पुरानी यादें, दिखें जैसे धुंधली तस्वीरें
समय की पर्तों में छुपी,सजीव तदवीरें
हृदय के किसी कोने में गढ़ी हुयी नींव
मौका पाकर जेहन में हो उठती सजीव
चिर-परिचित , मनभावन, अनुभूतीय
स्मृतियों की गलियों में है भटकें तुरीय
गुज़रे दिनों की मिठास फिर से हैं जीते
हर एक पल, हर एक हंसी, आँसू पीते
संग हमारे रहें, जैसे धुंधले रंगीन चित्र
वे यादें, कभी जीने का हिस्सा सचित्र
अब एक किताबी पृष्ठ जैसे हैं पलटती
जीवनपाठ की अनोखी धरोहर सृजती,
जिन्हें याद करके फिर से जी उठते हैं
माता-पिता ,याद में सरसते-तरसते हैं
भाई-बहन बचपन ये मन में बिहंसते हैं
पुरानी यादों में भर नयन अश्रु बहते हैं
तुरीय--जाग्रत नींद की अवस्था, अतिचेतन।
स्वरचित डा.विजय लक्ष्मी