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मोक्ष के चार द्वारपाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

8 जनवरी 2024

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*सनातन धर्म में प्रत्येक मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ बताए गए हैं धर्म अर्थ काम और मोक्ष ! मोक्ष प्राप्त करना हमारे पूर्वजों का परम उद्देश्य रहता था ! बाकी के तीनों पुरुषार्थों का पालन करते हुए अंतिम पुरुषार्थ ही मनुष्य को सद्गति प्रदान करता था !:मोक्ष प्राप्त करने के लिए अनेकानेक उपाय किए जाते थे ! साधक मोक्ष प्राप्त करने के लिए पूजा पाठ अनुष्ठान एवं तपस्या भी करते थे !  मोक्ष प्राप्त करने के लिए जहां अनेक उपाय किए जाते थे वही मनुष्य सत्कर्म को प्रधान मानकर उसी का आचरण करता था !  अनेक लोग ऐसे भी थे जिन्होंने जीवन भर तपस्या तो की परंतु उनको मोक्ष नहीं प्राप्त हुआ , इसका कारण था कि उनके मन को शांति नहीं थी ! मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के कुल गुरु ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी ने भगवान श्रीराम से स्वयं कहा था कि मन की शांति ही सच्चा मोक्ष है , और इस मोक्ष को प्राप्त करने के लिए चार प्रकार के द्वार बताए गए हैं ! इन चार द्वारों का वर्णन करते हुए योग वशिष्ठ महा रामायण में स्वयं वशिष्ठ जी कहते हैं कि मन की शांति ही सच्चा ‘मोक्ष’ है "‘मोक्षद्वारे द्वारपालश्चत्वार: परिकीर्तिता: !शमो विचार: संतोषश्चतुर्थ: साधुसंगम: !!"अर्थात:- हे राम! मुक्ति के चार ही द्वार (द्वारपाल)  हैं :- शम, विचार, संतोष और साधु पुरुषों की संगत ! मनुष्य को इन चारों का प्रयत्नपूर्वक सेवन करना चाहिए ! अनावश्यक कामनाओं को नियंत्रित करें, सकारात्मक चिंतन कर जगत की असारता को समझें, जो प्राप्य है उसे ईश्वर की कृपा मान उसमें संतोष साधें और सदा भले, गुणी, बुद्धिमान तथा वीतरागी लोगों का सत्संग करें ! इन चार द्वारों का पालन करके मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है और यही हमारे पूर्वजों ने किया था जिसके कारण वह संसार का सुख भोग करके भी मोक्ष को प्राप्त कर गये !*

*आज के युग में मोक्ष तो सभी प्राप्त करना चाहते हैं परंतु शायद वह मोक्ष का द्वार ही नहीं जानते !  अनेकों प्रकार की पूजा अनुष्ठान साधना एवं तपस्या का दिखावा करने वाले अपने मन को नियंत्रित नहीं कर पाते और ना ही वे सत्पुरुषों का सम्मान करते हुए उनकी संगत ही करना चाहते हैं !  संतोष तो आज किसी के मन में है ही नहीं ! आज तो ऐसे ऐसे लोग देखने को मिलते हैं जो किसी के कहने पर कोई अनुष्ठान तो प्रारंभ कर देते हैं परंतु जो लक्ष्य लेकर के चले हैं उससे उनका ध्यान भटक जाता है किसी ने बता दिया कि अपने अनुष्ठान को और लंबा कर दो तो वह अपने अनुष्ठान को और बढ़ाते चले जाते हैं क्योंकि उनके मन में संतोष नहीं है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना ही कहना चाहता हूं कि मनुष्य के मन में जब तक संतोष नहीं होगा , जब तक उसकी अनियंत्रित कामनाएं नियंत्रित नहीं होगी और जब तक उसके विचार सकारात्मक नहीं होंगे तब तक मनुष्य मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता ! मनुष्य के जैसे विचार होते हैं उसका स्वभाव भी उसी प्रकार बन जाता है ! आज मनुष्य के विचारों का अवलोकन किया जाय तो स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि वह किस गति को प्राप्त होगा , क्योंकि मनुष्य के विचार ही उसकी वाणी बन करके परिलक्षित होते हैं ! आज समाज की स्थिति देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आज के युग में मोक्ष प्राप्त करना असंभव तो नहीं लेकिन दुर्गम अवश्य है ! इसका कारण कोई दूसरा नहीं बल्कि स्वयं मनुष्य है ! ईश्वर ने जो पूर्व काल की मनुष्यों को दिया था वही धरती वही प्रकृति आज भी है यदि कुछ परिवर्तित हुआ है तो मनुष्य का विचार एवं उसकी अनियंत्रित कामनाओं का विस्तार ! इसके साथ ही मनुष्य आज सद्गुणी लोगों की संगत करना ही नहीं चाहता तो विचार कीजिए भला मोक्ष कैसे प्राप्त होगा ! प्रत्येक मनुष्य को उपरोक्त चारों द्वारों का पालन करके मोक्ष प्राप्त करने की कामना करनी चाहिए !*

