रमनी की सांसे धौकनी की तरह चल रही थी।उसे यही लग रहा था कि अब जोगिंदर उससे कहेगा।"मेरी रमनी मै तुम बिन शहर कैसे रहूंगा?"
वह उसकी ओर देख रही थी तभी जोगिंदर बोला,"सुन रही है ना ।मै शहर जा रहा हूं पीछे से हर किसी से बतकुटी मत करना ।मै देखता हूं तू हर किसी से जल्दी घुलमिल जाती है ।रमनी तुझे नही पता ये दुनिया ठीक नही है सब एक जैसे नही होते । बहुत से लोगों की तुम पर नजर रहती है ।खासकर वो नुक्कड़ वाला लाला है ना जिसकी दुकान से तुम सामान लाती हो उसका लड़का सोनू बहुत बुरी तरीके से ताकता है तुम्हें।अब मै नही रहूं गा तुम्हें बचाने के लिए। मैंने वैसे उसके स्क्रू कस दिए है । लेकिन हर बार मै तुम्हे शहर से आकर नही बचा सकता ।अब तुम बच्ची नही हो ।अपना ध्यान रखना।"
रमनी उसे बड़े गौर से देख रही थी और सोच रही थी "कितना बेदर्दी है मेरी इतनी चिंता किसी की नजर तक भी मुझ पर बर्दाश्त नही कर सकता ।पर मुंह से कभी नही फूटेगा कि रमनी मै तुम्हे दिलोजान से चाहता हूं।वैसे गांव मे इतनी लड़कियां है मेरी ही इतनी चिंता क्यों?"
रमनी मन ही मन मुस्कुरा उठी।पर हाय राम!इस मन का क्या करे ।वो तो ये सोचकर ही बाहर निकलने को हो रहा था कि उसे जोगिंदर छोड़ कर शहर चला जाएगा।
जोगिंदर जोर से बोला,"सुना के नही तुने ।मेरी सौगंध है तुझे अगर किसी से ज्यादा बात की तो।और हां चाची का कहना मानना और जब मै छुट्टी मे घर आऊं तो घरके काम सीख लेना।"
रमनी हां मे सिर हिलाने लगी।
दोनों ही एक दूसरे के मन की बात जानते थे ।एक दूसरे से दूर होने मे जान निकलती थी दोनों की ।पर कहेंगे नही एक दूसरे को।रमनी लाज से दोहरी हो जाती थी और जोगिंदर को पिता जी का डर और भविष्य की चिंता थी।
जहां इतना हक हो वहां प्यार ना हो ये हो ही नही सकता।
"अब मुझे ये बता तू यहां बैठ कर क्यों रो रही थी ।चाची ने मारा है क्या?"जोगिंदर चिंतित होते हुए बोला ।
रमनी एक दम से चिहुंकी,"तू क्या सुनना चाहता है । क्या मै तेरे शहर जाने से दुखी होकर रो रही थी ।मेरी बला से तू कल जाता आज ही चला जा । हां हुई है मेरी मां से बात ….बोल तू बचायेगा मुझे शहर से आकर बार बार।"
रमनी का गला रूंध गया । जोगिंदर समझ गया कि रमनी उसके लिए ही रो रही है ।पर अभी समय नही था उसके पास ।बस वह रमनी को जाता जाता ये बोल गया,"ऐय सुन मोटी ।मै सुबह सात बजे शहर के लिए निकलूंगा ।समझ गयी।"
यह कहकर जोगिंदर वहां से चल दिया और मन ही मन सोचने लगा अगर रमनी कल मुझे जाते हुए देखने आई तो समझो मुझे प्यार करती है।और वह मुस्कुराते हुए चल दिया।
रमनी दूर तक जोगिंदर को जाते हुए देख रही थी । आंखों मे आंसू भर कर मन ही मन सोचने लगी,"निर्मोही चाहता भी है हक भी रखता है पर कहेगा नही ।मै भी रमनी हूं अगर इसके मुंह से ना कहलवाया तो मेरा नाम रमनी नही मुझे ऐसे तड़पाने की सजा तुम्हें जरूर मिलेगी।"
वहां से चल कर जोगिंदर पुलिस थाने पहुंचा वहां थाने मे अभी अभी एस एच ओ आकर बैठे ही थे ।गांव के जागीरदार के बेटे को सुबह सुबह आया देखकर आश्चर्य से वे जोगिंदर की ओर देखने लगे। जोगिंदर ने जाकर एस एच ओ को नमस्कार किया और सामने कुर्सी पर बैठ गया।वैसे जोगिंदर ने प्रथम स्थान पर आ कर पूरे गांव का नाम रौशन किया था इसलिए उसे सब जानते थे तभी वो एस एच ओ बोला,"जी जोगिंदर जी बताइए क्या सेवा करे आप की?"
