पंचवटी में दुर्लभ ज्ञान सरिता प्रवाहित करते हुए भगवान श्रीराम *लक्ष्मण जी* को माया के विषय में बताने के बाद *ज्ञान* के विषय में बताते हुए कहते हैं | *हे लक्ष्मण !*
*ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं !*
*देख ब्रह्म समान सब मांहीं !!*
*कहिउ तात सो परम विरागी !*
*तृन सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी !!*
भगवान कहते हैं :- *हे लक्ष्मण !* वैसे तो स्वयं को ज्ञानी कहाने वाले संसार में बहुत हैं , ज्ञान क्या है शायद वे जानते भा नहीं | ज्ञान क्या है ? ज्ञान वह है जहाँ मान आदि एक भी दोष न हो , संसार के सभी प्राणियों में ब्रह्म का दर्शन करता हो , वही ज्ञान है | जो समस्त सिद्धियों एवं तीनों गुणों (रज , सत , तम)को तिनके की भाँति त्याग चुका हो वही ज्ञानी एवं वैरागी है | ज्ञान की शिक्षा मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम *लक्ष्मण* को दे रहे हैं , यही ज्ञान की परिभाषा की व्याख्या का ज्ञान *अर्जुन* को देते हुए भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं :---
*अमानित्वम् दम्भित्वम् हिंसा क्षान्ति रार्जवम् !*
*आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्म विनिग्रह: !!*
*इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहंकार एव च !*
*जन्म मृत्यु जरा व्याधि दु:ख दोषादि दर्शनम् !!*
*असक्तिरन भिष्वंग: पुत्र दार गृहादिषु !*
*नित्यं च समचित्तत्व मिष्टानिष्टोपपात्तिषु !!*
*मयि चानन्य योगेन् भक्तिरव्यभिचारिणी !*
*विविक्त देश सेवित्व मरविर्जन संसदि !!*
*अध्यात्म ज्ञान नित्यत्वं तत्व ज्ञानार्थ दर्शनम् !!*
*एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तं ज्ञानं यदतोन्यथा !!*
अर्थात :- भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :- *हे अर्जुन !* जिसमें मान , दम्भ , हिंसा , क्षमाराहित्य , टेढ़ापन , आचार्य (गुरु) सेवा का अभाव , अपवित्रता , अस्थिरता , मन का निगृहीत न होना , इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति तथा ममता , इष्ट और अनिष्ट की प्राप्ति में हर्ष एवं शोक , भक्ति का अभाव , एकान्त में मन न लगना , विषयी मनुष्यों के संग प्रेम आदि ! ये अठारह अवगुण न हों और नित्य अध्यात्म (आत्मा) में स्थिति तथा तत्वज्ञान के अर्थ (तत्वज्ञान के जानने योग्य) परमात्मा का नित्य दर्शन हो , वही ज्ञान है |
भगवान श्रीराम कहते हैं :- *हे लक्ष्मण !* ज्ञान भी दो प्रकार के होते हैं जिन्हें भौतिक एवं आत्मिक ज्ञान कहा जाता है | आत्मिक ज्ञान को ही आध्यात्मिक ज्ञान कहा गया है | प्राय: लोग ज्ञान का तात्पर्य भौतिक शिक्षा से लगाते हैं | भगवत्प्रेमी सज्जनों ! आज के युग में लोगों ने भौतिक ज्ञान तो बहुत प्राप्त कर लिया है परंतु उनको आत्मिक ज्ञान बिल्कुल नहीं है | मानव जीवन में ज्ञानी वही हो सकता है जिसे आध्यात्मिक ज्ञान हो | भगवान श्रीराम कहते हैं :-- *हे लक्ष्मण !* ज्ञान तो दोनों (भौतिक एवं आध्यात्मिक) ही हैं परंतु दोनों में बहुत अन्तर है | भौतिक ज्ञान लौकिक साधनों का आधार तो बन सकता है किन्तु उन साधनों के उद्देश्य , सुख शान्ति के संवाहक नहीं बन पाते | भौतिक ज्ञान होने पर यह आवश्यक नहीं है कि मनुष्य सुखी होकर शानिति प्राप्त कर ले | सुख एवं शान्ति प्राप्त प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान ही एकमात्र आधार है | यद्यपि भौतिक ज्ञान की भी आवश्यकता जीवन में होती है परंतु जीवन को उन्नत बनाने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान की परम आवश्यकता भी होती है | क्योंकि :--
*दुर्लभ शरीर पाके इसको संवारा नही ,*
*विषयों में फंसके यह जीवन गंवाता है !*
*शिक्षा व विद्या को खूबै महत्व दियो ,*
*अंधकार हिरदय के क्यों मिटाता है !!*
*उंजियारा करने को बाहर प्रकाश कीन्हों ,*
*आत्मा की ज्योती को क्यों न जलाता है !*
*"अर्जुन" बनि ज्ञानी खूब सबको उपदेश देत ,*
*अपने को मिथ्या ही ज्ञानी कहाता है !!*
आज कलियुग के तथाकथित ज्ञानियों का हाल यही है :---
*रूप संवारि पहिन नव वस्त्र , फिरे जग में बनिके बहु ज्ञानी !*
*नित उपदेश करें जग को , पर वह उपदेश स्वयं नहिं मानी !!*
*चारि किताब का पढ़ि करके , दुसरे का बतावत हैं अज्ञानी !*
*"अर्जुन" ज्ञान कै अर्थ यही , कलियुग मां दिखइ सबकी मनमानी !!*
भगवान कहते है :- *हे लक्ष्मण !* यह गान कदापि नहीं हो सकता जो दूसरों को तो बताया जाय परंतु स्वयं उसका पालन न किया जाय | मनुष्य को स्वयं का ज्ञैन अर्जित करना चाहिए | जिस दिस मनुष्य को यह ज्ञान हो जाता है कि :- मैं कौन हूँ ? कहाँ से और क्यों इस संसार में आया हूँ ? उसी दिन के बाद उसे किसी और ज्ञान की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है | *लक्ष्मण* यही वास्तविक ज्ञान है | *लक्ष्मण* ने कहा भैया ! माया एवं ज्ञान के विषय में जान लेने के बाद भक्ति के विषय में जानने की मेरी प्रबल इच्छा हो रही है | भगवान ने *लक्ष्मण* तुम्हारी भावना देखकर हम बहुत ही प्रसन्न हैं | अब हम तुम्हें भक्ति एवं भक्त के बिषय में बता रहा हूँ |