*इस संसार में बिना आधार के कुछ भी नहीं है ! जिस प्रकार एक वृक्ष का आधार उसकी जड़ होती है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु का भी एक आधार होता है | सनातन धर्म के आधार हनारे धर्मग्रन्थ माने जाते हैं | हमारे वेद एवं पुराणों में वर्णित कथाएं ही हमारा आधार है | इन कथाओं को पढ़कर हमें अपने इतिहास के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है | पूर्व काल में क्या हुआ ? क्यों हुआ ? और कैसे हुआ ? इसका ज्ञान हमें अपने धर्म ग्रंथों को पढ़कर ही प्राप्त होता है | हमारे पूर्वजों ने मानव सभ्यता के विकास के लिए क्या किया इसका ज्ञान इतिहास पढ़ कर ही जान सकते हैं | कुछ विषय ऐसे हैं जिनको पढ़कर मन में संदेह उत्पन्न होता है भला ऐसा क्यों हुआ होगा ! उस समय की परिस्थिति क्या रही होगी इसके विषय में हम नहीं जान सकते क्योंकि उस समय हम नहीं थे , परंतु धर्म ग्रंथों में वर्णित कथाओं को पढ़कर इसका अनुमान लगा सकते हैं | देश , काल , परिस्थिति सदैव एक समान नहीं रहती है | एक ही मनुष्य परिस्थिति वश भिन्न-भिन्न कृत्य करता है और उसके कृत्य हमें इतिहास पुराणों में पढ़ने को मिलते हैं | अब इन कथाओं को पढ़कर यदि हमारे मन में संदेह उत्पन्न होता है तो यह हमारी मूर्खता ही कही जाएगी , क्योंकि उस समय की परिस्थिति का ज्ञान हमको नहीं है | अयोध्या का शासन करने वाले महाराज हरिश्चंद्र यदि डोम के यहां मरघट की रखवाली करने का काम करते हैं तो यह परिस्थिति वश किया जाने वाला कृत्य है | ऐसे अनेक विषय हमें पुराणों में पढ़ने को मिलते हैं जिनको पढ़ने के बाद यह मन जिज्ञासाओं के समंदर में तैरने लगता है | इसका समाधान कहीं भी प्राप्त होता नहीं दिखता , ऐसी जिज्ञासाओं को अपने मन में ही पर रखकर उसका समाधान अपने अनुसार निकाल लेना चाहिए | पुराणों में वर्णित कथाओं को पढ़कर उनका चिंतन करते हुए आनंद लेना चाहिए क्योंकि बहुत कठिन मेहनत करके हमारे पूर्वजों ने अपने इतिहास को सहेज कर रखा है जहां संदेश उत्पन्न हो जाता है वही मन में कुतर्क उठने लगते हैं और इन कुतर्कों के उत्पन्न होते ही कथाओं का सारा आनंद समाप्त हो जाता है और हम एक अनचाही दिशा में बढ़ जाते हैं |*
*आज अनेक विद्वान ऐसे ही अनसुलझे विषयों को लेकर के समाज के समक्ष प्रस्तुत करते हैं जिनका जवाब शायद नहीं मिल पाता है और इन विषयों के समाधान न मिलने पर कुतर्क भी देखने को मिलता है | जिस प्रकार भोजन का स्वाद तीखा एवं मीठा होता है उसी प्रकार यह कथाएं भी दो प्रकार का स्वाद प्रदान करती है | गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज मानस में बताते हैं :- "हरि हर पद रति मति न कुतरकी ! तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुवर की !!" अर्थात भगवान के चरणों में प्रेम हो और मन कुतर्क की ओर ना जाए तब तो यह कथाएं बड़ी मीठी और सुस्वादु लगेंगी अन्यथा इन कथाओं के भंवर जाल में फंसकर मनुष्य गोते लगाता रहता है | मेरा " आचार्य अर्जुन तिवारी " का मानना है कि पुराणों में वर्णित कथाओं पर संदेह कदापि नहीं करना चाहिए क्योंकि इन कथाओं को लिखते समय या इन घटनाओं के घटते समय क्या परिस्थिति रही होगी इसका ज्ञान हमको नहीं है | आज हम अपना सारा ज्ञान इन अनसुलझे रहस्यों पर खर्च करके अनेक प्रकार के कुतर्क करते हैं | इन कथाओं की बात छोड़ दी जाए यदि अपने परिवार एवं बुजुर्गों की कृत्यों पर ध्यान दिया जाए तो अनेक विषय हमको अपने पूर्वजों से ऐसे सुनने को मिलते हैं जो कि नहीं होने चाहिए परंतु हमारे कुल - खानदान में भी ऐसे कृत्य हुए होंगे जिनको सुनकर मन ही सहज ही जिज्ञासु हो जाता है | प्रत्येक मनुष्य की परिस्थिति सदैव एक जैसी नहीं रहती जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं कोई कोई कर्म ऐसा होता है जिसे ना चाहते हुए भी मनुष्य को करना पड़ता है इसे प्रारब्ध कहें या की मनुष्य की विवशता यह तो परमात्मा ही बता सकता है परंतु हमें सदैव सकारात्मक पक्ष देखने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि सकारात्मकता में ही सृजन होता है परंतु आज हम ऐसे विषयों पर उलझे हुए हैं जिनका कहीं कोई उत्तर नहीं प्राप्त होता | ऐसे विषयों को उठाकर हम स्वयं के साथ-साथ अन्य लोगों को ही भ्रमित करते रहते हैं | ज्ञान प्राप्त करना अच्छी बात है परंतु यह भी विचार करना चाहिए कि जिस विषय का ज्ञान इन पुराणों के रचयिता भगवान वेदव्यास जी भी नहीं दे पाए उन विषयों में हम अपनी ऊर्जा का व्यय करके क्या प्राप्त कर लेंगे ? पुराणों में वर्णित कथाओं को पढ़कर अपने पूर्वजों के विषय में ज्ञान प्राप्त करके आनंद लेने का प्रयास करना चाहिए इसके अतिरिक्त यदि यह मन कुतर्क की ओर जाता है तो समझ लो कि हमें इन कथाओं में आनंद नहीं आ रहा है और ऐसे मनुष्यों का जीवन इसी भंवर जाल में फंस कर व्यतीत हो जाता है |*
*कथायें बड़ी रसमयी एवं आनंदमयी होती हैं , आवश्यकता है इनको सकारात्मकता के साथ ग्रहण करने की | जहां सकारात्मकता का लोप होता है वही यह कथाएं तीखी एवं कड़वी लगने लगती हैं |*