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भगवान शिव एवं नशे का व्यसन :- आचार्य अर्जुन तिवारी

1 अगस्त 2024

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*पवित्र श्रावण मास में चारों ओर भगवान शिव की आराधना एवं जयघोष सुनाई पड़ रहा हैं !  भगवान शिव कल्याणस्वरूप , सर्वव्यापी , सर्वेश्वर , सर्वरूप ,  सर्वज्ञ एवं कल्याणमय हैं ! कल्याणकारी भी इतने कि संसार का कल्याण करने के लिए समुद्र मंथन से निकले हुई हलाहल विष का पान कर लिया ! विष इतना तीव्र था कि उसको हृदय में भी नहीं उतार सकते थे इसलिए उसको कंठ में धारण कर लिया !  कंठ में धारण करने के बाद एक क्षण के लिए भगवान महाकाल अचेत हो गये तब देवताओं ने उनके ऊपर जल की धारा डालना प्रारंभ किया ! धतूर एवं मदार के पत्ते , बेलपत्र तथा विजया (भाँग) उनके शीश पर रखी गई जिससे कि उनकी चेतना वापस आई !  तभी से भगवान शिव को जलाभिषेक , भांग ,  धतूर एवं मदार अधिक प्रिय है ! भक्तजन भगवान शिव का जलाभिषेक करने के बाद उनको धतूर , मदार एवं विजया अर्थात भांग समर्पित करते हैं ! भगवान शिव ने विष का पान इसलिए किया जिससे कि उस विनाशकारी विष से संसार की रक्षा हो सके ! उनके विष की ज्वाला को शांत करने के लिए अनेक प्रकार की औषधियां उनको समर्पित की गई ! संसार का कल्याण वही कर सकता है जो कल्याणमय और रक्षक हो और भगवान शिव संपूर्ण संसार के म माता-पिता, सुहृद , स्वामी सखा , न्यायकारी , पतित पावन , दीनबंधु , परम दयामय , भक्तवत्सल , अशरण शरण , अति उदार , सर्वज्ञ , आशुतोष , उदासीन , पक्षपातहीन , भक्तजनाश्रय , अशुभ निवारक , भूत वत्सल , श्मशानविहारी ,  कैलाश निवासी , हिमालय वासी ,  योगेश्वर और महामायावी है !  उनकी महिमा को कोई नहीं जान सकता है ! कुछ लोग स्वयं को भगवान भोलेनाथ का भक्त कहकर के गांजा एवं भांग का सेवन करते हैं और कहते हैं कि मैं तो भगवान शिव का भक्त हूं ! कुछ लोग इसे प्रसाद मानकर के ग्रहण करते हैं , जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि भगवान शिव जगत्पिता है उनके नाम पर भाँग आदि का सेवन करके उनके तथाकथित भक्त भगवान शिव की मर्यादा एवं उनके आदर्शों का हनन करते हैं !*


*आज का समाज बड़ा विचित्र हो गया है ! अघोर पंथी साधु हों या सन्यासी , या सामान्यजन गांजे की चिलम चढ़ाकर बोल बम का जयकारा करके स्वयं को भगवान भोलेनाथ का परम भक्त मानते हैं !  भगवान शिव को यदि भांग , धतूर , मदार आदि चढ़ाया जाता है तो उसका कारण यह था कि उनके विश की ज्वाला से शांत किया जा सके ! जो लोग भगवान शिव का नाम लेकर के भांग धतूर आदि का सेवन करते हैं क्या वे भगवान शिव की तरह विष का पान भी कर सकते हैं ? भांग - धतूर , पान - तंबाकू आदि खाने से क्या होता है इसको हमारे शास्त्र बताते हैं ! शिव पुराण में लिखा है "तमाल पत्र ह्याधानैर्ये भक्षयन्ति नराधमाः ! तेषां नरके वासो यावद् ब्रह्मा चतुर्मुखः ! अर्थात्:-  जो व्यक्ति तम्बाकू का सेवन करते हैं उनको तब तक नरक में रहना पड़ता है जब तक ब्रह्मा का चार युग नहीं वीतता है ! और आगे "ये पिवन्ति धूम्रपानं लक्ष्मीः तस्य नश्यति ! तद्गृहात्याति लक्ष्मीर्वै गुरौर्भक्तिर्न संभवेत् !!" अर्थात्:- तम्बाकू पीने वाले की लक्ष्मी नष्ट हो जाती हैं तथा वह व्यक्ति अपने गुरु के प्रति भक्ति भी नहीं दिखा सकता ! "ताम्बूलं भक्षयन्तो ये श्रृण्वन्तीमत् कथां नराः ! स्वविष्ठां खादयन्त्येतान्नरके यम किंकरा: !!अर्थात्:- पान खाकर यदि कथा सुनी जाय तो मृत्यु के बाद यमराज उसे विष्ठा खिलाते हैं !  कथा कहने वाले तथा यजमान को असंख्य जन्मों तक पाप का भागी होना पड़ता है ! पुराणों के निर्देशों को मैं " आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहता हूँ कि ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य अथवा शूद्र जो भी हो यदि वह तम्बाकू खाता है तो उसे चाण्डाल की तरह समझना चाहिये ! तम्बाकू खाने वाला गृहस्थ, ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासी अपने को क्रमशः गृहस्थ, ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी तथा संन्यासी नहीं कह सकता ! धर्म के द्वारा मनुष्य को ज्ञान करना चाहिये तमाखू एवं धूम्रपान करने से व्यक्ति घोर रौरव नरक को जाता है ! विचार कीजिए कि पुराणों की बातों को पढ़कर या सुनकर यह तथाकथित शिव भक्त कौन सी भक्ति कर रहे हैं ? और कौन सी गति को प्राप्त करने वाले हैं ! भगवान को जो समर्पित किया जाता है उसको व्यसन के नाम पर प्रसाद बता देना कदापि उचित नहीं है , परंतु ये तथाकथित भक्त स्वयं तो व्यसनी है ही और अपने भक्तों को भी इस व्यसन की ओर धकेल रहे हैं !  उसका एक कारण यह भी है कि आज के युग में कोई भी किसी की बात ना सुनना चाहता है और ना ही मनाना चाहता है !*


