गतांक से आगे:-
नरेंद्र ने कलश लाकर आंगन मे रख दिया और जोगिंदर के पास जाकर बोला,"ये क्या बात हो गयी यार । मुझे तो बड़ी हैरानी हुई कि कमरा नं 13 मे किसी दीवार मे कोई लाश भी दबी हो सकती थी जब वार्डन की मदद से मै वो दीवार खुदवा रहा था तो एक बार तो मुझे लगा कि कही कुछ ना मिला तो ऐसे ही फिजूल मे भदद पिट जाएगी। होस्टल मे सब पागल कहेंगे ।फिर जब दीवार मे से ये नरकंकाल मिला तो सबके होश उड़ गये ।"
जोगिंदर उसकी तरफ देखते हुए बोला," तो क्या मै झूठ बोल रहा था । मुझे चंचला ने बता दिया था कि उसे इस दीवार मे चिनवा दिया गया था। लेकिन अब एक और मुसीबत हो गयी है मै तो चंचला को मुक्त कराना चाहता था पर ये तो रमनी के अंदर प्रवेश कर गयी है परसों रात से ।चंचला की आत्मा मेरे साथ साथ शहर से गांव आ गयी थी ।उसने मुझे यहां आते ही अपने साथ होने का अहसास करवा दिया था ।पर अब तो ये रमनी मे आ गयी है ।"
नरेंद्र ने कमरे मे झांक कर देखा रमनी दुल्हन के वेश मे थी और उसके हाथ पांव पलंग से बंधे हुए थे ।उसे देखकर नरेंद्र बोला,"रमनी की मांग मे सिंदूर और वो तेरे कमरे मे क्या तुम दोनो का……
जोगिंदर ने मुस्कुराते हुए कह,"बिल्कुल अब वो मेरी पत्नी है ।"
नरेंद्र आश्चर्य से बोला,"ये कैसे हो गया तू तो रमनी का ब्याह रुकवाने…..
जोगिंदर ने दौड़कर नरेंद्र के मुंह पर हाथ रख दिया ,"शशशं क्या कर रहा है बना बनाया काम क्यों बिगाड़ रहा है बड़ी मुश्किल से तो हम दोनों ने अपनी मंजिल पायी है और तू गुड़ गोबर कर दे सारा।"
नरेंद्र भी हंसे बिना ना रह सका और बोला,"यार तू है तो बड़ा कलाकार। दिखता नही है पर है तू मंझा हुआ।"
तभी ओझा जी अलख निरंजन करते हवेली मे आ गये । जोगिंदर उसे रमनी के कमरे की ओर ले गया ।ओझा जी ने जब रमनी को देखा तो देखते ही कहा,"वो आत्मा रमनी मे सिसक रही है । ज्यादा देर की तो कही रमनी की जान पर ना बन आये।"
ये सुनकर जोगिंदर के पैरो तले की जमीन खिसक गयी और वह ओझा जी के उरण पकड़ कर बैठ गया और बोला,"बाबा आप मुझे बताइए मुझे क्या करना है मैने चंचला की अस्थियां तो मंगवा ली है शहर से ।"
ओझा जी ने जोगिंदर को कुछ सामान लिखवाया जो नोकर चाकर झटपट ले आये ।अब हवन वेदी तैयार की गयी और सभी घर वालों को शांति से एक तरफ बैठने को कहा
अनुष्ठान की सारी तैयारियां हो गयी ।ओझा जी हवन वेदी के दाईं और बैठें और सामने रमनी को लाकर बैठाया गया जिसमें चंचला की आत्मा का वास हो गया था ।पलंग से रस्सी खुलते ही रमनी फिर से जोर जोर से हाथ पैर चलाने लगी
कहते है सोतिया ढाह ऐसी ही होती है जब तक वो अपनी सौत को खत्म ना कर ले उसे चैन नही पड़ेगा। चंचला की आत्मा इस तरह से रमनी को तकलीफ़ दे रही थी ये जोगिंदर से बर्दाश्त नही हो रहा था ।
तभी ओझा जी ने सामने बैठी रमनी पर गंगा जल छिड़का तो वो एकदम से चिल्लाने लगी ,"नही मेरे साथ ऐसा मत करों मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है । " वह जोर जोर से हाथ पांव मारने लगी ।बहू की ऐसी हालत देखकर जोगिंदर की मां तो रोने ही लगी । जोगिंदर ने पास जाकर ढांढस बंधाई।
तभी ओझा जी बोले ,"कौन है री तू ?और यहां क्या करने आयी है ?"
