व ने हमारे देश भारत से ही प्राप्त किया है परंतु आज हम अपनी मूल संस्कृति को भूलकर आधुनिक होने का दिखावा करने में लगे हुए हैं जिसके कारण आज हम संस्कार विहीन होते चले जा रहे हैं और मन में यह विचार उठता है कि हम क्या थे और क्या हो गए ! आखिर "ये कहां आ गए हम" |
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ये कहाँ आ गये हम - १

2 फरवरी 2022
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*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इस जीवन को पाकर जिसने अपने कर्मों के द्वारा अपना लोक परलोक नहीं सुधार लिया समझ लो उसने खाने और सोने में पूरा जीवन व्यतीत करके व्यर्थ ही इस जीवन को गवा दिया | मानव जीवन में

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ये कहाँ आ गये हम - २

3 फरवरी 2022
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*संसार में जीव माता पिता के माध्यम से आता है , इसीलिए सनातन धर्म में माता-पिता को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है ! और "मातृ देवोभव पितृ देवोभव" की उद्घोषणा की गई थी ! माता पिता के ऋण से कभी भी उऋण न

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ये कहाँ आ गये हम - ३

4 फरवरी 2022
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*इस संसार में चौरासी लाख योनियों के बीच मनुष्य सर्वश्रेष्ठ कहा गया है और मनुष्य ने अपनी वीरता , बुद्धि - विवेक के बल पर समस्त सृष्टि पर शासन भी किया है | सबको एक सूत्र में बांधकर चलने का विवेक ईश्वर न

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ये कहाँ आ गये हम - ४

5 फरवरी 2022
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*यह संसार बड़ा रहस्यमय है ! पग पग पर रहस्यों से भरा हुआ यह संसार एक अबूझ पहेली सिद्ध होता रहा है | सृष्टि के विषय में , समाज के विषय में , धर्मग्रंथों में वर्णित विषयों के विषय में मनुष्य सदैव से जिज्

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ये कहाँ आ गये हम - ५

6 फरवरी 2022
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*मानव जीवन एक यात्रा है | इस जीवन यात्रा में मनुष्य अनेकों पड़ावों को पार करता है | इसी जीवन यात्रा का एक मुख्य पड़ाव है विवाह संस्कार | सनातन धर्म में मानव जीवन को चार भागों में विभक्त किया गया है जि

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ये कहां आ गए हम - भाग ६

12 मार्च 2022
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*इस समाज में अनेको प्रकार के लोग होते हैं जो एक दूसरे के कार्यों की समीक्षा करते हैं ! किसी कार्य के लिए मनुष्य की प्रशंसा होती है तो किसी कार्य के लिए उसकी निंदा भी की जाती है ! प्रशंसा और निंद

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ये कहाँ आ गये हम - भाग - ७

12 अप्रैल 2022
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*सनातन धर्म में जहां एक और सबको समान अधिकार मिले हैं वहीं दूसरी ओर कुछ कृत्य कुछ लोगों के लिए वर्जित भी बताये गये हैं | सनातन धर्म का प्राण हैं भगवान की कथाएं , जिसे कहकर और सुनकर मनुष्य आनंद तो प्राप

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ये कहाँ आ गये हम भाग - ८

25 अप्रैल 2022
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*इस संसार में बिना आधार के कुछ भी नहीं है ! जिस प्रकार एक वृक्ष का आधार उसकी जड़ होती है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु का भी एक आधार होता है | सनातन धर्म के आधार हनारे धर्मग्रन्थ माने जाते हैं

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ये कहाँ आ गये हम - ९ (अहंकार)

7 मई 2022
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*मनुष्य इस संसार में जन्म लेने के बाद अनेक कर्म करता है और उसके सभी कर्म सुख प्राप्त करने की दिशा में ही होते हैं | मनुष्य का लक्ष्य सुख प्राप्त करना होता है | येन केन प्रकारेण मनुष्य के सुख की कामना

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ये सहाँ आ गये हम भाग - १० (जीवन एक परीक्षा)

5 जुलाई 2022
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*चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करके जीव को सुंदर मनुष्य का तन मिलता है !  मानव जीवन पाकर के मनुष्य अपनी इच्छा अनुसार सुंदर जीवन यापन करता है ! इस मानव जीवन में पग पग पर मनुष्य को परीक्षाएं देनी होती है

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वर्ण व्यवस्था एवं समाज :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अक्टूबर 2022
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*सृष्टि के आदिकाल में विराट भगवान के शरीर से मनुष्य की उत्पत्ति हुई ! हमारे वेदों के अनुसार भगवान के मुख से ब्राह्मण , भुजाओं से क्षत्रिय , उदर से वैश्य एवं पैरों से शूद्र का प्राकट्य हुआ ! इस प

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दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2023
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*चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ है मानव योनि ! बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर प्राप्त होता है ,&

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फिल्म जगत एवं सनातन :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जून 2023
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*भारत का इतिहास बहुत ही समृद्धशाली रहा है

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आज का समाज एवं ब्राह्मण: - आचार्य अर्जुन तिवारी

28 दिसम्बर 2023
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*सनातन धर्म की दिव्यता एवं भव्यता आदिकाल से ही रही है ! यदि सनातन धर्म इतना दिव्य एवं भव्य रहा है तो उसका कारण है सनातन के संस्कार एवं संस्कृति ! सनातन के प्रत्येक अनुष्ठान , पूजा पद्धति एवं संस्कारों

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