भाषा हूँ लाजवाब शान की।
मैं हिन्दी हूँ हिन्दूस्तान की।
लोग झूमते कहते हैं
हाथी घोड़ा पालकी।
जय कन्हैया लाल की ।
नदी की तरह इठलाती
विविध भाषा परिवार बसाती
संगम पर मिलती मान की।
एक शब्द के कई अर्थ लेती
एक हार फुलो की हो
या दुश्मनो के हार की।
योग सिखाती रोग भगाती
विश्व परचम लहराती
ऐसी हिंदी है मेरी जान की।
कलम की ज्ञानी तक
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
हिंदी है एकता मिशाल की।
सात स्वरो से सात चक्रो तक
असर होगा निकलेगी अह:
हिंदी जुबानी स्वर की ।
भाषा हूँ लाजवाब शान की।
मैं हिन्दी हूँ हिन्दूस्तान की