गतांक से आगे:-
जोगिंदर ऐतिहासिक नगरी उज्जैन की ओर बढ़ा चला जा रहा था । वहां के स्नातकोत्तर महाविद्यालय मे उसका दाखिला हुआ था।बस कागज़ी कार्यवाही ही करनी बाकी थी और सारा काम तो एक दिन शहर जा कर जोगिंदर और नरेंद्र पहले ही कर आये थे।
अब तो बस हास्टल मे दाखिला और लेना था।जिस प्रोफेसर से बात हुई थी उसने बताया था कि जल्दी से आकर हास्टल मे कमरा ले लो अगर सारे कमरे भर गये तो बाहर किराये का कमरा लेकर रहना पड़े गा।
जोगिंदर खाना बनाने के झंझटों से बचना चाहता था
क्यों कि अगर खाना बनाने मे समय बर्बाद करेगा तो पढ़ेगा कब?
इसलिए दोनों जल्दी पहुंच कर अपना कमरा बुक करना चाहते थे। तकरीबन ग्यारह बजे वो लोग ऐतिहासिक नगरी उज्जैन पहुंच गये।बस स्टैंड से उतर कर महाविद्यालय के लिए तांगा लिया और साढे ग्यारह बजे वो महाविद्यालय के प्रांगण में खडे उन प्रोफेसर से बात कर रहे थे।
प्रोफेसर श्याम काफी समय से जोगिंदर का इंतजार कर रहे थे।एक टोपर लड़का अगर उनके महा विद्यालय में पढ़ें गा तो उनके महाविद्यालय का नाम ही रौशन होता। इसलिए वो उत्सुक थे कि कब जोगिंदर अपना दाखिले के लिए आयेगा।
सारी कागजी कार्रवाई पूरी करने पर जोगिंदर ने हास्टल के लिए भी फार्म भर दिया।ये उनका नसीब ही था कि एक कमरा बचा था हास्टल मे बाकी के सब भर गये थे।
नरेंद्र बोला,"चल यार शुक्र है ।एक तो मिला वरना कहां किराये के मकानों में धक्के खाते।"
जोगिंदर ने भी सिर हिला कर कहा,"हां यार बच गये।"
दोनों अपना सामान उठाकर हास्टल की ओर बढ रहे थे ।आगे आगे चोकीदार चल रहा था। हास्टल क्या था एक किस्म का महल ही था ।किसी समय मे किसी राजा का महल होगा जो अब नया रूप देकर हास्टल बना दिया था।
जोगिंदर को वो महल देखा देखा सा लग रहा था।पता नही एक सुकून सा था उसमे।वह तो यह सोचकर शहर आया था कि देखो यहां मन लगेगा या नही पर जब हास्टल मे पहुंचा तो सब अपना सा लग रहा था।काउंटर
पर एंट्री करवा कर चौकीदार उन्हें उनके कमरे तक छोडने गया।जब वो एक गलियारे में से जा रहे थे तो जोगिंदर एकदम से चौंक गया
ये क्या ये तो वही गलियारा था जो उस दिन सपने मे दिखाई दिया था वह एक दम से हैरान रह गया कि ऐसे कैसे हो सकता है। उसे दो दिन पहले वही गलियारा सपने मे दिखा था जब उसे प्यास लगी थी
जोगिंदर ओर सतर्क हो गया ।वह जैसे ही अपने कमरे के आगे पहुंचा तो और हैरानी हो गयी ।उनके कमरे का नंबर भी बारह था।
उसने उत्सुकता वश चौकीदार से पूछा ,"काका हमारे साथ वाले कमरे मे कितने लोग रहते है ?"