जोगिंदर हाथ जोड़कर बोला,"सर बस आप से एक काम था और बड़ी उम्मीद से आया था ।मै आगे की पढ़ाई पढ़ने शहर जा रहा हूं पीछे से बस ये ध्यान रखें कि मेरे पिता जी को जागीदारी मे कोई समस्या ना आये । क्योंकि मुझे अपने चाचा ,ताऊ पर जरा भी भरोसा नही है मुझे आप से मेरे पिताजी की सिक्योरिटी चाहिए।"
एस एच औ बोला,"ऐसा है जोगिंदर जी वैसे जनता की हिफाजत करना ही हमारी ड्यूटी है पर अब आपने बता दिया है तो हम दो सिपाहियों को आपके घर पर तैनात कर देते है।ताकि आप के पिता की सुरक्षा की जा सके।"
जोगिंदर हाथ जोड़कर बोला,"बहुत बहुत धन्यवाद सर आप से यही उम्मीद थी ।"
यह कहकर जोगिंदर थाने से बाहर आ गया ।अब उसका मन शांत था क्योंकि वह रात मे जिस काम के लिए बैचेन था वो काम दोनों ही पूरे हो गये थे अब तो बस शहर जा कर कैसे व्यवस्था होगी ये देखना था।
जोगिंदर यही सोचता सोचता नरेंद्र के घर की ओर जा रहा था ।वह अभी उसके घर पहुंचा ही था कि उसे अपने चाचा रिछपाल उसके घर से बाहर निकलते हुए दिखाई दिए। जोगिंदर को बड़ी हैरानी हुई। वह सोच मे पड़ गया कि चाचा रिछपाल नरेंद्र के घर क्या कर रहे थे।
उधर नरेंद्र ने भी ये देख लिया था कि जोगिंदर देख चुका है अपने चाचा को उनके घर मे ।वह दौड़कर जोगिंदर के पास आया और मुंह बनाकर बोला,"क्या यार ये तुम्हारे चाचा भी जब देखो मुंह उठाकर चले आते है हमारे घर । उन्हें पता है कि मै तुम्हारा दोस्त हूं बस मुझसे तुम्हारे घरके हालचाल पूछने आ जाते है ।भाई मैंने कुछ नही बताया।पूछ रहे थे कि जोगिंदर शहर जा रहा है क्या?, पढ़ाई करने जा रहा है ।फलाना ढिमका ना।
नरेंद्र मुंह बना कर बोला ।
जोगिंदर को बात हजम तो नही हुई पर उसे भी शहर मे एक साथ चाहिए था और वो साथ अगर गांव मे साथ पढ़े दोस्त का हो तो क्या कहना। इसलिए बस इतना ही कहा,"जाने दे ना यार।बस तू इस बात का ध्यान रखना कि हमे कल सुबह सात बजे शहर के लिए निकलना है । वहां कालेज के एक प्रचार्या से मेरी बात हो गयी थी वो सब व्यवस्था देख लेंगे।"
नरेंद्र से कुछ समय बतला कर जोगिंदर घर की ओर चल दिया।इन सब बातों मे दोपहर हो चुकी थी ।जब जोगिंदर घर पहुंचा तो मां ने उसकी पसंद की छोले पूरी और खीर बनाईं थी ।उसने जी भरकर सब चीजें खाई और आराम करने अपने कमरे मे आ गया।अभी उसे लेटे दस मिनट ही हुए थे कि नींद ने उसे अपने आगोश में ले लिया। जोगिंदर को एक सपना दिखाई दे रहा था ।जिस से उसके रोंगटे खड़े हो गये।
(क्रमशः)