गतांक से आगे:-
जोगिंदर ये देख कर हैरान रह गया कि जिस चिठ्ठी को वो सारे होस्टल में ढूंढ आया था वह उस कमरे मे बिछे बिस्तर पर पड़ी है और खुली पड़ी है। वह रमनी की चिठ्ठी पहचानता था ।वह पूरे चेतना मे था ऐसा नही था कि वो स्वप्न देख रहा हो क्यों कि वह जब अपने कमरे से बाहर आया था तो उसका पैर किसी चीज से टकराया था और उसे पैर मे दर्द महसूस हो रहा था।
वह खुले कमरे के अंदर जाने की सोच ही रहा था कि वही लाल जोड़े वाली लड़की जो उस रात दियों से सुस्वागतम लिखकर उसके पास बैठी उसे सूनी आंखों से निहार रही थी ।वो एकदम से पलंग के पास प्रगट हो गयी और उसे अपने पास बुलाने लगी ।
आज तो जोगिंदर सोचकर ही सोया था कि आज तो ये किस्सा खत्म करके ही रहेगा और उस लड़की से पूछकर ही रहेगा कि वह कौन है आखिर उसे ही वह क्यों दिखाई देती है ।वह निडर होकर उस कमरे मे चला गया । वहां जाते ही जोगिंदर की सांसों मे बहुत ही सोंधी सोंधी चमेली के पुष्पों की महक घुल गयी । बहुत ही साफ सुथरा कमरा था ।कमरा बिल्कुल वैसे ही था जैसे उसे सपने मे दिखाई दिया था ।उसी तरह एक पलंग बिछा था और एक ओर एक चौकी पर पानी सुराही रखी थी और नीचे फर्श पर कालीन बिछा था।
जोगिंदर को आश्चर्य हो रहा था कि इतने दिनों से बंद कमरा इतना साफ सुथरा कैसे था।इतने मे वह लाल जोड़े मे दुल्हन के वेश मे सजी लड़की बोली,"आ गये आप "
जोगिंदर एक दम से चौंका ।ये वही आवाज थी जो उसे पूरी कहानी पढ़ने को बोल रही थी और उस दिन जंगल मे भी यही आवाज उसे सुनाई दी थी। जोगिंदर ने हिम्मत कर उससे पूछा,"आप कौन है और मुझे ही क्यों दिखाई दे रही है ।"
वह लड़की एक फीकी सी हंसते हुए बोली,"मै आप को नही दिखूंगी तो और किस को दिखूंगी सरकार।"
जोगिंदर का माथा ठनका ,"ये तो उसी तरह बोल रही है जैसे चंचला राजकुमार सूरजसेन से बातचीत करती थी।वह उसे सम्बोधित करते हुए बोला ,"मोहतरमा आप तो उस कहानी की नायिका की तरह बोल रही है जैसे वो अपने आशिक से बात करती थी ।"
वह एकदम से छटपटाते हुए बोली,"मै वही तो हूं और सदियों से अपने प्रेमी पति का इंतजार कर रही हूं जो अब जाकर पूरा हुआ है ।"
जोगिंदर जोर देकर बोला,"मै समझा नही आप क्या कहना चाहती हैं।"
वह लड़की उदास स्वर मे बोली ,"मै चंचला ही हूं और आप मेरे पिछले जन्म के पति सूरजसेन है । मुझे पता था आप को उस किताब मे पूरी कहानी नही मिलेगी ।वो मिलेगी भी क्यों एक पुरुष प्रधान समाज क्या कभी औरतों के लिए कोई प्रशंसा लिखता है कभी नही और ये चारण भाट ये तो सिर्फ राजा महाराजाओं की शौर्य गाथा लिखा करते थे ।"
जोगिंदर उसे समझाते हुए बोला,"ऐसा नहीं है वो तो कुछ पन्ने फटे हुए थे इसलिए मै पूरी कहानी नही पढ़ पाया।वैसे आप तो बता ही सकती है आगे क्या हुआ ?"
