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लघुकथा

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घरके आँगन में लगा यह पेड़ मुझ से भी पुराना है. मेरेदादा जी ने जब यह घर बनवाया था, तभी उन्होंने इसे यहाँ आँगन मेंलगाया था. मेरा तो इससे जन्म का ही साथ है. यहमेरा एक अभिन्न मित्र-सारहा है. इसकीछाँव में मैं खेला हूँ, सुस्तायाहू, सोया हूँ. इसकी संगत में मैंने जीवन की ऊंच-नीचदेखी है. मेरे हर सुख-दुःखका स

लघुकथाजब उन्होंने उसकी पहलीअजन्मी बेटी की हत्या करनी चाही तो उसने हल्का सा विरोध किया था. वैसे तो वह स्वयंभी अभी माँ न बनना चाहती थी. उसकी आयु ही कितनी थी-दो माह बाद वह बीस की होने वालीथी. उन्होंने उसे समझाने का नाटक किया था और वह तुरंत समझ गयी थी. लेकिन उसके विरोध ने उन्हेंक्रोधित कर दिया था. किसी

‘क्या तुम्हें पूरा विश्वासहै कि यह निमंत्रण इस ग्रह के निवासियों के लिये है? मुझे तो लगता है कि किसी भीग्रह के वासी पृथ्वी-वासियों को अपने यहाँ नहीं बुलाना चाहेंगे!’‘क्यों? क्या खराबी है इनजीवों में?’‘तुम्हें पूछना चाहिए कि क्याखराबी नहीं है इनमें!’एलियंस का अन्तरिक्ष-यान अभीभी पृथ्वी से कई लाख मील

‘यह तीसरी लड़की है जो तुमनेपैदाकी है. इस बार तो कम से कम एक लड़का जन्मती,’ उसकीआवाज़ बेहद सख्त थी.एक कठोर, गंदीअंगुली शिशु को टटोलने लगी; यहाँ, वहां. भय की नन्ही तरंग शिशु के नन्हें हृदय में उठी और उसेआतंकित करती हुई कहीं भीतर ही समा गई. अपने-आपसे संतुष्ट अंगुली हंस दी. सब जानते हुए भी, अपने मेंसिकुड़

वह एक निर्मम हत्या करने का दोषी था. पुलिस ने उसकेविरुद्ध पक्के सबूत भी इकट्ठे कर लिए थे. पहले दिन ही जज साहब को इस बात का आभास हो गया था किअपराधी को मृत्यदंड देने के अतिरिक्त उनके पास कोई दूसरा विकल्प न होगा. लेकिन जिसदिन उन्हें दंड की घोषणा करनी थी वह थोड़ा विचलित हो गये थे. उन्होंने आज तक किसीअपराध

1 जनवरी 20..आतंकवादियों ने सेना की एक बस पर अचानक हमला कर दिया. बसमें एक भी सैनिक नहीं था. बस में स्कूल के कुछ बच्चे पिकनिक से लौट रहे थे. एकबच्चा मारा गया, पाँच घायल हुए.सारा नगर आक्रोश और उत्तेजना से उबल पड़ा. लोग सड़कों परउतर आये; पहले एक नगर में, फिर कई नगरों में. हर कोई सरकार को कोस रहा था. हरसमा

‘बच्चे, उस बाड़ से दूर रहना, उसे छूना नहीं. उसमें बिजलीचल रही है.’‘लेकिन यह बाड़ यहाँ क्यों है? इसमें बिजली क्यों चल रहीहै.’‘यह सब हमारी सुरक्षा के लिये है.’‘हमारी सुरक्षा? किस से?’वृद्ध एकदम कोई उत्तर ने दे पाए. कुछ सोच कर बोले,‘बच्चे, यह बात तो मैं भी समझ नहीं पाया.’‘वह हमें मूर्ख बना रहे हैं.’‘शायद

लघुकथा- चारनेताजी अपने चिर-परिचित गंभीर शैली में लोगों को संबोधितकर रहे थे, ‘सरकार ने जो यहाँ बाँध बनाने का निर्णय लिया है वह यहाँ के किसानों केविरुद्ध के साजिश है. बाँध बना कर नदी का पानी ऊपर रोक लिया जायेगा. फिर उस पानीसे बिजली बनाई जायेगी और बिजली बनाने के बाद वह प

लड़की ने कई बार माँ से दबी आवाज़ में उस लड़के की शिकायतकी थी पर माँ ने लड़की की बात की ओर ध्यान ही न दिया था. देती भी क्यों? जिस लड़केकी वह शिकायत कर रही थी वह उसके अपने बड़े भाई का सुपुत्र थे, चार बहनों का इकलौता लाड़लाभाई. पर लड़की के लिए स्थिति असहनीय हो रही थी. उसकी अंतरात्माविद्रोह कर रही थी. अंततः उस

‘बेटा, थोड़ा तेज़ चला. आगे क्रासिंग पर बत्ती अभी हरी है,रैड हो गयी तो दो-तीन मिनट यहीं लगजायेंगे.’‘मम्मी, मेरे पास लाइसेंस भी नहीं है. कुछ गड़बड़ हो गयी.....’‘अरे तुम समझते नहीं हो, हमारी किट्टी में रूल है की जोभी पाँच मिनट लेट होगा उसे गिफ्ट नहीं मिलेगा.’ ‘तो पहले निकलना था न, सजने-सवरने में तो.....

