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धर्म का महत्त्व: - आचार्य अर्जुन तिवारी

26 अगस्त 2023

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*मानव जीवन में धर्म का होना बहुत आवश्यक है ! बिना धर्म के मनुष्य अमर्यादित हो जाता है ! धर्म क्या है ? इस पर अनेकों विद्वानों के मत मिलते हैं और सब का निचोड़ जो मिलता है उसका यह अर्थ यही निकलता है कि धर्म धारण करने की चीज है ना कि त्याग करने की ! जो धारण करने में समर्थ है जो हमारे जीवन को धारण करने में , संभाले रहने में समर्थ है वही धर्म है ! धर्म का आशय किसी मत , पंथ , मजहब , संप्रदाय से कदापि नहीं है यह सभी तो धर्म प्राप्ति के साधन मात्र हैं साध्य नहीं ! धर्म एक मर्यादा बंधन है जो मनुष्य को मर्यादा में रहने को प्रेरित करता है जो मर्यादा की सीमा को लांघता है वह अपने जीवन को पतन की ओर ले जाता है ! दुर्योधन , दुशासन , रावण , कुंभकरण आदि ऐसे कई पौराणिक - ऐतिहासिक चरित्र है जो धन-धान्य से परिपूर्ण होते हुए भी मर्यादा में नहीं रहने के कारण विनाश को प्राप्त हो गये ! मर्यादा क्या है ? मर्यादा से तात्पर्य है मानवीय मर्यादा का ! मनुष्य में मनुष्योचित मर्यादा ना हो , मानवीय गुण ना हो तो फिर वह मनुष्य कैसा ! धर्म ही मनुष्य में मानवीय गुणों को भरकर उसे सही मायने में मनुष्य बनाता है ! जैसे तूफानों में भारी बर्बादी तबाही देखने को मिलती है वैसे ही धर्म के न होने पर मनुष्य जब अधर्म के मार्ग पर चल पड़ता है तो उसके जीवन में भी भारी तबाही के तूफान आते रहते हैं जिसके कारण उसका सर्वनाश हो जाता है ! जैसे समुद्र में ज्वार भाटे उठते रहते हैं इसी प्रकार धार्मिक दृष्टि न होने के कारण मनुष्य के मन में विषय - वासना , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष आदि विचार रूप में ज्वार भाटे की तरह उठते रहते हैं ! फिर उन दुर्गुणों के आवेश में मनुष्य अधर्म के मार्ग पर चल पड़ता है जिससे उसका जीवन पतित हो जाता है !  धर्म पालन का अर्थ जीवन या परिवार से पलायन नहीं है बल्कि यह तो हमें जीवन से पलायन करने से रोकता है ! अपने कर्तव्य पथ पर अविरल चलते रहने का नाम ही धर्म है ! इसलिए धर्म का व्यापक अर्थ है - कर्तव्य ! धर्म का पालन तभी हो सकता है जब हम आध्यात्मिक होंगे ! आध्यात्मिकता को जीवन में उतारने के लिए धर्म का होना आवश्यक है ! धर्म एवं आध्यात्मिकता दोनों एक दूसरे के पूरक हैं इसे समझने की आवश्यकता है !*

