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ये कहाँ आ गये हम भाग - ८

25 अप्रैल 2022

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*इस संसार में बिना आधार के कुछ भी नहीं है ! जिस प्रकार एक वृक्ष का आधार उसकी जड़ होती है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु का भी एक आधार होता है | सनातन धर्म के आधार हनारे धर्मग्रन्थ माने जाते हैं | हमारे वेद एवं पुराणों में वर्णित कथाएं ही हमारा आधार है | इन कथाओं को पढ़कर हमें अपने इतिहास के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है | पूर्व काल में क्या हुआ ? क्यों हुआ ? और कैसे हुआ ? इसका ज्ञान हमें अपने धर्म ग्रंथों को पढ़कर ही प्राप्त होता है | हमारे पूर्वजों ने मानव सभ्यता के विकास के लिए क्या किया इसका ज्ञान इतिहास पढ़ कर ही जान सकते हैं | कुछ विषय ऐसे हैं जिनको पढ़कर मन में संदेह उत्पन्न होता है भला ऐसा क्यों हुआ होगा ! उस समय की परिस्थिति क्या रही होगी इसके विषय में हम नहीं जान सकते क्योंकि उस समय हम नहीं थे ,  परंतु धर्म ग्रंथों में वर्णित कथाओं को पढ़कर इसका अनुमान लगा सकते हैं |  देश , काल , परिस्थिति सदैव एक समान नहीं रहती है | एक ही मनुष्य परिस्थिति वश भिन्न-भिन्न कृत्य करता है और उसके कृत्य हमें इतिहास पुराणों में पढ़ने को मिलते हैं | अब इन कथाओं को पढ़कर यदि हमारे मन में संदेह उत्पन्न होता है तो यह हमारी मूर्खता ही कही जाएगी , क्योंकि उस समय की परिस्थिति का ज्ञान हमको नहीं है |  अयोध्या का शासन करने वाले महाराज हरिश्चंद्र यदि डोम के यहां मरघट की रखवाली करने का काम करते हैं तो यह परिस्थिति वश किया जाने वाला कृत्य है | ऐसे अनेक विषय हमें पुराणों में पढ़ने को मिलते हैं जिनको पढ़ने के बाद यह मन जिज्ञासाओं के समंदर में तैरने लगता है | इसका समाधान कहीं भी प्राप्त होता नहीं दिखता , ऐसी जिज्ञासाओं को अपने मन में ही पर रखकर उसका समाधान अपने अनुसार निकाल लेना चाहिए |  पुराणों में वर्णित कथाओं को पढ़कर उनका चिंतन करते हुए आनंद लेना चाहिए क्योंकि बहुत कठिन मेहनत करके हमारे पूर्वजों ने अपने इतिहास को सहेज कर रखा है जहां संदेश उत्पन्न हो जाता है वही मन में कुतर्क उठने लगते हैं और इन कुतर्कों के उत्पन्न होते ही कथाओं का सारा आनंद समाप्त हो जाता है और हम एक अनचाही दिशा में बढ़ जाते हैं |*

