गतांक से आगे:-
चंचला की सांस उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी जब उसने राजसी पोशाक में एक अधेड़ उम्र की औरत को अपने सामने खड़े पाया।उसने मन ही मन अनुमान लगाया कि हो ना हो ये राजकुमार सूरज की माता जी है ।उसने दोनों हाथ जोड़कर उस सामने खड़ी औरत के चरणस्पर्श कर लिए।
वो सामने खड़ी औरत और कोई नही राजकुमार सूरज की मां रूपावती थी उसने भोर के समय जब वह पंछियों को दाना डाल रही थी तभी सूरजसेन को एक कमसिन सी लड़की के साथ महल मे प्रवेश करते हुए देख लिया था ।कुछ कुछ बात तो उसे समझ आ गयी थी पर पूरी बात जानने के लिए वह उस कक्ष मे आयी थी ।उसने चरणों मे झुकी हुई चंचला को कंधों सू पकड़ कर उठाया और बोली,"तुम वही बंजारन हो ना जिसका जिक्र सूरजसेन मुझसे कर रहा था क्या नाम बताया था उसने भला……?"
" जी चंचला।" चंचला ने घबराकर कहा।
रानी रूपावती बोली,"मैने राजकुमार को कहा था इतनी जल्दबाजी ना करे ।हम कुछ दिनों मे कोई उपाय ढूंढ लेंगे तुम दोनों को एक करने का पर वो बहुत उतावला है ।जो मन मे ठान लेता है उसे पूरा करके ही दम लेता है अब इसने तुम को महल मे लाकर एक और समस्या खड़ी कर दी ।"
इतने मे रानी की नजर चंचला की मांग की तरफ गयी वो सन्न रह गयी " तुम दोनों ने विवाह भी…….
तभी बाहर से भीतर आते हुए राजकुमार सूरज ने कहा,"हां मां मै चंचला का बिछोह सहन नही कर पा रहा था इसलिए मैंने इससे गंधर्व विवाह कर लिया है ।मै ऐसा नही हूं किसी की इज्जत को अपनी इज्जत बना कर लाया हूं मां "
रानी रूपावती ने अपना सिर पीट लिया वो माथे पर हाथ रखकर बोली,"क्या चंचला के परिवार वाले इस विवाह के साक्षी है?"
"नही मां हमने शिव मंदिर मे विवाह किया है ।हमारा मन ही इस विवाह का साक्षी है ।"
रानी रूपावती पुत्र के लिए चिंतित होते हुए बोली,"ये तुमने क्या किया पुत्र इस विवाह का कोई साक्षी भी नही है और तुम अपने पिता जी को जानते ही हो फिर इसके(चंचला) घरवालों तक को नही पता कि ये कहां है प्रातः काल हो चुका है क्या कबीले मे अब तक इसकी टोह नही पड़ गयी होगी।ये बचपना छोड़ो इसे इसके खेमे मे वापस छोड़ आओ।"
राजकुमार सूरजसेन एकदम भड़क उठा,"मां आप भी … मैंने तो सोचा था आप मेरा साथ देंगी पर आप भी इसे इसके कबीले मे छोड़कर आने की बात कर रहें है "
इतना कहकर राजकुमार का गला भर आया।
अपने बेटे को एक बंजारन लड़की के लिए रोता देखकर रानी रूपावती बोली,"बेटा मै तुम्हे सही कह रही हूं बंजारों का एक उसूल होता है वे दुश्मनी और दोस्ती बड़ी शिद्दत से करते है और अब बात उनकी इज्जत पर आ गयी है माना तुम चंचला को पत्नी रूप मे ब्याह कर ले आये हो पर इस विवाह का कोई साक्षी नही है जब तक समाज साक्षी ना हो ये विवाह अमान्य है ।"
राजकुमार सूरज व्यग्र होकर बोला,"अगर दुनिया हमे जीने नही देगी तो मौत तो हमें मिला ही देगी ।आप यहां रहने दे तो ठीक है नही तो हम दोनों कही और जाकर अपनी दुनिया बसा लेंगे।"
