गतांक से आगे:-
अगले दिन जोगिंदर ने फटाफट बैग मे कपड़े डाले और कालेज मे तीन दिन के अवकाश की अर्जी देकर वह गांव की बस मे बैठ गया ।जब वह जा रहा था तो नरेंद्र को कह गया था,"यार वैसे तो तीन दिन में आ जाऊंगा पर अगर ज्यादा दिन लगे तो तुम अर्जी दे देना ।"
बस गांव की ओर भागी जा रही थी ।पता नही क्यों जोगिंदर का मन बैठा जा रहा था किसी अनहोनी की आशंका उसे सताये जा रही थी उसे ऐसे लग रहा था गांव मे कुछ तो बहुत बड़ी गड़बड़ी होने वाली है ।और पता नही क्यों उसे बार बार ये अहसास हो रहा था जैसे चंचला की आत्मा अभी भी उसके साथ है ।और वो बहुत बेचैन है ।
वह बस मे बैठा सोच रहा था कि क्या पता पिताजी मेरे और रमनी के रिश्ते के लिए माने गे या नही ।पर मै किसी हालत मे भी रमनी को किसी और की नही होने दूंगा।वो मेरी है।बस मेरी। पगली मेरे प्यार को कभी समझी ही नही। बचपना कूट कूट कर भरा है उस मे ।कभी नही मानेगी कि मुझे प्यार करती है ।
ये प्यार नही तो और क्या था जब उसने मेरे शहर जाने की बात सुनी तो कैसे उदास हो गयी थी ।जब मै उससे मिलने गया बाग मे तो कैसे बात बात पर आंखों मे पानी ला रही थी।और जब मै किसी के पास बैठता था तब भी उसे जलन होती थी ।लोग यही पूछे गे "क्या यही प्यार है "
मेरा तो यही जवाब होगा "हां यही प्यार है।" जोगिंदर अपनी विचारधारा मे खोया रहा और कब गांव आ गया उसे पता ही नही चला ।बस स्टैंड पर उतर कर उसने तांगा किया और चल पड़ा हवेली की ओर।जब तांगा हवेली के आगे रूका तो जोगिंदर की मां गाय को रोटी खिला रही थी ।तांगा हवेली के आगे रूकने पर वह देखने लगी कि इस समय कौन आ गया?
जब तांगे मे से जोगिंदर को उतरते देखा तो हैरान रह गयी,"लला तुम …..कैसे …सब ठीक ठाक तो है ना ?"
जोगिंदर ने भाग कर अपनी मां के पैर छुए और लिपट कर बोला,"ओ मां मेरी भोली मां ।सारे सवाल यही देहली पर ही कर लोगी ।मै अंदर तो आ जाऊं ।इतनी दूर से आया हूं।"
जोगिंदर की मां ने खुशी के अतिरेक मे बेटे को अंदर भी आने नही दिया वही सवाल करने लगी।फिर हंसते हुए बोली,"शैतान ।शहर जा कर कोई खबर भी नहीं दी ।तेरे पिताजी चिंता कर रहे थे ।देखना आते ही गुस्सा होंगे ।"
जोगिंदर आंगन मे बिछी चारपाई पर बैठ गया और मां का भी हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया ।"मां मै बहुत बुरी तरह से फंस गया था ।कल ही टेलीग्राम किया था ।वो तो अचानक आना पड़ गया ।"
जोगिंदर की मां बोली,"रूक पहले कुछ खा पी ले फिर बातें करूंगी देख कितना दुबला हो गया है ।*
ये कहकर वह रसोई घर में चली गयी। जोगिंदर की आंखें नम हो गयी वो सोचने लगा,"मां को ऐसे ही नही लोग भगवान का दर्जा देते ,वो मन की सब जान जाती है बिना कुछ बताए । मैंने अभी चंचला के विषय में कुछ बताया भी नहीं और मां ने भांप लिया कि मै परेशान हूं ।कमजोर हो गया हूं।तभी तो कहां गया है "मांवा ठंडियां छांवा"।"
जोगिंदर की मां मेवों से भरा दूध का गिलास और आलू के परांठे ले आई और बोली,"ले अच्छी तरीके से खा ले ।लगता है शहर मे खाने पीने का ध्यान नही रखता है तू।"
जोगिंदर ने डट कर खाना खाया और फिर सुस्ताने के लिए लेट गया ।इतनी देर मे मां घर का काम निबटा कर उसके पास आ बैठी और बोली,"अब बता क्या बात थी जो बिना खबर किये ऐसे आ गया वहां शहर मे किसी से कोई बात हो गयी है क्या?"
