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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022

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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ! भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में सबसे प्रचलित यदि कोई नाम है तो वह है श्री राम ! यदि इस नाम की व्याख्या की जाय तो इसका सीधा अर्थ निकलता है कि राम वही है जो रोम रोम में समाया है ! यहां सिर्फ प्राणियों की देह के रोम की बात नहीं की जा रही है अपितु संपूर्ण सृष्टि के सूक्ष्म अणुओं में जो समाहित है वह राम , क्योंकि राम परम तत्व है , परम ब्रह्म है !  यह राम नाम की महिमा ही है कि आज प्रत्येक घर में , प्रत्येक मंदिर में भगवान श्री राम की मूर्ति देखने को मिल जाती है !  उनका पूजन घर-घर में होता है जो कि उनकी लोक स्वीकार्यता का व्यापक प्रमाण है ! मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए समाज में एक उच्चस्तरीय मर्यादा का स्थापन किया था ! यदि भगवान राम के जीवन को देखा जाए तो उसमें महत्वाकांक्षा एवं कामना का कोई स्थान नहीं था ! भगवान श्री राम स्वार्थ से कोसों दूर थे , उन्होंने कभी भी मोह को महत्व नहीं दिया था , लोक कल्याण  जन भावनाएं ही उनके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण थीं ! भगवान राम का अवतार तो त्रेता में हुआ था परंतु इनका वर्णन सनातन धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में भी मिलता है ! वेदों का प्राण श्री राम को ही कहा गया है , प्रणव अक्षर में भगवान राम का नाम समाहित है !  भगवान राम एक शरीर नहीं , एक मूर्ति नहीं बल्कि एक आदर्श है ! एक स्थापित आदर्श जो कि सृष्टि के आदिकाल से आज तक चलता चला आ रहा है !  भगवान राम के द्वारा स्थापित की गई मर्यादा ही आज भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है , आवश्यकता है उन मर्यादाओं को अपने जीवन में उतारने की !*

*आज चारों ओर शोक संताप ही दिखाई पड़ रहा है , ऐसे में हमें भगवान राम के चरित्रों का अवगाहन करते हुए उससे सीख लेने की आवश्यकता है ! वेदों में श्री राम के नाम का उल्लेख मिलता है इसका अर्थ यही हुआ कि भगवान राम मात्र त्रेतायुगीन नहीं अपितु सृष्टि के आदि के अंत तक कण-कण में समाए हुए हैं ! कुछ लोग यह जानना चाहते हैं तथा संदेह करते हैं कि यदि भगवान राम का जन्म त्रेता में हुआ तो ऋग्वेद में उनका वर्णन कैसे और कहां है ? ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि हमारे वेदों में में भगवान श्रीराम ही नहीं बल्कि सीता दशरथ एवं भरत का भी उल्लेख मिलता है जो कि इस प्रकार है ;- सुप्रकेतैर्द्युभिरग्निवितिष्ठन् रूषद्भिर्वर्णैरभि "राममस्थात् " (ऋ०वे० १०/३/३) सीता जी का वर्णन भी उसी ऋग्वेद में प्राप्त होता है ! यथा :- इन्द्र: "सीता" नि गृह्णातु भूमिकर्षिका (ऋ०वे०/४/५७/७) जो भी लोग वेदों में इसकी प्रामाणिकता चाहते हैं उनको यह भी देखना चाहिए कि ऋग्वेद में राम -  सीता ही नहीं बल्कि भरत एवं दशरथ का नाम भी उल्लेखित है ! यथा :- त्वामीळे अध द्विता "भरतो" वाजिभि: शुनम् (ऋ०वे०/६/१६/४) दशरथ जी का नाम भी देख लें :- चत्वारिंशद्दशरथस्य शोणा: (ऋ०वे० /१/१२६/४) इस प्रकार लोगों को वेदों में दिए गए प्रमाणों पर कोई संदेह नहीं करना चाहिए ! भगवान राम कोई कल्पना नहीं बल्कि सृष्टि के आदिकाल से लेकर के अंत तक जिनके नाम की चर्चा हो वही राम है ! राम के आदर्शों को जीवन में उतारने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य को करना ही चाहिए !  जिससे कि यह जीवन राममय हो सके !  मनुष्य का एक संदेह उसके जीवन की दिशा को परिवर्तित कर देता है इसलिए जीवन में कभी भी संदेह नहीं करना चाहिए !*

