*इस संसार में आदिकाल में जब पृथ्वी पर एकमात्र "सनातन धर्म" ही था तब हमारे महापुरुषों ने सम्पूर्ण धरती को अपना घर एवं सभी प्राणियों को अपना परिवार मानते हुए "वसुधैव - कुटुम्बकम्" का संदेश प्रसारित किया था | चूंकि समय परिवर्तनशील है तो धीरे - धीरे पृथ्वी पर अनेकों धर्मों की आधारशिला रखकर उनके प्रणेताओं ने अपने - अपने धर्मों के नियम बनाये | इन सभी धर्मों में आज भी प्रमुख है मानव धर्म | जिस मनुष्य में मनुष्यता / मानवता का लोप होता है वह किसी भी धर्म का अनुयायी हो ही नहीं सकता | आज प्रत्येक मनुष्य कोई भी कार्य स्वार्थवश ही करता है | जबकि मानवता में स्वार्थ का कोई स्थान नहीं है | संसार में सदैव से मानव धर्म ही प्रमुख रहा है | यही सनातन धर्म का उद्घोष रहा है | "वसुधैव कुटुम्बकम्" का सर्वोच्च उदाहरण यदि देखना है तो वह सनातन धर्म में ही मिलेगा | भगवान भूतभावन भोलेनाथ का परिवार इसका अभूतपूर्व उदाहरण है | जहाँ परस्पर एक दूसरे के शत्रु भी प्रेमपूर्वक रहते हैं | सम्पूर्ण मानवता की रक्षा के लिए ही समय समय अवतार लेकर परमशक्तियों ने मानवता का ही पाठ पढाया है | जहाँ मानवता नहीं रह जाती वहाँ शीघ्रता से विनाश होता है |*
*आज के इस भौतिक युग में यदि मनुष्य, मनुष्य के साथ सद्व्यवहार करना नहीं सीखेगा, तो भविष्य में वह एक-दूसरे का घोर विरोधी ही होगा | यही कारण है कि वर्तमान में धार्मिकता से रहित आज की यह शिक्षा मनुष्य को मानवता की ओर न ले जाकर दानवता की ओर लिए जा रही है | जहां एक ओर मनुष्य आणविक शस्त्रों का निर्माण कर मानव धर्म को समाप्त करने के लिए कटिबद्ध है, वहीं दूसरी ओर अन्य घातक बमों का निर्माण कर अपने दानव धर्म का प्रदर्शन करने पर आमादा है | ऐसी स्थिति में मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यही कहना चाहूँगा कि आखिर आज ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ वाला हमारा स्नेहमय मूलमंत्र कहां चला गया ?? मानवता मनुष्य का धर्म होती है | सभी मनुष्यों में स्नेह करने का मूल पाठ मानव धर्म सिखाता है | जाति, संप्रदाय, वर्ण, धर्म, देश आदि के विभिन्न भेदभाव के लिए यहां कोई स्थान नहीं है | मानव धर्म का आदर्श और इसकी मनोभूमि अत्यंत ऊंची है और इसके पालन में मानव जीवन की वास्तविकता निहित है | मानव धर्म सभ्यता और संस्कृति की एक प्रकार की रीढ़ की हड्डी है इसके बिना सभ्यता व संस्कृति का विकास कल्पना मात्र ही है | मानव धर्म की वास्तविकता और उपादेयता इसी में है कि मनुष्यत्व के विकास के साथ ही साथ विश्व भर के लोग सुख, शांति और प्रेम के साथ रहें। प्राणिमात्र में रहने वाली आत्मा उसी परमपिता परमेश्वर का अंश है | प्रत्येक में एक ही जगतनियंता प्रभु का प्रतिबिंब दिखलाई देता है, यह समझकर मनुष्य की ओर आदर भावना बनाए रखें |*
*यदि आज किसी के हृदय में किसी का आदर या किसी के लिए प्रेम नहीं है तो वह किसी भी धर्म के उच्चपदों पर ही क्यों न आसीन हो समझ लो कि वह मानवता से हीन है , और उसका जीवन व्यर्थ है |*