*इस संसार में भगवान ने दो तरह की व्यवस्थाओं को समान रूप से स्थान दिया है ! प्रथम ध्वंस एवं दूसरे का नाम है सृजन ! सृष्टि में संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों ही आवश्यक है , यदि कोई भवन गलत विधि से निर्माण हो जाय तो वहां नए निर्माण करने से पूर्व पुराने को तोड़ना आवश्यक हो जाता है ! ध्वंस की आवश्यकता , प्रतिकार की आवश्यकता इसलिए पड़ती है ताकि अवांछनीय तत्वों को , अनर्गल तत्वों को हटाया जा सके ! बिना पुराने का ध्वंस किये नए का निर्माण नहीं हो सकता ! हमारे ग्रंथों में बताया गया है कि धर्म का आचरण करो , सदा सत्य बोलो , दूसरों के साथ बुराई का कार्य न करो परंतु इन शिक्षाओं का पालन करने वाले बहुत कम मिलता है ! यदि संसार का प्रत्येक व्यक्ति इन शिक्षाओं का पालन करना सीख गया होता तो इनका विध्वंस करने के लिए भगवान श्री राम को लंका जाकर युद्ध करने की आवश्यकता नहीं पड़ती और ना ही भगवान श्री कृष्ण को महाभारत कराने की आवश्यकता पड़ती ! प्रत्येक युग में ऐसे व्यक्ति जन्म लेते रहे हैं जिनको सुधारने के लिए उनके संहार के अतिरिक्त और कोई साधन नहीं बचता ! प्रत्येक मनुष्य को प्रतिकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए ! बिना किसी मोह के , चाटुकारिता एवं दिखावेपन से स्वयं को बचाते हुए गलत व्यक्तियों का प्रतिकार करते रहना चाहिए ! प्रत्येक मनुष्य के अंतरंग में दैवी एवं आसुरी दोनों प्रकार की शक्तियां कार्य करती हैं , आसुरी वृत्तियां नकारात्मक बना करके मनुष्य को नीचे गिराती रहती हैं , वही दैवी प्रवृत्तियां मनुष्य को सफलता के उच्च शिखर पर पहुंचा देती है ! नकारात्मक व्यक्ति तब अधिक नकारात्मक हो जाता है जब उसका प्रतिकार करने वाला , उसका विरोध करने वाला कोई नहीं होता ! उसके आसपास रहने वाले लोग उसके प्रत्येक कार्य की बड़ाई ही करते हैं तो उसको अहंकार हो जाता है और वह निरंतर नकारात्मक गतिविधियों में लिप्त हो जाता है ! ऐसे में प्रत्येक मनुष्य को प्रतिकार का प्रतीक बन जाना चाहिए ! गलत बातों का विरोध निसंकोच करके आप किसी को नकारात्मक होने से बचा सकते हैं ! यदि कोई भी गलत आचरण करता दिखाई पड़े तो वह तो दोषी है ही उसके साथ में वह कहीं अधिक दोषी हो जाता है जो उसकी हां में हां मिलाता रहता है , ऐसा करके वह नकारात्मक कार्य करने की खुली छूट अपने प्रिय जन को दे देता है ! यदि इसी समय नकारात्मक कार्यों का विरोध कर दिया जाय तो शायद मनुष्य का पतन होने से बच जाय परंतु लोग ऐसा ना करके चाटुकारिता के वशीभूत होकर नकारात्मकता का साथ प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से देते रहते हैं यही कारण उनके पतन का बन जाता है !*
*आज परिस्थितियों की भीषणता , भयावहता से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है ! जिस प्रकार की परिस्थितियां आज मानवता के सम्मुख प्रस्तुत हो गई हैं वे एक तरह से महासमर की परिस्थितियां हैं ! आज ऐसा समय प्रस्तुत हो गया है कि नकारात्मक एवं सकारात्मक दो में से एक विकल्प का चयन करना अनिवार्य हो गया है ! आज लोग बाहरी चमक को पाने की अंधी दौड़ में अांतरिक संतोष , आत्मिक प्रगति एवं आध्यात्मिक विकास को पूरी तरह भूल गए हैं ! बाहरी चमक को पाने की इस समाज की नासमझ दौड़ में हृदय की दरिद्रता और भावनाओं का जो भिखारी पर देखने को मिल रहा है उससे कोई भी अपरिचित नहीं है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इसका एक प्रमुख कारण यह मानता हूं कि हमारे अगल-बगल रहने वाले प्रतिकार करना भूल गए हैं ! क्या ठीक है क्या नहीं ? इसका विचार करना लोगों ने छोड़ दिया है ! आज मनुष्य के पास भले ही सुख सुविधाओं के अनेक संसाधन हैं परंतु इन सुख-सुविधाओं के होते हुए भी आज मनुष्य के पास परस्पर स्नेह और विश्वास में अभूतपूर्व कमी आई है ! आज एक दूसरे के प्रति विश्वास का स्थान संदेह और कठोरता ने ले लिया है ! जिस प्रकार आज आधुनिक संसाधनों के कारण संसार के एक देश दूसरे देश से समीप होते जा रहे हैं उसी प्रकार लोग अपने हृदय से एक दूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं ! वह समय आ गया है कि प्रत्येक मनुष्य इन अवांछनीय तत्वों से लड़ने के लिए अपने भीतर एक प्रकाश पैदा करें और गहनता से विचार करें कि हम गलत बातों का प्रतिकार ना करके , उनका साथ दे करके किस दिशा में जा रहे हैं ! आज जब सब ओर अनीति - अन्याय और अवांछनीयता का साम्राज्य बिखरा दिखाई पड़ता है तो हमें ऐसे समय में विषम परिस्थितियों के निवारण के लिए प्रतिकार का प्रतीक बनने की परम आवश्यकता है ! जिस दिन हम प्रतिकार के प्रतीक बन जाएंगे उसी दिन परिस्थितियों सुधरने लगेंगी , अन्यथा बिना विचार किये किसी का सदैव प्रत्येक कार्य में साथ देते रहने से वह व्यक्ति तो पतन की ओर जाएगा ही साथ ही साथ हम भी पतित होते चले जाएंगे , जैसा कि वो भी रहा है ! इसलिए सावधान रहने की आवश्यकता है !*
*हम किसी की गलत बात का प्रतिकार ना करके उसके साथ-साथ स्वयं को भी नकारात्मकता के घोर अंधकार की ओर लेकर जा रहे हैं ! किसी का साथ देना बहुत अच्छी बात है परंतु हम जिस का साथ दे रहे हैं वह यदि गलत कर रहा है तो उसके प्रतिकार करने का साहस भी हममें होना चाहिए अन्यथा भविष्य बहुत सुखद एवं उज्जवल नहीं हो सकता !*