तभी रमनी जोर से चिल्लाई उसकी आवाज बदली हुई थी," मै …मै चंचला हूं । उज्जैन की रियासत के महाराज पदमसेन की पुत्र वधू।पर मेरे जीवन मे सुग भगवान ने लिखा ही नही ।एक दिन की ब्याहता को दीवार मे चिनवा दिया गया ।ये मेरे ससुर पदमसेन की आज्ञा से ही सब हुआ ।मै उसी महल से ही बंध गयी हूं मेरी आत्मा को मुक्ति नही मिली ।
मिलती भी कैसे मेरे पति सूरजसेन ने मुझे ये कहा था कि मेरी आज्ञा के बगैर इस महल से बाहर कदम नही रखना ।वो गये और फिर लौटे ही नही ।मै सदियों से उनकी बाट जोह रही थी कि कब वो आये और कब वो मेरे बने । लेकिन वो आये भी तो वो मेरे नही थे किसी रमनी के जोगिंदर बन चुके थे और आज तो उसके साथ ब्याह बंधन मे भी बंध गये है ।आज मै अपने आप को बहुत ही अकेला महसूस कर रही हूं।"
चंचला की ये ह्रदय को चीरने वाली बातें सुनकर वहां बैठे सभी लोगों की आंखे भर आयी।
रमनी के अंदर बैठी चंचला फिर बोली,"अब मै क्या कर सकती हूं प्यार का नाम पाना ही नही होता। अपने प्यार के लिए उसपर कुर्बान हो जाना भी प्यार ही है ।जब मेरे पति को ही मै स्वीकार नही तो हे ओझा । मुझे इस योनि से मुक्ति दे दो।"
यह कहकर रमनी सुबकने लगी ।ओझा ने मंत्रोच्चार तेज कर दिया ।साथ साथ वो गंगाजल के छीटें उसपर डालता जा रहा था फिर अचानक से ओझा जी बोले," जोगिंदर तुम वो अस्थियों का कलश लेकर इधर आओ।और मेरे बाई ओर बैठ जाओ ।बेटा ये तुम्हारी ब्याहता थी उस जन्म में ।तब तूने इसे ये कहा होगा कि मेरी आज्ञा के बगैर कही मत जाना तो ये इसी इंतजार मे है कि इसका पति इसे आज्ञा दे और यह इस योनि से मुक्त होकर परमधाम की ओर जाए।"
ओझा जी ने गंगाजल हाथ मे दिलवाकर जोगिंदर को चंचला से मुखातिब होने के लिए कहा।
जोगिंदर हाथ मे जल लेकर बोला,"हे प्रिय ।तुम मेरी ब्याहता थी सही मायने मे तुमने ये सिद्ध कर दिया कि "प्यार क्या होता है "
हां मै चीख चीखकर कहता हूं "हां यही प्यार है '
जो तुमने निभाया।अब मै चारों दिशाओं को साक्षी मानकर कहता हूं हे प्रिय अब तुम इस योनि से मुक्त हो कर परमधाम की ओर अग्रसर हो जाओ।"
ये खहते हुए जोगिंदर की आंखों मे अविरल आंसू बह रहे थे।
तभी रमनी के शरीर से एक सफेद ज्योतिपुंज निकला और हवन की अग्नि मे समा गया । जोगिंदर….सूरज अपनी चंचला को मुक्त होता अपनी आंखों से देख रहा था ।
तभी रमनी का शरीर एक ओर लुढ़क गया । जोगिंदर ने भाग कर उसे सम्हाला। चंचला परमधाम की ओर गमन कर चुकी थी ।
थोड़ी देर बाद रमनी को होश आया ।तो वह बोली,"क्या हो गया था मुझे ?"
जोगिंदर ने सबको मना किया था कि रमनी को किसी भी हालत मे चंचला के विषय में पता नही चलना चाहिए।वह बस मुस्कुरा कर होले से बोला,"मेरी जान ।एक जलजला आया था जो शांति से निकल गया ।"
जोगिंदर की मां ने नयी बहू के आगमन मे सारे गांव की दावत की ।
अगले दिन जोगिंदर और रमनी बस मे गड़ गंगा की ओर जा रहे थे । जोगिंदर अपनी पूर्व प्रेमिका व पत्नी चंचला की और रमनी अपनी बड़ी दीदी को अंतिम विदाई देने।
(क्रमशः)