*हमारा देश भारत त्योहारों का देश है , जहां समय-समय पर अनेक प्रकार के त्यौहार मनाये जाते हैं जो कि हमारे देश को अनेकता में एकता के सूत्र में बांधते हैं ! सनातन धर्म में पर्व एवं त्योहारों का बहुत बड़ा महत्व है प्रत्येक पर्व/त्यौहार के पीछे कोई ना कोई पौराणिक कथा अवश्य जुड़ी है ! इन्हीं त्योहारों में मानव जीवन को रक्षित करने का पर्व रक्षाबंधन श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को मनाया जाता है ! आचार्य के द्वारा रक्षा सूत्र का पूजन करके अपने यजमान की रक्षा के लिए उसकी कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधा जाता है ! यह पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम के लिए भी जाना जाता है ! जहां बहिनें अपने भाई की लंबी आयु के लिए उसकी कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधती हैं ! यह पर्व बड़े ही धूमधाम से भारतवर्ष में मनाया जाता है ! कोई भी पर्व हो , कोई भी त्यौहार हो , कोई भी पूजन हो या जीवन का कोई भी कार्य हो उसे करने के पहले उसके विषय में जान लेना परम आवश्यक होता है ! किस नियम के अंतर्गत कौन सा कार्य करना है इसको जाने बिना वह कार्य करने से परिणाम सुखद नहीं हो सकता ! हमारे पर्व / त्यौहार सब नियमों में बंधे हैं इन विशेष नियमों को जाने बिना इन त्योहारों को मनाना या कोई भी पूजन करना सार्थक फल नहीं प्रदान कर सकता ! रक्षाबंधन में भद्रा काल का उपस्थित होना और उसके विषय में जानना तथा उसका त्याग करना कितना आवश्यक है इसको जानने के लिए हमें अपने पौराणिक ग्रन्थों का अवलोकन करने की आवश्यकता है , परंतु लोग सुनी सुनाई बातों पर अधिक ध्यान देते हैं क्योंकि उनके पास आज समय नहीं है कि अपने ग्रन्थों का अवलोकन करें ! यही कारण है कि आज समाज में अनेक प्रकार की भ्रांतियां फैल गई हैं जो कि कदापि उचित नहीं कही जा सकती ! साधारण लोगों की बात ही क्या की जाय अनेक विद्वान एवं पुरोहित भी भ्रम की स्थित उत्पन्न करते देखे जा रहे हैं !*
*आज रक्षाबंधन का पावन पर्व है परंतु आज हम भ्रमित दिखाई पड़ रही हैं ! हमारे भ्रमित होने का एक विशेष कारण है कि हमने अपनी सनातन काल गणना को भुला दिया है ! आज हम अंग्रेजी तारीख के गुलाम हो गए हैं ! हमने भरणी - भद्रा , पूर्णिमा - अमावस्या , परिवा - अष्टमी , ग्राह्य - त्याज्य आदि को जानना छोड़ दिया है ! आज हमें मात्र अंग्रेजी तारीख याद रह गई है ! रक्षाबंधन के विषय में अनेक विद्वानों का तर्क है कि :- उदयातिथि की पूर्णिमा पूरे दिन मानी जाएगी इसलिए ३१ तारीख को पूरे दिन रक्षाबंधन मनाया जा सकता है ! ऐसे सभी विद्वानों से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना ही कहना चाहूंगा की कोई भी पर्व या त्योहार मनाने के लिए सूर्योदय व्यापिनी पूर्णिमा का मान कम से कम तीन मुहूर्त होना चाहिए ! उदयातिथि की पूर्णिमा मात्र स्नान ध्यान एवं दान के लिए ही मान्य है ! भद्रा काल में रक्षाबंधन एवं होलिका दहन कदापि नहीं करना चाहिए कुछ लोग यह भी कहते हैं की रात्रि में रक्षाबंधन नहीं होना चाहिए उनको हमारे निर्णय सिंधु , धर्म सिंधु , व्रतराज आदि ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिए , जहां पर स्पष्ट लिखा है की रात्रि में रक्षाबंधन का निषेध नहीं है यदि भद्र रात्र तक है और दूसरे दिन पूर्णिमा तीन मुहूर्त नहीं मिल रही है तो रक्षाबंधन रात्रि में ही कर लेना चाहिए ! यह सारी स्थिति आज बन रही है इसलिए आज का रक्षाबंधन भद्रा समाप्ति के उपरान्त रात्रि ८: ५७ से प्रारंभ होगा ! अपनी अपनी सुविधा के अनुसार सभी रक्षा सूत्र का पूजन करके अपनी कलाई पर रक्षा सूत्र का बन्धन करें ! यद्यपि कल प्रातः काल ७:४६ तक पूर्णिमा है परंतु यह पूर्णिमा तीन मुहूर्त से कम मिल रही है इसलिए कल ३१ तारीख को रक्षाबंधन नहीं करना चाहिए ! यही हमारे शास्त्रों के वचन हैं ! मानना या ना मानना अपने अधिकार में है ! अपने शास्त्रकारों के निर्णय को न मानने के कारण ही आज हम इस स्थिति में पहुंच गए हैं आगे कहां जाएंगे यह कह नहीं सकते !*
*रक्षाबंधन का पर्व बहुत ही पावन एवं पवित्र है अतः इसको शास्त्र नियम के विरुद्ध कदापि नहीं बाँधना चाहिए ! इसलिए सभी बहनों से निवेदन है कि आज रात्रि में ही रक्षाबंधन का पावन पर्व मना कर अपने भाई की कलाइयों में रक्षा सूत्र बाँधें !*