*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ! भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में सबसे प्रचलित यदि कोई नाम है तो वह है श्री राम ! यदि इस नाम की व्याख्या की जाय तो इसका सीधा अर्थ निकलता है कि राम वही है जो रोम रोम में समाया है ! यहां सिर्फ प्राणियों की देह के रोम की बात नहीं की जा रही है अपितु संपूर्ण सृष्टि के सूक्ष्म अणुओं में जो समाहित है वह राम , क्योंकि राम परम तत्व है , परम ब्रह्म है ! यह राम नाम की महिमा ही है कि आज प्रत्येक घर में , प्रत्येक मंदिर में भगवान श्री राम की मूर्ति देखने को मिल जाती है ! उनका पूजन घर-घर में होता है जो कि उनकी लोक स्वीकार्यता का व्यापक प्रमाण है ! मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए समाज में एक उच्चस्तरीय मर्यादा का स्थापन किया था ! यदि भगवान राम के जीवन को देखा जाए तो उसमें महत्वाकांक्षा एवं कामना का कोई स्थान नहीं था ! भगवान श्री राम स्वार्थ से कोसों दूर थे , उन्होंने कभी भी मोह को महत्व नहीं दिया था , लोक कल्याण जन भावनाएं ही उनके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण थीं ! भगवान राम का अवतार तो त्रेता में हुआ था परंतु इनका वर्णन सनातन धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में भी मिलता है ! वेदों का प्राण श्री राम को ही कहा गया है , प्रणव अक्षर में भगवान राम का नाम समाहित है ! भगवान राम एक शरीर नहीं , एक मूर्ति नहीं बल्कि एक आदर्श है ! एक स्थापित आदर्श जो कि सृष्टि के आदिकाल से आज तक चलता चला आ रहा है ! भगवान राम के द्वारा स्थापित की गई मर्यादा ही आज भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है , आवश्यकता है उन मर्यादाओं को अपने जीवन में उतारने की !*
*आज चारों ओर शोक संताप ही दिखाई पड़ रहा है , ऐसे में हमें भगवान राम के चरित्रों का अवगाहन करते हुए उससे सीख लेने की आवश्यकता है ! वेदों में श्री राम के नाम का उल्लेख मिलता है इसका अर्थ यही हुआ कि भगवान राम मात्र त्रेतायुगीन नहीं अपितु सृष्टि के आदि के अंत तक कण-कण में समाए हुए हैं ! कुछ लोग यह जानना चाहते हैं तथा संदेह करते हैं कि यदि भगवान राम का जन्म त्रेता में हुआ तो ऋग्वेद में उनका वर्णन कैसे और कहां है ? ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि हमारे वेदों में में भगवान श्रीराम ही नहीं बल्कि सीता दशरथ एवं भरत का भी उल्लेख मिलता है जो कि इस प्रकार है ;- सुप्रकेतैर्द्युभिरग्निवितिष्ठन् रूषद्भिर्वर्णैरभि "राममस्थात् " (ऋ०वे० १०/३/३) सीता जी का वर्णन भी उसी ऋग्वेद में प्राप्त होता है ! यथा :- इन्द्र: "सीता" नि गृह्णातु भूमिकर्षिका (ऋ०वे०/४/५७/७) जो भी लोग वेदों में इसकी प्रामाणिकता चाहते हैं उनको यह भी देखना चाहिए कि ऋग्वेद में राम - सीता ही नहीं बल्कि भरत एवं दशरथ का नाम भी उल्लेखित है ! यथा :- त्वामीळे अध द्विता "भरतो" वाजिभि: शुनम् (ऋ०वे०/६/१६/४) दशरथ जी का नाम भी देख लें :- चत्वारिंशद्दशरथस्य शोणा: (ऋ०वे० /१/१२६/४) इस प्रकार लोगों को वेदों में दिए गए प्रमाणों पर कोई संदेह नहीं करना चाहिए ! भगवान राम कोई कल्पना नहीं बल्कि सृष्टि के आदिकाल से लेकर के अंत तक जिनके नाम की चर्चा हो वही राम है ! राम के आदर्शों को जीवन में उतारने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य को करना ही चाहिए ! जिससे कि यह जीवन राममय हो सके ! मनुष्य का एक संदेह उसके जीवन की दिशा को परिवर्तित कर देता है इसलिए जीवन में कभी भी संदेह नहीं करना चाहिए !*
*राम मानवता की आत्मा है , राम के बिना मानवता की कल्पना भी नहीं की जा सकती ! यदि त्रेतायुग में ही राम होते तो भगवान शिव राम जन्म के पहले राम नाम का जप न कर रहे होते ! इसलिए राम की व्यापकत पर संदेह करके मनुष्य को भ्रमित नहीं होना चाहिए !*