*आज के आधुनिक युग में धर्म एवं आध्यात्मिक को लेकर आम जनमानस में कई प्रकार की भ्रांतियां भरी हुई है ! बहुत से लोग यही समझते हैं की धर्म कर्म करने का अर्थ है अपनी जिम्मेदारियां को छोड़कर सिर्फ पूजा पाठ करते रहना ! कुछ लोग यह कहते हैं कि हमारी अभी आयु ही क्या हुई है जो हम धर्म कर्म करके साधु संत बन जायं ! हां ! जब उम्र का अंतिम पड़ाव आएगा तो कुछ धर्म कर्म कर लिया जाएगा अभी तो जिंदगी में आनंद का भोग करना है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" अनेक परिवारों में देखता हूं कि यदि बहू सुबह कुछ पूजा पाठ करने लगती है तो उसके परिवार वाले उसको ताना मारते हैं ! इसका कारण यही है कि परिवार के वे लोग धर्म अध्यात्म के विषय में कुछ जानते ही नहीं है ! धर्म अध्यात्म ना तो जीवन के विरोधी है और ना ही धर्म अध्यात्म का मतलब जीवन से पलायन होना है परंतु आज लोग धर्म कर्म करने का अर्थ यही समझते हैं कि घर परिवार को छोड़कर धर्म किया जाय ! जबकि सबसे बड़ा धर्म है मानव धर्म ! हम महाराज मनु की मैथुनी सृष्टि से उत्पन्न हुए हैं हमारा कर्तव्य है अपने परिवार का पालन करना ! परिवार पालन के कर्तव्य एवं धर्म-कर्म में सामंजस्य बनाए रखना ही वास्तविक धर्म का पालन है , परंतु आज मनुष्य अपने पारिवारिक कर्तव्यों का निर्वहन ना करके समाज को दिखाने के लिए धर्माधिकारी बन जाता है ! हमारे शास्त्रों में पुराणों में कहीं भी ऐसा वर्णन नहीं आया है कि धर्म का पालन करने के लिए अपने परिवार का त्याग कर दिया , कभी भी धर्म का पालन दिखावे के लिए किया जाय ! परंतु आज चाहे वह मठाधीश हो या सामान्य परिवार आज धर्म दिखाने के लिए ही अधिक किया जा रहा है ! स्वधर्म का पालन करने वाले उंगलियों पर गिने जा सकते हैं ! माता-पिता के प्रति जो पुत्र का धर्म होता है आज वह कहीं-कहीं ही दिखाई पड़ रहा है ! एकपत्नीव्रत होने का जो धर्म एक पति का होता है वह भी बहुत कम ही देखने को मिल रहा है ! इसका कारण यही है कि लोग धर्म की व्याख्या को सही ढंग से समझ नहीं पा रहे हैं ! आज आवश्यकता है कि धर्म को समझा जाय ! धर्म क्या है ? धर्म का पालन कैसे किया जाय ? जब तक यह समझ नहीं आएगा तब तक मनुष्य न चाहते हुए भी अधर्म के मार्ग पर बढ़ता चला जाएगा ! धर्म का अर्थ है मर्यादा का बंधन ! जब तक जीवन मर्यादित होता है तब तक ही सुखी होता है , मर्यादा का बांध टूटते ही मनुष्य के जीवन का पतन प्रारंभ हो जाता है ! इसलिए प्रत्येक मनुष्य को मानव धर्म अर्थात अपनी मर्यादा का ध्यान रखते हुए धर्म पालन में तत्पर रहना चाहिए !*

*मनुष्य जब तक धर्ममय जीवन जीता है तब तक उसके जीवन में सुख समृद्धि परिपूर्ण होती है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक नदी जब तक अपनी सीमा में बहती है तब तक वह जीवन देती है परंतु जब वह सीमा लांघ जाती है तो बाढ़ जैसी भी विभीषिका आती है उसी प्रकार मनुष्य भी मर्यादा लांघने के बाद जीवन को समाप्त करने वाला हो जाता है !*
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रचनाएँ
हमारी संस्कृति एवं हम
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हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं ओजस्वी संस्कृति कही जाती है ! हमें विश्वगुरु कहा जाता था तो उसका आधार हमारी संस्कृति एवं संस्कार ही थे ! हमारे महापुरुषों ने समाज के लिए कुछ आदर्श स्थापित किये थे ! उन आदर्शों के बलबूते पर ही हम विश्वगुरू थे ! चिन्तनीय यह है कि हमारे पूर्वजों ने संस्कृति एवं संस्कार को दिव्य ज्ञान हमको दिया था हम उनका संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं ! आज विचार करने की आवश्यकता है कि हमारे पूर्वज क्या थे और हम क्या होते जा रहे हैं !
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चित्र और चरित्र :- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 जनवरी 2022
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*भारतीय सनातन धर्म में सदैव से चरित्र-निर्माण पर ही बल दिया गया है | और चरित्र का निर्माण वैसे ही हो पाता है जैसा चित्र हमारे मनोमस्तिष्क में स्थापित होता है | सनातन धर्म में मूर्तिपूजा को विशेष महत्व

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मानव धर्म :- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 जनवरी 2022
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*इस संसार में आदिकाल में जब पृथ्वी पर एकमात्र "सनातन धर्म" ही था तब हमारे महापुरुषों ने सम्पूर्ण धरती को अपना घर एवं सभी प्राणियों को अपना परिवार मानते हुए "वसुधैव - कुटुम्बकम्" का संदेश प्रसारित

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जीवन में मार्गदर्शन की आवश्यकता :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जनवरी 2022
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य सफल , समृद्ध , सार्थक , सुखी एवं शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है ,  परंतु यह इतना सहज नहीं है , क्योंकि वर्तमान युग में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भा

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बदलें दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2022
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*हमारा देश भारत आदिकाल से आध्यात्मिक ज्ञान ज्ञान का केंद्र रहा है |  आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने से पहले मनुष्य को आत्मज्ञान प्राप्त करना होता है | जीवन के दीपक के बुझने के पहले स्वयं को पहचान लेना

