शशांक ने कहा “हैलो स्मिता मैं बैंगलुरु पहुंच गयाहूं। यहां की एक फ़ार्मा कपंनी में मैनेज़र के तौर पर मेरा प्रमोशन हो गया है,30 साल का हो गया हूं। कोई अच्छी सी लड़की बताओं ना बिल्कुल तुम्हारीतरह”। “मैं क्या को
श्यामा नाम था उसका, ठीक उसके श्वेत रंग केविपरीत, हर दिन हमारे घर के सामने आ खड़ी होती। ऐसा उसने करीब 10 दिन तक किया,हमने कहा ये तो अब पराए घर जा चुकी है फिर यहां क्यों आती है तो घर वालों ने कहाकि ये गाय है इंसान नहीं जो किसी को इतनी जल्दी भूल जाए, भूलना तो इंसानी फ़ितरतहै
चंद्रपुर नाम के गांव में बिना किसी गुनाह केसभी पंचो के आगे सर झुकाकर खड़ी रही विनिता और उसे फ़रमान सुना दिया गया कि उसेअपने माता-पिता के घर वापस भेज जाए, उसी दोपहर उसका पति उसे अपनी कार में बिठाकरउसके मायके की तरफ़ निकल पड़ा। दोनों के बीच एक अजीब सी ख़ामोशी पसरी हुई है, तभीकार की खिड़की से खेतों की
संजीवनी का आज कॉलेजमें प्रथम वर्ष का फायनल एग्ज़ाम है, उसकापेपर सुबह 8 बजे है, लेकिन ये क्या वो तो 6.30 बजने के बाद भी उठी ही नहीं। उसकीमां ने आवाज़ देकर उसे जगाया कहा “बेटा तुम्हारा आज इम्तिहान है और तुम सो हीरही हो, रोज तो सुबह 4 बजे उठ
संगीता के विवाह को 6 साल हो चुके थे उसकी 4 साल की एकबेटी थी, वो फिर एक बार मां बनने वाली थी।उसने ये खबर सबसे पहले अपने पति को सुनाई फिर अपनी सासको, जैसे ही उसकी सास ने ये खबर फोन पर सुनी वो बेहद ख़ुश हुई, संगीता गर्मियों कीछुट्टियों में अपनी बेटी को लेकर अपने मायके जबलपुर
गोयल साब ने मुंडी घुमाकर केबिन के शीशे से बैंकिंग हाल में नज़र मारी. तीनों कैशियर बिज़ी थे. बाकी सीटों पर भी दो चार लोग खड़े थे. एक सम्मानित ग्राहक ऑफिसर से गुथमगुत्था हो रहा था पर अभी बीच बचाव का समय नहीं आया था. कुल मिला कर चहल पहल थी अर्थात ब्रांच नार्मल थी. इन्क्वायरी सी
“खाओ मेरी कसम ना शराब को हाथ लगाओगे ना किसी लड़की के चक्कर में पड़ोगे जब तक तुम्हारी पढ़ाई पूरी ना होगी और मुझसे कुछ भी ना छिपाओगे” अपूर्व को बार बार अपनी मां की सौगंध याद आ रही थी, जब वो नाशिक से पुणे पहुंचा था इकोनॉमिक्स की पढ़ाई करने, ग
क्षमा मिश्रा नाम था उसका। लेकिन मोहल्ले के सारे लड़के उसे छमिया कह कर पुकारते थे। महज़ अठारह बरस की उम्र में मोहल्ले में हुई अठाईस झगड़ों का कारण बन चुकी थी वो। उसका कोई भी आशिक़ चार महीने से ज्यादा उसकी फ़रमाइशों को पूरी नहीं कर पाता था। इसलिए प्रत्येक चार महीने बाद क्षमा के दिल के रजिस्टर पर नए आशिक़
माधव और अजीत नाम केदो भाई अर्जुननगर नाम के गांव में रहते थे। दोनों भाईयों में काफी प्यार था वोदोनों गेंहू का व्यापार किया करते थे, उनके खेतों में उगाया गया गेंहू दूर दूर तकमशहूर था लेकिन अभी भी वो दोनों मध्यवर्गीय स्थिती में ही थे और सोचा करते थे किखेतों में दिन रात पसीना
शीला देखने में काफी सुंदर है, बड़ी बड़ी आंखे,घुंघराले बाल और दूध सी दमकती त्वचा और साथ गुणवंती भी थी, उसके ससुर को वो देखतेही भा गई तो उसने अपनी बेटे मनोज का रिश्ता उसके साथ तय कर दिया, मनोज टॉप केकॉलेज से पढ़ा लिखा था और सिर्फ अंग्रेजी में ही बात करना पसंद करता था, तो वहीशीला संस्कृत में एम ए पास थ
