सूर्य की किरणे बिखेर रही रोशनी सतरंगी की प्रेम देखकर हर्षत मोर मनवा , कब अइहे मोरो साजन्मा हो जाई हमरो मिलनवा ! सुवह उठी हम देखली सपनवा बाहरा से आवत बारू हमरो सजनवा हर्षत मोरो मनवा मिली जईहे कंगनवा ! राग हम सुनावली कही के बोलवली लिखी लिखी पतीया पिया के भेजवाली मन की कोना में तोहके बसवली !