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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २३ (तेईस)

27 मई 2022

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श्री राम जी की चरण पादुका लेकर भरत जी अयोध्या लौटे और कुछ दिन चित्रकूट में रहकर श्री राम ने वह निवास स्थान त्याग दिया क्योंकि वह स्थान सभी लोग जान गये थे | वहाँ से चलकर अत्रि आदि मुनियों का आशीर्वाद लेते हुए वन पथ पर चलकर अनेक मुनियों के आश्रम में वास करते हुए श्री राम *लक्ष्मण* एवं सीता जी अगस्त्य जी के आश्रम में पहुंचे | स्वागत सत्कार करके अगस्त जी ने वहाँ श्रीराम को उपदेश तो दिया ही साथ राम एवं *लक्ष्मण* को दिव्यास्त्र भी प्रदान किये | श्रीरामजी के द्वारा रहने का स्थान पूछने पर अगस्त्य जी ने कहा कि हे भगवन ! आप रहने का स्थान पूछ रहे हैं तो सुनिये :---



*है प्रभु परम मनोहर ठाऊँ !*

*पावन पंचवटी तेहि नाऊँ !!*

*दंडक वन पुनीत प्रभु करहूँ !*

*उग्र साम मुनिवर कर हरहूँ !!*

*वास करहुँ तहँ रघुकुल राया !*

*कीजे सकल मुनिन्ह पर दाया !!*



अगस्त जी कहते हैं कि हे भगवन ! यहां एक पवित्र स्थान पंचवटी है आप वही निवास करते हुए मुनियों पर दया करें | अगस्त जी के कहने पर भगवान पंचवटी पहुंचे | कर्मयोगी *लक्ष्मण जी* ने पर्णकुटी का निर्माण किया और वहीं निवास करने लगे | एक दिन श्रीरामजी बैठे हुए थे उनके चरणों में बैठकर *लक्ष्मण* कहते हैं | हे भैया !



*सुर नर मुनि सचराचर साईं !*

*मैं पूछऊँ निज प्रभु की नाईं !!*

*मोहि समझाइ कहउं सोई देवा !*

*सब तजि करहुँ चरन रज सेवा !!*

*कहहुँ ज्ञान विराग अरु माया !*

*कहहुं सो भगति करहुं जो दाया !!*



आज *लक्ष्मण जी* भगवान श्रीराम से सृष्टि के गूढ़ विषय (ज्ञान वैराग्य एवं माया ) का प्रश्न कर रहे है | भगवत्प्रेमी सज्जनों ! यह प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य होता है कि जब भी समय मिले वह स्वयं या स्वयं के जीवन के विषय में चिंतन करते हुए अपने श्रेष्ठ जनों से उन गूढ़ रहस्यों के विषय में सत्संग अवश्य करें | परंतु आज कलयुग के प्रभाव से प्रभावित मनुष्य को यदि थोड़ा समय मिल भी जाता है तो वह भौतिक साधनों के माध्यम से मनोरंजन मे लिप्त होकर के वह समय व्यर्थ कर देता है | सत्संग में जिज्ञासु बनकर जाने पर मनुष्य के समस्त जिज्ञासाओं का समाधान श्रेष्ठ जनों के द्वारा किया भी जाता है | जिज्ञासु कैसा होना चाहिए यह हमें यहां देखना चाहिए | *लक्ष्मण जी* यद्यपि ज्ञान , वैराग्य एवं कर्म की साक्षात मूर्ति हैं परंतु जब उन्होंने प्रभु राम के समक्ष अपनी जिज्ञासा रखी तो उनका भाव देखिए:- *मैं पूछउँ निज प्रभु कि नाई* अर्थात *लक्ष्मण जी* कहते हैं कि हे भगवन ! मैं यह जिज्ञासा आपको अपना स्वामी एवं स्वयं को आपका सेवक समझ कर प्रस्तुत रहा हूं | कहने का तात्पर्य है कि कुछ भी पाने के लिए स्वयं को छोटा बनाना ही पड़ता है , क्योंकि लेने वाले से देने वाला सदैव श्रेष्ठ होता है | *लक्ष्मण जी* ने मानव मात्र के कल्याण के लिए आज प्रभु श्री राम से कहा हे भगवन ! आप हमें ज्ञान , वैराग्य व माया के विषय में बताइए | मैं आपकी उस भक्ति के विषय में जानना चाहता हूं जिस पर रीझकर आप भक्तों पर दया करते हैं | हे प्रभु ! जीव एवं ईश्वर में क्या भेद है ?:यह भी आप बताने की कृपा करें | *लक्ष्मण जी* की विनती सुनकर सौम्य स्वरूप मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहते हैं कि :- हे लक्ष्मण ! आज जो तुमने हमसे प्रश्न किया है उसका लाभ सारे संसार को मिलेगा | भगवान श्री राम के बचनों को श्रवऩ करने से पहले यह जान लिया जाय *लक्ष्मण जी* ने आज यह प्रश्न क्यों किया ? भगवत्प्रेमी सज्जनों ! चित्रकूट की घटना एवं अपने कृत्यों से *लक्ष्मण जी* बहुत दुखी थे | *लक्ष्मण जी* के दुख का कारण मात्र उनका मोह था | यदि मनुष्य को दुखों से बचना है तो मोह का त्याग करना बहुत आवश्यक है , जब तक मनुष्य मोह के वशीभूत रहता है तब तक उसे दुखों से छुटकारा नहीं मिल सकता है | मोह का त्याग करने के लिए एकमात्र उपाय है ज्ञान की प्राप्ति | जब मनुष्य को स्वयं का का ज्ञान हो जाता है तो उसका मोह समाप्त हो जाता है | *लक्ष्मण जी* ने अपने दुखों का कारण मोंह से छुटकारा पाने के उद्देश्य से भगवान श्री राम से यह प्रश्न किया | मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम करते हैं हे *लक्ष्मण* मैं तुम्हारी मन:स्थिति समझ रहा हूं आज मैं संक्षेप में तुम्हें यह सारा भेद समझाने का प्रयास करूंगा |

