*सनातन धर्म में प्रत्येक मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ बताए गए हैं धर्म अर्थ काम और मोक्ष ! मोक्ष प्राप्त करना हमारे पूर्वजों का परम उद्देश्य रहता था ! बाकी के तीनों पुरुषार्थों का पालन करते हुए अंतिम पुरुषार्थ ही मनुष्य को सद्गति प्रदान करता था !:मोक्ष प्राप्त करने के लिए अनेकानेक उपाय किए जाते थे ! साधक मोक्ष प्राप्त करने के लिए पूजा पाठ अनुष्ठान एवं तपस्या भी करते थे ! मोक्ष प्राप्त करने के लिए जहां अनेक उपाय किए जाते थे वही मनुष्य सत्कर्म को प्रधान मानकर उसी का आचरण करता था ! अनेक लोग ऐसे भी थे जिन्होंने जीवन भर तपस्या तो की परंतु उनको मोक्ष नहीं प्राप्त हुआ , इसका कारण था कि उनके मन को शांति नहीं थी ! मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के कुल गुरु ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी ने भगवान श्रीराम से स्वयं कहा था कि मन की शांति ही सच्चा मोक्ष है , और इस मोक्ष को प्राप्त करने के लिए चार प्रकार के द्वार बताए गए हैं ! इन चार द्वारों का वर्णन करते हुए योग वशिष्ठ महा रामायण में स्वयं वशिष्ठ जी कहते हैं कि मन की शांति ही सच्चा ‘मोक्ष’ है "‘मोक्षद्वारे द्वारपालश्चत्वार: परिकीर्तिता: !शमो विचार: संतोषश्चतुर्थ: साधुसंगम: !!"अर्थात:- हे राम! मुक्ति के चार ही द्वार (द्वारपाल) हैं :- शम, विचार, संतोष और साधु पुरुषों की संगत ! मनुष्य को इन चारों का प्रयत्नपूर्वक सेवन करना चाहिए ! अनावश्यक कामनाओं को नियंत्रित करें, सकारात्मक चिंतन कर जगत की असारता को समझें, जो प्राप्य है उसे ईश्वर की कृपा मान उसमें संतोष साधें और सदा भले, गुणी, बुद्धिमान तथा वीतरागी लोगों का सत्संग करें ! इन चार द्वारों का पालन करके मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है और यही हमारे पूर्वजों ने किया था जिसके कारण वह संसार का सुख भोग करके भी मोक्ष को प्राप्त कर गये !*
*आज के युग में मोक्ष तो सभी प्राप्त करना चाहते हैं परंतु शायद वह मोक्ष का द्वार ही नहीं जानते ! अनेकों प्रकार की पूजा अनुष्ठान साधना एवं तपस्या का दिखावा करने वाले अपने मन को नियंत्रित नहीं कर पाते और ना ही वे सत्पुरुषों का सम्मान करते हुए उनकी संगत ही करना चाहते हैं ! संतोष तो आज किसी के मन में है ही नहीं ! आज तो ऐसे ऐसे लोग देखने को मिलते हैं जो किसी के कहने पर कोई अनुष्ठान तो प्रारंभ कर देते हैं परंतु जो लक्ष्य लेकर के चले हैं उससे उनका ध्यान भटक जाता है किसी ने बता दिया कि अपने अनुष्ठान को और लंबा कर दो तो वह अपने अनुष्ठान को और बढ़ाते चले जाते हैं क्योंकि उनके मन में संतोष नहीं है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना ही कहना चाहता हूं कि मनुष्य के मन में जब तक संतोष नहीं होगा , जब तक उसकी अनियंत्रित कामनाएं नियंत्रित नहीं होगी और जब तक उसके विचार सकारात्मक नहीं होंगे तब तक मनुष्य मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता ! मनुष्य के जैसे विचार होते हैं उसका स्वभाव भी उसी प्रकार बन जाता है ! आज मनुष्य के विचारों का अवलोकन किया जाय तो स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि वह किस गति को प्राप्त होगा , क्योंकि मनुष्य के विचार ही उसकी वाणी बन करके परिलक्षित होते हैं ! आज समाज की स्थिति देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आज के युग में मोक्ष प्राप्त करना असंभव तो नहीं लेकिन दुर्गम अवश्य है ! इसका कारण कोई दूसरा नहीं बल्कि स्वयं मनुष्य है ! ईश्वर ने जो पूर्व काल की मनुष्यों को दिया था वही धरती वही प्रकृति आज भी है यदि कुछ परिवर्तित हुआ है तो मनुष्य का विचार एवं उसकी अनियंत्रित कामनाओं का विस्तार ! इसके साथ ही मनुष्य आज सद्गुणी लोगों की संगत करना ही नहीं चाहता तो विचार कीजिए भला मोक्ष कैसे प्राप्त होगा ! प्रत्येक मनुष्य को उपरोक्त चारों द्वारों का पालन करके मोक्ष प्राप्त करने की कामना करनी चाहिए !*
*इस संसार में असंभव कुछ भी नहीं है बस मनुष्य उसे प्राप्त करने की दृढ इच्छा शक्ति के साथ-साथ निर्दिष्ट विषय के लिए बताये गये नियमों का पालन कर ले तो वह सब कुछ प्राप्त कर सकता !*