जोगिंदर की सारी रात बैचेनी से कटी ।एक तो ये सोच कि नये माहौल मे वो कैसे रमे गा।कैसे रहने की व्यवस्था होगी ।वो वहां शहर मे एडजेस्ट हो पायेगा या नही।दूसरा पिता जी की चिंता उसे भी पता था कि कुनबे वाले उसकी जागीर पर आंखें गड़ाए बैठे है । क्यों कि जोगिंदर के चाचा ताऊ सब शराबी, जुआरी थे अपनी जमीन जायदाद तो ऐबो मे खो दी अब उन्हें जोगिंदर की जागीर ही आंखों मे रडक रही थी। जोगिंदर को ये अच्छे से पता था कि उसने गांव से बाहर पैर रखा नही और चाचा ताऊ के बच्चों का आना जाना शुरू हो जाएगा घर मे । पिताजी भी उनकी बातों मे आ ही जाते है।और वे एक मिनट नही लगाएं गे नुकसान पहुंचाते।
तीसरा रमनी हां रमनी वो भी एक चिंता थी जोगिंदर के लिए।चाहे शरारती थी लेकिन मन की भोली थी बहुत जल्द ही किसी की बहकावे मे आ जाती थी। जोगिंदर उसके आसपास रहकर सदा ही उसे ऐसे लड़कों से बचाता रहता था ।वह उसे जलाने के लिए दूसरे लड़कों से बात करती थी लेकिन जोगिंदर के मनमे यह देखकर जलन तो होती ही थी लेकिन जलन के साथ साथ एक चिंता भी होती थी कि कही उसे कोई बहका कर गलत हरकत ना कर दें।
सभी काम कल ही करने थे सोई सारी रात जोगिंदर की बैचेनी से कटी।सुबह जब ब्रह्म मुहूर्त मे जोगिंदर की मां घर मे झाडू लगा रही थी तो उसने देखा जोगिंदर उठ गया है तो चाय लेकर उसके पास आयी और बोली ,"क्या बात बेटा ।नींद अच्छे से नही आयी लगता ?"
"हां मां ऐसा ही है मन थोड़ा भारी सा हो रहा है पता नही क्यों। तुम्हें ,पिता जी को छोड़कर पहली बार घर से दूर जा रहा हूं। थोड़ी बैचेनी तो है । फिर शहर मे भी सब नया माहौल है ।पता नही ये सब कैसे होगा।"
जोगिंदर ने मां की गोद मे सिर रखते हुए कहा।
जोगिंदर की मां की भी आंखें भर आईं।वह भी उसका सिर पुचकाते हुए बोली," बेटा।तुझे क्या पता नही बड़ी मुश्किल से छाती पर पत्थर रखकर तुम्हें शहर भेज रहे है ।तेरे पिताजी तो बिल्कुल राजी नही है ये तो मैंने जिद की हे कि तू अपने सपने पूरे करना चाहता है ।वरना क्या कमी दे रखी है भगवान ने ।उसकी दया से सब कुछ तो है।"
जोगिंदर गोद से उठते हुए बोला,"मां मै समझता हूं आप मेरे बिना एक पल नही रह सकती तो मुझे अपने से दूर किस तरह से भेज पाऐगी। लेकिन शहर जाएं बगैर मेरे सपने पूरे नही हो सकते। मुझे दसवीं मे इतने अच्छे नंबर मिले है तो मै आगे की पढ़ाई आराम से कर पाऊंगा।"
जोगिंदर की मां उसका सिर पुचकार कर गाय को चारा डालने के लिए उठ गयी।
जोगिंदर भी नित्य कर्म से निवृत्त हो कर नाश्ता करके गांव की ओर निकल पड़ा।
आज उसे गांव की हवा सुबह सुबह बड़ी ताजी लग रही थी। खेतों खलिहानों से आने वाली ब्यार माटी की सुगंध साथ मे ला रही थी। जोगिंदर धीरे धीरे अपने आम , अमरूद के बगीचों की ओर बढ़ रहा था ।उसे जिसकी तलाश थी वह उसे वही मिलने वाली थी।थोडी देर मे रामू पहलवान नित्य कर्म से निवृत्त हो कर पहरेदारी पर आकर बैठने वाला था ।यही समय रमनी और उसकी गैंग के बच्चों के लिए होता था जब वे तसल्ली से आम , अमरूद तोड़ सकते थे।
जोगिंदर जैसे ही बागों मे घुसा उसे बड़ा आश्चर्य हुआ रमनी की गैग के दो तीन बच्चे ही वहां पर थे पर रमनी का कही पता नही था ।वे भी जोगिंदर को देखकर पेड़ों से उतर कर भागने लगे तो जोगिंदर ने उनमे से एक को दौड़कर पकड़ लिया और बोला,"क्यों रे भोला! आज तुम्हारी शरारती दीदी नही दिखाई दे रही। कहां है वो?"