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रचनाएँ
श्री लक्ष्मण चरित्र
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त्रेतायुग में पृथ्वी का भार उतारने के लिए अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ जी के यहाँ श्रीहरि नारायण ने चार रूपों में अवतार लिया ! शेषावतार श्री लक्ष्मण जी जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त श्री राम जी की छाया बनकर रहे ! लक्ष्मण जी का जीवन चरित्र बहुत ही मर्यादित एवं सेवाभाव से परिपूर्ण रहा ! श्री लक्ष्मण जी की जीवनगाथा लिखने का साहस तो हम में नहीं है क्योंकि लक्ष्मण जी "सकल जगत आधार" हैं फिर भी हमारी ओर से एक पिपीलिका प्रयास के रूप में श्री लक्ष्मण जी का चरित्र प्रस्तुत है
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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - १ (एक)

2 मई 2022
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सनातन धर्म में *रामायण एवं महाभारत* दो महान ग्रंथ है , जहां महाभारत कुछ पाने के लिए युद्ध की घोषणा करता है वही रामायण त्याग का आदर्श प्रस्तुत करती है |  मनुष्य का आदर्श क्या होता है ?  अपने जीवनकाल मे

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २ (दो)

2 मई 2022
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एक मानव की मर्यादा क्या होती है इसका चित्रण हमको *लक्ष्मण जी* के चरित्र में विधिवत देखने को मिलता है ! यदि *समर्पण भाव* की झलक देखने की लालसा हो तो हमें *लक्ष्मण जी* के चरित्र में देखने को मिलती है |

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - ३ (तीन)

2 मई 2022
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हम *लक्ष्मण जी* के जीवन के रहस्यों को उजागर करने का प्रयास करते हुए उनकी विशेषताओं पर चर्चा कर रहे हैं !  *लक्ष्मण सों वीर धीर साहसी प्रतापवान ,*                     *अतुलित बलशाली न देखा जहान में

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लक्ष्मण चरित्र भाग - ४ (चार)

4 मई 2022
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*लक्ष्मण जी* के बिना श्री राम जी का चरित्र अधूरा है | भगवान श्रीराम यदि पूर्ण परमात्मा है तो उनको पूर्णत्व प्रदान करते ही *श्री लक्ष्मण जी* | *लक्ष्मण जी* के बिना श्री राम जी का जीवन भी वैसे ही है

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लक्ष्मण चरित्र भाग - ५ (पाँच)

