shabd-logo

लक्ष्मण चरित्र - भाग - १९ (उन्नीस)

22 मई 2022

40 बार देखा गया 40

*लक्ष्मण जी* तो जान ही गये थे कि राजा भरत अपनी संपूर्ण सेना के साथ चित्रकूट आ गए हैं |  *लक्ष्मण जी* का दृष्टिकोण परिवर्तित हो गया , अपने प्रभु श्रीराम की असुरक्षा की भावना उनके हृदय में घर बना गई | वे श्री राम के पास पहुंचे तो परंतु पूर्व संस्कार के कारण कुछ (भरत के प्रति ) कह नहीं पाए | *माया* जब आक्रमण करती है तो *जीव* को यदि कोई बचा सकता है तो वह उसके संस्कार ही हैं | *लक्ष्मण जी* का संस्कार उनको *माया* के आक्रमण से बचा रहा है | भगवान श्री राम बैठे हैं तभी कुछ बनवासियों ने आकर सेना सहित भरत के आगमन की सूचना बताई | श्रीराम सोच में पड़ गये कि सेना लेकर भरत के आने का प्रयोजन क्या है ? श्री राम भरत के विषय में चिंतन कर रहे हैं | जब हम किसी विषय पर चिंतन में मग्न हो जाते है तो चिंतन के भाव भी चेहरे पर परिलक्षित होने लगते हैं | आज श्रीरामजी भरत के आगमन के विषय पर चिंतन कर रहे हैं तो उनके चेहरे पर चिंता स्पष्ट दिखने लगी | *लक्ष्मण जी* ने भगवान को चिंतित देखकर के हाथ जोड़कर कहा कि हे भगवन ! :----

*बिनु पूछे कछु कहऊँ गोसाईं !*
*सेवक समय न ढीठ ढिठाई !!*
*तुम्ह सर्वग्य सिरोमनि स्वामी !*
*आपनि समुझि कहउँ अनुगामी !!*

*लक्ष्मण जी* भगवान श्रीराम से कहते हैं कि :- हे प्रभो ! यद्यपि आपने हमसे कुछ पूछा नहीं है फिर भी मैं कुछ कहना चाहता हूं |  यह मेरी ढिठाई भी हो सकती है परंतु यदि समय पर सेवक उचित कहे तो उसे ढीठ नहीं कहा जाता |  हे प्रभो ! आपको सर्वग्य हैं सब कुछ जानते हैं परंतु मैं तो सेवक ठहरा ! मेरे हृदय में जो बात है वह मैं कहूंगा अवश्य | हे करुणावरुणालय ! आप तो समदर्शी हैं शत्रु एवं मित्र में भी भेद नहीं कर पाते हैं तथा अपने ही समान सबको मानना आपका स्वभाव है परंतु हे भगवन ! प्रत्येक मनुष्य आप की भांति नहीं हो सकता , क्योंकि यह संसार विषय वासनाओं से युक्त है | *लक्ष्मण जी* कहते हैं :---

*जगत में जीव भयउ संसारी !!*
*विषय वासनाओं में फंसकर मगन भये नर नारी !!*
*नीति बतैया नीति को भूले , भूले बल बलधारी !*
*काम क्रोध मद लोभ से जकड़े , अपनी नियत विसारी !!१!!*
*प्रभुता पाकर मद में झूमे , नघुष भये ब्यभिचारी !*
*भयो चंद्रमा गुरुतियगामी , बेन अधम भे भारी !!२!!*
*देवराज अरु सहसबाहु भी , बच न सके बलधारी !*
*नृपति सत्यव्रत भये त्रिशंकु , अपने मद अनुसारी !!३!!*
*आज भरत प्रभुता के मद में , सेना साजि संवारी !*
*"अर्जुन" जग में प्रभुता का मद सब मद ते अधि भारी !!४!!*