*भगवान शिव परम कल्याणकारी हैं , वह भला अपने भक्तों को प्रसाद रूप में नशे की ओर क्यों ले जाएंगे , परंतु निजी स्वार्थ के लिए अपने आराध्य को भी अपमानित करने का कार्य आज के तथाकथित भक्तों के द्वारा किया जा रहा है !*

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Deepak Singh (Deepu)

Deepak Singh (Deepu)

माननीय, आपके शब्दों में वो ठोस तर्क है जो आज के अपनी कुकर्मों को शांत करने के लिए भक्त बनने का ढोंग करते है । हमारे धर्म में न कोई कमी थी और न ही कभी कोई कमी होगी अपितु हमारा धर्म सर्वोत्तम है जिसके लिए ऐसे लेख की आवश्यता होगी। आपको मेरा शत शत नमन 🙏🙏

1 अगस्त 2024

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रचनाएँ
हमारी संस्कृति एवं हम
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हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं ओजस्वी संस्कृति कही जाती है ! हमें विश्वगुरु कहा जाता था तो उसका आधार हमारी संस्कृति एवं संस्कार ही थे ! हमारे महापुरुषों ने समाज के लिए कुछ आदर्श स्थापित किये थे ! उन आदर्शों के बलबूते पर ही हम विश्वगुरू थे ! चिन्तनीय यह है कि हमारे पूर्वजों ने संस्कृति एवं संस्कार को दिव्य ज्ञान हमको दिया था हम उनका संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं ! आज विचार करने की आवश्यकता है कि हमारे पूर्वज क्या थे और हम क्या होते जा रहे हैं !
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चित्र और चरित्र :- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 जनवरी 2022
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*भारतीय सनातन धर्म में सदैव से चरित्र-निर्माण पर ही बल दिया गया है | और चरित्र का निर्माण वैसे ही हो पाता है जैसा चित्र हमारे मनोमस्तिष्क में स्थापित होता है | सनातन धर्म में मूर्तिपूजा को विशेष महत्व

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मानव धर्म :- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 जनवरी 2022
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*इस संसार में आदिकाल में जब पृथ्वी पर एकमात्र "सनातन धर्म" ही था तब हमारे महापुरुषों ने सम्पूर्ण धरती को अपना घर एवं सभी प्राणियों को अपना परिवार मानते हुए "वसुधैव - कुटुम्बकम्" का संदेश प्रसारित

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जीवन में मार्गदर्शन की आवश्यकता :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जनवरी 2022
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य सफल , समृद्ध , सार्थक , सुखी एवं शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है ,  परंतु यह इतना सहज नहीं है , क्योंकि वर्तमान युग में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भा

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बदलें दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2022
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*हमारा देश भारत आदिकाल से आध्यात्मिक ज्ञान ज्ञान का केंद्र रहा है |  आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने से पहले मनुष्य को आत्मज्ञान प्राप्त करना होता है | जीवन के दीपक के बुझने के पहले स्वयं को पहचान लेना

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गुण एवं दोष

26 मई 2022
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*ब्रह्मा जी द्वारा बनाई गई सृष्टि बड़ी ही अलौकिक है ! सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्मा जी ने संतुलन को बनाए रखने के लिए जहां अनेकों गुण बनाए वहीं अनेक प्रकार के दोष भी बनाये हैं ! "जड़ चेतन गुण दोषमय ,

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तुलसी जयन्ती :- आचार्य अर्जुन तिवारी

4 अगस्त 2022
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*सनातन हिंदू धर्म में इस संसार का सृष्टिकर्ता , पालनकर्ता एवं संहारकर्ता विविध रूपों में भगवान को माना गया ! भगवान की पहचान हमेंशा भक्तों से हुई है ! यदि भक्त ना होते तो शायद भगवान का भी कोई अस्

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मित्रता अनमोल रत्न है :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 अगस्त 2022
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*संसार में आने के बाद मनुष्य अनेकों प्रकार के संबंधों में बंध जाता है ! पारिवारिक संबंध , सामाजिक संबंध , बन्धु - बांधव एवं अनेक प्रकार के रिश्ते नाते उसे जीवन भर बांधे रखते हैं ! यह सभी संबंध म

