गतांक से आगे:-
जोगिंदर सब जान चुका था कि रमनी पर चंचला की आत्मा ने कब्जा किया हुआ है ।ये तो ओझा जी की भभूत का असर है जो ये अभी शांत है ।वह ये देखना चाहता था कि रमनी कितनी शांत है तभी वह उसे जगा रहा था ।आज तो ब्याह ही था अगर ये ऐसे ही सोती रही तो मुश्किल हो सकतीं थी तभी जोगिंदर रमनी के पास गया और उसे जगाते हुए बोला,"ओये मोटी, क्या कुंभकरण की तरह सो रही है ।चाची बता रही थी कल शाम से तू ऐसे ही सो रही है ।चल उठ वरना दुल्हा क्या सोचे गा कि ज्यादा सोने वाली बीमार लड़की हमारे गले बांध दी।"
रमनी ने हल्के से आंख खोल कर देखा कि जोगिंदर सामने खड़ा है तो वह झटकें से उठ बैठी ।पता नही कल से ही जब से बागों मे उन दोनों ने एक दूसरे से अपने प्यार का इजहार किया था तब से पता नही क्यों रमनी को बार बार जोगिंदर के बारे मे सोचते हुए भी शर्म आ रही थी ।एक शर्म का पर्दा सा पड़ गया था रमनी की आंखों पर जोगिंदर के लिए।वह सुकचा कर पलंग से उठ कर अपना पल्लू ठीक करने लगी ।
उसका इस कद्र शर्माना जोगिंदर को अंदर तक झंकृत कर गया।"ओह! रमनी शरमाते हुए बिल्कुल सुर्ख गुलाब लग रही हो हाय!अगर तुम इस तरह शरमाओ गी तो मेरी जान ही निकल जाएगी।"
वह म मे सोच ही रहा था तभी रमनी की मां अंदर आ गयी और बोली," लला जी बड़ी चिंता हो रही है बिटिया की बस ब्याह कर अपने घर चली जाए तो गंगा नहा लूं।देखो ओझा जी ने भभूत दी है ।पर कह रहे थे कि फेरों मे पड़ने के बाद इसका असर कम हो जाएगा।बस भगवान करे ये बला इसकी ससुराल साथ ना जाए।"
जोगिंदर ढांढस बंधाते हुए बोला,"सब ठीक होगा चाची ।और रमनी अपने ससुराल भी जाएगी ।तुम चिंता मत करो। हां मेरे लायक कोई काम हो तो बताओं।"
रमनी की मां बोली,"लला जी काम तो बाकी और लोग देख लेंगे बस आप तो बाहर पंडाल मे ही देख रेख कर लो कोई कमी नही रहनी चाहिए।"
जोगिंदर बाहर पंडाल मे आकर कुर्सी पर बैठ गया ।और सैच कर मन ही मन मुस्कराया"हां रमनी अपने ससुराल तो जाएं ही गी पर ये नही कह सकता जो आप लोगों ने देखी उस मे या मेरे साथ मेरे घर ।"
धीरे धीरे समय व्यतीत हो रहा था हरिया,भोला और साथी जन सब रमनी के ब्याह की तैयारियां कर रहे थे। जोगिंदर आगे के खेल के लिए हरिया से आश्वस्त हो चुका था कि सब काम सही से हो जाए।
बारात आने का समय हो चुका था ।रमनी दुल्हन के वेश मे सजी अप्सरा सी लग रही थी पर वह तो अपने जोगिंदर के लिए सजी थी ।वह उस दिन बाग मे सारा प्लान समझ कर आयी थी जोगिंदर से कि उसे क्या करना है । बारात दरवाजे पर पहुंच गयी ।मंगलाचार होने लगे दुल्हे को देखकर औरतें नाक भौं सिकोड़ने लगी कोई कह रही थी "भाग फूट गये रमनी के" तो कोई कह रही थी"क्या बात गलती से दुल्हे की जगह दुल्हे का पिता तो नही आ गया।" जितने मुंह उतनी बातें। जोगिंदर को भी बुरा लग रहा था जब रमनी के माता पिता का उपहास उड रहा था।पर वह मन मे आश्वस्त था कि इसके साथ ब्याही जाएगी तब ना ये मेरी है और मेरी ही रहेगी।
द्वाराचार के बाद जब दुल्हा पंडाल मे आया तो तरह तरह की मिठाई उसके आगे रखी गयी जिसे देखकर जोगिंदर मन ही मन हंसने लगा ,"खा ले बेटा ,खा ले ।जैसे बलि से पहले बकरे को खिला पिला कर तगड़ा किया जाता है वैसे ही तुझे कर रहे है बस अब तेरी बली दी जाएगी।इतने मे जोगिंदर हरिया के पास गया और कोई इशारा किया ।