*लक्ष्मण* की बात सुनकर श्रीराम ने कहा | *हे लक्ष्मण* !  तुम क्या कह रहे ? हो विचार कर लो कि तुम यह वक्तव्य भरत के लिए दे रहे हो | *लक्ष्मण जी* ने कहा भैया क्षमा कीजिएगा ! मैं अवश्य ही यह भरत के लिए ही कह रहा हूं क्योंकि वह अब आपका प्यारा भरत नहीं रहा बल्कि अब अयोध्या का राजा भरत है | भैया ! उससे राजमद संभाला नहीं गया और वह बन में आप को असहाय समझ कर मारने आ रहा है , जिससे कि उसका राज्य निष्कंटक हो जाय |  वह यह समझ रहा होगा कि श्री राम आज बन में अकेले हैं उन्हें मार देना ही ठीक है नहीं तो चौदह वर्षों के बाद पुनः अयोध्या का राज्य उन्हें वापस करना पड़ेगा | श्री राम भगवान ने कहा कि *लक्ष्मण* भरत को मैं जानता हूं वह ऐसा सोच भी नहीं सकता |  *लक्ष्मण जी* ने कहा :- भैया !  यदि ऐसा न होता तो सेना साथ में क्यों लेकर आता ?? विचार कीजिएगा की *माया* कैसे आक्रमण करती है | पहले श्री राम के प्रति *मोह* हुआ *लक्ष्मण जी* को श्री राम की सुरक्षा का *भय* हो गया | *माया* जब आक्रमण करती है तो मनुष्य कितना भी विवेकी क्यों न हो वह मूढ़  हो जाता है | आज *लक्ष्मण*  को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भरत श्रीराम का अनिष्ट करने के उद्देश्य चित्रकूट आ रहा है | अपने प्रिय के अनिष्ट की आशंका में  *लक्ष्मण जी* स्वयं को संभाल नहीं सके और उन पर *क्रोध* ने धावा बोल दिया |  *लक्ष्मण जी* क्रोध में भरकर कहते हैं | भरत नें सब कुछ तो ठीक किया परंतु श्री राम को वन में अकेला समझना उसकी बहुत बड़ी भूल है | गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं :---

*एतना कहत नीति रस भूला !*
*रन रस विटपु पुलक मिस फूला !!*
*प्रभु पद बंदि सीस रज राखी !*
*बोले सत्य सहज बल भाषी !!*

*लक्ष्मण जी* को जब *क्रोध* आया तो वे समस्त नीतियां भूल गए | जब मनुष्य *क्रोध* में होता है तो उसे संसार के सारे नाते - रिश्ते , संस्कृति - संस्कार आदि कुछ भी याद नहीं रह जाता | *क्रोध* की आँधी सब कुछ उड़ा देती है | हमने क्या बिगाड़ा ? इसका आंकलन क्रोध शांत होने के बाद ही हो पाता है परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी होती है |  आज *लक्ष्मण जी* क्रोधातिरेक में भरत का प्रेम एवं नाता सब भूल गए उनका शरीर वीररस से भर गया और उन्होंने भगवान श्री राम के चरणों की वंदना करके अपने बल का बखान करना प्रारंभ कर दिया | *माया* के क्रम को समझने की आवश्यकता है |  भगवत्प्रेमी बंधुओं | जब *मोह* हुआ तो *भय* उत्पन्न हुआ , फिर *क्रोध* ने अपना प्रभाव दिखाया *क्रोध* जब मनुष्य पर प्रभावू हो जाता है तो *माया* का अगला अनुचर *अहंकार* मनुष्य को अपने प्रभाव में ले लेता है | *क्रोध* में मनुष्य को अपने अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता | *अहंकार* उत्पन्न होने पर *एको$हं द्वितीयो नास्ति* की भावना मनुष्य को पतन की ओर ले कर चल पड़ती है | यहां पतन का अर्थ यह नहीं हुआ कि मनुष्य की मृत्यु हो जाती है या मनुष्य समाप्त हो जाता है बल्कि पतन का अर्थ यह है कि मनुष्य *अहंकार* में अपने वक्तव्य को नहीं संभाल पाता है जिससे कि वह समाज में दूसरों की नजरों से गिर जाता है जिसे उसका पतन ही समझा जाना चाहिए | आज *लक्ष्मण जी*  क्रोध के वशीभूत होकर अहंकार में अपने ही बल का बखान करने लगे |

