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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - ९ (नौ)

7 मई 2022

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रामायण में *लक्ष्मण जी* का चरित्र बहुत ही सूक्ष्म दर्शाया गया है |  यह भी सच है कि जितना महत्व *भरत जी* का है उससे कम *लक्ष्मण जी* का नहीं है | दोनों ही अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं परंतु यदि साहित्यिक दृष्टि से देखा जाए तो दोनों की उपमायें भिन्न हैं | पहले तो देख लिया जाय कि *भरत जी* क्या है ?? मानस में बाबा जी ने लिखा है :--


*भरतु हंस रविवंस तड़ागा !*

*जनमि कीन्ह गुण दोष विभागा !!*

*गहि गुन पय तजि अवगुन वारी !*

*निज जस जगत कीन्ह उजियारी !!*



अर्थात :- *भरत जी* ने सूर्यवंश रूपी तालाब में हंस रूप में जन्म लेकर गुण एवं दोष का विभाग कर दिया | गुणरूपी दूध को ग्रहण कर अवगुण रूपी जल को त्यागकर *भरत* ने अपने यश को जगत में उज्जवल कर दिया |  गोस्वामी जी ने *भरत* की तुलना हंस ले कर दी है | परंतु *लक्ष्मण जी* को उन्होंने हंस नहीं कहा है |  मानस से अलग हटते हुए विनय पत्रिका में *लक्ष्मण जी* को *"भावते भरत के"* कहकर सब से नाता जोड़ने का प्रयास किया है | तुलसीदास जी मानस में सबकी वंदना करते हैं | ध्यान देने योग्य बात यह है कि *भरत जी* की वंदना में एक पद लिखने वाले तुलसीदास जी *लक्ष्मण जी* की वन्दना में सबसे ज्यादा दो पद लिखते हैं | तुलसीदास जी विनय पत्रिका *लक्ष्मण जी* की वंदना करते हुए कहते हैं :---



          *लाल लाडिले लखन हित हौं जन के !*


        *सुमिरे संकटहारी , सकल सुमंगलकारी ,*

             *पालक कृपालु अपने पन के !! १!!*


           *धरनी धरन हार , भंजन भुवनभार ,*

          *अवतार साहसी सहस फन के !*

            *सत्यसंध सत्यव्रत परम धरम रत ,*

          *निरमल करम वचन अरु मन के !! २ !!*


             *रूप के निधान धनुवान पानि तून कटि ,*

              *महावीर विदित जितैया बड़े रन के !*

               *सेवक सुख दायक सबल सब लायक ,*

              *गायक जानकीनाथ गुन गन के !! ३ !!*


            *"भावते भरत के" सुमित्रा सीता के दुलारे ,*

               *चातक चतुर राम स्याम घन के !*

               *वल्लभ उरमिला के सुलभ सनेह बस ,*

                *धनी धन तुलसी से निरधन के !! ४ !!*



तुलसीदास जी कहते हैं कि *लक्ष्मण जी* का सबसे नाता है | भक्तों के हितैषी , दीनों पर कृपालु , पृथ्वी भारहरण , सत्यव्रत , सुंदरता के भंडार ,  महाबली , भरत के प्यारे , सुमित्रा एवं सीता के दुलारे तथा राम रूपी श्याम मेघ के चतुर चातक हैं | यहां तुलसीदास जी ने *लक्ष्मण जी* को चातक की संज्ञा दी है |  तुलसीदास जी ने इस पद में स्वयं को निर्धन एवं *लक्ष्मण जी* को अपना धन बताया है | अब जो लोग यह कहते हैं कि तुलसीदास जी ने मानस में भरत जी का विस्तृत वर्णन किया है परंतु *लक्ष्मण जी* को छुपा लिया तो उनको विचार करना चाहिए कि *लक्ष्मण जी* को तुलसी दास जी अपना धन मानते हैं और अपना धन तो सभी छुपाते हैं | यदि गोस्वामी जी ने मानस में *लक्ष्मण जी* को छुपाया तो उसका कारण उनकी न्यूनता नहीं अपितु विशेषता है और वह विशेषता गोस्वामी जी *"चातक चतुर राम श्याम घन के"* कहकर प्रकट करते हैं |


*शेष अगले भाग में*

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रचनाएँ
श्री लक्ष्मण चरित्र
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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग २२ (बाईस)

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २३ (तेईस)

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २४ (चौबीस)

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श्री लक्ष्मण चरित्र - भाग - २५ (पच्चीस)

27 मई 2022
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पंचवटी में दुर्लभ ज्ञान सरिता प्रवाहित करते हुए भगवान श्रीराम *लक्ष्मण जी* को माया के विषय में बताने के बाद *ज्ञान* के विषय में बताते हुए कहते हैं | *हे लक्ष्मण !* *ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं !* *द

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