गतांक से आगे:-
जोगिंदर को लगातार पायल की आवाज आ रही थी ।उसने नरेंद्र की तरफ देखा वह अपनी मस्ती में चला जा रहा था।उसे आश्चर्य हुआ कि लड़कों के हास्टल मे पायल की आवाज और उसे ही वो सुनाई दे रही है नरेंद्र को क्यों नहीं?
उसने नरेंद्र को आवाज दी,"अबे सुन नरेंद्र। क्या जो मै सुन रहा हूं वो तुम्हे भी सुनाई दे रहा है?"
नरेंद्र चौंकते हुए बोला,"क्या सुन रहा है भाई। यहां तो चिड़िया चहचहा रही है या गिलहरियां दौड़ रही है। तुम्हें कुछ और भी सुनाई दे रहा है क्या?"
जोगिंदर पहले ही सारी बातें नरेंद्र को बताना चाहता था लेकिन अब तो उसे आवाजें भी आने लगी थी तो नरेंद्र को बात बताना जरूरी था वह बोला,"यार क्या बताऊं तुझे ,मुझे पायल की छनछनाहट सुनाई दे रही है।"
नरेंद्र उसकी तरफ आश्चर्य से देखने लगा। क्यों कि उसे कोई पायल की आवाज नही आ रही थी फिर जोगिंदर को कहां से पायल की आवाज आ रही थी।उसने जोगिंदर से पूछा,"क्या अब भी आ रही है पायल की आवाज?"
जोगिंदर ने हां मे सिर हिलाया।
जोगिंदर उससे बोला,"मै तुझे कल ही बताने वाला था कि मुझे कल दोपहर जब खाना खा कर सोया था तो एक सपना दिखाई दिया था ।तू विश्वास नही करेगा ।मै कभी यहां नही आया था पर मुझे कल सपने मे यही हास्टल का अपने कमरे से लगा गलियारा दिखाई दिया था और जो चौकीदार बता रहा था कि कमरा नं 13 काफी समय से बंद पड़ा है वो खुला दिखाई दिया और….और उस कमरे मे मैने एक लड़की को देखा जो रो रही थी।मै जैसे पानी ढूंढ रहा था ।मै उस कमरे मे गया वहां सुराही रखी थी जैसे ही मै पानी की तरफ बढने लगा उस लड़की ने रोना बंद कर दिया और वह मुड़ने ही वाली थी मेरी तरफ तभी मेरी आंख खुल गयी।
वो लड़की जो कपड़े पहनी थी वो आजकल के माहौल के नही थे ।वो राजकुमारियों जैसे कपड़े पहने थी।
मै पहले तो सोच रहा था शायद ये मेरा वहम है शायद मुझे प्यास लगी थी इसलिए मुझे ऐसा सपना आया पर जब कल रात को मै सो रहा था तो मुझे लगा जैसे वही लड़की मुझे "सूरज उठो ना " ऐसे कहकर बुला रही है फिर वो रोने लगी ।यार मुझे तब और आश्चर्य हुआ जब मैंने वही सपने वाली जगह यहां हास्टल मे देखी।"
नरेंद्र बड़ी गम्भीरता से ये सब सुन रहा था । फिर वह बोला,"यार हो सकता है ये तेरा वहम हो अकसर सारे महलों के गलियारे एक जैसे होते है ।ये जरूरी नही जो तुमने देखा हो वो यही हो। मुझे लग रहा है तू घर को काफी मिस कर रहा है शायद इसलिए तुझे ये भ्रम हो रहे है ।पहले कभी रहा नही ना अकेले।तू चिंता ना कर मै हूं ना तेरे साथ।"नरेंद्र ने ये कह कर उसे ढांढस बंधाई।
जोगिंदर भी यही सोचने लगा कि शायद पहली बार घर से दूर यहां शहर मे अकेले आया है इसलिए ये भ्रम चित लगा है।
दोनों थोड़ी देर हास्टल के परिसर मे ठहर कर अपने कमरे मे आ गये। जोगिंदर बोला,"चल यार यहां यहां के बाज़ार चलते है ।नये सत्र की किताबें लानी है और कुछ छोटा मोटा सामान लाना है जो गांव मे नही मिला।"
दोनों बाजार जाने के लिए तैयार हो रहे होते है कि तभी साथ के कमरों मे शोरगुल सुनाई देता है तो वे सोचते है शायद कालेज की छुट्टी हो गयी है वरना सायं सायं करते हासटल मे रौनक हो गयी थी।तभी उनका दरवाजा किसी ने खटखटाया।
नरेंद्र ने उठकर दरवाजा खोला तो सामने दो लड़के खड़े थे ।एक धोती कुर्ते मे था तो एक ने पेंट शर्ट डाल रखी थी। उन्होंने आते ही अपना परिचय दिया "भाई मेरा नाम कमल और ये नोबीन है । कलकत्ते से यहां पढ़ने आया है और आप लोग ?" उस पेंट शर्ट वाले लड़के ने तुरंत प्रश्न दागा।
जोगिंदर ने अपना और नरेंद्र का परिचय दिया और बताया कि हम आज ही कालेज मे एडमिशन लिए है।
नोबीन और कमल उनसे एक कमरा छोडकर रहते थे मतलब कमरा नं दस मे । थोड़ी ही देर मे वे चारों एक दूसरे से ऐसे घुल मिल गये जैसे कभी से जान पहचान हो।
जोगिंदर कमल से बोला ,"भाई यहां पर नये सत्र की किताबें कहां मिलेगी?"