जोगिंदर मां से रमनी के लिए बात करने की भूमिका बनाने लगा फिर बोला,"हां मां तुम्हें कुछ बताना था शहर मे मेरे साथ क्या हुआ मै जाने से पहले ही तुम्हें बताना चाहता था कि मुझे एक सपना आया था जिस दिन मैं गया उससे पहले वाले दिन।"और इस तरह से जोगिंदर ने चंचला वाली सारी बात अपनी मां को बता दी ।जिसे सुन कर उसकी मां का चेहरा पीला पड़ गया और वह कांपते हुए बोली,"लला ये तो बहुत बुरा हो गया ।तू तो बाहरवालियों(गांव मे जब किसी का पैर चौराहे पर आ जाता है तो उसे बाहरवालियों की फेंट मे आया बोलते है) की फेंट मे आ गया है ।चल कल ही तुझे ओझा जी के पास ले चलूंगी। झाड़ फूंक कर देंगे।"
"ओहो मां ।तुम भी ना ऐसे ही घबरा जाती हो ।वो आत्मा मुझ से कुछ चाहती है अगर उसने मुझे कुछ नुकसान पहुंचाना होता तो वो अब तक पहुंचा देती।पर नही बस वह मुझे अपने पास बुलाती है ।और कल तो उसने मुझे ये भी बताया कि मै उसका पिछले जन्म का पति हूं। मां मैंने पढ़ा है उस किताब मे उसके साथ बहुत बुरा हुआ था ।और बाद मे उसने मुझे बताया कि उसके ससुर ने उसे उसके पति की मौत का जिम्मेदार ठहराकर ज़िंदा दीवार मे चीनवा दिया था।
चलो मां उसका तो बाद में सोचेंगे पर ये बताओं रमनी का क्या हाल है । कुछ ऊधम मस्ती करती है बग़ीचे मे या नही।"
जोगिंदर ने बात को फटाफट बदल कर रमनी की ओर मोड़ दिया।
उसकी मां बोली,"हां आई थी तीन चार दिन पहले तेरा शहर का पता पूछ रही थी । हां तुझे पता है उसकी सगाई हो गयी है उसके मामा ने करवाई है। और लड़के वाले जल्दी मचा रहे है शायद इसी हफ्ते उसके हाथ पीले कर दे उसके माता पिता।"
इतना सुनते ही जोगिंदर का कलेजा मुंह को आ गया और एक आंसू बह कर सिर पर हाथ फेर रही मां के हाथों मे समा गया।वो ये देखकर हैरान रह गयी कि रमनी की शादी की सुनकर ये क्यों रो रहा है ।उसे कुछ कुछ मामला समझ आने लगा था पर वह जोगिंदर के मुंह से सुनना चाहती थी ।वह बोली,"क्यों रे ! तुझे इतना दर्द क्यों हो रहा है।ये बात सुनकर ?"
जोगिंदर का गला भर आया वह रूंधे गले से ही बोला,"मां तुम अभी भी नही समझी मै क्यों आया हूं ऐसे जल्दबाजी में। हां हां हां मै रमनी को चाहता हूं ओर उससे शादी करना चाहता हूं। यहां मै उसकी शादी रोकने आया हुं।"
जोगिंदर की मां घबराते हुए बोली ,"बेटा तुम भी बचकानी बात कर रहे हो लग्न सगाई का मूहर्त निकल चुका है और तुम बात कर रहे हो ब्याह रोकने की ।"
जोगिंदर बोला ,"देखती जाओ मां मै ये कमाल कैसे करता हूं।"
(क्रमशः)
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