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लक्ष्मण चरित्र - भाग - १४ (चौदह)

21 मई 2022

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लक्ष्मण जी* अपनी माता सुमित्रा से विदा लेकर प्रभु श्रीराम के पास प्रमुदित मन से पहुंच गये |

*गये लखन जहं जानकिनाथू !*
*भे मन मुदित पाइ प्रिय साथू !!*

आज श्री राम के साथ बन जाने का अवसर पाकर *लक्ष्मण जी* को ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे उन्होंने आज सब कुछ पा लिया हो | माता कौशल्या जी ने कहा :--  *लक्ष्मण* ? क्या तेरी मैया सुमित्रा ने तुझको रोका नहीं ?? उस पगली को तो तुम्हें रोकना चाहिए था ? बनवास तो कैकेई ने मेरे पुत्र राम के लिए मांगा है , तू क्यों बन के कष्ट सहने को जा रहा है ?? *लक्ष्मण जी* को एक बार पुनः भय ने घेर लिया कि कहीं बड़ी माता यह न कह दें कि लक्ष्मण तुझे वन नहीं जाना है |  डरते डरते लक्ष्मण जी ने मैया कौशल्या के चरण पकड़ कर के रोते हुए कहा कि हे मैया :---

*जन्म से ही साथ साथ खेले अरु बड़े भये ,*
*साथ साथ गुरु जी ने विद्या सिखाई है !*
*भैया के ही साथ साथ यज्ञ रक्षा करन गया ,*
*साथ ही जनकपुर में पताका फहराई है !!*
*आज राजभोग त्याग रघुवर जब बन को चले ,*
*कैसे साथ तजि दे यह लक्ष्मण सा भाई है !*
*राम बिना लक्ष्मण का कोई अस्तित्व नहीं ,*
*यही सोच मैया मोहे साथ में पठाई है !!*

कौशल्या जी ने *लक्ष्मण* को हृदय से लगा लिया | यह मिलन एवं प्रेम देखकर स्वयं शारदा मैया शारदा भी कुछ देर के लिए स्तब्ध रह गई | कौशिल्या जी *लक्ष्मण* का हाथ राम क् हाथ में सौंपते हुए बोली :---

*राम आज लक्ष्मण परछाई बनि वन को जात ,*
*इनको स्वयं से कभी दूर मत रखना !*
*आज यह धरोहर मैया तुमको है सौंप रही ,*
*मेरी धरोहर मुझे वापस तुम करना !!*
*लाडले लखन प्यारे सुमित्रा के  नयनतारे ,*
*उर्मिला की सांस को तुम प्राण सम रखना !*
*एक आदेश तुमको कौशिल्या देत लाल ,*
*बिना लखन के पांव अवध में मत रखना !!*

कौशिल्या जी ने *लक्ष्मण* का हाथ राम के हाथों में सौंपते हुए कहा :- हे राम ! आज मैं अयोध्या की धरोहर के रूप में लक्ष्मण को सौंप रही हूँ चौदह वर्ष बाद यह मैया तुमसे अपनी धरोहर *(लक्ष्मण)* को वापस लेगी , और राम ! यह याद रहे कि चौदह वर्ष की अवधि में यदि मेरी धरोहर की किसी भी प्रकार की कोई क्षति हुई तो यह मैया कौशल्या का तेरे लिए आदेश है कि तुम फिर लौटकर आयोध्या मत आना | हे राम ! आज तू *लक्ष्मण* को जैसे लेकर जा रहा है चौदह वर्षों बाद मुझे मेरा *लक्ष्मण* वैसा ही चाहिए | यदि तुम मेरा यह वचन (आदेश) पालन करने में कदाचित असफल हो जाओ तो मुझे मुंह मत दिखाना | धन्य है अयोध्या ! धन्य है अयोध्या का राजपरिवार !! त्याग का यदि जीवंत उदाहरण देखना हो तो दशरथ जी के परिवार में ही देखने को मिल सकता है | एक और मैया सुमित्रा *लक्ष्मण* से कहती है कि तेरे कारण , तेरे रहते श्री राम को कोई कष्ट नहीं होना चाहिए ! उनके लिए अपने प्राणों को ही बलिदान कर देना , तो वही कौशल्या जी उनसे भी आगे बढ़ गईं | राजकुल की बड़ी महारानी है तो उनके कर्तव्य एवं आचरण भी सर्वश्रेष्ठ ही रहेंगे | कौशल्या जी ने भी श्री राम जी से कह दिया कि :-- *लक्ष्मण* के बिना अयोध्या लौट कर ही नहीं आना |  इस प्रसंग को लिखते हुए बरबस ही मेरे हृदय से यह भाव निकल पड़े :---