*शेष अगले भाग में:----*

25
रचनाएँ
श्री लक्ष्मण चरित्र
0.0
त्रेतायुग में पृथ्वी का भार उतारने के लिए अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ जी के यहाँ श्रीहरि नारायण ने चार रूपों में अवतार लिया ! शेषावतार श्री लक्ष्मण जी जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त श्री राम जी की छाया बनकर रहे ! लक्ष्मण जी का जीवन चरित्र बहुत ही मर्यादित एवं सेवाभाव से परिपूर्ण रहा ! श्री लक्ष्मण जी की जीवनगाथा लिखने का साहस तो हम में नहीं है क्योंकि लक्ष्मण जी "सकल जगत आधार" हैं फिर भी हमारी ओर से एक पिपीलिका प्रयास के रूप में श्री लक्ष्मण जी का चरित्र प्रस्तुत है
1

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - १ (एक)

2 मई 2022
0
0
0

सनातन धर्म में *रामायण एवं महाभारत* दो महान ग्रंथ है , जहां महाभारत कुछ पाने के लिए युद्ध की घोषणा करता है वही रामायण त्याग का आदर्श प्रस्तुत करती है |  मनुष्य का आदर्श क्या होता है ?  अपने जीवनकाल मे

2

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २ (दो)

2 मई 2022
0
0
0

एक मानव की मर्यादा क्या होती है इसका चित्रण हमको *लक्ष्मण जी* के चरित्र में विधिवत देखने को मिलता है ! यदि *समर्पण भाव* की झलक देखने की लालसा हो तो हमें *लक्ष्मण जी* के चरित्र में देखने को मिलती है |

3

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - ३ (तीन)

2 मई 2022
0
0
0

हम *लक्ष्मण जी* के जीवन के रहस्यों को उजागर करने का प्रयास करते हुए उनकी विशेषताओं पर चर्चा कर रहे हैं !  *लक्ष्मण सों वीर धीर साहसी प्रतापवान ,*                     *अतुलित बलशाली न देखा जहान में

4

लक्ष्मण चरित्र भाग - ४ (चार)

4 मई 2022
0
0
0

*लक्ष्मण जी* के बिना श्री राम जी का चरित्र अधूरा है | भगवान श्रीराम यदि पूर्ण परमात्मा है तो उनको पूर्णत्व प्रदान करते ही *श्री लक्ष्मण जी* | *लक्ष्मण जी* के बिना श्री राम जी का जीवन भी वैसे ही है

5

लक्ष्मण चरित्र भाग - ५ (पाँच)

4 मई 2022
0
0
0

*श्री लक्ष्मण जी* भगवान श्री राम को पूर्णता प्रदान करते हैं , यदि *लक्ष्मण* ना होते तो शायद भगवान श्री राम एवं भगवती सीता का मिलन कदाचित कठिन था | पुष्प वाटिका जब *लक्ष्मण जी* ने देखा कि:--- *"भये

6

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - ६ (छ:)

5 मई 2022
0
0
0

*श्री लक्ष्मण जी* ने जो आधारशिला रखी उसी पर चलकर श्री राम ने विशाल शिव धनुष का खंडन करके सीता जी द्वारा जयमाला ग्रहण की |  जनकपुर वासियों में अपार प्रसन्नता फैल गई , महाराज जनक एवं महारानी  सुनैना का

7

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - ७ (सात)

5 मई 2022
0
0
0

महाराज जनक की सभा में *लक्ष्मण जी* एवं परशुराम जी का घनघोर वाकयुद्ध हुआ | परशुराम जी इतने ज्यादा क्रोध में थे कि *लक्ष्मण जी* के इशारे को समझना तो दूर सुनना भी नहीं चाहते थे |  *जैसा कि यह सत्य है कि