सब लोग बैठें थे । वरमाला की रस्म होने वाली थी कि तभी पंडाल मे हाहाकार मच गया ।एक औरत अपने तीन बच्चों को लेकर पंडाल के बीचोबीच आकर पसर गयी थी और अपना आपा पीट रही थी और जोर जोर से दहाड़े मार कर रो रही थी ।जब उससे इसका कारण पूछा गया तो वह बोली,"मै रोऊ नही तो क्या करूं ।मुझ से इन्होंने शादी की और तीन बच्चे पैदा किए अब मुझसे मन भर गया तो चले है दूसरी शादी करने ।"
वह लगातार दुल्हे की तरफ इशारा कर रही थी । पंडाल मे तो भूचाल आ गया । औरतें तो पहले ही रमनी के होने वाले दुल्हे को देखकर नाक भौं चढ़ा रही थी अब तो एक कारण और मिल गया ।सभी कहने लगी "बता ऐसे क्या बेटी इतनी भारी हो गयी थी जो वर के बारे मे कोई खोजबीन ना की ।इससे अच्छा तो रमनी की मां लड़की को कुएं मे धकेल आती।"
तभी रमनी की मां जोर से चिल्लाती हुई पंडाल मे आयी और वरपक्ष की औरतों खो भला बुरा कहने लगी।
"मुझे अपनी लड़की नर्क मे नही धकेलनी ।हमने तो सोचता था कि कोई बात नही दुल्हे की उम्र बड़ी है पर इसने तो गुपचुप शादी भी कर रखी है और तीन बालकों का बाप भी हे ।"
ये सब सुनते हुए दुल्हा एक दम से तैश मे आ गया और लगा रमनी की मां को उल्टा सीधा बोलने," हां हां हमारे उपर ही झूठे इल्जाम लगाने आते है ।ये पता नही कौन है जो मेरी पत्नी होने का दावा कर रही है मै तो इसे जानता भी नही ।इसकी आड़ मे अपना कूड़ा कबाड़ हमारे पल्ले बांध रहे थे ।एक नंबर की बदमिजाज, लड़ाकू,और बदतमीज लड़की है तुम्हारी हमने सुना है ।और तुम्हारे ही गांव के लोग बता गये थे।"
इतने मे वो तीन बच्चों वाली ओरत दुल्हे के पास आकर अपना आपा पीटने लगी,"क्या बबलू के पिताजी तुम मुझे ना सही अपने बच्चों को भी नही पहचानते।इतने निर्मोही कैसे है गये ।"
बात बहुत ज्यादा बढ़ गयी थी ।वो औरत दुल्हे को अपने साथ ले जाए बिना वहां से टस से मस नही हो रही थी ।और इधर दुल्हे के घर वाले गाली गलोज और मारपीट पर उतर आये । जोगिंदर तो चाहता ही यही था कि बात बिगड़ जाए उसने भी अपने आदमियों को बुलाकर रमनी के ससुराल वालों की अच्छे से खातिरदारी कर दी।जिसका परिणाम ये हुआ बारात दरवाजे से लोट गयी ।अब इससे आगे का सीन जोगिंदर ने रमनी को समझा रखा था ।
रमनी दौड़ते हुए पंडाल मे आयी और अपने बापू के गले लगकर रोने लगी,"बापू ये क्या हो गया ।मै तो ऐसी ना थी । फिर मेरे ससुराल वालों को ये गलत ग़लत बातें किसने कही ।ओर आप लोगों को मै इतनी ही भारी लगती हूं तो मै खुद ही अपने आप को खत्म कर लेती हूं ।वैसे भी जिस लड़की की बारात लोट जाए उसका ब्याह नही हो पाता ।इससे अच्छा मे ही चली जाती हूं इस संसार से ।यह कहकर रमनी अपने घर की ओर भागी पीछे पीछे सारे घरवाले , जोगिंदर,, गांव वाले सब भाग लिए।घरमे जाकर रमनी ने अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया अ़दर से और मरनू की नौटंकी के लिए साड़ी पंखे से बांधने लगी।रमनी की मां ओर बापू चीख चीख कर कहने लगे ,"हाय राम! कोई तो बचाओ मेरी बेटी को ।देखो वो फांसी लगा लेगी । कोई तो बचाओ।"
जोगिंदर ने भाग कर दरवाजा तोड़ दिया और रमनी को पकड़ कर बाहर ले आया और सब के सामने बोला,"मै करुंगा इससे ब्याह ।सब कहते है ना कि जिसकी बारात दरवाजे से लौट जाती है उसका ब्याह नही होता,उसके मां बाप के मुंह पर कालिख पुत जाती है ।मै करूंगा रमनी से ब्याह और चाचा चाची का मुंह उजला ।मै करूंगा।"
और ये बात कहकर जोगिंदर रमनी का हाथ पकड़कर फेरों की वेदी की ओर चल दिया।
(क्रमशः)