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मित्रता अनमोल रत्न है :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 अगस्त 2022

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*संसार में आने के बाद मनुष्य अनेकों प्रकार के संबंधों में बंध जाता है !  पारिवारिक संबंध , सामाजिक संबंध , बन्धु - बांधव एवं अनेक प्रकार के रिश्ते नाते उसे जीवन भर बांधे रखते हैं ! यह सभी संबंध मनुष्य के जीवन में अपना महत्व रखते हैं , परंतु इन सभी संबंधों के ऊपर उठकर एक अनोखा संबंध होता है जिसे मित्रता का संबंध है ! मित्रता एक ऐसा बंधन हैं , एक ऐसी पूंजी है जो कई अमूल्य खजानों से भी बढ़कर है ! यह वह अनमोल गहना है जिसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता ! कुछ लोग कहते हैं कि शत्रुता एवं मित्रता बराबर वालों में होती है परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यदि इतिहास को देखता हूँ तो यह तर्क असत्य ही भासित होता है ! भगवान श्रीकृष्ण एवं सुदामा की मित्रता जगत्प्रसिद्ध है ! सुदामा तो यह समझ रहे थे कि पता नहीं द्वारिकाधीश हमको पहचानेंगे या नहीं परंतु द्वारिकाधीश भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्रतारूपी गहने को नष्ट नहीं होने दिया था उस अक्षुण्ण पूंजी का ही प्रभाव था कि दीन हीन सुदामा का नाम सुनते ही त्रैलोक्याधिपति नंगे पैरों दौड़ पड़े और सुदामा को हृदय से लगा लिया ! सुदामा की दीनदशा देखकर भगवान स्वयं रोने लगे क्योंकि :- "जे न मित्र दुख होंहिं दुखारी ! तिन्हहिं बिलोकत पातक भारी !! जो अपने मित्र के दुख में दुखी नहीं होता उसको देखने मात्र से महापाप लगता है ! मित्रता रूपी खजाने की रक्षा वैसे ही करनी चाहिए जैसे एक नाग अपनी मणि की रक्षा करता है , क्योंकि यह वह पूंजी है जो एक बार यदि नष्ट हो जाती है तो दुबारा संचित कर पाना कठिन ही नहीं अपितु कभी कभी असम्भव भी हो जाता है !*

*आज इतिहास में मित्रों की कथायें पढ़ने के बाद यदि समाज पर दृष्टिपात किया जाता है तो सब कुछ उलटा पुलटा ही दिखाई पड़ता है ! आज अधिकतर लोग मित्रता तो करते हैं परंतु उनकी इस मित्रता में कहीं न कहीं उनका स्वार्थ स्पष्ट दिखाई पड़ता है ! जब इन तथाकथित मित्रों का स्वार्थ पूर्ण हो जाता है इनकी मित्रता का अध्याय भी पूर्ण हो जाता है अर्थात् मित्रता ही समाप्त हो जाती है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि एक रथवान के पुत्र को हस्तिनापुर के युवराज दुर्योधन ने अपना मित्र कहकर उसको अंगदेश का राजा बना दिया तो अंगराज कर्ण ने उस मित्रता की पूंजी की रक्षा अपने प्राणों का बलिदान देकर किया ! आज मित्रता तो अनेक लोगों से होती है परंतु सुख में जितने मित्र दिखाई पड़ते हैं दुख आने पर उनकी गिनती एकाध में ही दिखाई पड़ती है ! जो दुख में भी अपने मित्र के साथ डटकर खड़े रहते हुए उसको धैर्य एवं साहस प्रदान करता रहे समझ लो कि वही मित्रता रूपी गहने का जौहरी है ! मित्रता एक ऐसा गहना है जिसको धारण करने पर शोभा बढ़ जाती है और जिसने इस गहने को नष्ट कर दिया वह कान्तिहीन हो जाता है ! भगवान श्रीराम ने सुग्रीव से मित्रता करके उसे उसका राज्य , धन , स्त्री सबकुछ वापस दिलाया तो सुग्रीव ने भी मित्रतारूपी गहने को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए समस्त वानरजाति को श्पी राम की सेवा में समर्पित कर दिया ! मित्रता की अनेक कथायें हमको पढ़ने व सुनने को मिलती हैं , परंतु आज अधिकतर लोग इसे एक मनोरंजनात्मक कहानी पढ़कर भूल जाते हैं ! जबकि हमें इन आदर्श कथाओं को जीवन में धारण करने का प्रयास करना चाहिए !*