8

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - ८ (आठ)

5 मई 2022
0
0
0

जनकपुर में *श्री लक्ष्मण जी* के जीवन में आई उर्मिला जी | *लक्ष्मण जी* का चरित्र यदि इतना देदीप्यमान हुअा तो उसमें उर्मिला जी की प्रमुख भूमिका थी | *जिस प्रकार रामराज्य के सूत्रधार लक्ष्मण जी हा उसी प्

9

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - ९ (नौ)

7 मई 2022
0
0
0

रामायण में *लक्ष्मण जी* का चरित्र बहुत ही सूक्ष्म दर्शाया गया है |  यह भी सच है कि जितना महत्व *भरत जी* का है उससे कम *लक्ष्मण जी* का नहीं है | दोनों ही अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं परंतु यदि साहित्यि

10

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - १० (दस)

7 मई 2022
0
0
0

*लक्ष्मण जी* को गोस्वामी तुलसीदास जी ने *चातक* कहा है और गोस्वामी जी का यह चतुर *चातक* देखना हो को *दोहावली* में देखा जा सकता है , क्योंकि यह *चातक* तो स्वयं गोस्वामी जी का अंतः करण हा जो *चातक* के रू

11

लक्ष्मण चरित्र - भाग - ११ (ग्यारह)

11 मई 2022
0
0
0

*लक्ष्मण जी* को यदि गोस्वामी जी *चातक* कहकर यह प्रतिपादित करते हैं कि लक्ष्मण कि ऐसे *चातक* हैं जो श्री राम रूपी स्वाति नक्षत्र के अतिरिक्त कुछ भी ग्रहण नहीं कर सकते अपितु श्री राम जी के लिए सर्वस्व

12

लक्ष्मण चरित्र - भाग - १२ (बारह)

21 मई 2022
0
0
0

*लक्ष्मण जी* श्री राम जी की आज्ञा मिलते ही दौड़ते हुए अपनी माता सुमित्रा के पास पहुंचते हैं | उन्होंने अपनी मैया को प्रणाम तो किया परंतु उनका मन राघवेंद्र सरकार में ही लगा था | अपने पुत्र *लक्ष्मण* के

13

लक्षमण चरित्र - भाग - १३ (तेरह)

21 मई 2022
1
0
0

*लक्ष्मण जी*  अपनी मैया सुमित्रा के सामने खड़े होकर उनके अमृतमयी वचनों को सुन रहे हैं | त्याग की प्रत्यक्ष मूर्ति मैया सुमित्रा ने कहा कि *लक्ष्मण*  मैंने सुना है कि तेरा भैया राम नारायण का अवतार है औ

14

लक्ष्मण चरित्र - भाग - १४ (चौदह)

21 मई 2022
1
0
0

लक्ष्मण जी* अपनी माता सुमित्रा से विदा लेकर प्रभु श्रीराम के पास प्रमुदित मन से पहुंच गये | *गये लखन जहं जानकिनाथू !* *भे मन मुदित पाइ प्रिय साथू !!* आज श्री राम के साथ बन जाने का अवसर पाकर *लक्ष्म

15

लक्ष्मण चरित्र - भाग - १५ (पन्द्रह)

21 मई 2022
0
0
0

श्रीराम मैया कौशल्या के भवन से जैसे ही चलने को तैयार हुए तो सीता जी ने पूछा :- हे नाथ ! अब कहां चल रहे है ? श्रीराम ने कहा ;-  अब हम पिताश्री की चरण वंदना करके वन को प्रस्थान करेंगे ! सीता जी ने कहा :

16

लक्ष्मण चरित्र - भाग - १६ (सोलह)

21 मई 2022
1
0
0

भगवान श्री राम *लक्ष्मण* और सीता जी जब पिता महाराज दशरथ से आज्ञा एवं विदा लेने गये तो दशरथ जी ने सुमन्त्र को आदेश दिया :--- *सुठि सुकुमार कुमार दोउ , जनक सुता सुकुमारी !* *रथ चढ़ाइ देखराउ वन ,

