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नैतिक शिक्षा

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यह जीवन का मरुभूमि है। पथ पर चलने बाले, चलता-चल। निर्णय करने को समय खड़ा। तुम तो निज स्वभाव में ढलता-चल। होने को जो हो, जीत-हार को रहने दे। ओ पथिक, तुम दीपक सा जलता-चल।। माना कि लंबा बियाबान डगर है। प

गूंज, जीवन के अभिलाषा का। शब्द, पथ पर बढने की आशा का। मंथन करता हूं, सत्य की परिभाषा का। फिर क्यों गठरी बांधे रहूं, व्यर्थ निराशा का। मैं मन की माला में प्रेम के धागे डालूं। तुम ठहरो तो, तुम्हें अपनी

चिर आनंद हो उपवन का। सुधा सरस सी धारा बहती हो। गुंजित होता हो मधुकर के कलरव से। सुन्दर सा उपवन, चंदन से लेपित हो। तनिक प्रहर बीते, मैं शांति मन की पा लूं। हे कोकिल तुम बोलो, कहां पड़ाव मैं डालूं? जगमग

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