*वैसे तो सम्पूर्ण जीवनकाल में अनेकों मित्र मिलते हैं और बिछड़ जाते हैं परंतु प्रत्येक मनुष्य के जीवन में एक ऐसा मित्र भी होता जो अच्छा एवं सच्चा होता है और जिसने मित्रता रूपी गहने को संजोकर रखा होता है ! प्रत्येक मनुष्य को अपने मित्रता रूपी गहने को सहेजकर ही रखना चाहिए !*article-image
कविता रावत

कविता रावत

एकदम नपे तुले शब्दों में मित्राता को परिभाषित किया है आपने। बहुत अच्छी पोस्ट

6 अगस्त 2022

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रचनाएँ
हमारी संस्कृति एवं हम
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हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं ओजस्वी संस्कृति कही जाती है ! हमें विश्वगुरु कहा जाता था तो उसका आधार हमारी संस्कृति एवं संस्कार ही थे ! हमारे महापुरुषों ने समाज के लिए कुछ आदर्श स्थापित किये थे ! उन आदर्शों के बलबूते पर ही हम विश्वगुरू थे ! चिन्तनीय यह है कि हमारे पूर्वजों ने संस्कृति एवं संस्कार को दिव्य ज्ञान हमको दिया था हम उनका संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं ! आज विचार करने की आवश्यकता है कि हमारे पूर्वज क्या थे और हम क्या होते जा रहे हैं !
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चित्र और चरित्र :- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 जनवरी 2022
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*भारतीय सनातन धर्म में सदैव से चरित्र-निर्माण पर ही बल दिया गया है | और चरित्र का निर्माण वैसे ही हो पाता है जैसा चित्र हमारे मनोमस्तिष्क में स्थापित होता है | सनातन धर्म में मूर्तिपूजा को विशेष महत्व

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मानव धर्म :- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 जनवरी 2022
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*इस संसार में आदिकाल में जब पृथ्वी पर एकमात्र "सनातन धर्म" ही था तब हमारे महापुरुषों ने सम्पूर्ण धरती को अपना घर एवं सभी प्राणियों को अपना परिवार मानते हुए "वसुधैव - कुटुम्बकम्" का संदेश प्रसारित

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जीवन में मार्गदर्शन की आवश्यकता :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जनवरी 2022
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य सफल , समृद्ध , सार्थक , सुखी एवं शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है ,  परंतु यह इतना सहज नहीं है , क्योंकि वर्तमान युग में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भा

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बदलें दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2022
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*हमारा देश भारत आदिकाल से आध्यात्मिक ज्ञान ज्ञान का केंद्र रहा है |  आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने से पहले मनुष्य को आत्मज्ञान प्राप्त करना होता है | जीवन के दीपक के बुझने के पहले स्वयं को पहचान लेना

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गुण एवं दोष

26 मई 2022
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*ब्रह्मा जी द्वारा बनाई गई सृष्टि बड़ी ही अलौकिक है ! सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्मा जी ने संतुलन को बनाए रखने के लिए जहां अनेकों गुण बनाए वहीं अनेक प्रकार के दोष भी बनाये हैं ! "जड़ चेतन गुण दोषमय ,

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तुलसी जयन्ती :- आचार्य अर्जुन तिवारी

4 अगस्त 2022
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*सनातन हिंदू धर्म में इस संसार का सृष्टिकर्ता , पालनकर्ता एवं संहारकर्ता विविध रूपों में भगवान को माना गया ! भगवान की पहचान हमेंशा भक्तों से हुई है ! यदि भक्त ना होते तो शायद भगवान का भी कोई अस्