*राम मानवता की आत्मा है , राम के बिना मानवता की कल्पना भी नहीं की जा सकती ! यदि त्रेतायुग में ही राम होते तो भगवान शिव राम जन्म के पहले राम नाम का जप न कर रहे होते ! इसलिए राम की व्यापकत पर संदेह करके मनुष्य को भ्रमित नहीं होना चाहिए !*
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रचनाएँ
हमारी संस्कृति एवं हम
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हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं ओजस्वी संस्कृति कही जाती है ! हमें विश्वगुरु कहा जाता था तो उसका आधार हमारी संस्कृति एवं संस्कार ही थे ! हमारे महापुरुषों ने समाज के लिए कुछ आदर्श स्थापित किये थे ! उन आदर्शों के बलबूते पर ही हम विश्वगुरू थे ! चिन्तनीय यह है कि हमारे पूर्वजों ने संस्कृति एवं संस्कार को दिव्य ज्ञान हमको दिया था हम उनका संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं ! आज विचार करने की आवश्यकता है कि हमारे पूर्वज क्या थे और हम क्या होते जा रहे हैं !
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चित्र और चरित्र :- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 जनवरी 2022
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*भारतीय सनातन धर्म में सदैव से चरित्र-निर्माण पर ही बल दिया गया है | और चरित्र का निर्माण वैसे ही हो पाता है जैसा चित्र हमारे मनोमस्तिष्क में स्थापित होता है | सनातन धर्म में मूर्तिपूजा को विशेष महत्व

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मानव धर्म :- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 जनवरी 2022
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*इस संसार में आदिकाल में जब पृथ्वी पर एकमात्र "सनातन धर्म" ही था तब हमारे महापुरुषों ने सम्पूर्ण धरती को अपना घर एवं सभी प्राणियों को अपना परिवार मानते हुए "वसुधैव - कुटुम्बकम्" का संदेश प्रसारित

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जीवन में मार्गदर्शन की आवश्यकता :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जनवरी 2022
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य सफल , समृद्ध , सार्थक , सुखी एवं शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है ,  परंतु यह इतना सहज नहीं है , क्योंकि वर्तमान युग में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भा

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बदलें दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2022
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*हमारा देश भारत आदिकाल से आध्यात्मिक ज्ञान ज्ञान का केंद्र रहा है |  आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने से पहले मनुष्य को आत्मज्ञान प्राप्त करना होता है | जीवन के दीपक के बुझने के पहले स्वयं को पहचान लेना

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गुण एवं दोष

26 मई 2022
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*ब्रह्मा जी द्वारा बनाई गई सृष्टि बड़ी ही अलौकिक है ! सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्मा जी ने संतुलन को बनाए रखने के लिए जहां अनेकों गुण बनाए वहीं अनेक प्रकार के दोष भी बनाये हैं ! "जड़ चेतन गुण दोषमय ,

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तुलसी जयन्ती :- आचार्य अर्जुन तिवारी

4 अगस्त 2022
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*सनातन हिंदू धर्म में इस संसार का सृष्टिकर्ता , पालनकर्ता एवं संहारकर्ता विविध रूपों में भगवान को माना गया ! भगवान की पहचान हमेंशा भक्तों से हुई है ! यदि भक्त ना होते तो शायद भगवान का भी कोई अस्

