जनकपुर में *श्री लक्ष्मण जी* के जीवन में आई उर्मिला जी | *लक्ष्मण जी* का चरित्र यदि इतना देदीप्यमान हुअा तो उसमें उर्मिला जी की प्रमुख भूमिका थी | *जिस प्रकार रामराज्य के सूत्रधार लक्ष्मण जी हा उसी प्रकार लक्ष्मण जी को सम्बल प्रदान करने वाली है उर्मिला जी |*
*लक्ष्मण एवं उर्मिला का मिलन* महज संयोग नहीं है | गोस्वामी तुलसीदास जी की लेखनी को ध्यान से देखा जाय तो यह अजब संयोग देखने को मिलता है | *अयोध्या में नामकरण के समय लक्ष्मण जी का नामकरण सबसे बाद में होता है* जबकि शत्रुघ्न से बड़े हैं लक्ष्मण जी , परंतु तीनों भाइयों का नाम रखने के बाद सबसे अंत में गुरुदेव जी ने लक्ष्मण जी का नाम रखा , *और जनकपुर में जब चारों राजकुमारियों को बुलाया गया तो वहां भी उर्मिला जी को श्रुतिकीर्ति के बाद सबसे अंत में रखा गया* जबकि सबसे छोटी श्रुतिकीर्ति जी | यथा :----
*"मांडवी श्रुतिकीरति उर्मिला कुंवर लई हंकारि के"*
कैसा सुखद संयोग है कि अवधपुरी में *नामकरण के समय सबसे पीछे लक्ष्मण जी हैं तो जनकपुर में नामस्मरण के समय सबसे पीछे हैं उर्मिला जी |* और एक विशेष बात यह कि किसी भी नारी का परिचय पुत्री , पत्नी एवं मां के ही रूप में होता है जैसा कि विवाह के समय दिखाई भी देता है | मांडवी का परिचय देते हुए कहा गया :--
*"कुसकेतु कन्या प्रथम जो गुन सील सुख शोभामई !*
*सब रीति प्रीति समेत करि सो ब्याह नृप भरतहिं दई !!*
बाबा जी ने मानस ने बताया कि महाराज जनक के लघुभ्राता कुशध्वज की पहली कन्या का विवाह भरत जी के साथ हुआ श्रुतिकीर्ति का परिचय भी पिता के साथ दिया गया | *कन्या के विवाह में कन्या का परिचय पिता के नाम से ही देना होता है क्योंकि पिता कन्यादान करता है |* पर जब उर्मिला जी की बारी आई तो तुलसी तुलसीदास जी अपना ही नियम भूल गए और उर्मिला जी का परिचय देते हुए इतना ही लिखा कि *"जानकी लघु भगिनी"* अर्थात यह सीता जी की छोटी बहन है |
विचार करने वाली बात है कि कन्यादान का अवसर हो और महाराज जनक जैसा प्रसिद्ध पिता हो तो उर्मिला जी का परिचय सीताजी अर्थात बहन से क्यों किया गया ? *यह बहुत ही गूढ़ रहस्य को समझने का प्रयास किया जाय !* तुलसीदास जी ने कह दिया है कि :-
*"अनुरूप वर दुलहिन परस्पर"*
अर्थात वर दुलहिन एक दूसरे के पूरक हैं | यदि भरत जी गुण एवं शील की मूर्ति हैं तो मांडवी जी गुण शील , सुख एवं शोभा का रूप हैं | उसी प्रकार शत्रुघ्न जी को कहा गया है "वेदप्रकासा" | *" नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा"* तो उनकी दुलहिन हैं श्रुतिकीर्ति जी |
*लक्ष्मण जी एवं उर्मिला जी* को भी देख लिया जाय कि उनमें क्या समानता है | उर्मिला जी का परिचय सीता जी से बाबा जी ने इसलिए कराया क्योंकि वे जानते हैं *लक्ष्मण के आराध्य श्री राम एवं सीता जी तो उनको वही आकर्षित कर सकता है जो सीतारामजी से जुड़ा हो |* अनेकों गुण होने के बाद भी यदि सीताराम जी से जुड़ाव नहीं है तो *लक्ष्मण के लिए* वह व्यर्थ है | इसलिए बाबा जी ने उर्मिला का परिचय सीता जी के साथ कराया *मानो वे कहना चाह रहे हैं कि हे लक्ष्मण ! तुम्हारी पहचान यदि श्री रामजी से है तो यह भी जान लो कि उर्मिला सीता जी की छोटी बहन है |* एक बात और लिखी बाबा जी ने :---
*" जानकी लघु भगिनी शिरोमणि"*
उर्मिला जी के लिए तुलसीदास जी ने *शिरोमणि* शब्द का प्रयोग किया है | ऐसा लिखकर गोस्वामी जी बताना चाह रहे हैं कि *शेष के लिए शिरोमणि ही सर्वश्रेष्ठ जोड़ा हो सकता है | क्योंकि सर्प के मस्तक की शोभा मणि से ही हो सकती है |*
इस प्रकार समान गुणों से युक्त वर कन्या का मेलापक करके जनकपुर में विवाह संपन्न हुआ |
*शेष अगले भाग में*