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पंथ होने दो अपरिचित

23 फरवरी 2022

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पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला

घेर ले छाया अमा बन
आज कंजल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन

और होंगे नयन सूखे
तिल बुझे औ’ पलक रूखे
आर्द्र चितवन में यहां
शत विद्युतों में दीप खेला

अन्य होंगे चरण हारे
और हैं जो लौटते, दे शूल को संकल्प सारे

दुखव्रती निर्माण उन्मद
यह अमरता नापते पद
बांध देंगे अंक-संसृति
से तिमिर में स्वर्ण बेला

दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी

आज जिस पर प्रलय विस्मित
मैं लगाती चल रही नित
मोतियों की हाट औ’
चिनगारियों का एक मेला

हास का मधु-दूत भेजो
रोष की भ्रू-भंगिमा पतझार को चाहे सहे जो

ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल, स्वप्न-शतदल
जान लो वह मिलन एकाकी
विरह में है दुकेला! 

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रचनाएँ
दीपशिखा
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दीपशिखा महादेवी वर्मा जी का का पाँचवाँ कविता-संग्रह है। इसका प्रकाशन १९४२ में हुआ। इसमें १९३६ से १९४२ ई० तक के गीत हैं। "दीप-शिखा में मेरी कुछ ऐसी रचनाएँ संग्रहित हैं जिन्हें मैंने रंगरेखा की धुंधली पृष्ठभूमि देने का प्रयास किया है। सभी रचनाओं को ऐसी पीठिका देना न सम्भव होता है और न रुचिकर, अतः रचनाक्रम की दृष्टि से यह चित्रगीत बहुत बिखरे हुए ही रहेंगे।" और मेरे गीत अध्यात्म के अमूर्त आकाश के नीचे लोक-गीतों की धरती पर पले हैं। महादेवी के गीतों का अधिकारिक विषय ‘प्रेम’ है। पर प्रेम की सार्थकता उन्होंने मिलन के उल्लासपूर्ण क्षणों से अधिक विरह की अन्तश्चेतनामूलक पीड़ा में तलाश की। मिलन के चित्र उनके चित्र उनके गीतों में आकांक्षित और संभावित, अतः कल्पनाश्रित ही हो सकते थे, पर विरहानुभूति को भी उन्होंने सूक्ष्म, निगूढ़ प्रतीकों और धुंधले बिंबों के माध्यम से ही अधिक अंकित किया।
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दीप मेरे जल अकम्पित

23 फरवरी 2022
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दीप मेरे जल अकम्पित, घुल अचंचल! सिन्धु का उच्छवास घन है, तड़ित, तम का विकल मन है, भीति क्या नभ है व्यथा का आँसुओं से सिक्त अंचल! स्वर-प्रकम्पित कर दिशायें, मीड़, सब भू की शिरायें, गा रहे आंधी-

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पंथ होने दो अपरिचित

23 फरवरी 2022
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पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला घेर ले छाया अमा बन आज कंजल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन और होंगे नयन सूखे तिल बुझे औ’ पलक रूखे आर्द्र चितवन में यहां शत विद्युतों में दीप खेला

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ओ चिर नीरव

23 फरवरी 2022
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पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला! घेर ले छाया अमा बन, आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन, और होंगे नयन सूखे, तिल बुझे औ’ पलक रूखे, आर्द्र चितवन में यहाँ शत विद्युतों में दीप खेला

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प्राण हँस कर ले चला जब

23 फरवरी 2022
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प्राण हँस कर ले चला जब चिर व्यथा का भार उभर आये सिन्धु उर में वीचियों के लेख, गिरि कपोलों पर न सूखी आँसुओं की रेख धूलि का नभ से न रुक पाया कसक-व्यापार शान्त दीपों में जगी नभ की समाधि अनन्त

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सब बुझे दीपक जला लूँ

23 फरवरी 2022
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सब बुझे दीपक जला लूं घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं क्षितिज कारा तोडकर अब गा उठी उन्मत आंधी, अब घटाओं में न रुकती लास तन्मय तडित बांधी, धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं! भीत

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हुए शूल अक्षत

23 फरवरी 2022
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हुए शूल अक्षत मुझे धूलि चन्दन! अगरु धूम-सी साँस सुधि-गन्ध-सुरभित, बनी स्नेह-लौ आरती चिर-अकम्पित, हुआ नयन का नीर अभिषेक-जल-कण! सुनहले सजीले रँगीले धबीले, हसित कंटकित अश्रु-मकरन्द-गीले, बिखरते रहे