*इस संसार में असंभव कुछ भी नहीं है बस मनुष्य उसे प्राप्त करने की दृढ इच्छा शक्ति के साथ-साथ निर्दिष्ट विषय के लिए बताये गये नियमों का पालन कर ले तो वह सब कुछ प्राप्त कर सकता !*article-image
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रचनाएँ
हमारी संस्कृति एवं हम
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हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं ओजस्वी संस्कृति कही जाती है ! हमें विश्वगुरु कहा जाता था तो उसका आधार हमारी संस्कृति एवं संस्कार ही थे ! हमारे महापुरुषों ने समाज के लिए कुछ आदर्श स्थापित किये थे ! उन आदर्शों के बलबूते पर ही हम विश्वगुरू थे ! चिन्तनीय यह है कि हमारे पूर्वजों ने संस्कृति एवं संस्कार को दिव्य ज्ञान हमको दिया था हम उनका संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं ! आज विचार करने की आवश्यकता है कि हमारे पूर्वज क्या थे और हम क्या होते जा रहे हैं !
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चित्र और चरित्र :- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 जनवरी 2022
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*भारतीय सनातन धर्म में सदैव से चरित्र-निर्माण पर ही बल दिया गया है | और चरित्र का निर्माण वैसे ही हो पाता है जैसा चित्र हमारे मनोमस्तिष्क में स्थापित होता है | सनातन धर्म में मूर्तिपूजा को विशेष महत्व

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मानव धर्म :- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 जनवरी 2022
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*इस संसार में आदिकाल में जब पृथ्वी पर एकमात्र "सनातन धर्म" ही था तब हमारे महापुरुषों ने सम्पूर्ण धरती को अपना घर एवं सभी प्राणियों को अपना परिवार मानते हुए "वसुधैव - कुटुम्बकम्" का संदेश प्रसारित

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जीवन में मार्गदर्शन की आवश्यकता :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जनवरी 2022
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य सफल , समृद्ध , सार्थक , सुखी एवं शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है ,  परंतु यह इतना सहज नहीं है , क्योंकि वर्तमान युग में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भा

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बदलें दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2022
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*हमारा देश भारत आदिकाल से आध्यात्मिक ज्ञान ज्ञान का केंद्र रहा है |  आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने से पहले मनुष्य को आत्मज्ञान प्राप्त करना होता है | जीवन के दीपक के बुझने के पहले स्वयं को पहचान लेना

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गुण एवं दोष

26 मई 2022
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*ब्रह्मा जी द्वारा बनाई गई सृष्टि बड़ी ही अलौकिक है ! सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्मा जी ने संतुलन को बनाए रखने के लिए जहां अनेकों गुण बनाए वहीं अनेक प्रकार के दोष भी बनाये हैं ! "जड़ चेतन गुण दोषमय ,

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तुलसी जयन्ती :- आचार्य अर्जुन तिवारी

4 अगस्त 2022
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*सनातन हिंदू धर्म में इस संसार का सृष्टिकर्ता , पालनकर्ता एवं संहारकर्ता विविध रूपों में भगवान को माना गया ! भगवान की पहचान हमेंशा भक्तों से हुई है ! यदि भक्त ना होते तो शायद भगवान का भी कोई अस्