17

लक्ष्मण चरित्र - भाग - १७ (सत्रह)

22 मई 2022
0
0
0

केवट की नाव से गंगा पार करके श्री राम *लक्ष्मण* एवं सीता जी वन पथ पर आगे बढ़े | यहां पर तुलसीदास जी ने लक्ष्मण जी को बहुत सुंदर उपमा दी :--- *आगे राम लखन बने पाछे !* *तापस वेष विराजत काछे !!* *उभ

18

लक्ष्मण चरित्र - भाग - १८ (अट्ठारह)

22 मई 2022
0
0
0

वनवास काल में श्री राम अपने अनुज *लक्ष्मण* एवं भार्या सीता के साथ चित्रकूट पहुंचे , चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के किनारे सुंदर कुटिया बनाकर वही निवास करने लगे | *लक्ष्मण जी* मन , वचन एल कर्म से प्रभु श

19

लक्ष्मण चरित्र - भाग - १९ (उन्नीस)

22 मई 2022
0
0
0

*लक्ष्मण जी* तो जान ही गये थे कि राजा भरत अपनी संपूर्ण सेना के साथ चित्रकूट आ गए हैं |  *लक्ष्मण जी* का दृष्टिकोण परिवर्तित हो गया , अपने प्रभु श्रीराम की असुरक्षा की भावना उनके हृदय में घर बना गई | व

20

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २० (बीस)

27 मई 2022
0
0
0

*लक्ष्मण जी* तो जान ही गये थे कि राजा भरत अपनी संपूर्ण सेना के साथ चित्रकूट आ गए हैं | *लक्ष्मण जी* का दृष्टिकोण परिवर्तित हो गया , अपने प्रभु श्रीराम की असुरक्षा की भावना उनके हृदय में घर बना गई | वे

21

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २१ (इक्कीस)

27 मई 2022
0
0
0

*लक्ष्मण जी* ज्ञानवान होकर भी आज एक साधारण मनुष्य की भाँति अपने बल का बखान करने लगे | अपने बल का बखान करने पर जो परशुराम जी की हंसी उड़ाते थे आज वही *लक्ष्मण* क्षणिक अहंकार के वशीभूत होकर श्रीराम के स

22

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग २२ (बाईस)

27 मई 2022
0
0
0

*लक्ष्मण जी* चित्रकूट में भरत जी के प्रति जो प्रतिज्ञा करते हैं उसको सुनकर कि तीनों लोक कम्पित हो गए ! भगवान शिव भी सकुचा गये और लोकपाल लड़खड़ा कर भाग जाना चाहते हैं | एक बार पहले भी जनकराज की सभा में

23

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २३ (तेईस)

27 मई 2022
0
0
0

श्री राम जी की चरण पादुका लेकर भरत जी अयोध्या लौटे और कुछ दिन चित्रकूट में रहकर श्री राम ने वह निवास स्थान त्याग दिया क्योंकि वह स्थान सभी लोग जान गये थे | वहाँ से चलकर अत्रि आदि मुनियों का आशीर्वाद ल

24

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २४ (चौबीस)

27 मई 2022
0
0
0

पंचवटी में भगवान श्रीराम ने *लक्ष्मण जी* को जो दिव्य उपदेश दिया उसे *अध्यात्म रामायण* में *रामगीता* कहा गया है | *लक्ष्मण जी* के प्रश्नों का उत्तर देते हुए श्री राम कहते हैं *लक्ष्मण* तुमने जो प्रश्न

25

श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २५ (पच्चीस)

27 मई 2022
0
0
0

पंचवटी में दुर्लभ ज्ञान सरिता प्रवाहित करते हुए भगवान श्रीराम *लक्ष्मण जी* को माया के विषय में बताने के बाद *ज्ञान* के विषय में बताते हुए कहते हैं | *हे लक्ष्मण !* *ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं !* *द

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए