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श्रेय एवं प्रेय :- आचार्य अर्जुन तिवारी

9 मई 2023

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                         *इस संसार में प्रायः दो दो शब्दों की जोड़ी देखने को मिलती है जैसे दिन एवं रात , सुख एवं दुख , पाप एवं पुण्य आदि ! उसी प्रकार वेदांत में दो शब्दों की जोड़ी मिलती है जिसे श्रेय एवं प्रेय कहा जाता है ! यह शब्द अपने आप में अलौकिक है , इसका अर्थ भी बहुत अलौकिक है ! कठोपनिषद में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है श्रेयस और प्रेयस को विद्या एवं अविद्या के रूप में जाना जाता है ! श्रेयस एवं प्रेयस में भिन्नता है ! ईश्वर की बनाई हुई प्रत्येक रचना हमें सुख एवं दुख प्रदान करती है जो इंद्रियों की आवाज न सुनकर प्रत्येक परिस्थिति को स्वीकार करता है वह श्रेयमार्गी है जब श्रेय और प्रेय दोनों मनुष्य के सामने आकर खड़े होते हैं तब बुद्धिमान धीर पुरुष दोनों को पहचान लेता है तथा प्रेय को छोड़कर श्रेय को ही पसंद करता है ! श्रेय का अर्थ होता है जो सबको प्रिय है, जो सर्वकाल प्रिय है, जिसमे किसी की भी अरुचि नहीं होती उसे श्रेय कहते है ! आनंद सभी को प्रिय होता है आनंद सभी को चाहिए, आनंद से किसी को अरुचि नहीं होती अतः आनंद ही श्रेय है और आनंद स्वरुप स्वयं भगवान् है अतः वही हमारे श्रेय है ! तथा जो थोड़े जीवो को प्रिय लगता है, थोड़े समय के लिए प्रिय लगता है उसके बाद उसमे अरुचि हो जाती है उसे प्रेय कहते है ! सांसारिक सुख, या कहे माया जनित सांसारिक सुख थोड़े लोगो को प्रिय होता है, सांसारिक सुख थोड़े समय के लिए होता है फिर सांसारिक  सुखो में अरुचि हो जाती है और उनसे दुःख मिलने लगता है ! अतः भगवान् की माया , या कहे माया जनित सांसारिक सुख प्रेय है ! अब निर्णय आपको करना है कि आप श्रेयमार्गी बनना चाहते हैं कि प्रेयमार्गी ?*

*आज संसार में श्रेयस को छोड़कर मनुष्य अधिकतर प्रेयस को ही पसंद करता है और उसी के मार्ग का अनुगमन करता दिख रहा है ! इस शरीर को सब कुछ समझने वाला इंद्रियों के बस में हो कर उन्हीं के द्वारा आनंद प्राप्त करने को ही जीवन का लक्ष्य मानकर मनुष्य अपना जीवन समाप्त कर देता है ! अपनी रूचि के अनुसार आज मनुष्य प्रेय को ही पसंद कर रहा है ! आज मनुष्य विचार करता है कि जब तक जीवन है तब तक इंद्रियों की सुख भोग लो नहीं तो एक दिन मर जाना है , परंतु मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि हमारा जीवन मृत्यु के साथ समाप्त नहीं होता मृत्यु के साथ शरीर नष्ट होता है परंतु जीव मृत्यु के बाद शरीर रहित होकर भी समाज पर प्रभाव डालता है ! जन्म मृत्यु के बीच जो छोटा सा जीवन मिला है उसे पूर्ण जीवन नहीं कहा जा सकता ! मृत्यु के बाद का जो जीवन है उस पर भी विचार करना चाहिए और मृत्यु के बाद मनुष्य का जीवन श्रेयमार्गी होकर ही सफल हो सकता है ! लोक और परलोक मिलकर जो जीवन बनता है वही सच्चा और पूर्ण जीवन है और वह जीवन श्रेय का अनुगमन करने के बाद ही प्राप्त हो सकता है ! आज समाज में अनेक प्रकार के जो दुराचार पापाचार देखने को मिल रहे हैं उसका कारण यही है कि आज मनुष्य श्रेय का त्याग करके प्रेय मार्गी हो गया है ! क्षणिक इंद्रिय सुखों के लिए वह अनंत काल तक मिलने वाले सुख अर्थात परमात्मा का सानिध्य प्राप्त करने के मार्ग से भटक गया है ! यही कारण है कि आज समाज में उच्छृंखलता दिखाई पड़ रही है !  प्रत्येक मनुष्य को श्रेय का अनुगमन करना चाहिए जिससे कि उसका जीवन जीवन के साथ एवं जीवन के बाद भी शुभ एवं मंगलकारी बना रहे !*

*प्रेयस का चयन तो मनुष्य स्वयं कर लेता है परंतु श्रेयस का चयन करने के लिए मनुष्य को सद्गुरु की शरण में जाना पड़ता है क्योंकि बिना गुरु के ज्ञान नहीं मिलता और ज्ञान के बिना श्रेयस की प्राप्ति दुष्कर है !*

      
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रचनाएँ
हमारी संस्कृति एवं हम
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हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं ओजस्वी संस्कृति कही जाती है ! हमें विश्वगुरु कहा जाता था तो उसका आधार हमारी संस्कृति एवं संस्कार ही थे ! हमारे महापुरुषों ने समाज के लिए कुछ आदर्श स्थापित किये थे ! उन आदर्शों के बलबूते पर ही हम विश्वगुरू थे ! चिन्तनीय यह है कि हमारे पूर्वजों ने संस्कृति एवं संस्कार को दिव्य ज्ञान हमको दिया था हम उनका संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं ! आज विचार करने की आवश्यकता है कि हमारे पूर्वज क्या थे और हम क्या होते जा रहे हैं !
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चित्र और चरित्र :- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 जनवरी 2022
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*भारतीय सनातन धर्म में सदैव से चरित्र-निर्माण पर ही बल दिया गया है | और चरित्र का निर्माण वैसे ही हो पाता है जैसा चित्र हमारे मनोमस्तिष्क में स्थापित होता है | सनातन धर्म में मूर्तिपूजा को विशेष महत्व

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मानव धर्म :- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 जनवरी 2022
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*इस संसार में आदिकाल में जब पृथ्वी पर एकमात्र "सनातन धर्म" ही था तब हमारे महापुरुषों ने सम्पूर्ण धरती को अपना घर एवं सभी प्राणियों को अपना परिवार मानते हुए "वसुधैव - कुटुम्बकम्" का संदेश प्रसारित

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जीवन में मार्गदर्शन की आवश्यकता :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जनवरी 2022
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य सफल , समृद्ध , सार्थक , सुखी एवं शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है ,  परंतु यह इतना सहज नहीं है , क्योंकि वर्तमान युग में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भा

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बदलें दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2022
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*हमारा देश भारत आदिकाल से आध्यात्मिक ज्ञान ज्ञान का केंद्र रहा है |  आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने से पहले मनुष्य को आत्मज्ञान प्राप्त करना होता है | जीवन के दीपक के बुझने के पहले स्वयं को पहचान लेना

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गुण एवं दोष

26 मई 2022
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*ब्रह्मा जी द्वारा बनाई गई सृष्टि बड़ी ही अलौकिक है ! सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्मा जी ने संतुलन को बनाए रखने के लिए जहां अनेकों गुण बनाए वहीं अनेक प्रकार के दोष भी बनाये हैं ! "जड़ चेतन गुण दोषमय ,

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तुलसी जयन्ती :- आचार्य अर्जुन तिवारी

4 अगस्त 2022
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*सनातन हिंदू धर्म में इस संसार का सृष्टिकर्ता , पालनकर्ता एवं संहारकर्ता विविध रूपों में भगवान को माना गया ! भगवान की पहचान हमेंशा भक्तों से हुई है ! यदि भक्त ना होते तो शायद भगवान का भी कोई अस्

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मित्रता अनमोल रत्न है :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 अगस्त 2022
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*संसार में आने के बाद मनुष्य अनेकों प्रकार के संबंधों में बंध जाता है ! पारिवारिक संबंध , सामाजिक संबंध , बन्धु - बांधव एवं अनेक प्रकार के रिश्ते नाते उसे जीवन भर बांधे रखते हैं ! यह सभी संबंध म

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सच्ची मित्रता :- आचार्य अर्जुन तिवारी

7 अगस्त 2022
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*जीवन में जिस प्रकार मनुष्य को आदर्श माता-पिता एवं आदर्श गुरु तथा एक आदर्श समाज उच्चता के शिखर पर ले जाता है उसी प्रकार एक सच्चा एवं आदर्श मित्र मनुष्य को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है ! इस संसा

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हर घर तिरंगा :- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 अगस्त 2022
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद स्वतंत्र रहने का अधिकार प्रत्येक जीव मात्र को है ! परिस्थिति वश मनुष्य पराधीन हो जाता है ! पराधीनता का दुख वही समझ सकता है जिसने यह कष्ट झेला है ! बाबा जी ने मानस में लि

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गणेश लक्ष्मी का पूजन

27 अक्टूबर 2022
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*सनातन धर्म में पूजा पद्धति को मान्यता दी गई है ! अनेकों प्रकार के अनुष्ठान , यज्ञ एवं दैनिक पूजन सनातन धर्मप्रेमी आदिकाल से करते चले आए हैं ! कोई भी अनुष्ठान हो , कोई भी पूजन हो प्रथम पूजन गणेश गौरी

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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022
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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री

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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022
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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री

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प्रतिकार करना आवश्यक है

7 नवम्बर 2022
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*इस संसार में भगवान ने दो तरह की व्यवस्थाओं को समान रूप से स्थान दिया है ! प्रथम ध्वंस एवं दूसरे का नाम है सृजन ! सृष्टि में संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों ही आवश्यक है , यदि कोई भवन गलत विधि से निर्मा

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श्रेय एवं प्रेय :- आचार्य अर्जुन तिवारी

9 मई 2023
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*इस संसार में प्रायः दो दो शब्दों की जोड़ी देखने को मिलती है जैसे दिन एवं रात , सुख एवं दुख , पाप एवं पुण्य आद

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मानव जीवन श्रेष्ठ है :- आचार्य अर्जुन तिवारी

10 जुलाई 2023
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*ईश्वर की असीम अनुकंपा से जीव मनुष्य योनि प्राप्त करता है और उसे मानव कहा जाता है ! मानव वही है जिसमें मानवता हो ! मानवता का अर्थ है कि संसार के साथ-साथ अपने जीवन का कल्याण कैसे हो इस पर विचार क

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धर्म का महत्त्व: - आचार्य अर्जुन तिवारी

26 अगस्त 2023
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*मानव जीवन में धर्म का होना बहुत आवश्यक है ! बिना धर्म के मनुष्य अमर्यादित हो जाता है ! धर्म क्या है ? इस पर अनेकों विद्वानों के मत मिलते हैं और सब का निचोड़ जो मिलता है उसका यह अर्थ यही निकलता है कि

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रक्षाबन्धन एवं भद्राकाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अगस्त 2023
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*हमारा देश भारत त्योहारों का देश है , जहां समय-समय पर अनेक प्रकार के त्यौहार मनाये जाते हैं जो कि हमारे देश को अनेकता में एकता के सूत्र में बांधते हैं ! सनातन धर्म में पर्व एवं त्योहारों का बहुत बड़ा

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मोक्ष के चार द्वारपाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

8 जनवरी 2024
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*सनातन धर्म में प्रत्येक मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ बताए गए हैं धर्म अर्थ काम और मोक्ष ! मोक्ष प्राप्त करना हमारे पूर्वजों का परम उद्देश्य रहता था ! बाकी के तीनों पुरुषार्थों का पालन करते हुए अंतिम प

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