सनातन धर्म में *रामायण एवं महाभारत* दो महान ग्रंथ है , जहां महाभारत कुछ पाने के लिए युद्ध की घोषणा करता है वही रामायण त्याग का आदर्श प्रस्तुत करती है | मनुष्य का आदर्श क्या होता है ? अपने जीवनकाल में मानवोचित मर्यादा का पालन करना ही एक मनुष्य का आदर्श कहा जाता है ! मर्यादा का पालन कैसे किया जाता है ? यदि देखना है तो हमें रामायण का अध्ययन करना होगा | सम्पूर्ण रामायण का यदि सूक्ष्मता से अवलोकन किया जाय तो प्रत्येक मोड़ पर मर्यादा पालन की शिक्षा प्राप्त होती है | रामायण का प्रत्येक पात्र अपने आप में अनुपम है , परंतु यदि प्रत्येक चरित्र का वर्णन किया जाए तो बड़ा ही अद्भुत चरित्र देखने को मिलता है हमने लेख तो बहुत लिखे परंतु किसी चरित्र विशेष के ऊपर कभी कुछ भी लिखने का साहस नहीं हो सका | परंतु अनुज भ्राता *👉 आचार्य करुणेश शुक्ला जी 👈* से प्रेरणा लेते हुए कुछ लिखने का प्रयास किया है | *मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" उत्तर-प्रदेश के गौरवशाली जनपद फैजाबाद (अब अयोध्या) के सोहावल ब्लॉक अन्तर्गत एक छोटे से कस्बे "बड़ागाँव" का निवासी हूँ ! हमारे परमपूज्य पिता जी "गोलोकवासी पं० श्री रामकेवल तिवारी जी (पुराणाचार्य) ने बचपन से ही हम सबको सनातन ग्रन्थों की कथाये श्रवण कराते रहते थे !* हमारे गाँव में श्री रामलीला का मंचन होता था *जिसमें हमें लक्ष्मण जी का चरित्र निभाने का अवसर मिला ! लगभग १० वर्षों तक प्रतिवर्ष लक्ष्मण जी का चरित्र निभाते हुए मैंने अनेक ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया !* हमारा सबसे प्रिय ग्रन्थ था *श्री रामायण* इस क्रम में हमने जब रामायण के चरित्रों का अध्ययन किया तो हमको *लक्ष्मण जी का चरित्र* बहुत ही अद्भुत लगा ! और *लक्ष्मण जी* का चरित्र निभाते निभाते (रामलीला में) हमारे मन में उनके चरित्रों की अमिट छाप पड़ी ! जब कुछ लिखने का विचार बना तो हमने *लक्ष्मण जी* को ही केन्द्र में रखकर *लक्ष्मण चरित्र* लिखने का सूक्ष्म प्रयास किया है ! मानस में *लक्ष्मण जी का चरित्र* अनुकरणीय , प्रशंसनीय एवं दर्शनीय है | सर्वप्रथम तो यह जानना आवश्यक है कि *लक्ष्मण जी हैं कौन ?* परमपूज्यपाद , कविकुलशिरोमणि *गोस्वामी तुलसीदास जी* ने मानस में भाव दिया है :--
*लक्ष्मन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार !*
*गुरु वशिष्ठ तेहिं राखा लक्ष्मन नाम उदार !!*
*अर्थात :-* जो शुभ लक्षणों के धाम है , श्री राम जी की अति प्यारे और संपूर्ण जगत के आधार हैं , *गुरुदेव वशिष्ठ जी ने उनका श्रेष्ठ नाम लक्ष्मण रखा |*
विचार किया जाए कि *शुभ लक्षण क्या है :--* सक्षम , सक्रिय , उदार , ध्यानवान , गंभीर , रचनात्मक , हंसमुख , स्वैच्छिक , मैत्रीपूर्ण एवं भाग्यशाली होना ही *शुभ लक्षण बताए गए हैं ,* और यह सभी लक्षण *लक्ष्मण जी में* विद्यमान थे | इसीलिए गुरुदेव वशिष्ठ जी ने उन्हें लच्छन धाम कहा |
उसके बाद *तुलसीदास जी* उन्हें राम प्रिय बताते हैं | *लक्ष्मण जी* को भगवान श्री राम इतने प्रिय थे कि कभी भी वे उनके बिना नहीं रहे | जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत *लक्ष्मण जी* भगवान श्री राम जी की ही सेवा में सतत् लगे रहे | गुरु वशिष्ठ जी त्रिकालदर्शी थे इसीलिए उन्होंने *लक्ष्मण जी* का नामकरण करते समय ही यह घोषणा कर दी थी यह भगवान के अति प्रिय रहेंगे |
*लक्ष्मण जी शेषावतार हैं !* श्रीहरि नारायण विष्णु की सुखद शैय्या के रूप में क्षीरसागर में रहने वाले *शेष जी कभी भी नारायण से अलग नहीं रहे |* यह संपूर्ण भूमंडल जिनके फण पर अवस्थित है , *जो संपूर्ण जगत के आधार हैं ,* पृथ्वी का भार वाहन करने वाले *लक्ष्मण जी का चरित्र* उनके नाम से ही प्रतीत होता है | *"यथा नामे तथा गुणौ"* की कहावत को चरितार्थ करते हुए *लक्ष्मण जी* ने जीवन पर्यंत एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है , जिनके जीवन चरित्र का वर्णन करने का थोड़ा सा प्रयास करते हुए आप सबके समक्ष प्रस्तुत है |
*शेष अगले भाग में*