*सनातन हिंदू धर्म में इस संसार का सृष्टिकर्ता , पालनकर्ता एवं संहारकर्ता विविध रूपों में भगवान को माना गया ! भगवान की पहचान हमेंशा भक्तों से हुई है ! यदि भक्त ना होते तो शायद भगवान का भी कोई अस्तित्व ना होता ! जिस समय भारत में देश निर्गुण निराकार को लेकर अनेकों प्रकार के मत चल रहे थे , मुगलों के द्वारा हिंदू मंदिरों एवं मूर्तियों को ध्वस्त किया जा रहा था , उसी समय एक ऐसे संत का उदय हुआ जिसने घर-घर में भगवान का आदर्श प्रस्तुत किया ! उन महान संत , महान कवि , समाज सुधारक , एवं सगुणोपासक तथा भगवान के परमभक्त को तुलसीदास के नाम से जाना गया ! जिस समय समाज में अनेक प्रकार के आडंबर फैले हुए थे , समाज आदर्श विहीन हो गया था , उस समय अपनी रचनाओं के द्वारा अनेक पाखंड एवं आडंबरों को ध्वस्त करते हुए घर-घर में आदर्श स्थापित करने का कार्य कविकुल शिरोमणि प्रातःस्मरणीय परमपूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने अपनी रचनाओं के माध्यम से किया ! सनातन धर्म में अनेक ग्रंथ हैं जिनका लाभ समस्त विश्व ले रहा परंतु इन ग्रंथों का मुकुट श्रीरामचरितमानस को ही कहा गया है ! गोस्वामी जी की कालजयी रचना श्रीरामचरितमानस शुद्ध अवधी भाषा में होने के कारण आज घर-घर में पूजित है ! रामचरितमानस के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास जी ने समाज की प्रथम इकाई परिवार के आदर्शों का विधिवत चित्रण किया ! परिवार में किसका किसके प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए यह रामचरितमानस में स्पष्ट देखने को मिलता है ! सनातन धर्म को गोस्वामी तुलसीदास जी ने जो दिया वह शायद कोई भी नहीं दे पाया ! आज परम संत गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती पर सभी सनातन प्रेमी गदगद होकर उनके द्वारा समाज को दिए गए आदर्शों को स्थापित करने का संकल्प लेते हैं ! यदि तुलसीदास जी की रामचरितमानस ना होती तो शायद समाज में भगवान श्री राम स्थापित ही ना हो पाते ! अयोध्या के राजकुमार से राजा बने भगवान श्रीराम को यदि जन-जन का राम किसी ने बनाया तो वह थे गोस्वामी तुलसीदास जी ! सनातन धर्म के प्रति किए गए इनके कार्यों को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता !*
*आज चार दशक बीत जाने के बाद भी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस सभी ग्रंथों में सर्वोपरि बनी हुई है ! कहने को तो श्री रामायण बहुत ही सहज एवं सरल शब्दों में लिखी गई है परंतु मानस की एक-एक चौपाई का इतना गूढ़ अर्थ है कि उसे समझने के लिए विश्व भर के विद्वान उस पर शोध कार्य कर रहे हैं ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" जहां तक समझ पाया हूं उसके अनुसार हिंदी में कोई काव्य कृति इतनी लोकप्रिय नहीं हुई, जितना कि तुलसीदासजी द्वारा रचित 'रामचरितमानस' ! आज भी रामचरितमानस श्वांस की तरह प्रत्येक हिंदू परिवार का अभिन्न अंग है ! विशुद्ध अवधी में की गई कविताई घर-घर में बोली जाती है , रामचरितमास का पाठ होता है ! साहित्य में तो बहुत कुछ सृजित किया जाता रहा है, लेकिन बहुत कम रचनायें इस तरह बरसों-बरस भारतीय मनीषा में स्थायित्व पाती हैं , जैसाकि तुलसीदास जी के साथ दिखता है ! तुलसीदास जी एवं उनकी मानस आज भी बुद्धिजीवियों और चिंतकों के प्रिय हैं ! तुलसीदास जी वास्तव में सिर्फ रचनाकार नहीं थे बल्कि वे एक संत और दार्शनिक भी थे , जो व्यापक समाज की हित चिंता से प्रेरित थे ! तुलसीदास जी अपने आप में अनूठे थे ! न तो उनके पहले और न ही उनके बाद उस कद और ऊर्जा वाला कोई दूसरा व्यक्ति हुआ ! तुलसीदास और उनकी कृतियाँ इस बात का यथार्थ प्रमाण है कि समय की गति में वही बच पाता है , जिसकी जड़ें आम जनमानस में गहरी होती हैं ! जो जन-जन का रचनाकार होता है ! तुलसीदास जी ऐसे ही थे ! तुलसीदास जी के द्वारा अपनी कृतियों के माध्यम से समाज को जो दिशा एवं दशा दिखाई गई उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता ! सनातन धर्म ऐसे महान व्यक्तित्व , परम भक्त तथा समाज को दिशा प्रदान करने वाले महान संत तुलसीदास जी का सदैव ऋणी रहेगा ! उन्होंने समाज में शासकों के द्वारा प्रजा को दिए जा रहे कष्ट का विरोध करते हुए उन शासकों को स्पष्ट चेतावनी देते हुए लिख दिया :- जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी ! सो नृप अवसि नरक अधिकारी !! इस प्रकार निर्भीक होकर राजा के विषय में लिखकर उन्होंने राजा का आदर्श तो प्रस्तुत किया ही साथ ही समाज में अनेक पाखंडी गुरुओं को भी चेतावनी देते हुए लिख दिया था :- हरइ शिष्य धन शोक न हरई ! सो गुरू घोर नरक महुं परई !! कहने का तात्पर्य है कि तुलसीदास जी ने समाज के किसी भी अंग को नहीं छोड़ा जिसके आदर्श प्रस्तुत करने के विषय में उन्होंने सावधान ना किया हो ! ऐसा व्यक्तित्व बार-बार इस धरा धाम पर नहीं आता ! ऐसे महान व्यक्तित्व को शत-शत नमन एवं दंडवत प्रणाम !*
*तुलसीदास जी महाराज जन-जन के हृदय में बसने वाले भगवान श्री राम को जन जन तक पहुंचाने का कार्य करने वाले महान संत थे ! आज यदि घर घर में रामचरितमानस का पाठ करके लोग भगवान श्रीराम को भगवान तथा उनके आदर्शों को आदर्श मान रहे हैं तो उसका कारण गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज है ! लेखनी में इतनी क्षमता नहीं है कि गोस्वामी जी के चरित्रों एवं उनके महान कार्यों का वर्णन कर सके ! अतः जय जय सियाराम !*