उस युवक का इतना ही दोष था कि उसने उन दो बदमाशों को एकमहिला के साथ छेड़छाड़ करने से रोका था. वह उस महिला को जानता तक नहीं था, बस यूँही,किसी उत्तेजनावश, वह बदमाशों से उलझ पड़ा था.भरे बाज़ार में उन बदमाशों ने उस युवक पर हमला कर दियाथा. एक बदमाश के हाथ में बड़ा सा चाक़ू था, दूसरे के हाथ में लोहे की छड़.युवक ने

तीव्र गति से चलती स्कूल-वैन चौराहे पर पहुंची. बत्तीलाल थी. वैन को रुक जाना चाहिये था. परन्तु सदा की भांति चालक ने लाल बत्ती कीअवहेलना की और उसी रफ्तार से वैन चलाता रहा.दूसरी ओर से सही दिशा में चलता एक दुपहिया वाहन बीच मेंआ गया. वैन उससे टकरा कर आगे ट्राफिक सिग्नल से जा टकराई और पलट गई.देखते-देखते कई

लघुकथा "अब कितनी बार बाँटोगे"अब कितनी बार बाँटोगे यही कहकर सुनयना ने सदा के लिए अपनी बोझिल आँख को बंद कर लिया। आपसी झगड़े फसाद जो बंटवारे को लेकर हल्ला कर रहे थे कुछ दिनों के लिए ही सही रुक गए। सुनयना के जीवन का यह चौथा बंटवारा था जिसको वह किसी भी कीमत पर देखना नहीं चाहती थी। सबने एक सुर से यही कहा

वेटिंग रूम, लघुकथागर्मी का तपता हुआ महीना और कॉलेज के ग्रीष्मावकाश पर घर जाने की खुशी में रजिया और नीलू अपने बैग को पीठ पर लटकाए हुए स्टेशन की ओर कदम बढ़ाए जा रही थी। ट्रेन अपने समय पर थी और दोनों दिल्ली पहुँच गई। दूसरी ट्रेन आने में अभी पाँच घंटे इंतजार करना था अतः वेटिंग रूम का शरण लेना उचित लगा। थ

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आज रिंकू को आने दो आते ही कहती हूं बेटा जल्दी ही मेरा चश्मा बदलबा दो अब आँखों से साफ नही दिखता।लो आ भी गया रिंकू आतुर होकर मैन की बात कह डाली। " अरे माँ दो मिनट चैन से बैठने भी नही देती कौन सी तुम्हे इस उम्र में कढाई सिलाई करनी है? और फ

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हर बार की तरह एक और दिलचस्प स्टोरी आपके लिए मैं लेकर आई हूं। इस कहानी में आपको कुछ दिलचस्प बातें बताने वाली हूं जिसे पढ़कर आपको बहुत अच्छा लगेगा। एक लड़की जब अपने मायके जाती है तो उसका मन किस तरह से प्रफुल्लित होता है वो इस कहानी में मैंने बताने की कोशिश की है। पसंद आए तो दूसरों को भी पढ़ाइएगा।एक और

यहाँ कुशल वहाँ जगमाहीं मेरा पत्र मिला की नाहीं। जवाबी पत्र का इंतजार करते-करते आँखें पथरा गई, पोस्ट ऑफिस का डाकियाँ भी बदल गया लगता है। पुछनेपर नाराज हो जाता है, कहता है कि खुद लिखकर लाऊँ क्या? रोज-रोज आकर दरवाजे पर खड़े रहते हो, पत्र आया क्या? पत्र आया क्या?। यहाँ मनीआर्ड

बदलते समीकरण - रिश्तों के...आज ख़ुशी का दिन था,नाश्ते में ममता ने अपने बेटे दीपक के मनपसन्द आलू बड़े वाउल में से निकालकर दीपक की प्लेट में डालने को हुई तो बीच में ही रोककर दीपक कहने लगा-माँ,आज इच्छा नही हैं ये खाने की.और अपनी पत्नी के लाये सेंडविच प्लेट में रख खाने लगा. इस तरह मना करना ममता के मन को

"यह क्या है... ?जब देखो तुमलोग टी.वी. देखते रहते हो... आग लग जाती है..." सुबह के सैर से लौटे किशोर जी अपने नातियों पर चिल्ला पड़े..."मैं यहाँ बोल रहा हूँ तुम वहाँ फ्रिज के पास क्यों गये?"फ्रिज से बोतल लाने... ! हमलोगों को टी.वी देखते देख आपमें जो आग लगी हैं उसे बुझाने..."

इस दीपावली वह पहली बार अकेली खाना बना रही थी। सब्ज़ी बिगड़ जाने के डर से मध्यम आंच पर कड़ाही में रखे तेल की गर्माहट के साथ उसके हृदय की गति भी बढ रही थी। उसी समय मिक्सर-ग्राइंडर जैसी आवाज़ निकालते हुए मिनी स्कूटर पर सवार उसके छोटे भाई ने रसोई में आकर उसकी तंद्रा भंग की। वह उसे देखकर नाक-मुंह सिकोड़कर चिल

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