4 मई 2022
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*श्री लक्ष्मण जी* भगवान श्री राम को पूर्णता प्रदान करते हैं , यदि *लक्ष्मण* ना होते तो शायद भगवान श्री राम एवं भगवती सीता का मिलन कदाचित कठिन था | पुष्प वाटिका जब *लक्ष्मण जी* ने देखा कि:--- *"भये

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - ६ (छ:)

5 मई 2022
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*श्री लक्ष्मण जी* ने जो आधारशिला रखी उसी पर चलकर श्री राम ने विशाल शिव धनुष का खंडन करके सीता जी द्वारा जयमाला ग्रहण की |  जनकपुर वासियों में अपार प्रसन्नता फैल गई , महाराज जनक एवं महारानी  सुनैना का

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - ७ (सात)

5 मई 2022
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महाराज जनक की सभा में *लक्ष्मण जी* एवं परशुराम जी का घनघोर वाकयुद्ध हुआ | परशुराम जी इतने ज्यादा क्रोध में थे कि *लक्ष्मण जी* के इशारे को समझना तो दूर सुनना भी नहीं चाहते थे |  *जैसा कि यह सत्य है कि

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - ८ (आठ)

5 मई 2022
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जनकपुर में *श्री लक्ष्मण जी* के जीवन में आई उर्मिला जी | *लक्ष्मण जी* का चरित्र यदि इतना देदीप्यमान हुअा तो उसमें उर्मिला जी की प्रमुख भूमिका थी | *जिस प्रकार रामराज्य के सूत्रधार लक्ष्मण जी हा उसी प्

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - ९ (नौ)

7 मई 2022
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रामायण में *लक्ष्मण जी* का चरित्र बहुत ही सूक्ष्म दर्शाया गया है |  यह भी सच है कि जितना महत्व *भरत जी* का है उससे कम *लक्ष्मण जी* का नहीं है | दोनों ही अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं परंतु यदि साहित्यि

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - १० (दस)

7 मई 2022
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*लक्ष्मण जी* को गोस्वामी तुलसीदास जी ने *चातक* कहा है और गोस्वामी जी का यह चतुर *चातक* देखना हो को *दोहावली* में देखा जा सकता है , क्योंकि यह *चातक* तो स्वयं गोस्वामी जी का अंतः करण हा जो *चातक* के रू

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लक्ष्मण चरित्र - भाग - ११ (ग्यारह)

11 मई 2022
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*लक्ष्मण जी* को यदि गोस्वामी जी *चातक* कहकर यह प्रतिपादित करते हैं कि लक्ष्मण कि ऐसे *चातक* हैं जो श्री राम रूपी स्वाति नक्षत्र के अतिरिक्त कुछ भी ग्रहण नहीं कर सकते अपितु श्री राम जी के लिए सर्वस्व

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लक्ष्मण चरित्र - भाग - १२ (बारह)

21 मई 2022
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*लक्ष्मण जी* श्री राम जी की आज्ञा मिलते ही दौड़ते हुए अपनी माता सुमित्रा के पास पहुंचते हैं | उन्होंने अपनी मैया को प्रणाम तो किया परंतु उनका मन राघवेंद्र सरकार में ही लगा था | अपने पुत्र *लक्ष्मण* के

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लक्षमण चरित्र - भाग - १३ (तेरह)

21 मई 2022
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*लक्ष्मण जी*  अपनी मैया सुमित्रा के सामने खड़े होकर उनके अमृतमयी वचनों को सुन रहे हैं | त्याग की प्रत्यक्ष मूर्ति मैया सुमित्रा ने कहा कि *लक्ष्मण*  मैंने सुना है कि तेरा भैया राम नारायण का अवतार है औ

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लक्ष्मण चरित्र - भाग - १४ (चौदह)

21 मई 2022
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लक्ष्मण जी* अपनी माता सुमित्रा से विदा लेकर प्रभु श्रीराम के पास प्रमुदित मन से पहुंच गये | *गये लखन जहं जानकिनाथू !* *भे मन मुदित पाइ प्रिय साथू !!* आज श्री राम के साथ बन जाने का अवसर पाकर *लक्ष्म

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लक्ष्मण चरित्र - भाग - १५ (पन्द्रह)

21 मई 2022
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श्रीराम मैया कौशल्या के भवन से जैसे ही चलने को तैयार हुए तो सीता जी ने पूछा :- हे नाथ ! अब कहां चल रहे है ? श्रीराम ने कहा ;-  अब हम पिताश्री की चरण वंदना करके वन को प्रस्थान करेंगे ! सीता जी ने कहा :

