गतांक से आगे:-
जिसका डर था वही बात हुई ।रानी मां को महल के पहरेदारों से पता चला कि राजकुमार सूरजसेन किसी चंचला को पुकारते हुए पूरब दिशा मे गये है ।रानी मां के मुंह से अनायास ही निकल गया
"हाय राम! उसी दिशा मे तो चंचला के बापू ने अपना खेमा लगा रखा है ।कही वो कबीले के लड़के राजकुमार को कोई नुक्सान ना पहुंचा दे ।"
रानी रूपावती को अब लगने लगा था कि अब ये बात राजा जी से छुपाना सबसे बड़ी मूर्खता होगी ।वह दौडकर राजा पदमसेन के कक्ष मे गयी और सारी बात बता दी और ये भी बता दिया कि राजकुमार सूरज ने उस बंजारन लड़की से गंधर्व विवाह भी कर लिया है ।कल सुबह भोर के समय राजकुमार उसे अपने साथ लाये थे । मैंने जैसे तैसे करके संध्या के समय उसे उसके कबीले रवाना कर दिया था ।फिर वहां पर इस बात का विरोध हुआ तो वह लड़की चंचला भोर होते ही यहां वापस महल आ गयी ।कुछ कबीले के बदमाश लड़के दोनों को मारने के लिए निकले है ।चंचला तो उनसे बचकर राजकुमार को रोकने के लिए महल आयी थी पर हाय री किस्मत भोर के समय इसे(चंचला) उस कक्ष मे ना पा कर राजकुमार बावला हो कर घोड़ा उठाकर कबीले की ओर चल दिया।
रानी ने एक ही सांस मे सारी बात कह दी जिसे सुनते ही राजा पदमसेन का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया । उन्होंने रानी रूपावती को जोर से एक ओर धकेल दिया ओर क्रोध से पागल होकर बोले,"तुमने ये क्या किया रानी तुम्हें जब ये बात पता चली थी तभी मुझे आकर कहनी चाहिए थी ।पर तुम्हारी आंखों पर तो ममता की पट्टी बंधी थी तुम्हें अच्छे बुरे का क्या भान अब जब पुत्र की जान खतरे मे है तो मुझे बताने आयी हो ।"
रानी रोते और गिड़गिड़ाते हुए बोली ,"मुझे नही पता था बात इतनी बढ़ जाएगी ।मैने तो सोचा था ये राजकुमार का बचपना है जब होश आयेगा तो अपने आप समझ जाएंगे पर ये दीवानापन तो बढ़ता ही जा रहा हे उनका।"
राजा पदमसेन ने जोर से ताली बजा कर कहा,"कोई है ।हमारा घोड़ा निकालो और सेनापति को बोलो एक टुकड़ी सेना लेकर कबीले की और चले जो बंजारों ने राज्य की सीमा पर अपना खेमा लगाया है।"
तुरंत एक घोड़ा राजा पदमसेन के लिए तैयार कर दिया गया।वो आगे आगे और सेना की टुकड़ी पीछे पीछे।
इधर जब राजकुमार को पता चला कि चंचला को रात को ही रानी मां के कहने पर उसके कबीले छोड़ दिया गया तो वो आग बबूला हो गया ओर जिस परिस्थिति में सुबह उठकर आया था उसी तरह घोड़े पर बैठकर कबीले की ओर चल दिया ।पर उसे क्या पता था मौत रास्ते मे ही घात लगाए बैठी है । राजकुमार थोडी ही दूर पहुंचा था महल से ।वो कच्चे रास्ते से कबीले की तरफ जा रहा था। कालू वही झाड़ियों मे घात लगाए बैठा था जैसे ही राजकुमार को निहत्था आता देखकर कालू और उसके तीन चार साथियों ने उसे घेर लिया और राजकुमार को लगे पीटने । शुरू मे तो उस शूरवीर ने बड़ी बहादुरी से उन सब का मुकाबला किया पर एक निहत्थे व्यक्ति से और ज्यादा मुकाबला नही हो पाया । इतने मे कालू ने खंजर से वार करना शुरू कर दिया ।