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गुण एवं दोष

26 मई 2022
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*ब्रह्मा जी द्वारा बनाई गई सृष्टि बड़ी ही अलौकिक है ! सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्मा जी ने संतुलन को बनाए रखने के लिए जहां अनेकों गुण बनाए वहीं अनेक प्रकार के दोष भी बनाये हैं ! "जड़ चेतन गुण दोषमय ,

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तुलसी जयन्ती :- आचार्य अर्जुन तिवारी

4 अगस्त 2022
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*सनातन हिंदू धर्म में इस संसार का सृष्टिकर्ता , पालनकर्ता एवं संहारकर्ता विविध रूपों में भगवान को माना गया ! भगवान की पहचान हमेंशा भक्तों से हुई है ! यदि भक्त ना होते तो शायद भगवान का भी कोई अस्

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मित्रता अनमोल रत्न है :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 अगस्त 2022
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*संसार में आने के बाद मनुष्य अनेकों प्रकार के संबंधों में बंध जाता है ! पारिवारिक संबंध , सामाजिक संबंध , बन्धु - बांधव एवं अनेक प्रकार के रिश्ते नाते उसे जीवन भर बांधे रखते हैं ! यह सभी संबंध म

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सच्ची मित्रता :- आचार्य अर्जुन तिवारी

7 अगस्त 2022
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*जीवन में जिस प्रकार मनुष्य को आदर्श माता-पिता एवं आदर्श गुरु तथा एक आदर्श समाज उच्चता के शिखर पर ले जाता है उसी प्रकार एक सच्चा एवं आदर्श मित्र मनुष्य को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है ! इस संसा

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हर घर तिरंगा :- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 अगस्त 2022
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद स्वतंत्र रहने का अधिकार प्रत्येक जीव मात्र को है ! परिस्थिति वश मनुष्य पराधीन हो जाता है ! पराधीनता का दुख वही समझ सकता है जिसने यह कष्ट झेला है ! बाबा जी ने मानस में लि

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गणेश लक्ष्मी का पूजन

27 अक्टूबर 2022
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*सनातन धर्म में पूजा पद्धति को मान्यता दी गई है ! अनेकों प्रकार के अनुष्ठान , यज्ञ एवं दैनिक पूजन सनातन धर्मप्रेमी आदिकाल से करते चले आए हैं ! कोई भी अनुष्ठान हो , कोई भी पूजन हो प्रथम पूजन गणेश गौरी

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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022
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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री

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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022
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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री

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प्रतिकार करना आवश्यक है

7 नवम्बर 2022
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*इस संसार में भगवान ने दो तरह की व्यवस्थाओं को समान रूप से स्थान दिया है ! प्रथम ध्वंस एवं दूसरे का नाम है सृजन ! सृष्टि में संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों ही आवश्यक है , यदि कोई भवन गलत विधि से निर्मा

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श्रेय एवं प्रेय :- आचार्य अर्जुन तिवारी

9 मई 2023
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*इस संसार में प्रायः दो दो शब्दों की जोड़ी देखने को मिलती है जैसे दिन एवं रात , सुख एवं दुख , पाप एवं पुण्य आद

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मानव जीवन श्रेष्ठ है :- आचार्य अर्जुन तिवारी

10 जुलाई 2023
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*ईश्वर की असीम अनुकंपा से जीव मनुष्य योनि प्राप्त करता है और उसे मानव कहा जाता है ! मानव वही है जिसमें मानवता हो ! मानवता का अर्थ है कि संसार के साथ-साथ अपने जीवन का कल्याण कैसे हो इस पर विचार क

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धर्म का महत्त्व: - आचार्य अर्जुन तिवारी

26 अगस्त 2023
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*मानव जीवन में धर्म का होना बहुत आवश्यक है ! बिना धर्म के मनुष्य अमर्यादित हो जाता है ! धर्म क्या है ? इस पर अनेकों विद्वानों के मत मिलते हैं और सब का निचोड़ जो मिलता है उसका यह अर्थ यही निकलता है कि

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रक्षाबन्धन एवं भद्राकाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अगस्त 2023
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*हमारा देश भारत त्योहारों का देश है , जहां समय-समय पर अनेक प्रकार के त्यौहार मनाये जाते हैं जो कि हमारे देश को अनेकता में एकता के सूत्र में बांधते हैं ! सनातन धर्म में पर्व एवं त्योहारों का बहुत बड़ा

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मोक्ष के चार द्वारपाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

8 जनवरी 2024
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*सनातन धर्म में प्रत्येक मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ बताए गए हैं धर्म अर्थ काम और मोक्ष ! मोक्ष प्राप्त करना हमारे पूर्वजों का परम उद्देश्य रहता था ! बाकी के तीनों पुरुषार्थों का पालन करते हुए अंतिम प

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