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सच्ची मित्रता :- आचार्य अर्जुन तिवारी

7 अगस्त 2022
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*जीवन में जिस प्रकार मनुष्य को आदर्श माता-पिता एवं आदर्श गुरु तथा एक आदर्श समाज उच्चता के शिखर पर ले जाता है उसी प्रकार एक सच्चा एवं आदर्श मित्र मनुष्य को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है ! इस संसा

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हर घर तिरंगा :- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 अगस्त 2022
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद स्वतंत्र रहने का अधिकार प्रत्येक जीव मात्र को है ! परिस्थिति वश मनुष्य पराधीन हो जाता है ! पराधीनता का दुख वही समझ सकता है जिसने यह कष्ट झेला है ! बाबा जी ने मानस में लि

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गणेश लक्ष्मी का पूजन

27 अक्टूबर 2022
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*सनातन धर्म में पूजा पद्धति को मान्यता दी गई है ! अनेकों प्रकार के अनुष्ठान , यज्ञ एवं दैनिक पूजन सनातन धर्मप्रेमी आदिकाल से करते चले आए हैं ! कोई भी अनुष्ठान हो , कोई भी पूजन हो प्रथम पूजन गणेश गौरी

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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022
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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री

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वेदों में समाहित श्री राम नाम :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 नवम्बर 2022
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*सनातन धर्म में समय-समय पर नारायण ने अवतार लेकर के इस धरती का भार उतारा है ! इन सभी अवतारों की चर्चा हमें ग्रंथों में मिलती है परंतु यदि जन् - जन में किसी की चर्चा है तो वह है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री

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प्रतिकार करना आवश्यक है

7 नवम्बर 2022
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*इस संसार में भगवान ने दो तरह की व्यवस्थाओं को समान रूप से स्थान दिया है ! प्रथम ध्वंस एवं दूसरे का नाम है सृजन ! सृष्टि में संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों ही आवश्यक है , यदि कोई भवन गलत विधि से निर्मा

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श्रेय एवं प्रेय :- आचार्य अर्जुन तिवारी

9 मई 2023
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*इस संसार में प्रायः दो दो शब्दों की जोड़ी देखने को मिलती है जैसे दिन एवं रात , सुख एवं दुख , पाप एवं पुण्य आद

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मानव जीवन श्रेष्ठ है :- आचार्य अर्जुन तिवारी

10 जुलाई 2023
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*ईश्वर की असीम अनुकंपा से जीव मनुष्य योनि प्राप्त करता है और उसे मानव कहा जाता है ! मानव वही है जिसमें मानवता हो ! मानवता का अर्थ है कि संसार के साथ-साथ अपने जीवन का कल्याण कैसे हो इस पर विचार क

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धर्म का महत्त्व: - आचार्य अर्जुन तिवारी

26 अगस्त 2023
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*मानव जीवन में धर्म का होना बहुत आवश्यक है ! बिना धर्म के मनुष्य अमर्यादित हो जाता है ! धर्म क्या है ? इस पर अनेकों विद्वानों के मत मिलते हैं और सब का निचोड़ जो मिलता है उसका यह अर्थ यही निकलता है कि

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रक्षाबन्धन एवं भद्राकाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अगस्त 2023
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*हमारा देश भारत त्योहारों का देश है , जहां समय-समय पर अनेक प्रकार के त्यौहार मनाये जाते हैं जो कि हमारे देश को अनेकता में एकता के सूत्र में बांधते हैं ! सनातन धर्म में पर्व एवं त्योहारों का बहुत बड़ा

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मोक्ष के चार द्वारपाल :- आचार्य अर्जुन तिवारी

8 जनवरी 2024
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*सनातन धर्म में प्रत्येक मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ बताए गए हैं धर्म अर्थ काम और मोक्ष ! मोक्ष प्राप्त करना हमारे पूर्वजों का परम उद्देश्य रहता था ! बाकी के तीनों पुरुषार्थों का पालन करते हुए अंतिम प

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भगवान शिव एवं नशे का व्यसन :- आचार्य अर्जुन तिवारी

1 अगस्त 2024
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*पवित्र श्रावण मास में चारों ओर भगवान शिव की आराधना एवं जयघोष सुनाई पड़ रहा हैं !  भगवान शिव कल्याणस्वरूप , सर्वव्यापी , सर्वेश्वर , सर्वरूप ,  सर्वज्ञ एवं कल्याणमय हैं ! कल्याणकारी भी इतने कि संसार क

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बिल्वपत्र की महिमा - आचार्य अर्जुन तिवारी

1 अगस्त 2024
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*संपूर्ण भारत देश में इस समय पवित्र श्रावण मास के अवसर पर हर हर महादेव / जय शिव शंभू का जयकारा गूंज रहा है ! भक्तजन अपनी मनोकामना के अनुसार प्रतिदिन भगवान शिव का जलाभिषेक / रुद्राभिषेक कर रहे हैं ! भग

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