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ये कहाँ आ गये हम - ३

4 फरवरी 2022

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*इस संसार में चौरासी लाख योनियों के बीच मनुष्य सर्वश्रेष्ठ कहा गया है और मनुष्य ने अपनी वीरता , बुद्धि - विवेक के बल पर समस्त सृष्टि पर शासन भी किया है | सबको एक सूत्र में बांधकर चलने का विवेक ईश्वर ने मनुष्य को ही दिया है | हमारे पूर्वज अपने चरित्र ,  मानसिकता एवं वक्तव्य के द्वारा सर्व समाज को एक साथ लेकर चलने का प्रयास करते रहे हैं | परंतु इसी समाज में कुछ भितरघाती सदैव से होते आए हैं |  वीरों की भूमि हमारा देश भारत यदि समय -;समय पर परतंत्र हुआ हा तो इन्हीं चंद गद्दारों के कारण हुआ | यदि ये गद्दार ना होते तो शायद इतिहास में परतंत्रता की कथाएं ना सुनने को मिलती ना ही पढ़ने को | परंतु इन चंद गद्दारों ने अपने क्षणिक लाभ के लिए अपने मातृभूमि का भी सौदा कर डाला और अंततोगत्वा उनके हाथ भी कुछ नहीं लगा | सब पर शासन करने वाला मनुष्य यदि हारा है तो मनुष्य से ही हारा है | जिनको समाज ने ऊंचे पद पर बैठाया वही लोग विश्वासपात्र बनकर समाज के साथ विश्वासघात करते चले आए हैं | ऐसे लोग कुछ दिन तो समाज पर शासन कर सकते हैं परंतु उनका वास्तविक चेहरा सामने आने के बाद वे अंधकार में खोते चले गए हैं | इतिहास साक्षी है कि ऐसे लोग बहुत दिन तक शासन नहीं कर पाए हैं | समाज में सनातन धर्म से निकलकर अनेक धर्मों की स्थापना हुई और प्रत्येक धर्म में एक धर्म अधिकारी नियुक्त किया गया | इन्हीं धर्म अधिकारियों के संरक्षण में वह धर्म आगे बढ़ा , परंतु अपने क्षणिक लाभ के लिए यह धर्म अधिकारी भी अपने धर्म का त्याग करके क्रियाकलाप करने लगे | लगभग सभी धर्मों के पतन का एक मुख्य कारण यही बन गया | ऐसे लोगों के पास चाटुकारों की एक लंबी सेना हमेशा रहती है जो उनके नैतिक - अनैतिक सभी प्रकार के कृत्यों की बड़ाई करके उन्हें सही साबित करती रही है | भले ही उनकी कृत्यों से देश का पतन हो जाय | इतिहास में ऐसे अनेक चरित्रों का वर्णन मिलता है जिनका साथ देने के बाद समाज ने अंततोगत्वा पश्चाताप ही किया है | हमें पश्चाताप ना करना पड़े , पूर्व में घटी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो इसलिए सजग एवं सचेत रहना होगा |*


