*लक्ष्मण जी* के बिना श्री राम जी का चरित्र अधूरा है | भगवान श्रीराम यदि पूर्ण परमात्मा है तो उनको पूर्णत्व प्रदान करते ही *श्री लक्ष्मण जी* | *लक्ष्मण जी* के बिना श्री राम जी का जीवन भी वैसे ही है जैसे नींव के बिना विशाल महल | क्या बिना मजबूत नींव के विशाल महल खड़ा हो सकता है ? कदापि नहीं ! इसी प्रकार श्री राम जी का चरित्र भी *लक्ष्मण जी* के बिना अस्तित्वविहीन है |*
हम अनेकों प्रकार के भव्य महल एवं इमारतें देखते हैं और उनकी सुन्दरता तथा कलाकृति पर मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं ! और मुख बरबस ही उन महलों के लिए प्रशंसा के शब्द निकलने लगते हैं ! क्या कभी किसी ने उन महलों की नींव के विषय में कुछ कहा ? वह नींव ही होती है जिसका आधार लेकर ये निशाल महल खड़े होते हैं ! नीव की ईट अपना बलिदान कर देती है , किसी को दिखाई नहीं पड़ती , देखने वाले महल की सुंदरता का बखान तो करते हैं परंतु उस महल के आधार को अनदेखा कर देते हैं | *लक्ष्मण जी* का गौरव यह है कि जिस आदर्श रामराज्य का निर्माण हुआ उसके लिए उन्होंने स्वयं को मिटाकर नींव अर्थात आधार का रूप ग्रहण किया | *राम एवं रामराज का आधार है लक्ष्मण जी |* शायद इसीलिए गुरुदेव ने उनका नामकरण करते हुए कहा था :--*
*"सकल जगत आधार"*
विचार कीजिए कि आधार कहां होता है ?;आधार तो नीचे ही होता है न !
हमारी मान्यता है कि यह पृथ्वी शेष जी के फण पर है , परंतु हमें पृथ्वी ही दिखाई पड़ती है शेष नहीं ! उसी प्रकार स्वयं को छिपाकर दूसरे का मान बढ़ाना उनका स्वभाव है | परंतु हम आधार (शेष) जी की बड़ाई न करके पृथ्वी की सुंदरता का बखान करते रहते हैं परंतु विचार कीजिए कि यह सुंदर पृथ्वी जिनके फण पर अवस्थित है उन शेष जी (आधार) को हटा दिया जाय तो त्या पृथ्वी का अस्तित्व बचेगा ? |
आधार को अनदेखा करके कभी-कभी लोग यह भी कहने लगते हैं कि रामायण में भरत जी का चरित्र महान है | नि:संदेह भरत का चरित्र महान है परंतु *लक्ष्मण* भी उन से कम नहीं है | राम जी के जीवन में *लक्ष्मण जी* का क्या महत्व है यह तुलसी दास जी की लेखनी से स्पष्ट हो जाता है *लक्ष्मण जी* की वंदना करते हुए गोस्वामी जी ने लिखा है :---
*वन्दऊं लक्ष्मन पद जलजाता !*
*सीतल सुभग भगत सुखदाता !!*
*रघुपति कीरति विमल पताका !*
*दंड समान भयउ जस जाका !!*
कहने का तात्पर्य है कि श्री राम जी की कीर्ति पताका के दण्ड हैं *लक्ष्मण जी |* झंडा (पताका) बहुत सुंदर हो परंतु उसमें दण्ड अर्थात बांस ना हो तो क्या वह फहरा सकता है ?? शायद ऐसा होना संभव नहीं है | किसी भी झंडे को लहराने के लिए डंडे की आवश्यकता होती है , और तुलसीदास जी श्री राम जी की कीर्ति पताका में दंड का स्थान *लक्ष्मण जी* को देते हैं |
जिस प्रकार पताका का आधार दण्ड है उसी प्रकार श्री राम कथा एवं राम राज्य का आधार है श्री *लक्ष्मण जी |*
*शेष अगले भाग में*