*आज अनेक विद्वान ऐसे ही अनसुलझे विषयों को लेकर के समाज के समक्ष प्रस्तुत करते हैं जिनका जवाब शायद नहीं मिल पाता है और इन विषयों के समाधान न मिलने पर कुतर्क भी देखने को मिलता है | जिस प्रकार भोजन का स्वाद तीखा एवं मीठा होता है उसी प्रकार यह कथाएं भी दो प्रकार का स्वाद प्रदान करती है | गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज मानस में बताते हैं :- "हरि हर पद रति मति न कुतरकी ! तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुवर की !!" अर्थात भगवान के चरणों में प्रेम हो और मन कुतर्क की ओर ना जाए तब तो यह कथाएं बड़ी मीठी और सुस्वादु लगेंगी अन्यथा इन कथाओं के भंवर जाल में फंसकर मनुष्य गोते लगाता रहता है | मेरा " आचार्य अर्जुन तिवारी " का मानना है कि पुराणों में वर्णित कथाओं पर संदेह कदापि नहीं करना चाहिए क्योंकि इन कथाओं को लिखते समय या इन घटनाओं के घटते समय क्या परिस्थिति रही होगी इसका ज्ञान हमको नहीं है | आज हम अपना सारा ज्ञान इन अनसुलझे रहस्यों पर खर्च करके अनेक प्रकार के कुतर्क करते हैं |  इन कथाओं की बात छोड़ दी जाए यदि अपने परिवार एवं बुजुर्गों की कृत्यों पर ध्यान दिया जाए तो अनेक विषय हमको अपने पूर्वजों से ऐसे सुनने को मिलते हैं जो कि नहीं होने चाहिए परंतु हमारे कुल -  खानदान में भी ऐसे कृत्य हुए होंगे जिनको सुनकर मन ही सहज ही जिज्ञासु हो जाता है | प्रत्येक मनुष्य की परिस्थिति सदैव एक जैसी नहीं रहती जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं कोई कोई कर्म ऐसा होता है जिसे ना चाहते हुए भी मनुष्य को करना पड़ता है इसे प्रारब्ध कहें या की मनुष्य की विवशता यह तो परमात्मा ही बता सकता है परंतु हमें सदैव सकारात्मक पक्ष देखने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि सकारात्मकता में ही सृजन होता है परंतु आज हम ऐसे विषयों पर उलझे हुए हैं जिनका कहीं कोई उत्तर नहीं प्राप्त होता | ऐसे विषयों को उठाकर हम स्वयं के साथ-साथ अन्य लोगों को ही भ्रमित करते रहते हैं | ज्ञान प्राप्त करना अच्छी बात है परंतु यह भी विचार करना चाहिए कि जिस विषय का ज्ञान इन पुराणों के रचयिता भगवान वेदव्यास जी भी नहीं दे पाए उन विषयों में हम अपनी ऊर्जा का व्यय करके क्या प्राप्त कर लेंगे ?  पुराणों में वर्णित कथाओं को पढ़कर अपने पूर्वजों के विषय में ज्ञान प्राप्त करके आनंद लेने का प्रयास करना चाहिए इसके अतिरिक्त यदि यह मन कुतर्क की ओर जाता है तो समझ लो कि हमें इन कथाओं में आनंद नहीं आ रहा है और ऐसे मनुष्यों का जीवन इसी भंवर जाल में फंस कर व्यतीत हो जाता है |*

*कथायें बड़ी रसमयी एवं आनंदमयी होती हैं , आवश्यकता है इनको सकारात्मकता के साथ ग्रहण करने की |  जहां सकारात्मकता का लोप होता है वही यह कथाएं तीखी एवं कड़वी लगने लगती हैं |*
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रचनाएँ
ये कहाँ आ गये हम
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आदिकाल से हमारे संस्कार बहुत ही दिव्य रहे हैं इन्हीं संस्कारों को आधार बना कर हमने विश्व पर शासन किया है ! जहां संस्कारों की बात होती थी सारा विश्व हमारी ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था परिवार , समाज , राजनीति , कूटनीति आदि की शिक्षा सारे विश्व ने हमारे देश भारत से ही प्राप्त किया है परंतु आज हम अपनी मूल संस्कृति को भूलकर आधुनिक होने का दिखावा करने में लगे हुए हैं जिसके कारण आज हम संस्कार विहीन होते चले जा रहे हैं और मन में यह विचार उठता है कि हम क्या थे और क्या हो गए ! आखिर "ये कहां आ गए हम" |
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ये कहाँ आ गये हम - १

2 फरवरी 2022
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*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इस जीवन को पाकर जिसने अपने कर्मों के द्वारा अपना लोक परलोक नहीं सुधार लिया समझ लो उसने खाने और सोने में पूरा जीवन व्यतीत करके व्यर्थ ही इस जीवन को गवा दिया | मानव जीवन में

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ये कहाँ आ गये हम - २

3 फरवरी 2022
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*संसार में जीव माता पिता के माध्यम से आता है , इसीलिए सनातन धर्म में माता-पिता को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है ! और "मातृ देवोभव पितृ देवोभव" की उद्घोषणा की गई थी ! माता पिता के ऋण से कभी भी उऋण न