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लक्ष्मण चरित्र - भाग - १६ (सोलह)

21 मई 2022
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भगवान श्री राम *लक्ष्मण* और सीता जी जब पिता महाराज दशरथ से आज्ञा एवं विदा लेने गये तो दशरथ जी ने सुमन्त्र को आदेश दिया :--- *सुठि सुकुमार कुमार दोउ , जनक सुता सुकुमारी !* *रथ चढ़ाइ देखराउ वन ,

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लक्ष्मण चरित्र - भाग - १७ (सत्रह)

22 मई 2022
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केवट की नाव से गंगा पार करके श्री राम *लक्ष्मण* एवं सीता जी वन पथ पर आगे बढ़े | यहां पर तुलसीदास जी ने लक्ष्मण जी को बहुत सुंदर उपमा दी :--- *आगे राम लखन बने पाछे !* *तापस वेष विराजत काछे !!* *उभ

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लक्ष्मण चरित्र - भाग - १८ (अट्ठारह)

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वनवास काल में श्री राम अपने अनुज *लक्ष्मण* एवं भार्या सीता के साथ चित्रकूट पहुंचे , चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के किनारे सुंदर कुटिया बनाकर वही निवास करने लगे | *लक्ष्मण जी* मन , वचन एल कर्म से प्रभु श

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लक्ष्मण चरित्र - भाग - १९ (उन्नीस)

22 मई 2022
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*लक्ष्मण जी* तो जान ही गये थे कि राजा भरत अपनी संपूर्ण सेना के साथ चित्रकूट आ गए हैं |  *लक्ष्मण जी* का दृष्टिकोण परिवर्तित हो गया , अपने प्रभु श्रीराम की असुरक्षा की भावना उनके हृदय में घर बना गई | व

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २० (बीस)

27 मई 2022
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*लक्ष्मण जी* तो जान ही गये थे कि राजा भरत अपनी संपूर्ण सेना के साथ चित्रकूट आ गए हैं | *लक्ष्मण जी* का दृष्टिकोण परिवर्तित हो गया , अपने प्रभु श्रीराम की असुरक्षा की भावना उनके हृदय में घर बना गई | वे

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २१ (इक्कीस)

27 मई 2022
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*लक्ष्मण जी* ज्ञानवान होकर भी आज एक साधारण मनुष्य की भाँति अपने बल का बखान करने लगे | अपने बल का बखान करने पर जो परशुराम जी की हंसी उड़ाते थे आज वही *लक्ष्मण* क्षणिक अहंकार के वशीभूत होकर श्रीराम के स

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग २२ (बाईस)

27 मई 2022
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*लक्ष्मण जी* चित्रकूट में भरत जी के प्रति जो प्रतिज्ञा करते हैं उसको सुनकर कि तीनों लोक कम्पित हो गए ! भगवान शिव भी सकुचा गये और लोकपाल लड़खड़ा कर भाग जाना चाहते हैं | एक बार पहले भी जनकराज की सभा में

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २३ (तेईस)

27 मई 2022
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श्री राम जी की चरण पादुका लेकर भरत जी अयोध्या लौटे और कुछ दिन चित्रकूट में रहकर श्री राम ने वह निवास स्थान त्याग दिया क्योंकि वह स्थान सभी लोग जान गये थे | वहाँ से चलकर अत्रि आदि मुनियों का आशीर्वाद ल

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २४ (चौबीस)

27 मई 2022
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पंचवटी में भगवान श्रीराम ने *लक्ष्मण जी* को जो दिव्य उपदेश दिया उसे *अध्यात्म रामायण* में *रामगीता* कहा गया है | *लक्ष्मण जी* के प्रश्नों का उत्तर देते हुए श्री राम कहते हैं *लक्ष्मण* तुमने जो प्रश्न

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २५ (पच्चीस)

27 मई 2022
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पंचवटी में दुर्लभ ज्ञान सरिता प्रवाहित करते हुए भगवान श्रीराम *लक्ष्मण जी* को माया के विषय में बताने के बाद *ज्ञान* के विषय में बताते हुए कहते हैं | *हे लक्ष्मण !* *ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं !* *द

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