चंचला ने हां मे सिर हिलाते हुए कहा," क्यों नही आप को नही बताऊंगी तो किसे बताऊंगी।आप का हक है मुझ पर क्या बीती ये जानना ।"
जोगिंदर उसकी बात ध्यान से सुनने लगा।
"जब राजा पदमसेन राजकुमार सूरज की लाश लेकर महल मे आये तो रानी रूपावती जैसे पागल सी हो गयी थी और हो भी क्यों ना ,इकलौता पुत्र और वो भी मन्नतों से उम्र के ढलते पड़ाव पर हुआ था उसकी लाश आंखों के सामने पड़ी हो तो कोई भी मां अपना आपा खो देगी। रानी मां को ये यकीन हो गया था कि ये सब उस चंचला के कबीले वालों ने किया है ।फिर सहसा उसे याद आया कि चंचला तो यही राज महल मे ही है वो दौड़ कर उस कक्ष मे आयी जहां वो चंचला को छोडकर गयी थी और बालों से घसीटते हुए मुझे बाहर आंगन मे लाकर पटक दिया तभी राजा पदमसेन भी वहां पहुंच गये और अपनी जलती हुई नजरों से मुझे देखने लगे जैसे मैने ही राजकुमार का कत्ल किया हो ।फिर ना जाने उन्हें क्या हुआ उन्होंने तत्काल सिपाहियों को बुलाकर ये फरमान जारी कर दिया
"इस लड़की के कारण ही मेरे पुत्र की जान गयी है इसे भी जिंदा रहने का कोई हक नही है ऐसा करो जिस कमरे में राजकुमार ने इसे रखा था उसी कमरे मे इसे दीवार मे चिनवा दो ।"
मै तो राजकुमार का पार्थिव शरीर देखकर ही पत्थर बन गयी थी मुझे ये भी नही पता चला कि राजा पदमसेन ने क्या आदेश दिया है । मुझे सिपाही घसीटते हुए उस कमरे मे ले गये और मै चुपचाप ये सब होता देखती रही और देखते ही देखते मुझे जिंदा दीवार मे चिनवा दिया गया । मुझे होश तब आया जब मेरी सांसें रूकने लगी और मेरे प्राण मेरे शरीर से निकलने लगे पर वो निकल तो गये पर यहां इस महल से नही जा पाये ।जाते भी कैसे मेरे पति राजकुमार सूरजसेन ने ये कहा था कि मेरी आज्ञा के बगैर तुम एक कदम भी महल से बाहर नही रखोगी । और मै सदा के लिए इस महल मे कैद हो गयी। सदियां बीत गयी मुझे तुम्हारा इंतज़ार करते ।मे कहां ढूंढती तुम्हें ।वो तो तुम उस दिन यहां से गुजरे तो मुझे तुम्हारी महक आ गयी और मै तुम्हारे साथ हो गयी।"
जोगिंदर को याद आया वह जब कालेज मे एडमिशन लेने के लिए एक बार पहले आया था तो उसे पता नहीं था कि ये होस्टल है वो कालेज जाने के लिए इस बिल्डिंग के आगे से गुजरा था ।उसे याद आया यहां से गुजरते समय वह ना जाने क्यों थोड़ी देर के लिए ठिठका भी था यहां पर उसे ऐसे लग रहा था जैसे कोई आवाज दे रहा है।
जोगिंदर प्रत्यक्ष मे उस लड़की से बोला," मै एक बात आप से पूछना चाहता हूं ये खत मैंने पूरे भवन मे ढूंढा पर ये आपके बिस्तर पर खुला हुआ पड़ा है वो कैसे?"
चंचला जोर से हंस दी और बोली,"एक प्रेमिका क्या ढूंढती है "प्यार" है ना ,बस मुझे पता नही क्यों इस चिट्ठी से प्यार की महक आ रही थी इसलिए इसे उठा लायी पर मै भी कितना मुर्ख हूं पढी लिखीं तो हूं नही मै क्या जानूं इसमे क्या लिखा है ।बस इसलिए इसे बिस्तर पर रख दिया मैंने सोचा जब आप आयेंगे तो मै इसे आप को दे दूंगी वैसे ये किस की चिठ्ठी है ?"
चंचला के प्रश्न पर जोगिंदर सकपका गया अब वो क्या बोले कि वह उस लड़की को चाहता है जिसकी चिठ्ठी है।वह बोला,"हमारे गांव की लड़की की चिठ्ठी है ।शायद कुशलक्षेम पूछा होगा।"
चंचला उदास नजरों से बोली ,"बहुत प्यार करती है तुम से वो, बाबू।"
भोर हो गयी थी जोगिंदर अपने कमरे मे नही था उसकी टोह हो रही थी।जब सब तेरह नंबर कमरे के आगे गये तो आश्चर्यचकित रह गए।
(क्रमशः)