*आज यदि दृष्टि उठाकर देखी जाय तो इन तथाकथित गद्दारों की एक लंबी चौड़ी सेना दिखाई पड़ती है जो बिना सोचे समझे समाज के विरुद्ध वक्तव्य देते हैं , ऐसा करके वे एक पक्ष को तो प्रसन्न कर लेते हैं परंतु दूसरा पक्ष उनका विरोधी हो जाता है | इसी समाज ने उनको ऊंचे पदों पर बैठाया है और जिन्हें समाज को जोड़ने का काम करना चाहिए वही आज समाज को तोड़ते हुए दिखाई पड़ रहे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में देख रहा हूं कि ये स्वघोषित विवेकशील मनुष्य अपनी नकारात्मकता के कारण समाज के विघटन का कारण बन रहे हैं | समाज ने जिसे अपना आदर्श चुना , धर्म के ऊंचे - ऊंचे पदों पर बैठा दिया वही लोग आज ऐसे कृत्य कर रहे हैं जिसे सुनकर घोर आश्चर्य होता है | बड़े-बड़े संत - महंत , मौलाना - काजी एवं गिरिजाघरों में फादर की भूमिका निभाने वाले धर्म के ठेकेदारों के कृत्य इस प्रकार हैं जिन्हें एक सभ्य समाज कभी भी स्वीकार नहीं कर सकता | ऐसे लोग यही विचार करते हैं कि मैं जो कह रहा हूं , जो कर रहा हूं वही ठीक है हमें रोकने टोकने वाला कोई नहीं है , परंतु इसी समाज में एक समाज और भी है जिसे विवेकशील समाज कहा जाता है वह सब देख रहा है , सब सुन रहा है और अवसर आने पर वह उचित निर्णय भी करना जानता है | मैं तो यही कहना चाहूंगा कि ऐसे समाज एवं धर्म के ठेकेदारों से सावधान रहते हुए अपने समाज एवं परिवार तथा देश की सुरक्षा के लिए प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे लोगों का डटकर विरोध करना चाहिए जिससे कि हमारा धर्म एवं हमारा देश विघटित होने से बचे अन्यथा यह लोग अपनी कलुषित मानसिकता के बल पर समाज को दूषित करते हुए देश को भी पतन की ओर ले जाने का कुचक्र चलते रहेंगे | आज वह समय आ गया है ऐसे लोगों की पहचान करके उन्हें उचित दंड देते हुए अपने देश - समाज की रक्षा की जाय अन्यथा वह दिन दूर नहीं है जब हम पुनः परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ जाएंगे | इसकी सबसे अधिक जिम्मेदारी समाज के विवेकवान पुरुषों की है जो अपने विवेक का प्रयोग करके ऐसे लोगों की पहचान करके उन्हें समाज से तिरस्कृत कर दे अन्यथा हमारी आने वाली पीढ़ियां सारा दोष हम पर ही लगायेंगी | अपनी आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रखने के लिए यह आवश्यक हो गया है कि ऐसे कलुषित मानसिकता वाले ऊंचे पदों पर बैठे नीच लोगों का बहिष्कार कर दिया जाय |*


*हमारी संस्कृति "वसुधैव कुटुंबकम" की रही है परंतु विचार कीजिए - हम क्या थे क्या हो गए ! हम आज ना तो बड़ों से शिक्षा लेना चाहते हैं और ना ही उनकी बात मानना चाहते हैं ! मन यही विचार करता है कि आखिर "ये कहां आ गए हम" !*

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रचनाएँ
ये कहाँ आ गये हम
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आदिकाल से हमारे संस्कार बहुत ही दिव्य रहे हैं इन्हीं संस्कारों को आधार बना कर हमने विश्व पर शासन किया है ! जहां संस्कारों की बात होती थी सारा विश्व हमारी ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था परिवार , समाज , राजनीति , कूटनीति आदि की शिक्षा सारे विश्व ने हमारे देश भारत से ही प्राप्त किया है परंतु आज हम अपनी मूल संस्कृति को भूलकर आधुनिक होने का दिखावा करने में लगे हुए हैं जिसके कारण आज हम संस्कार विहीन होते चले जा रहे हैं और मन में यह विचार उठता है कि हम क्या थे और क्या हो गए ! आखिर "ये कहां आ गए हम" |
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ये कहाँ आ गये हम - १

2 फरवरी 2022
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*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इस जीवन को पाकर जिसने अपने कर्मों के द्वारा अपना लोक परलोक नहीं सुधार लिया समझ लो उसने खाने और सोने में पूरा जीवन व्यतीत करके व्यर्थ ही इस जीवन को गवा दिया | मानव जीवन में

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ये कहाँ आ गये हम - २

3 फरवरी 2022
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*संसार में जीव माता पिता के माध्यम से आता है , इसीलिए सनातन धर्म में माता-पिता को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है ! और "मातृ देवोभव पितृ देवोभव" की उद्घोषणा की गई थी ! माता पिता के ऋण से कभी भी उऋण न

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ये कहाँ आ गये हम - ३

4 फरवरी 2022
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*इस संसार में चौरासी लाख योनियों के बीच मनुष्य सर्वश्रेष्ठ कहा गया है और मनुष्य ने अपनी वीरता , बुद्धि - विवेक के बल पर समस्त सृष्टि पर शासन भी किया है | सबको एक सूत्र में बांधकर चलने का विवेक ईश्वर न