एक बार तो चौकीदार सकपका गया लेकिन बात को बदलता हुआ बोला,"भाई जी । कोई नही रहता जिनसे ये हास्टल लीज पर लिया है उन्होंने ये कमरा अपना पर्सनल सामान रखकर बंद कर रखा है।"
और फटाफट सामान रखकर कमरे से बाहर हो गया।
जोगिंदर को कई बातें अजीब सी लग रही थी ।सबसे पहले तो उसे सपने मे ये महलनुमा हास्टल दिखाई देना।दूसरा सपने मे वही तेरह नंबर का कमरा खुला दिखाई देना जबकि चौकीदार उसे सालों से बंद बता रहा था।और वो लड़की वो लड़की रो रही थी उसी तेरह नंबर के कमरे मे। जोगिंदर का दिमाग पहले ही दिन चक्कर खाने लगा।
दोनों ने अपना सामान व्यवस्थित किया। जोगिंदर की मां ने भर भर कर काजू बादाम, लड्डू,देसी घी सब कुछ बांधा था । लेकिन नरेंद्र भूखा नंगा था बस कपड़े ही लेकर आया था ।वो तो जोगिंदर के चाचा लोगों ने पैसे देकर उसका दाखिला कराया था ताकि वो जोगिंदर को शहर रोके रखे।
सामान जमा कर दोनों ने कमरें को ताला लगाया और हास्टल का जायजा लेने निकल पड़े।जैसे ही जोगिंदर ताला लगा रहा था सहसा उसकी नजर तेरह नंबर कमरे की तरफ उठ गयी ।वो कमरा उन सब कमरों से अलग ही था ।उस कमरे के बाद गलियारा खत्म हो जाता था ।मतलब वो कमरा कौने मे था । इसलिए उधर कोई आता जाता नही था । लेकिन फिर भी इतना साफ सुथरा कमरा था जैसे वहां कोई रह रहा हो।
जोगिंदर को इस तरह से उस कमरे को घूरते हुए देखकर नरेंद्र ने पूछ ही लिया "क्या यार ऐसे खानेवाली नजरों से क्यों देख रहा है इस कमरे को । चौकीदार बता तो गया था कि इस कमरे मे कोई नही रहता।"
जोगिंदर एकदम अचकचा सा गया बोला,"यार तुझे हैरानी नही हुई एक बात देखकर इस कमरे मे कोई नही रहता है फिर भी ये इतना साफ कैसे है ?"
जोगिंदर ने नरेंद्र की तरफ आंखें मटकाते हुए कहा।
"भाई तुम जेम्स बॉन्ड से कम थोड़े ही हो ।ऐसे करो तुम यहां बैठकर इसकी तहकीकात करो मै चला।"
नरेंद्र को जाते हुए देख कर जोगिंदर फटाफट कदम बढाते हुए उसके साथ हो लिया"अरे घनचक्कर मुझे कहां छोड़े जा रहा है इस बियाबान महल नुमा हासटल मे।सभी छात्र तो कालेज पढ़ने गये है ।बस हम दो ही है यहां पर ।"
नरेंद्र को हंसी आ गयी और मन ही मन कुटिल मुस्कान के साथ बोला,"मै भी कहां छोड़ने वाला हूं तुझे ।ये तो नाटक था ।तेरा सौदा करके ही तो शहर आया हूं और तुझे अकेला छोड़ दूं । मुझे पागल कुत्ते ने काटा है ।तू ही तो मेरा ब्लेंक चेक है जिसे जब चाहे कैश करा लूं।"
नरेंद्र मन ही मन ये सब सोचता जा रहा था।
दोपहर को दोनों ने मेस मे खाना खाया तो जोगिंदर की आंखें भर आयी उसे अचानक मां की याद आ गयी ।कल कितना स्वादिष्ट खाना बनाया था मां ने ।सच मे मां के हाथ जैसा स्वाद कही नही है।"
उसकी आंखों मे नमी देखकर नरेंद्र बोला,"क्या हुआ खाना देखकर चाची की याद आ गयी।"
नरेंद्र आंखें साफ करके बोला,"भाई इस तरह कमजोर पडूंगा तो पढूंगा कैसे।"
दोनो खाना खत्म करके वही हास्टल के परिसर में घूमने लगे । जोगिंदर बोला,"यार पता नही क्यों मुझे ये हास्टल जैसा नही लगता ।देखो अगर इसै गौर से देखोगे तो ये तुम्हें एक बड़ा सारा महल दिखाई देगा।"
"अरेरे हां ये तो महल ही है
क्या बचकानी बाते करते हो वो चौकीदार क्या रामायण पढ़ रहा था वो भी तो यही कह रहा था।" नरेंद्र हंसते हुए बोला । नरेंद्र इन सब मे बहुत होशियार था।
तभी जोगिंदर को पायलों की छनछनाहट सुनाई दी।उसने आवाज वाली दिशा की ओर देखा।
(क्रमशः)