*पवित्र श्रावण मास में चारों ओर भगवान शिव की आराधना एवं जयघोष सुनाई पड़ रहा हैं ! भगवान शिव कल्याणस्वरूप , सर्वव्यापी , सर्वेश्वर , सर्वरूप , सर्वज्ञ एवं कल्याणमय हैं ! कल्याणकारी भी इतने कि संसार का कल्याण करने के लिए समुद्र मंथन से निकले हुई हलाहल विष का पान कर लिया ! विष इतना तीव्र था कि उसको हृदय में भी नहीं उतार सकते थे इसलिए उसको कंठ में धारण कर लिया ! कंठ में धारण करने के बाद एक क्षण के लिए भगवान महाकाल अचेत हो गये तब देवताओं ने उनके ऊपर जल की धारा डालना प्रारंभ किया ! धतूर एवं मदार के पत्ते , बेलपत्र तथा विजया (भाँग) उनके शीश पर रखी गई जिससे कि उनकी चेतना वापस आई ! तभी से भगवान शिव को जलाभिषेक , भांग , धतूर एवं मदार अधिक प्रिय है ! भक्तजन भगवान शिव का जलाभिषेक करने के बाद उनको धतूर , मदार एवं विजया अर्थात भांग समर्पित करते हैं ! भगवान शिव ने विष का पान इसलिए किया जिससे कि उस विनाशकारी विष से संसार की रक्षा हो सके ! उनके विष की ज्वाला को शांत करने के लिए अनेक प्रकार की औषधियां उनको समर्पित की गई ! संसार का कल्याण वही कर सकता है जो कल्याणमय और रक्षक हो और भगवान शिव संपूर्ण संसार के म माता-पिता, सुहृद , स्वामी सखा , न्यायकारी , पतित पावन , दीनबंधु , परम दयामय , भक्तवत्सल , अशरण शरण , अति उदार , सर्वज्ञ , आशुतोष , उदासीन , पक्षपातहीन , भक्तजनाश्रय , अशुभ निवारक , भूत वत्सल , श्मशानविहारी , कैलाश निवासी , हिमालय वासी , योगेश्वर और महामायावी है ! उनकी महिमा को कोई नहीं जान सकता है ! कुछ लोग स्वयं को भगवान भोलेनाथ का भक्त कहकर के गांजा एवं भांग का सेवन करते हैं और कहते हैं कि मैं तो भगवान शिव का भक्त हूं ! कुछ लोग इसे प्रसाद मानकर के ग्रहण करते हैं , जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि भगवान शिव जगत्पिता है उनके नाम पर भाँग आदि का सेवन करके उनके तथाकथित भक्त भगवान शिव की मर्यादा एवं उनके आदर्शों का हनन करते हैं !*
*आज का समाज बड़ा विचित्र हो गया है ! अघोर पंथी साधु हों या सन्यासी , या सामान्यजन गांजे की चिलम चढ़ाकर बोल बम का जयकारा करके स्वयं को भगवान भोलेनाथ का परम भक्त मानते हैं ! भगवान शिव को यदि भांग , धतूर , मदार आदि चढ़ाया जाता है तो उसका कारण यह था कि उनके विश की ज्वाला से शांत किया जा सके ! जो लोग भगवान शिव का नाम लेकर के भांग धतूर आदि का सेवन करते हैं क्या वे भगवान शिव की तरह विष का पान भी कर सकते हैं ? भांग - धतूर , पान - तंबाकू आदि खाने से क्या होता है इसको हमारे शास्त्र बताते हैं ! शिव पुराण में लिखा है "तमाल पत्र ह्याधानैर्ये भक्षयन्ति नराधमाः ! तेषां नरके वासो यावद् ब्रह्मा चतुर्मुखः ! अर्थात्:- जो व्यक्ति तम्बाकू का सेवन करते हैं उनको तब तक नरक में रहना पड़ता है जब तक ब्रह्मा का चार युग नहीं वीतता है ! और आगे "ये पिवन्ति धूम्रपानं लक्ष्मीः तस्य नश्यति ! तद्गृहात्याति लक्ष्मीर्वै गुरौर्भक्तिर्न संभवेत् !!" अर्थात्:- तम्बाकू पीने वाले की लक्ष्मी नष्ट हो जाती हैं तथा वह व्यक्ति अपने गुरु के प्रति भक्ति भी नहीं दिखा सकता ! "ताम्बूलं भक्षयन्तो ये श्रृण्वन्तीमत् कथां नराः ! स्वविष्ठां खादयन्त्येतान्नरके यम किंकरा: !!अर्थात्:- पान खाकर यदि कथा सुनी जाय तो मृत्यु के बाद यमराज उसे विष्ठा खिलाते हैं ! कथा कहने वाले तथा यजमान को असंख्य जन्मों तक पाप का भागी होना पड़ता है ! पुराणों के निर्देशों को मैं " आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहता हूँ कि ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य अथवा शूद्र जो भी हो यदि वह तम्बाकू खाता है तो उसे चाण्डाल की तरह समझना चाहिये ! तम्बाकू खाने वाला गृहस्थ, ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासी अपने को क्रमशः गृहस्थ, ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी तथा संन्यासी नहीं कह सकता ! धर्म के द्वारा मनुष्य को ज्ञान करना चाहिये तमाखू एवं धूम्रपान करने से व्यक्ति घोर रौरव नरक को जाता है ! विचार कीजिए कि पुराणों की बातों को पढ़कर या सुनकर यह तथाकथित शिव भक्त कौन सी भक्ति कर रहे हैं ? और कौन सी गति को प्राप्त करने वाले हैं ! भगवान को जो समर्पित किया जाता है उसको व्यसन के नाम पर प्रसाद बता देना कदापि उचित नहीं है , परंतु ये तथाकथित भक्त स्वयं तो व्यसनी है ही और अपने भक्तों को भी इस व्यसन की ओर धकेल रहे हैं ! उसका एक कारण यह भी है कि आज के युग में कोई भी किसी की बात ना सुनना चाहता है और ना ही मनाना चाहता है !*
*भगवान शिव परम कल्याणकारी हैं , वह भला अपने भक्तों को प्रसाद रूप में नशे की ओर क्यों ले जाएंगे , परंतु निजी स्वार्थ के लिए अपने आराध्य को भी अपमानित करने का कार्य आज के तथाकथित भक्तों के द्वारा किया जा रहा है !*