*इस संसार में चौरासी लाख योनियों के बीच मनुष्य सर्वश्रेष्ठ कहा गया है और मनुष्य ने अपनी वीरता , बुद्धि - विवेक के बल पर समस्त सृष्टि पर शासन भी किया है | सबको एक सूत्र में बांधकर चलने का विवेक ईश्वर ने मनुष्य को ही दिया है | हमारे पूर्वज अपने चरित्र , मानसिकता एवं वक्तव्य के द्वारा सर्व समाज को एक साथ लेकर चलने का प्रयास करते रहे हैं | परंतु इसी समाज में कुछ भितरघाती सदैव से होते आए हैं | वीरों की भूमि हमारा देश भारत यदि समय -;समय पर परतंत्र हुआ हा तो इन्हीं चंद गद्दारों के कारण हुआ | यदि ये गद्दार ना होते तो शायद इतिहास में परतंत्रता की कथाएं ना सुनने को मिलती ना ही पढ़ने को | परंतु इन चंद गद्दारों ने अपने क्षणिक लाभ के लिए अपने मातृभूमि का भी सौदा कर डाला और अंततोगत्वा उनके हाथ भी कुछ नहीं लगा | सब पर शासन करने वाला मनुष्य यदि हारा है तो मनुष्य से ही हारा है | जिनको समाज ने ऊंचे पद पर बैठाया वही लोग विश्वासपात्र बनकर समाज के साथ विश्वासघात करते चले आए हैं | ऐसे लोग कुछ दिन तो समाज पर शासन कर सकते हैं परंतु उनका वास्तविक चेहरा सामने आने के बाद वे अंधकार में खोते चले गए हैं | इतिहास साक्षी है कि ऐसे लोग बहुत दिन तक शासन नहीं कर पाए हैं | समाज में सनातन धर्म से निकलकर अनेक धर्मों की स्थापना हुई और प्रत्येक धर्म में एक धर्म अधिकारी नियुक्त किया गया | इन्हीं धर्म अधिकारियों के संरक्षण में वह धर्म आगे बढ़ा , परंतु अपने क्षणिक लाभ के लिए यह धर्म अधिकारी भी अपने धर्म का त्याग करके क्रियाकलाप करने लगे | लगभग सभी धर्मों के पतन का एक मुख्य कारण यही बन गया | ऐसे लोगों के पास चाटुकारों की एक लंबी सेना हमेशा रहती है जो उनके नैतिक - अनैतिक सभी प्रकार के कृत्यों की बड़ाई करके उन्हें सही साबित करती रही है | भले ही उनकी कृत्यों से देश का पतन हो जाय | इतिहास में ऐसे अनेक चरित्रों का वर्णन मिलता है जिनका साथ देने के बाद समाज ने अंततोगत्वा पश्चाताप ही किया है | हमें पश्चाताप ना करना पड़े , पूर्व में घटी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो इसलिए सजग एवं सचेत रहना होगा |*
*आज यदि दृष्टि उठाकर देखी जाय तो इन तथाकथित गद्दारों की एक लंबी चौड़ी सेना दिखाई पड़ती है जो बिना सोचे समझे समाज के विरुद्ध वक्तव्य देते हैं , ऐसा करके वे एक पक्ष को तो प्रसन्न कर लेते हैं परंतु दूसरा पक्ष उनका विरोधी हो जाता है | इसी समाज ने उनको ऊंचे पदों पर बैठाया है और जिन्हें समाज को जोड़ने का काम करना चाहिए वही आज समाज को तोड़ते हुए दिखाई पड़ रहे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में देख रहा हूं कि ये स्वघोषित विवेकशील मनुष्य अपनी नकारात्मकता के कारण समाज के विघटन का कारण बन रहे हैं | समाज ने जिसे अपना आदर्श चुना , धर्म के ऊंचे - ऊंचे पदों पर बैठा दिया वही लोग आज ऐसे कृत्य कर रहे हैं जिसे सुनकर घोर आश्चर्य होता है | बड़े-बड़े संत - महंत , मौलाना - काजी एवं गिरिजाघरों में फादर की भूमिका निभाने वाले धर्म के ठेकेदारों के कृत्य इस प्रकार हैं जिन्हें एक सभ्य समाज कभी भी स्वीकार नहीं कर सकता | ऐसे लोग यही विचार करते हैं कि मैं जो कह रहा हूं , जो कर रहा हूं वही ठीक है हमें रोकने टोकने वाला कोई नहीं है , परंतु इसी समाज में एक समाज और भी है जिसे विवेकशील समाज कहा जाता है वह सब देख रहा है , सब सुन रहा है और अवसर आने पर वह उचित निर्णय भी करना जानता है | मैं तो यही कहना चाहूंगा कि ऐसे समाज एवं धर्म के ठेकेदारों से सावधान रहते हुए अपने समाज एवं परिवार तथा देश की सुरक्षा के लिए प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे लोगों का डटकर विरोध करना चाहिए जिससे कि हमारा धर्म एवं हमारा देश विघटित होने से बचे अन्यथा यह लोग अपनी कलुषित मानसिकता के बल पर समाज को दूषित करते हुए देश को भी पतन की ओर ले जाने का कुचक्र चलते रहेंगे | आज वह समय आ गया है ऐसे लोगों की पहचान करके उन्हें उचित दंड देते हुए अपने देश - समाज की रक्षा की जाय अन्यथा वह दिन दूर नहीं है जब हम पुनः परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ जाएंगे | इसकी सबसे अधिक जिम्मेदारी समाज के विवेकवान पुरुषों की है जो अपने विवेक का प्रयोग करके ऐसे लोगों की पहचान करके उन्हें समाज से तिरस्कृत कर दे अन्यथा हमारी आने वाली पीढ़ियां सारा दोष हम पर ही लगायेंगी | अपनी आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रखने के लिए यह आवश्यक हो गया है कि ऐसे कलुषित मानसिकता वाले ऊंचे पदों पर बैठे नीच लोगों का बहिष्कार कर दिया जाय |*
*हमारी संस्कृति "वसुधैव कुटुंबकम" की रही है परंतु विचार कीजिए - हम क्या थे क्या हो गए ! हम आज ना तो बड़ों से शिक्षा लेना चाहते हैं और ना ही उनकी बात मानना चाहते हैं ! मन यही विचार करता है कि आखिर "ये कहां आ गए हम" !*