भोला तुतलाते हुए बोला,"जोगिंदर भईया।पता नही तया हो गया है लमनी दीदी को ।आज जब हमने पूथा कि आम , अमरूद तोलने तलोगी तो बोली मन नही है फिर बली मुसकिल से पकल कर लाये है ।वो देखो पेड के नीचे बैथी है।"
भोला ने पेड़ के नीचे बैठी रमनी की तरफ इशारा करके कहा तो जोगिंदर की नजर उस ओर गयी । वास्तव मे उछल कूद करने वाली रमनी बड़ी ही शांत बैठी थी जैसे कुछ सैच रही हो।
जोगिंदर धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए उसके पास गया और पीछे से जाकर उसकी आंखों पर हाथ रख दिया।
पर ये क्या उसकी आंखों से तो आंसू बह रहे थे । जोगिंदर ने एकदम से हाथ हटाया तो देखा रमनी की आंखें सूजी हुई है ।वह ये सब देखकर बोला,"क्यों री फिर किसी बात पर चाची से लड़ कर आई हो क्या।और यहां आकर टसुए बहा रही हो।"
जोगिंदर बोलने को तो ये सब बोल गया पर वह अंदर ही अंदर बैचेन हो उठा था रमनी के आंसू देखकर ।वह जल्द ही उन्हें रमनी की आंखों से दूर करना चाहता था।
रमनी अचानक से जोगिंदर को सामने देखकर चौंक गयी।और अपनी चोरी पकड़ी जाती देख कर कि कही जोगिंदर ये ना भांप ले कि वह उसके जाने से रो रही है रमनी जोगिंदर पर हावी होने लगी।
"क्यों बजरबटटू ! आज हाथ नही मरोडो गे ।मै तुम्हारे बागों से आम चुरा रही हूं।"
जोगिंदर ने जब रमनी की बात सुनी तो उसके आंखों के कोर गीले हो गये वह मन ही मन सोच रहा था"रानी हो इन बागों की । तुम्हें ज़रूरत नही पूछने की । "पर प्रत्यक्ष मे बोला,"हां , हां चल अभी चाची को बताता हूं। नाश्ता करने के समय पर तू आम अमरूद तोड़ रही है।"
रमनी ने उसकी ओर पनीली आंखों से देखा तो जोगिंदर उसी को निहार रहा था।उसे अपनी ओर देखते हुए देखकर रमनी ने मुंह दूसरी ओर कर लिया और बोली,"एक बात पूछूं?"
जोगिंदर बोला,"हां मोटी पूछ क्या पूछना चाहती है।"
"तुम शहर पढ़ने जा रहे हो ?"रमनी ने रूंधे गले से कहा।
इधर जोगिंदर का मन भी बैचेन था उसका भी मन कट रहा था रमनी को छोड़कर जाने मे लेकिन फिर भी वह बोला,"हां जा रहा हूं । तुम्हें पता है ना दसवीं मे पहले स्थान पर आया हूं तो शहर जाकर बहुत कुछ पढ़ना चाहता हूं और सीखना चाहता हूं अगर गांव मे रह गया तो कुएं का मेंढक बन कर रह जाऊंगा।"
रमनी की आंखों की कोर पनीली हो गयी थी वह बोली,"तुमने ये नही सोचा तुम चलें जाओगे तो कमली नयना और कमला का क्या होगा और तुम्हारे लंगोटिया यार मदन,सुंदर तो बावले ही हो जायेंगे।"
अब भी रमनी का मन तो अपना नाम लेने का भी कर रहा था कि जोगिंदर तुम्हारी रमनी तुम्हारे बिन कैसे रहेगी।पर एक मौन साध रखा था रमनी ने।मन चीत्कार कर रहा था "मत जाओ जोगिंदर अपनी रमनी को छोड़कर।"
इधर जोगिंदर भी बैचेन था एक बार बस एक बार रमनी अपने प्यार को कबूल कर ले।कितनी पगली है ये क्या इसे मेरी आंखों मे प्यार दिखाई नही देता ।जो ये बार बार मेरा इम्तिहान ले रही है ।पगली दिलोजान से चाहता हूं तुझे और तुझे बस कमला,नयना की पड़ी है ।मेरा मन तो तुझसे अलग होते हुए कट रहा है । जोगिंदर मन ही मन बुदबुदा रहा था।
तभी उसने रमनी की ओर देखकर कहा,"एक बात करनी थी तुझ से ।सुन रही है ना।"
रमनी बड़ी ही आशा से जोगिंदर की तरफ देखने लगी।
(क्रमशः)