दिलरुबा
दिनांक 19/8/22
दिन-शुक्रवार
प्यारे साथियों मेरी और दिलरुबा की तरफ़ से जन्माष्टमी की आपको ढेरों शुभकामनाएं और बधाइयां,,,,।
प्यारी दिलरुबा आज जन्माष्टमी है,, श्री कृष्ण जी से जुड़े हजारों प्रेरक प्रसंग मेरे जहुन में आ रहे हैं,,, इतना भी लिखा जाए उनके विषय में उतना ही कम है पर यहां मैं कुछ उन प्रसंगों की बात करूंगी जो मुझे बचपन से बहुत प्रभावित करते आए हैं,,,।
बचपन से ही श्री कृष्ण के बाल स्वरूप को मैं पढ़ती आई हूं बांसुरी मोर मुकुट और माखन की मटकी के बिना उनका स्वरूप अधूरा है,,।
माखन के तो वह इतने दीवाने थे हर घर जाकर चोरी से माखन की मटकियां खाली कर दिया करते थे,,, ऊपर माखन लगा होता था और फिर भी कहां करते थे,,,।
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो,,,।
उनकी बांसुरी मोर पंख वैजयंती माला पांचजन्य चक्र सुदर्शन आदि सामान्य जीवन के अंग है जो हमें विपरीत परिस्थितियों का मुक़ाबला करने का साहस देते हैं,,।
अष्टमी को लेकर मैं अपने बचपन की कुछ यादें आज दिलरुबा तुम्हारे और अपने साथियों के साथ शेयर करना चाहती हूं,,,।
बात कक्षा आठ की है,,,, मेरी तीन दोस्त थीं निशी सुमन और गीता,,,, मैं हर साल जन्माष्टमी मे उनके साथ ही हुआ करती थी,,,।
यहां यह बताना ज़रूरी है कि बचपन से ही मुझे सिलाई और क्राफ्ट का बहुत शौक़ था,,,, मैं अपनी गुड़िया के लिए तरहां तरहां के कपड़े सिला करती थी,,, ।
जब मैं जन्माष्टमी से पहले,,अपनी दोस्त निशी के घर गई तो वह लोग जन्माष्टमी की तैयारी कर रहे थे,,, कृष्ण जी के कैसे कपड़े होंगे,,,,,,, झांकी किस तरहं तैयार की जाएगी,, कपड़े बाजार से मंगाने पर विचार-विमर्श चल रहा था,,, ।
यह सब देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा और मैंने निशि से कहा अरे इस चीज़ के लिए किसी को बुलाने की ज़रूरत नहीं,,, ।
यह सब चीज़ें तो मैं बहुत अच्छे से कर दूंगी मुझे बहुत शौक़ है,,,,, मैं अपनी गुड़िया को बहुत अच्छे अच्छे कपड़े
सिलकर पहनाती थी ।
मुझे बहुत ख़ुशी होगी अगर मैं कृष्ण जी की ड्रेस भी बनाऊं तो,,,,,,, इस तरहां के काम करने का मुझे बहुत शौक़ है,,, यह जानकर कि मैं कृष्ण जी के लिए कपड़े बनाऊंगी सब लोग खुश हो गए,,।
मेरा घर भी पास में ही था,,,, बहन की शादी तभी तभी हुई थी,,,, कुछ रेशमीन कपड़ों के टुकड़े गोटा और बहुत सी सजावट की चीज़ें घर में रखी थीं हम दोनों जाकर उन्हें घर से ले आए,,, ।
और मैंने बहुत सुंदर कृष्ण जी की ड्रेस तैयार की,,, और जितने भी छोटे-छोटे कपड़े सिलने थे सब हाथ से सिल दिए ,,,,,,।
और बहुत सुंदर झांकी हम ने मिलकर बनाई जिसे देखकर सब लोग बहुत खुश हुए फिर क्या था सुमन मुझे अपने घर खींच कर ले गई,,, और उसके यहां भी हम ने मिलकर झांकी और कपड़े तैयार किए,,, कृष्ण जी को सजाया ,,,, ।
फिर दीपा के पापा मेरे घर कहने के लिए गए आपकी बेटी हमारे घर है कृष्ण जी के कपड़े सिल कर उन्हें सजा रही है,,, ।
मेरे परिवार को कोई आपत्ति नहीं थी,,, तब से लगातार हर जन्माष्टमी पर मैं अपने दोस्तों के घर जाया करती थी,,, सारे त्यौहार हम सब लोग मिलजुल कर ही मनाया करते थे,,, ।
और ईद के दिन लक्ष्मण चाचा और अशोक चाचा सबसे पहले आकर मुझे ही ईदी के रुपए दिया करते थे,,, पर आज यह बहुत कम देखने को मिलता है,, ।
कितना प्रेम,,,, और कितना सौहार्द्य था उस समय लोगों के दिल में,,, सब के त्यौहार सांझा हुआ करते थे पर आज जब भी मैं इस बात को याद करती हूं,,,, मन में कहीं से एक आवाज़ आती है काश कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,,,,।
हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की
एक बार फिर सभी लोगों को जन्माष्टमी की ढेरों शुभकामनाएं और बधाइयां,,,।
सय्यदा खा़तून ✍️
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