तरल मोती से नयन भरे!
मानस से ले, उटे स्नेह-घन,
कसक-विद्यु पुलकों के हिमकण,
सुधि-स्वामी की छाँह पलक की सीपी में उतरे!
सित दृग हुए क्षीर लहरी से,
तारे मरकत-नील-तरी से,
सुखे पुलिनों सी वरुणी से फेनिल फूल झरे!
पारद से अनबींधे मोती,
साँस इन्हें बिन तार पिरोती,
जग के चिर श्रृंगार हुए, जब रजकण में बिखरे!
क्षार हुए, दुख में मधु भरने,
तपे, प्यास का आतप हरने,
इनसे घुल कर धूल भरे सपने उजले निखरे!