*धन्य भूमि भारत धन्य धन्य है अवध नगरी ,*
*धन्य राजकुल के समस्त अवतारी हैं !*
*धन्य नृप दशरथ धन्य कौशिला सुमित्रा मातु ,*
*धन्य भरत लक्ष्मण और शत्रुहन बलधाारी है !!*
*धन्य आज क्यों न कहूं सीता जी की अनुजा को ,*
*सृष्टि में महान सती उर्मिला व्रतधारी हैं !*
*दिव्य रघुकुल के एक अंश का चरित्र लिखत ,*
*आज कृतकृत्य हुआ "अर्जुन तिवारी" है !!*

ऐसा दिव्य परिवार *"ना भूतो ना भविष्यत्"* ना कहीं देखने को मिलता है और त्याग का ऐसा उदाहरण ना कहीं देखने को मिलेगा ही | श्री राम ने *लक्ष्मण* का हाथ कौशल्या जी के हाथ से अपने हाथों में लेते हुए अपनी मैया से कहा :-- हे माता ! यह राम तुमको वचन देता है कि *लक्ष्मण* को मैं अपने प्राणों की ही भाँतित रखूंगा , और लक्ष्मण को लिए बिना मैं अयोध्या लौट कर कभी नहीं आऊंगा | आज *लक्ष्मण जी* धन्य हो गये ,  उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे आज उनका जीवन सार्थक हो गया |

मैया कैशिल्या ने सीता जी की ओर देखते हुए कहा :- हे पुत्री ! आज मैं अपने लाडले *लखन* को तुझे सौंप रही हूँ इसे तुम अपने पुत्र की ही भाँति स्नेह करना , और एक बात मेरी ध्यान से सुनो जब तक तुम *लक्ष्मण* को पुत्रवत् स्नेह करती रहोगी तब तक वन में तुम्हें कोई कष्ट हो ही नहीं सकता परंतु हे पुत्री ! जिस दिन किंचित क्षण के लिए भी तेरे हृदय का भाव परिवर्तित होगा उसी क्षण तू संकटों को आमंत्रित कर बैठेगी | इसलिए हे पुत्री ! मेरी इस सीख को सदैव याद रखना कि यह तेरे देवर के रूप में नहीं बल्कि पुत्र के रूप में तुम्हारे साथ वन को जा रहा है | सीता जी ने मैया कौशल्या को भरोसा दिया कि हे मैया ! मैं *लक्ष्मण जी* को कभी कोई कष्ट नहीं होने दूंगी |  जिस प्रकार एक मां अपने पुत्र की देखरेख करती है उसी प्रकार मैं भी अपने लाड़ले *लक्ष्मण* का ध्यान रखूंगी |

इस प्रकार मैया कौशल्या की शिक्षा एवं उनके द्वारा प्रदत्त धरोहर *(लक्ष्मण)* को लेकर श्री राम एवं सीता जी पिताजी के पास चलने को तैयार हुए |

*शेष अगले भाग में*

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रचनाएँ
श्री लक्ष्मण चरित्र
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