*सनातन धर्म में पूजा पद्धति को मान्यता दी गई है ! अनेकों प्रकार के अनुष्ठान , यज्ञ एवं दैनिक पूजन सनातन धर्मप्रेमी आदिकाल से करते चले आए हैं ! कोई भी अनुष्ठान हो , कोई भी पूजन हो प्रथम पूजन गणेश गौरी का ही होता है ! गणेश गौरी का पूजन करने के बाद ही अनुष्ठान से संबंधित विशिष्ट देवी देवताओं का पूजन किया जाता है ! बिना गणेश गौरी का पूजन किये कोई भी पूजन सफल नहीं हो सकता , परंतु वर्ष में एक दिन कार्तिक अमावस्या अर्थात दीपावली के पावन पर्व पर गणेश गौरी का पूजन न करके गणेश लक्ष्मी का पूजन किया जाता है ! ऐसे में अनेक लोगों के मन में यह तर्क उठता है कि दीपावली तो लक्ष्मी पूजन का दिन है तो गणेश जी की पूजा क्यों की जाती है ? सर्वप्रथम तो यह जान लेना चाहिए गणेश जी प्रथम पूज्य हैं बिना उनकी पूजा किए किसी भी देवी देवता का पूजन फलदायी नहीं होता है ! दूसरा कारण यह है कि गणेश पुराण में वर्णित कथा के अनुसार लक्ष्मी जी ने गणेश जी को गोद लेकर अपना दत्तक पुत्र बनाया था और उनको यह वरदान भी दिया था कि दीपावली के दिन जो भी मनुष्य मेरे पूजन के साथ तुम्हारा पूजन करेगा उसके घर में मैं निरंतर वास करूंगी ! इसके अतिरिक्त एक कारण और भी है कि लक्ष्मी चंचला होती है कभी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहती क्योंकि लक्ष्मी जी की उत्पत्ति जल से हुई है और गणेश जी बुद्धि के प्रदाता माने जाते हैं ! बहुत धन हो जाय और उसको कहां ? कैसे ? व्यय किया जाय यदि इसका विवेक मनुष्य के पास नहीं है तो वही धन उसके लिए घातक हो जाता है ! इसलिए लक्ष्मी के साथ-साथ बुद्धि प्रदाता भगवान गणेश का पूजन भी करना अनिवार्य होता है क्योंकि बिना विवेक बुद्धि के मनुष्य पशु के समान होता है और अपने धन का दुरुपयोग करके मनुष्य मानवता को भी लज्जित करने वाले कृत्य करने लगता है ! इसलिए धन के साथ-साथ उसका सदुपयोग करने के लिए बुद्धि विवेक की भी आवश्यकता होती है ! यही कारण है की दीपावली के दिन लक्ष्मी जी के साथ-साथ गणेश का की पूजन किया जाता है जिससे लक्ष्मी तो प्राप्त ही हों साथ ही ही मनुष्य को गणेश जी के द्वारा बुद्धि विवेक का भी दान मिले !*
*आज हम आधुनिक हो गए हैं ! हमारे मन में जिज्ञासायें तो बहुत उत्पन्न होती हैं परंतु उन जिज्ञासाओं का समाधान पाने के लिए हम अपने ग्रंथों का अध्ययन करना भूल गए हैं ! मनुष्य की जितने भी जिज्ञासायें हैं उन सब का समाधान हमारे ग्रंथों में ही है परंतु आज अधिकतर सनातन धर्म के मानने वाले अपने ग्रंथों से दूर होते चले जा रहे हैं ! हमने पढ़ाई तो बहुत कर ली है परंतु जो हमको पढ़ना चाहिए आज हम उनसे दूर होते जा रहे हैं ! यही कारण है कि अज्ञानतावश उनके मस्तिष्क में अनेकों प्रकार की जिज्ञासायें उत्पन्न होती रहती है ! मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि यदि हम कुछ ना करके इन कठिन विषयों को अपने ग्रंथों में ढूंढने का प्रयास करें , ग्रंथों का स्वाध्याय करें तो शायद कोई जिज्ञासा रह ही न जाय ! आज समाज में अनेकों धनकुबेर ऐसे देखने को मिलते हैं जिनके पास अकूत संपत्ति होती है परंतु उस संपत्ति को कैसे प्रयोग किया जाय इसके लिए बुद्धि विवेक नहीं होता है ! प्रायः ऐसा भी देखने को मिल रहा है कि अनेकों धनकुबेर अपने अधीनस्थों के द्वारा असमय काल के गाल में पहुंचा दिए जाते हैं ! उसका कारण यही है कि उनके पास लक्ष्मी अर्थात धन तो हैं परंतु गणेश भगवान की कृपा उन पर नहीं होती अर्थात बुद्धि विवेक से शून्य होते हैं ! उचित अवसर सटीक निर्णय लेने की क्षमता का अभाव होता है ! निर्णय लेने की क्षमता उसी के पास होती है जिसकी बुद्धि प्रबल होती है , बुद्धि प्रबल तभी हो सकती है जब बुद्धि के प्रदाता भगवान गणेश का पूजन , उनका आराधन समय-समय पर किया जाता रहे ! दीपावली के दिन गणेश लक्ष्मी का पूजन करने का यही उद्देश्य है कि हमको लक्ष्मी तो मिलें परंतु लक्ष्मी के साथ में भगवान गणेश की कृपा भी प्राप्त हो जिससे कि हमको सद्बुद्धि प्राप्त होती रहे अन्यथा जब गणेश के बिना अकेली लक्ष्मी जी आती हैं तो मनुष्य उसके मद में विवेकहीन हो जाता है और अनर्गल कृत्य करके अपने जीवन तक को समाप्त कर लेता है !*
*प्रथमपूज्य , देवों में अग्रगण्य भगवान गणेश और लक्ष्मी का पूजन करके प्रत्येक मनुष्य संपत्तिशाली ऐश्वर्यशाली होने के साथ-साथ विवेकवान भी हो ऐसी कामना मन में रखते हुए भगवान गणेश और लक्ष्मी मैया का पूजन करना चाहिए !*