*ब्रह्मा जी द्वारा बनाई गई सृष्टि बड़ी ही अलौकिक है ! सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्मा जी ने संतुलन को बनाए रखने के लिए जहां अनेकों गुण बनाए वहीं अनेक प्रकार के दोष भी बनाये हैं ! "जड़ चेतन गुण दोषमय , विश्व कीन्ह करतार" यदि दोष ना होते तो गुणों का कोई महत्व नहीं होता ! पाप और पुण्य का निर्धारण ना होता ! मनुष्य को जहां गुणों को ध्यान में रखना चाहिए वही दोषों को भी कभी भूलना नहीं चाहिए , क्योंकि यदि मनुष्य दोष की ओर से अपना ध्यान हटा देता है तो वे दोष उसमें कब और कैसे प्रविष्ट हो गये यह जान ही नहीं पायेगा ! मानव जीवन में अच्छाई एवं बुराई दोनों का समावेश है ! यह सत्य है बुराइयों को भूलकर अच्छाइयों को याद रखना चाहिए परंतु यह भी सत्य हैं जो बुराइयों को भूल जाएगा उसकी और ध्यान ही नहीं देगा तो विचार कीजिए कि मनुष्य बुराइयों से स्वयं को कैसे बचायेगा ! अच्छाई अच्छी बात है परंतु बुराइयों की ओर से ध्यान कदापि नहीं चाहिए , क्योंकि जब तक हूं बुराइयों की ओर ध्यान देकर उनसे बचने का प्रयास नहीं करेंगे तब तक अच्छाई एवं बुराई में अंतर ही नहीं जान पाएंगे ! विचार कीजिए कि यदि बुराइयां इतनी ही निकृष्ट होती तो ब्रह्मा जी इसकी सृष्टि ही क्यों करते ? प्रत्येक मनुष्य को अच्छा बनने का प्रयास करना चाहिए परंतु बुराइयों की ओर से भी ध्यान कदापि नहीं हटाना चाहिए क्योंकि जब तक हम बुराइयों के विषय में नहीं जानेंगे तब तक उनसे बचने का प्रयास नहीं करेंगे ! यह समस्त सृष्टि गुण एवं दोषों से व्याप्त है ! इसका निर्धारण मनुष्य को स्वविवेक से करना होता है ! अच्छाइयां देखना अच्छी बात है परंतु बुराइयां ना देखना बुद्धिमत्ता नहीं कही जा सकती ! पुण्य कर्म करना अच्छी बात परंतु बुरे कहे जाने वाले पाप कर्म के विषय में जब तक हम नहीं जानेंगे , उनका गहन अध्ययन नहीं करेंगे तो हम पाप से कैसे बचेंगे ? अतः हमको पाप के विषय में तथा उससे मिलने वाले फल के विषय में जानने की परम आवश्यकता है ! इसलिए अच्छाइयों के साथ-साथ बुराइयों की ओर भी ध्यान देना ही पड़ता है |*
*आज अनेक विद्वतजन कहते हैं कि मनुष्य एक दूसरे की बुराई ही देखता है जबकि ईश्वर सिर्फ जीवो की अच्छाइयां देखते हैं ! यह बात कहां तक सत्य है यह विचार करने की बात है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना ही पूछना चाहता हूं कि यदि ईश्वर जीव की बुराइयां ना देखता उसके दोषयुक्त जीवन का निर्धारण न करता तो अनेक प्रकार के नर्क एवं पापयुक्त निम्न योनियों में जीव को कभी भी न जाना पड़ता ! मनुष्य के कर्मों के अनुसार उसकी अच्छाइयों एवं बुराइयों का निर्धारण करके ही परमात्मा न्याय करता है , तो यह कहना कि ईश्वर बुराइयां नहीं देखता कहां तक सत्य है ? यह स्वयं में विचारणीय है ! आज आधुनिक युग में बिजली का उपयोग लगभग सभी कर रहे हैं ! बिजली जब आती है तो अंधकार को दूर करके प्रकाश से घर को आलोकित कर देती हैं यह बिजली का गुण है ! परंतु उसमें एक दोष भी है कि यदि गलती से भी उसका स्पर्श हो जाता है तो वह प्राणघातक भी हो जाती है और उसके इस दोष पर मनुष्य को सदैव ध्यान रखना ही पड़ता है क्योंकि थोड़ी सी चूक हो जाने पर वह मनुष्य के प्राण तक ले लेती है ! यदि इस संसार में गुण हैं तो उसमें दोष भी है ! प्रत्येक मनुष्य में गुण - दोष भरे पड़े हैं सच्चा हितैषी वही होता है जो बार-बार उन दोषों की ओर ध्यानाकर्षण कराके सुधार करने का प्रयास करें ! वह हितैषी इसकी चिंता नहीं करता कि लोग क्या कहेंगे ! कुछ लोग तो यह भी कहने लगते हैं कि अमुक व्यक्ति सिर्फ बुराइयों को ही देखता है ! परंतु यह अकाट्य सत्य है कि आपकी बुराइयों को देख कर के उससे सचेत वही कर सकता है जो आपको अपना प्रिय मानता होगा , अन्यथा वह आपको बार-बार सचेत करके अपने ऊपर दोषारोपण क्यों लेगा ? ब्रह्मा जी की बनाई गुण दोषमय यह सृष्टि बड़ी ही अलौकिक है ! समय-समय पर यदि गुणों का उपार्जन करना चाहिए तो बुराइयों का भी अवलोकन करने की आवश्यकता होती है अन्यथा जीवन गर्त में चला जाता है |*
*अच्छाइयां ही देखी जायं और बुराइयों की ओर ध्यान न दिया जाय तो उसे न्यायकारी नहीं कहा जा सकता है ! किसी की भी बुराइयों पर यदि आप आंख बंद कर लेंगे तो आप उसके हितेषी नहीं बल्कि उसके शत्रु ही माने जाएंगे |*