राजकुमार की बातें सुन कर रानी रूपावती रोने लगी ,"क्या मुझे बुढ़ापे मे पुत्र विछोह सहना पड़ेगा ।आहहहह भगवान इससे पहले तू मुझे उठा ले ।"
अपनी मां का विलाप सुनकर राजकुमार सूरज द्रवित हो गया । थोड़ी दूर खड़ी चंचला ये सब देख रही थी उसे पहले ही इस बात की ग्लानि थी कि वो एक पुत्र को अपने माता पिता से दूर नही करेगी । लेकिन अब रानी रूपवती का ऐसा विलाप ओर राजकुमार सूरजसेन का यूं द्रवित होना अंदर तक कचोट गया चंचला को ।उसने आगे बढ़ कर रानी के आंसू पोंछे ओर बोली,"रानी मां आप दुखी ना हो आप जैसा कहेगी वैसा ही होगा ।मै अभी अपने कबीले मे चली जाती हूं।"
राजकुमार तड़प उठा,"नहीं तुम ऐसा नही कर सकती तुम मेरी ब्याहता हो ।मेरी अनुमति के बगैर कही नही जाओगी।"
चंचला ने बहुत समझाया पर राजकुमार ने एक ना सुनी ।चंचला ने मन ही मन विचार किया कि अभी राजकुमार थोड़ा रौष मे है जब गुस्सा शांत हो जाएगा तो अपने आप कह देंगे।
रानी बिलखती हुई अपने कक्ष मे चली गयी ।अभी प्यार का जादू राजकुमार के सिर चढ़ कर बोल रहा था ।
धीरे धीरे पूरा दिन निकल गया चंचला उसी कमरे मे बैठी रही वही राजकुमार ने उसके लिए खाना भिजवा दिया ।
चंचला को ये बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था कि उसके कारण एक मां बेटे मे अनबन हो गयी थी ।
धीरे धीरे शाम घिर आई तभी दरवाजे पर दस्तक हुई ।चंचला ने दरवाजा खोला तो सामने दासी को खड़े पाया।वह दासी रानी रूपावती की थी वह चंचला को रानी के कमरे मे बुलाकर ले गयी। वहां जाकर आधा घंटा चंचला और रानी रूपावती मे बातचीत हुई और उसके दो घंटे बाद चंचला अपने कबीले के आगे खड़ी थी ।
उधर सुबह जब जब चंचला के बापू सरदार धर्म सिंह उसे जगाने आये तो चंचला को अपने तम्बू मे ना पा कर हड़कंप मच गया । क्यों कि किसी ने भी चंचला को सांझ के बाद से नही देखा था । चंचला का बापू देर रात दूसरे गांव से खेल दिखाकर लौटा था ।कालू भी उसके साथ गया था ।पहले तो चंचला भी साथ जाती थी तमाशा दिखाने के लिए पर जब से राजकुमार सूरज से नजरें मिली थी उसका ये सब करने मे मन ही नही लगता था वह सारा दिन अपने तमबू मे पड़ी भगवान को धयाती रहती थी ।कि हे भगवान कोई तो मिलन का रास्ता निकलेगा राजकुमार से ।
और आज देखो राजकुमार की ब्याहता हैते हुए भी उसे यूं दबे पांव खेमे मे लौटना पड़ रहा था।
सुबह से भागदौड़ मची थी उसे ढूंढने के लिए कोई कह रहा था जंगली जानवर तो नही ले गया उसे उठा कर कोई कुछ तो कोई कुछ कह रहा था लेकिन सरदार की बेटी थी तो खुलकर कोई नही बोल रहा था ।
रात को जैसे ही चंचला कबीले मे पहुंची तो सबसे पहली नजर उसके पिता की उस पर पड़ी उन्होंने दौडकर उसे गले लगा लिया और बोले,"बिटिया कहां चली गयी थी ।सुबह से सारा कबीला परेशान है तुझे ढूंढ ढूंढ कर।जब मशाल की रोशनी चंचला के मुंह की तरफ की तो सरदार धर्म सिंह उसके मुंह की ओर देखता ही रह गया।
(क्रमशः)