नैना अग्रवाल दिल्ली के गोल्फ सिटी सेंटर कॉलोनी में अपने पति शिवांश और अपने बेटे आरव के साथ बेहद खुश थी।
नैना-अपने फ्लैट में सुबह उठने के बाद से ही जल्दी-जल्दी अपने रूटीन के कामो में लग जाती है,
थोड़ी देर योगा करने के बाद वह अपने और शिवांश के लिए कॉफी बनाने किचन में जाती है ,और जल्दी-जल्दी कॉफी बनाने लगती है।
कॉफी बनाते समय अचानक से उसकी उंगली गर्म भगोने में छू जाती है ,जिससे उसका थोड़ा सा ध्यान उस ओर जाता है।
और फिर अपनी उंगली को मुंह में डालकर अपनी और शिवांश की कॉफी लेकर बाहर बालकनी में आती है।
बालकनी में शिवांश एक कुर्सी पर बैठा पौधों को पाइप से सींचता रहता है, शिवांश ज्यादा देर तक खड़ा नहीं रह सकता था, क्योंकि उसके एक पैर में प्लास्टर बंधा था,
यह प्लास्टर अभी कुछ दिन पहले ऑफिस से आते समय उसकी बाइक एक कार से टकरा जाती है जिससे वह अपना संतुलन खो देता है, और बाइक से सड़क पर गिर जाता है।
जिससे उसके दाहिने पैर में काफी चोट आती है हॉस्पिटल जाने पर पता चलता है कि दाहिने पैर में फ्रैक्चर आ जाता है।
डॉक्टर शिवांश के पैर में प्लास्टर बांध देते हैं, इधर कई दिनों से शिवांश और नैना कुछ बड़ा करने की सोच रहे थे,
इसलिए दोनों ने मिलकर अपने सारे इकट्ठे किए हुए पैसों को घर पर रखा था, क्योंकि एक्सीडेंट के अगले ही दिन शिवांश एक नया बिजनेस शुरू करना चाहता था।
लेकिन एक्सीडेंट के कारण ना तो वह बिजनेस शुरू कर सका और ना ही ऑफिस जा सका क्योंकि ऑफिस में उसने अपना त्यागपत्र यह सोचकर दे दिया था।
कि अब तो मैं बिजनेस शुरू करने वाला ही हूं तो फिर ऐसे ऑफिस की जॉब करने का कोई मतलब नहीं है।
लेकिन वह कहते हैं ना कि होनी को तो कुछ और ही मंजूर होता है।
जो ना हम जानते हैं, और ना आप जानते हैं लेकिन जो कुछ होना होता है वह तो होकर ही रहता है। क्रमशः,,,,,,