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आज तार मिला चुकी हूँ

23 फरवरी 2022
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आज तार मिला चुकी हूँ। सुमन में संकेत-लिपि, चंचल विहग स्वर-ग्राम जिसके, वात उठता, किरण के निर्झर झुके, लय-भार जिसके, वह अनामा रागिनी अब साँस में ठहरा चुकी हूँ! सिन्धु चलता मेघ पर, रुकता तड़ित्

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कहाँ से आये बादल काले

23 फरवरी 2022
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कहाँ से आये बादल काले? कजरारे मतवाले! शूल भरा जग, धूल भरा नभ, झुलसीं देख दिशायें निष्प्रभ, सागर में क्या सो न सके यह करुणा के रखवाले? आँसू का तन, विद्युत् का मन, प्राणों में वरदानों का प्रण, ध

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यह सपने सुकुमार

23 फरवरी 2022
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यह सपने सुकुमार तुम्हारी स्मित से उजले! कर मेरे सजल दृगों की मधुर कहानी, इनका हर कण हुआ अमर करुणा वरदानी, उडे़ तृणों की बात तारकों से कहने यह चुन प्रभात के गीत, साँझ के रंग सलज ले! लिये छाँह के स

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तरल मोती से नयन भरे

23 फरवरी 2022
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तरल मोती से नयन भरे! मानस से ले, उटे स्नेह-घन, कसक-विद्यु पुलकों के हिमकण, सुधि-स्वामी की छाँह पलक की सीपी में उतरे! सित दृग हुए क्षीर लहरी से, तारे मरकत-नील-तरी से, सुखे पुलिनों सी वरुणी से फेन

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विहंगम-मधुर स्वर तेरे

23 फरवरी 2022
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विहंगम-मधुर स्वर तेरे, मदिर हर तार है मेरा! रही लय रूप छलकाती चली सुधि रंग ढुलकाती तुझे पथ स्वर्ण रेखा, चित्रमय संचार है मेरा! तुझे पा बज उठे कण-कण मुझे छू लासमय क्षण-क्षण! किरण तेरा मिलन,

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जब यह दीप थके तब आना

23 फरवरी 2022
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जब यह दीप थके तब आना यह चंचल सपने भोले हैं, दृगजल पर पाले मैंने मृदु, पलकों पर तोले हैं दे सौरभ से पंख इन्हें सब नयनों में पहुँचाना साधें करुणा-अंक ढलीं हैं, सांध्य गगन सी रंगमयी पर पावस की

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धूप सा तन दीप सी मैं

23 फरवरी 2022
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धूप सा तन दीप सी मैं! उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन, खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मन अश्रु से गीला सृजन-पल, औ' विसर्जन पुलक-उज्ज्वल, आ रही अविराम मिट मिट स्वजन ओर समीप सी

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तू धूल-भरा ही आया

23 फरवरी 2022
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तू धूल-भरा ही आया! ओ चंचल जीवन-बाल! मृत्यु जननी ने अंक लगाया! साधों ने पथ के कण मदिरा से सींचे, झंझा आँधी ने फिर-फिर आ दृग मींचे, आलोक तिमिर ने क्षण का कुहक बिछाया! अंगार-खिलौनों का था मन अनुरागी

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जो न प्रिय पहिचान पाती

23 फरवरी 2022
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जो न प्रिय पहिचान पाती। दौड़ती क्यों प्रति शिरा में प्यास विद्युत-सी तरल बन क्यों अचेतन रोम पाते चिर व्यथामय सजग जीवन? किसलिये हर साँस तम में सजल दीपक राग गाती? चांदनी के बादलों से स्वप्न फिर-फ

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आँसुओं के देश में

23 फरवरी 2022
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जो कहा रूक-रूक पवन ने जो सुना झुक-झुक गगन ने, साँझ जो लिखती अधूरा, प्रात रँग पाता न पूरा, आँक डाला लह दृगों ने एक सजल निमेष में! अतल सागर में जली जो, मुक्त झंझा पर चली जो, जो गरजती मेघ-स्वर म

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गोधूली अब दीप जगा ले

23 फरवरी 2022
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गोधूली इब दीप जगा ले! नीलम की निस्मीम पटी पर, तारों के बिखरे सित अक्षर, तम आता हे पाती में, प्रिय का आमन्त्र स्नेह-पगा ले! कुमकुम से सीमान्त सजीला, केशर का आलेपन पीला, किरणों की अंजन-रेखा फीके

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मैं न यह पथ जानती री

23 फरवरी 2022
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मैं न यह पथ जानती री! धर्म हों विद्युत् शिखायें, अश्रु भले बे आज अग-जग वेदना की घन-घटायें! सिहरता मेरा न लघु उर, काँपते पग भी न मृदुतर, सुरभिमय पथ में सलोने स्वजन को पहचानती री! ज्वाल के हों स

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