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मित्रता अनमोल रत्न है :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 अगस्त 2022
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*संसार में आने के बाद मनुष्य अनेकों प्रकार के संबंधों में बंध जाता है ! पारिवारिक संबंध , सामाजिक संबंध , बन्धु - बांधव एवं अनेक प्रकार के रिश्ते नाते उसे जीवन भर बांधे रखते हैं ! यह सभी संबंध म

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सच्ची मित्रता :- आचार्य अर्जुन तिवारी

7 अगस्त 2022
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*जीवन में जिस प्रकार मनुष्य को आदर्श माता-पिता एवं आदर्श गुरु तथा एक आदर्श समाज उच्चता के शिखर पर ले जाता है उसी प्रकार एक सच्चा एवं आदर्श मित्र मनुष्य को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है ! इस संसा

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हर घर तिरंगा :- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 अगस्त 2022
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद स्वतंत्र रहने का अधिकार प्रत्येक जीव मात्र को है ! परिस्थिति वश मनुष्य पराधीन हो जाता है ! पराधीनता का दुख वही समझ सकता है जिसने यह कष्ट झेला है ! बाबा जी ने मानस में लि

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गणेश लक्ष्मी का पूजन

27 अक्टूबर 2022
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*सनातन धर्म में पूजा पद्धति को मान्यता दी गई है ! अनेकों प्रकार के अनुष्ठान , यज्ञ एवं दैनिक पूजन सनातन धर्मप्रेमी आदिकाल से करते चले आए हैं ! कोई भी अनुष्ठान हो , कोई भी पूजन हो प्रथम पूजन गणेश गौरी

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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022
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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री

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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022
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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री

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प्रतिकार करना आवश्यक है

7 नवम्बर 2022
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*इस संसार में भगवान ने दो तरह की व्यवस्थाओं को समान रूप से स्थान दिया है ! प्रथम ध्वंस एवं दूसरे का नाम है सृजन ! सृष्टि में संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों ही आवश्यक है , यदि कोई भवन गलत विधि से निर्मा

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श्रेय एवं प्रेय :- आचार्य अर्जुन तिवारी

9 मई 2023
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*इस संसार में प्रायः दो दो शब्दों की जोड़ी देखने को मिलती है जैसे दिन एवं रात , सुख एवं दुख , पाप एवं पुण्य आद

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मानव जीवन श्रेष्ठ है :- आचार्य अर्जुन तिवारी

10 जुलाई 2023
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*ईश्वर की असीम अनुकंपा से जीव मनुष्य योनि प्राप्त करता है और उसे मानव कहा जाता है ! मानव वही है जिसमें मानवता हो ! मानवता का अर्थ है कि संसार के साथ-साथ अपने जीवन का कल्याण कैसे हो इस पर विचार क

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धर्म का महत्त्व: - आचार्य अर्जुन तिवारी

26 अगस्त 2023
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*मानव जीवन में धर्म का होना बहुत आवश्यक है ! बिना धर्म के मनुष्य अमर्यादित हो जाता है ! धर्म क्या है ? इस पर अनेकों विद्वानों के मत मिलते हैं और सब का निचोड़ जो मिलता है उसका यह अर्थ यही निकलता है कि

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रक्षाबन्धन एवं भद्राकाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अगस्त 2023
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*हमारा देश भारत त्योहारों का देश है , जहां समय-समय पर अनेक प्रकार के त्यौहार मनाये जाते हैं जो कि हमारे देश को अनेकता में एकता के सूत्र में बांधते हैं ! सनातन धर्म में पर्व एवं त्योहारों का बहुत बड़ा

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मोक्ष के चार द्वारपाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

8 जनवरी 2024
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*सनातन धर्म में प्रत्येक मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ बताए गए हैं धर्म अर्थ काम और मोक्ष ! मोक्ष प्राप्त करना हमारे पूर्वजों का परम उद्देश्य रहता था ! बाकी के तीनों पुरुषार्थों का पालन करते हुए अंतिम प

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