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ये कहाँ आ गये हम - ४

5 फरवरी 2022
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*यह संसार बड़ा रहस्यमय है ! पग पग पर रहस्यों से भरा हुआ यह संसार एक अबूझ पहेली सिद्ध होता रहा है | सृष्टि के विषय में , समाज के विषय में , धर्मग्रंथों में वर्णित विषयों के विषय में मनुष्य सदैव से जिज्

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ये कहाँ आ गये हम - ५

6 फरवरी 2022
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*मानव जीवन एक यात्रा है | इस जीवन यात्रा में मनुष्य अनेकों पड़ावों को पार करता है | इसी जीवन यात्रा का एक मुख्य पड़ाव है विवाह संस्कार | सनातन धर्म में मानव जीवन को चार भागों में विभक्त किया गया है जि

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ये कहां आ गए हम - भाग ६

12 मार्च 2022
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*इस समाज में अनेको प्रकार के लोग होते हैं जो एक दूसरे के कार्यों की समीक्षा करते हैं ! किसी कार्य के लिए मनुष्य की प्रशंसा होती है तो किसी कार्य के लिए उसकी निंदा भी की जाती है ! प्रशंसा और निंद

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ये कहाँ आ गये हम - भाग - ७

12 अप्रैल 2022
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*सनातन धर्म में जहां एक और सबको समान अधिकार मिले हैं वहीं दूसरी ओर कुछ कृत्य कुछ लोगों के लिए वर्जित भी बताये गये हैं | सनातन धर्म का प्राण हैं भगवान की कथाएं , जिसे कहकर और सुनकर मनुष्य आनंद तो प्राप

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ये कहाँ आ गये हम भाग - ८

25 अप्रैल 2022
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*इस संसार में बिना आधार के कुछ भी नहीं है ! जिस प्रकार एक वृक्ष का आधार उसकी जड़ होती है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु का भी एक आधार होता है | सनातन धर्म के आधार हनारे धर्मग्रन्थ माने जाते हैं

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ये कहाँ आ गये हम - ९ (अहंकार)

7 मई 2022
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*मनुष्य इस संसार में जन्म लेने के बाद अनेक कर्म करता है और उसके सभी कर्म सुख प्राप्त करने की दिशा में ही होते हैं | मनुष्य का लक्ष्य सुख प्राप्त करना होता है | येन केन प्रकारेण मनुष्य के सुख की कामना

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ये सहाँ आ गये हम भाग - १० (जीवन एक परीक्षा)

5 जुलाई 2022
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*चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करके जीव को सुंदर मनुष्य का तन मिलता है !  मानव जीवन पाकर के मनुष्य अपनी इच्छा अनुसार सुंदर जीवन यापन करता है ! इस मानव जीवन में पग पग पर मनुष्य को परीक्षाएं देनी होती है

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वर्ण व्यवस्था एवं समाज :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अक्टूबर 2022
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*सृष्टि के आदिकाल में विराट भगवान के शरीर से मनुष्य की उत्पत्ति हुई ! हमारे वेदों के अनुसार भगवान के मुख से ब्राह्मण , भुजाओं से क्षत्रिय , उदर से वैश्य एवं पैरों से शूद्र का प्राकट्य हुआ ! इस प

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दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2023
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*चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ है मानव योनि ! बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर प्राप्त होता है ,&

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फिल्म जगत एवं सनातन :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जून 2023
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*भारत का इतिहास बहुत ही समृद्धशाली रहा है

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आज का समाज एवं ब्राह्मण: - आचार्य अर्जुन तिवारी

28 दिसम्बर 2023
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*सनातन धर्म की दिव्यता एवं भव्यता आदिकाल से ही रही है ! यदि सनातन धर्म इतना दिव्य एवं भव्य रहा है तो उसका कारण है सनातन के संस्कार एवं संस्कृति ! सनातन के प्रत्येक अनुष्ठान , पूजा पद्धति एवं संस्कारों

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शुक्र एवं गुरु अस्त होने पर न करें विवाह :- आचार्य अर्जुन तिवारी

9 मई 2024
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*सनातन धर्म में संस्कारों का बड़ा महत्व है ! सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का विधान बताया गया है ! जन्म के पहले से लेकर मृत्यु पर्यंत यह सोलह संस्कार मानव जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ! इन

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