पहले पहल तो राजकुमार सूरजसेन बचता रहा और बहुत बार उसके दाव निष्क्रिय भी किये पर जब साथ हथियार ना हो तो कितना ही बड़ा सूरमा क्यों ना है वो हार ही जाता है फिर राजकुमार तो अभी सोलहवें साल मे ही चल रहे थे।कालू ने एक जोरदार खंजर का प्रहार किया वह सीधा राजकुमार सूरजसेन के सीने को फाड़कर आरपार हो गया राजकुमार वही ढेर हो गया ।इतने मे भी कालू का मन नही भरा वह ताबड़तोड़ वार करता रहा राजकुमार के निष्प्राण शरीर पर।जब वह थक गया तो अपने साथियों से बोला,"ले चलो इसे कबीले मे ,जिसके नाम का सिंदूर मांग मे भरकर आयी थी जरा देखे तो कैसा लगेगा उसे उसका मृत शरीर देख कर।
कालू और उसके साथी राजकुमार का पार्थिव शरीर घसीटते हुए कबीले मे ले गये ।जब कबीले मे पहुंचे तो कालू ने देखा उसके साथी महुआ पिये पड़े है र चंचला का कही पता नही है।ये देखकर कालू आग बबूला हो गया और अपने साथियों को झिंझोड़ कर पूछने लगा ,"नमक हरामो । कहां गयी वो कलमुंही।तुम यहां महुआ पीये पड़े हो और वो कमीनी इसका फायदा उठाकर भाग गयी।"
कालू को सरदार पर शक हुआ ।चाहे कितना ही न्यायप्रिय हो कोई पर जब अपनी औलाद पर बात आती है तो सब धरा रह जाता है।वह धड़धड़ाते हुए सरदार के तम्बू मे गया तो उसे वहां ना पाकर उसका शक यकीन मे बदल गया । सरदार पहले ही कबीला छोड़ चुका था उसने प्रयास करके एक बार तो चंचला को भगा दिया था पर उसे ये यकीन था कि कालू कही ना कही से उसे ढूंढ ही लेगा।
कालू ने राजकुमार की लाश पेड़ पर बांध दी और सारे कबीले वालों को दिखाते हुए कहां कि ये देखो चंचला का आशिक अब थोड़ी ही देर मे चंचला की लाश भी यही बंधी हुई मिलेगी । दोनों प्रेमी प्रेमिका को इकठ्ठा ही जलायेगे।
कालू फिर से चंचला की खोज मे जाने लगा तभी राजा पदमसेन की सेना के आदमी वहां पहुंच गये ।जब उन्होंने देखा राजकुमार मृत्यु को प्राप्त हो चुके है तो दौडकर राजा पदमसेन को खबर की । राजा पदमसेन के दुख और क्रोध का ठिकाना नही रहा उसने सेना सहित कबीले पर हमला कर दिया और राजकुमार की लाश कबीले से बाहर लाकर सारा कबीला ही आग के हवाले कर दिया ।सारा कबीला और उसमे रहने वाले लोग धूं धूं करके जल गये । चारों तरफ चीख पुकार मची थी ।पर सैनिकों ने किसी को बाहर नही निकलने दिया।
कालू और उसके साथी सभी आग के हवाले हो गये थे ।कहते है बुरा चाहे कोई ना करे पर अगर मूक रहकर बुरा हैते देखे तो वो भी उस पाप का हकदार होता है।जिसकी सजा राजा पदमसेन ने कबीले वालों को दे दी थी।
राजा बिलखता हुआ राजकुमार सूरजसेन की लाश लेकर महल लौटा । राजकुमार को मृत देखकर रानी रूपावती बावली हो गयी ।बार बार बेटे के पास जा जाकर उसे उठाने का प्रयत्न करती थी ।"उठ जा बेटा ,उठ जा ।देख तेरी मां तुझे बुला रही है ।"
पर जाने वाले लौटकर कहां आते है ।
उधर जब चंचला को ये बात पता ही नही चली कि राजकुमार सूरजसेन को कालू ने मार दिया है वह उसी कमरे मे बैठी भगवान को जप रही थी।
जोगिंदर लगातार उस किताब को पढ़ें ही जा रहा था ।रात के तीन बज चुके थे ।उसे होश ही नही था कि उसे सुबह क्लास भी अटेंड करनी है।
पर ये क्या वो पढ़ता पढ़ता एकदम से रुक गया।
(क्रमशः)