कमल बोला,"यार तुम लोग लाइब्रेरी से इशू करवा लो बेकार खरीदने के झंझट मे पड़ रहे हो ।वैसे भी किताबें पढ़ता कौन है यहां।"
यह कहकर कमल खिलखिला कर हंस पड़ा।
तभी नोबीन बोला,"चलो मोशाय।वरना वो भुक्कड़ सारे रशोगुलले खा जाएगा कल ही दादा भिजवाएं है।"
इतना कहकर दोनों अपने कमरे की ओर दौड़ पड़े।
उन्हें देखकर जोगिंदर बोला,"क्यों नरेंद्र अच्छे है ना दोनों। मुझे तो इन की दोस्ती भा गयी ।"
नरेंद्र चिढ़ते हुए बोला,"बस बस एक ही मुलाकात मे इतना विश्वास मत कर पहले जाने तो कैसे बंदे है ।"
नरेंद्र कभी नही चाहता था कि जोगिंदर किसी से ज्यादा घुले मिले।वो उसे अपने पर निर्भर रखना चाहता था।
दोनों आज पहला दिन था इसलिए कमल के बताए अनुसार किताबें लाइब्रेरी से इशू करवाने की सोच कर बाजार चले गये जो थोड़ा बहुत जोगिंदर को सामान खरीदना था वो लेने।
बहुत ही पुरानी ऐतिहासिक नगरी थी उज्जैन। बाजार हाट सब पुराने तरीके से बने हुए थे।वे सामान लेकर घुमते हुए शहर से दूर निकल गये। तभी जोगिंदर को ऐसे लगा जैसे कोई उसे बुला रहा है उसकी पीठ पीछे उसे ऐसे लगा जैसे कान मे कोई फुसफुसाया।
उसे लगा नरेंद्र कुछ कह रहा है तो वह बोला,"हां बोल। कहां चलना है।"
नरेंद्र एकदम चौंका,"क्या बोलूं मैंने तो कुछ कहा ही नही।"
जोगिंदर आश्चर्य से उसे देखते हुए बोला,"चल बकवास बंद कर मै पहले ही परेशान हूं । मुझे कभी अजीब सा सपना दिखाई देता है तो कभी कोई सूरज कहकर बुलाता है तो कभी पायल की छनछन सुनाई देती है।"
नरेंद्र उसे रोक कर बोला,"सच यार मै पिछले पंद्रह मिनट से तेरे साथ चुपचाप चल रहा हूं।"
जोगिंदर का सिर घुमने लगा वो बोला,"यार अभी अभी किसी ने मुझे कहा "सुनो मेरे साथ वहां चलों।"
अब नरेंद्र को भी डर लगने लगा था क्योंकि वो जहां खड़े थे वहां चारों तरफ केवल जंगल ही जंगल था।शाम भी घिर आई थी । होस्टल के नियमानुसार उन्हें पांच बजे तक एंट्री ले लेनी थी होस्टल मे ।ये वार्डन की सख्त हिदायत थी।वे दोनों होस्टल की तरफ चल पड़े।
(क्रमशः)