कामिनी देवी जब कभी भी अपने राइस मिल पर जाती थीं, माधो से ज़रूर मिलती थीं। माधो उनकी राइस मिल में कोई बड़ा कर्मचारी नहीं, बल्कि एक मज़दूर था। राइस मिल में काम करने वाले सभी लोगों का मानना था कि माधो कामिनी मैडम का सबसे विश्वासी कामगार है क्योंकि वह कभी झूठ नहीं बोलता। माधो गठीले बदन वाला छब्बीस वर्षीय
प्रत्येक दिन किसी न किसी व्यक्ति की मौत हो रही थी। पिछले दस दिनों में पंद्रह लोगों की जानें जा चुकी थीं। पूरे गांव में दहशत का माहौल था। "कोई नहीं बचेगा इस गांव में। अगले महीने तक सब मर जाएंगे। इस गांव को उस फ़क़ीर की बद्दुआ लग गई है, जिसके साथ दीपक ने गाली-गलौज और हाथापाई किया था। अगर उस दिन दीपक उस
प्रतिमा नाम था उसका, हमेशा मुस्कुराती रहती, ऐसा लगता कि मानों ज़िंदगी बहुत आसान है उसके लिए, ना पढ़ाई को गंभीरता से लेती ना जीवन को, उसकी हमेशा की ये आदत थी सभी क्लॉस में पढ़ने वाली सभी लड़कियों से कहना कि आज पार्टी दो ना, मजबूर कर देती थी उन लड़कियों को घर से पैसे मांगने के लिए, खुद भी देती थी, हाल
चंद्रा साब ने ताला खोला और बेडरूम में आ गए. टॉवेल उठाया और इत्मीनान से नहा लिए. चिपचिपे मौसम से कुछ तो राहत मिली. दाल गरम की, एक प्याज काटा और प्लेट में चावल डाल कर डाइनिंग टेबल पर आ गए. एक व्हिस्की का पेग बना कर टेबल पर रख लिया. पर बंद घर में अलग सी महक आ रही थी तो उठकर
सीमा परवीन उर्फ रेशमा को बेगमसराय के महबूबा जिस्म मंडी में उसके चाहने वाले उसके हसीन और आकर्षक जिस्म के कारण सनी लियोन के नाम से पुकारते थे। उसके आशिक़ों में सफ़ेदपोश, काले कोट और ख़ाकी वाले भी शामिल थे। जिस्म बेचना कभी भी उसकी मजबूरी नहीं रही। वह इस धंधे में इसलिए आई थी क्योंकि उसे लगता था कि रईस बनने
कई वर्ष पश्चात दूरदर्शन पर धारावाहिक 'रामायण' के पुनः प्रसारण से कौशल्या देवी बहुत खुश थीं। सुबह के नौ बजते ही टेलीविजन के सामने हाथ जोड़ कर बैठ जाती थीं। आज रामायण देखते हुए वह अत्यंत भावविभोर हो रही थीं। सीता एवं लक्ष्मण को राम के संग वन जाते हुए देखकर कौशल्या देवी की आंखों से अश्रु प्रवाहित होने
डीएम ऑफिस से आने के बाद से ही दीपमाला बहुत दुखी और परेशान थी। वह आईने के सामने खड़ी होकर अपने ढलते यौवन और मुरझाए सौंदर्य को देखकर बेतहाशा रोए जा रही थी। ऐसा लग रहा था मानो वह आईने से कह रही हो कि तुम भी लोगों की तरह झूठे हो। आज तक मुझे सिर्फ झूठ दिखाते रहे। कभी सच देखने ही नहीं दिया। उसने रात का खा
"अगले हफ्ते डैडी घर आ रहे हैं। मैं आप दोनों की करतूतों के बारे में डैडी को जरूर बताऊंगी। घर को नर्क बना कर रख दिया है।" ज्योति ने अपनी मां और चाचा को धमकाते हुए कहा। ज्योति तेईस वर्षीया युवती थी। ज्योति के पिताजी निर्मल सिंह फ़ौजी थे और मां नीलम देवी उपचारिका (नर्स) थीं। मनीष और आकाश दो छोटे भाई थे।
रामानंद बाबू को अस्पताल में भर्ती हुए आज दो महीने हो गये। वे कर्क रोग से ग्रसित हैं। उनकी सेवा-सुश्रुषा करने के लिए उनका सबसे छोटा बेटा बंसी भी उनके साथ अस्पताल में ही रहता है। बंसी की मां को गुजरे हुए क़रीब पांच वर्ष हो चुके हैं। अपनी मां के देहावसान के समय बंसी तक़रीबन बीस वर्ष का था। सुबह के आठ बज