*इस संसार में प्रायः दो दो शब्दों की जोड़ी देखने को मिलती है जैसे दिन एवं रात , सुख एवं दुख , पाप एवं पुण्य आदि ! उसी प्रकार वेदांत में दो शब्दों की जोड़ी मिलती है जिसे श्रेय एवं प्रेय कहा जाता है ! यह शब्द अपने आप में अलौकिक है , इसका अर्थ भी बहुत अलौकिक है ! कठोपनिषद में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है श्रेयस और प्रेयस को विद्या एवं अविद्या के रूप में जाना जाता है ! श्रेयस एवं प्रेयस में भिन्नता है ! ईश्वर की बनाई हुई प्रत्येक रचना हमें सुख एवं दुख प्रदान करती है जो इंद्रियों की आवाज न सुनकर प्रत्येक परिस्थिति को स्वीकार करता है वह श्रेयमार्गी है जब श्रेय और प्रेय दोनों मनुष्य के सामने आकर खड़े होते हैं तब बुद्धिमान धीर पुरुष दोनों को पहचान लेता है तथा प्रेय को छोड़कर श्रेय को ही पसंद करता है ! श्रेय का अर्थ होता है जो सबको प्रिय है, जो सर्वकाल प्रिय है, जिसमे किसी की भी अरुचि नहीं होती उसे श्रेय कहते है ! आनंद सभी को प्रिय होता है आनंद सभी को चाहिए, आनंद से किसी को अरुचि नहीं होती अतः आनंद ही श्रेय है और आनंद स्वरुप स्वयं भगवान् है अतः वही हमारे श्रेय है ! तथा जो थोड़े जीवो को प्रिय लगता है, थोड़े समय के लिए प्रिय लगता है उसके बाद उसमे अरुचि हो जाती है उसे प्रेय कहते है ! सांसारिक सुख, या कहे माया जनित सांसारिक सुख थोड़े लोगो को प्रिय होता है, सांसारिक सुख थोड़े समय के लिए होता है फिर सांसारिक सुखो में अरुचि हो जाती है और उनसे दुःख मिलने लगता है ! अतः भगवान् की माया , या कहे माया जनित सांसारिक सुख प्रेय है ! अब निर्णय आपको करना है कि आप श्रेयमार्गी बनना चाहते हैं कि प्रेयमार्गी ?*
*आज संसार में श्रेयस को छोड़कर मनुष्य अधिकतर प्रेयस को ही पसंद करता है और उसी के मार्ग का अनुगमन करता दिख रहा है ! इस शरीर को सब कुछ समझने वाला इंद्रियों के बस में हो कर उन्हीं के द्वारा आनंद प्राप्त करने को ही जीवन का लक्ष्य मानकर मनुष्य अपना जीवन समाप्त कर देता है ! अपनी रूचि के अनुसार आज मनुष्य प्रेय को ही पसंद कर रहा है ! आज मनुष्य विचार करता है कि जब तक जीवन है तब तक इंद्रियों की सुख भोग लो नहीं तो एक दिन मर जाना है , परंतु मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि हमारा जीवन मृत्यु के साथ समाप्त नहीं होता मृत्यु के साथ शरीर नष्ट होता है परंतु जीव मृत्यु के बाद शरीर रहित होकर भी समाज पर प्रभाव डालता है ! जन्म मृत्यु के बीच जो छोटा सा जीवन मिला है उसे पूर्ण जीवन नहीं कहा जा सकता ! मृत्यु के बाद का जो जीवन है उस पर भी विचार करना चाहिए और मृत्यु के बाद मनुष्य का जीवन श्रेयमार्गी होकर ही सफल हो सकता है ! लोक और परलोक मिलकर जो जीवन बनता है वही सच्चा और पूर्ण जीवन है और वह जीवन श्रेय का अनुगमन करने के बाद ही प्राप्त हो सकता है ! आज समाज में अनेक प्रकार के जो दुराचार पापाचार देखने को मिल रहे हैं उसका कारण यही है कि आज मनुष्य श्रेय का त्याग करके प्रेय मार्गी हो गया है ! क्षणिक इंद्रिय सुखों के लिए वह अनंत काल तक मिलने वाले सुख अर्थात परमात्मा का सानिध्य प्राप्त करने के मार्ग से भटक गया है ! यही कारण है कि आज समाज में उच्छृंखलता दिखाई पड़ रही है ! प्रत्येक मनुष्य को श्रेय का अनुगमन करना चाहिए जिससे कि उसका जीवन जीवन के साथ एवं जीवन के बाद भी शुभ एवं मंगलकारी बना रहे !*
*प्रेयस का चयन तो मनुष्य स्वयं कर लेता है परंतु श्रेयस का चयन करने के लिए मनुष्य को सद्गुरु की शरण में जाना पड़ता है क्योंकि बिना गुरु के ज्ञान नहीं मिलता और ज्ञान के बिना श्रेयस की प्राप्ति दुष्कर है !*