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मित्रता अनमोल रत्न है :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 अगस्त 2022
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*संसार में आने के बाद मनुष्य अनेकों प्रकार के संबंधों में बंध जाता है ! पारिवारिक संबंध , सामाजिक संबंध , बन्धु - बांधव एवं अनेक प्रकार के रिश्ते नाते उसे जीवन भर बांधे रखते हैं ! यह सभी संबंध म

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सच्ची मित्रता :- आचार्य अर्जुन तिवारी

7 अगस्त 2022
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*जीवन में जिस प्रकार मनुष्य को आदर्श माता-पिता एवं आदर्श गुरु तथा एक आदर्श समाज उच्चता के शिखर पर ले जाता है उसी प्रकार एक सच्चा एवं आदर्श मित्र मनुष्य को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है ! इस संसा

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हर घर तिरंगा :- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 अगस्त 2022
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद स्वतंत्र रहने का अधिकार प्रत्येक जीव मात्र को है ! परिस्थिति वश मनुष्य पराधीन हो जाता है ! पराधीनता का दुख वही समझ सकता है जिसने यह कष्ट झेला है ! बाबा जी ने मानस में लि

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गणेश लक्ष्मी का पूजन

27 अक्टूबर 2022
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*सनातन धर्म में पूजा पद्धति को मान्यता दी गई है ! अनेकों प्रकार के अनुष्ठान , यज्ञ एवं दैनिक पूजन सनातन धर्मप्रेमी आदिकाल से करते चले आए हैं ! कोई भी अनुष्ठान हो , कोई भी पूजन हो प्रथम पूजन गणेश गौरी

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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022
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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री

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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022
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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री

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प्रतिकार करना आवश्यक है

7 नवम्बर 2022
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*इस संसार में भगवान ने दो तरह की व्यवस्थाओं को समान रूप से स्थान दिया है ! प्रथम ध्वंस एवं दूसरे का नाम है सृजन ! सृष्टि में संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों ही आवश्यक है , यदि कोई भवन गलत विधि से निर्मा

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श्रेय एवं प्रेय :- आचार्य अर्जुन तिवारी

9 मई 2023
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*इस संसार में प्रायः दो दो शब्दों की जोड़ी देखने को मिलती है जैसे दिन एवं रात , सुख एवं दुख , पाप एवं पुण्य आद

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मानव जीवन श्रेष्ठ है :- आचार्य अर्जुन तिवारी

10 जुलाई 2023
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*ईश्वर की असीम अनुकंपा से जीव मनुष्य योनि प्राप्त करता है और उसे मानव कहा जाता है ! मानव वही है जिसमें मानवता हो ! मानवता का अर्थ है कि संसार के साथ-साथ अपने जीवन का कल्याण कैसे हो इस पर विचार क

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धर्म का महत्त्व: - आचार्य अर्जुन तिवारी

26 अगस्त 2023
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*मानव जीवन में धर्म का होना बहुत आवश्यक है ! बिना धर्म के मनुष्य अमर्यादित हो जाता है ! धर्म क्या है ? इस पर अनेकों विद्वानों के मत मिलते हैं और सब का निचोड़ जो मिलता है उसका यह अर्थ यही निकलता है कि

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रक्षाबन्धन एवं भद्राकाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अगस्त 2023
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*हमारा देश भारत त्योहारों का देश है , जहां समय-समय पर अनेक प्रकार के त्यौहार मनाये जाते हैं जो कि हमारे देश को अनेकता में एकता के सूत्र में बांधते हैं ! सनातन धर्म में पर्व एवं त्योहारों का बहुत बड़ा

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मोक्ष के चार द्वारपाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

8 जनवरी 2024
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*सनातन धर्म में प्रत्येक मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ बताए गए हैं धर्म अर्थ काम और मोक्ष ! मोक्ष प्राप्त करना हमारे पूर्वजों का परम उद्देश्य रहता था ! बाकी के तीनों पुरुषार्थों का पालन करते हुए अंतिम प

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