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ये कहाँ आ गये हम - ३

4 फरवरी 2022
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*इस संसार में चौरासी लाख योनियों के बीच मनुष्य सर्वश्रेष्ठ कहा गया है और मनुष्य ने अपनी वीरता , बुद्धि - विवेक के बल पर समस्त सृष्टि पर शासन भी किया है | सबको एक सूत्र में बांधकर चलने का विवेक ईश्वर न

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ये कहाँ आ गये हम - ४

5 फरवरी 2022
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*यह संसार बड़ा रहस्यमय है ! पग पग पर रहस्यों से भरा हुआ यह संसार एक अबूझ पहेली सिद्ध होता रहा है | सृष्टि के विषय में , समाज के विषय में , धर्मग्रंथों में वर्णित विषयों के विषय में मनुष्य सदैव से जिज्

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ये कहाँ आ गये हम - ५

6 फरवरी 2022
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*मानव जीवन एक यात्रा है | इस जीवन यात्रा में मनुष्य अनेकों पड़ावों को पार करता है | इसी जीवन यात्रा का एक मुख्य पड़ाव है विवाह संस्कार | सनातन धर्म में मानव जीवन को चार भागों में विभक्त किया गया है जि

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ये कहां आ गए हम - भाग ६

12 मार्च 2022
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*इस समाज में अनेको प्रकार के लोग होते हैं जो एक दूसरे के कार्यों की समीक्षा करते हैं ! किसी कार्य के लिए मनुष्य की प्रशंसा होती है तो किसी कार्य के लिए उसकी निंदा भी की जाती है ! प्रशंसा और निंद

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ये कहाँ आ गये हम - भाग - ७

12 अप्रैल 2022
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*सनातन धर्म में जहां एक और सबको समान अधिकार मिले हैं वहीं दूसरी ओर कुछ कृत्य कुछ लोगों के लिए वर्जित भी बताये गये हैं | सनातन धर्म का प्राण हैं भगवान की कथाएं , जिसे कहकर और सुनकर मनुष्य आनंद तो प्राप

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ये कहाँ आ गये हम भाग - ८

25 अप्रैल 2022
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ये कहाँ आ गये हम - ९ (अहंकार)

7 मई 2022
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*मनुष्य इस संसार में जन्म लेने के बाद अनेक कर्म करता है और उसके सभी कर्म सुख प्राप्त करने की दिशा में ही होते हैं | मनुष्य का लक्ष्य सुख प्राप्त करना होता है | येन केन प्रकारेण मनुष्य के सुख की कामना

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ये सहाँ आ गये हम भाग - १० (जीवन एक परीक्षा)

5 जुलाई 2022
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*चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करके जीव को सुंदर मनुष्य का तन मिलता है !  मानव जीवन पाकर के मनुष्य अपनी इच्छा अनुसार सुंदर जीवन यापन करता है ! इस मानव जीवन में पग पग पर मनुष्य को परीक्षाएं देनी होती है

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वर्ण व्यवस्था एवं समाज :- आचार्य अर्जुन तिवारी

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दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2023
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फिल्म जगत एवं सनातन :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जून 2023
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*भारत का इतिहास बहुत ही समृद्धशाली रहा है

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आज का समाज एवं ब्राह्मण: - आचार्य अर्जुन तिवारी

28 दिसम्बर 2023
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*सनातन धर्म की दिव्यता एवं भव्यता आदिकाल से ही रही है ! यदि सनातन धर्म इतना दिव्य एवं भव्य रहा है तो उसका कारण है सनातन के संस्कार एवं संस्कृति ! सनातन के प्रत्येक अनुष्ठान , पूजा पद्धति एवं संस्कारों

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शुक्र एवं गुरु अस्त होने पर न करें विवाह :- आचार्य अर्जुन तिवारी

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*सनातन धर्म में संस्कारों का बड़ा महत्व है ! सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का विधान बताया गया है ! जन्म के पहले से लेकर मृत्यु पर्यंत यह सोलह संस्कार मानव जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ! इन

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इंसानियत

8 अगस्त 2024
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इंसानियत इंसान की पहचान है ! इंसानियत होने से वह इंसान है !! इंसानियत जिसमें नहीं इंसान क्या ! इंसान होकर भी पशु के समान है !! १ आज करुणा प्रेम गायब हो गये ! मन के सारे भाव शायद सो गये !! कुटिल

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