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मित्रता अनमोल रत्न है :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 अगस्त 2022
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*संसार में आने के बाद मनुष्य अनेकों प्रकार के संबंधों में बंध जाता है ! पारिवारिक संबंध , सामाजिक संबंध , बन्धु - बांधव एवं अनेक प्रकार के रिश्ते नाते उसे जीवन भर बांधे रखते हैं ! यह सभी संबंध म

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सच्ची मित्रता :- आचार्य अर्जुन तिवारी

7 अगस्त 2022
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*जीवन में जिस प्रकार मनुष्य को आदर्श माता-पिता एवं आदर्श गुरु तथा एक आदर्श समाज उच्चता के शिखर पर ले जाता है उसी प्रकार एक सच्चा एवं आदर्श मित्र मनुष्य को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है ! इस संसा

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हर घर तिरंगा :- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 अगस्त 2022
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद स्वतंत्र रहने का अधिकार प्रत्येक जीव मात्र को है ! परिस्थिति वश मनुष्य पराधीन हो जाता है ! पराधीनता का दुख वही समझ सकता है जिसने यह कष्ट झेला है ! बाबा जी ने मानस में लि

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गणेश लक्ष्मी का पूजन

27 अक्टूबर 2022
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*सनातन धर्म में पूजा पद्धति को मान्यता दी गई है ! अनेकों प्रकार के अनुष्ठान , यज्ञ एवं दैनिक पूजन सनातन धर्मप्रेमी आदिकाल से करते चले आए हैं ! कोई भी अनुष्ठान हो , कोई भी पूजन हो प्रथम पूजन गणेश गौरी

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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022
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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री

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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022
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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री

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प्रतिकार करना आवश्यक है

7 नवम्बर 2022
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*इस संसार में भगवान ने दो तरह की व्यवस्थाओं को समान रूप से स्थान दिया है ! प्रथम ध्वंस एवं दूसरे का नाम है सृजन ! सृष्टि में संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों ही आवश्यक है , यदि कोई भवन गलत विधि से निर्मा

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श्रेय एवं प्रेय :- आचार्य अर्जुन तिवारी

9 मई 2023
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*इस संसार में प्रायः दो दो शब्दों की जोड़ी देखने को मिलती है जैसे दिन एवं रात , सुख एवं दुख , पाप एवं पुण्य आद

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मानव जीवन श्रेष्ठ है :- आचार्य अर्जुन तिवारी

10 जुलाई 2023
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*ईश्वर की असीम अनुकंपा से जीव मनुष्य योनि प्राप्त करता है और उसे मानव कहा जाता है ! मानव वही है जिसमें मानवता हो ! मानवता का अर्थ है कि संसार के साथ-साथ अपने जीवन का कल्याण कैसे हो इस पर विचार क

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धर्म का महत्त्व: - आचार्य अर्जुन तिवारी

26 अगस्त 2023
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*मानव जीवन में धर्म का होना बहुत आवश्यक है ! बिना धर्म के मनुष्य अमर्यादित हो जाता है ! धर्म क्या है ? इस पर अनेकों विद्वानों के मत मिलते हैं और सब का निचोड़ जो मिलता है उसका यह अर्थ यही निकलता है कि

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रक्षाबन्धन एवं भद्राकाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अगस्त 2023
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*हमारा देश भारत त्योहारों का देश है , जहां समय-समय पर अनेक प्रकार के त्यौहार मनाये जाते हैं जो कि हमारे देश को अनेकता में एकता के सूत्र में बांधते हैं ! सनातन धर्म में पर्व एवं त्योहारों का बहुत बड़ा

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मोक्ष के चार द्वारपाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

8 जनवरी 2024
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*सनातन धर्म में प्रत्येक मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ बताए गए हैं धर्म अर्थ काम और मोक्ष ! मोक्ष प्राप्त करना हमारे पूर्वजों का परम उद्देश्य रहता था ! बाकी के तीनों पुरुषार्थों का पालन करते हुए अंतिम प

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