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रंगमंच

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  उधर कृपा अपनी जीवन की गाड़ी को धीरे-धीरे आगे बड़ा रहा था।ईश्वर पर विश्वास, दृढ़-संकल्प लगन का ही परिणाम था कि छोटी सी दुकान बड़ी बन गई थीं।शादी,पार्टियों,उत्सवों समारोह में जूस सप्लाई का काम मिल जा

दरबाजे पर निशान्त ने घंटी बजाई।... सुनैना ने दरबाजा खोला तो सामने निशान्त था। निशान्त सुनैना को देखकर गले से लिपट गया एक मासूम बच्चे की तरह।....रोते-रोते कहने लगा।माँ,माँ मुझे बचालो। सुनैना की आँखे भर

      यहां छपने से हमारा तात्पर्य है कि प्रत्यक्ष होने/रहने से है अथवा किन्हीं विशेष भूमिकाओं में अपना अभिनय प्रत्यक्ष रूप से निभाने से है जबकि छिपने का हमारा तात्पर्य है अप्रत्यक्ष रहन

इस शरीर में आंखों की गहराई,मन की गहराई से ज्यादाहृदय की गहराई है।ये गहराई इतनी गहरी हैं किइसकी गहराई किसी को पता नहीचाहे तीन लोक की सम्पत्ति भी मिल जाए तो भी हम इसकी गहराई को भर नहीं सकतेन किसी पद से,

कलम ऐसा उपहार हैं लेखक के लिए वो एक हत्यार भी है और घावों का मरहम भी उसकी कलम से वो शब्द निकलते है जो किसी को बिन तीर तलवार के घायल भी कर सकते है और उन पर शब्दो का मरहम भी लगाकते है    

मेरी डायरी के पन्नों में अक्सर तेरा जिक्र आता हैबस यूँ ही तेरी बात करते-करते पूरा पन्ना भर जाता है।। ख्वाबों ख्यालों से उतर कर तू कुछ इस तरह मेरे दिल पर छा जाता है।। बस यूँ ही तेरी बात

कविता के नीचे उसने श्याम की जगह सागर लिखा था। गीता ने उसे देखा और कागज श्याम की तरफ बढ़ा दिया। श्याम ने कहा कि मैं चाहता हूँ कि आप इसे टाइप कर दें। इसे छपने के लिए भेजना है। गीता कुछ नहीं बोली। कागज क

गीता ।अच्छा नाम है। लेकिन मुझे इस नाम से नफरत है।क्यों? कोई एक कारण हो तो बताएँ। यह कहते हुए गीता अपनी सीट से उठी और पर्स कंधे पर टाँगते हुए केबिन से बाहर निकल गई। श्याम उसे जाते हुए देखता र

टाइपिंग कोचिंग सेंटर में श्याम का पहला दिन था। वह अपनी सीट पर बैठा टाइप सीखने के लिए नियमावली पुस्तिका पढ़ रहा था। तभी उसकी निगाह अपने केबिन के गेट की तरफ गई। कजरारे नयनों वाली एक साँवली लड़की उसकी के

                  इश्क़ किया था तुमसे ,                तभी इज्जत से पेश आए हम,         नफ़रत

मुस्कुराना तो मेरा फितरत में है बस मैं यही सोचता हुं मुझे इतराना न आ जाए मिलना तो मैं भी चाहता हु खुदा से दुआ करना की मुझे कोई बहाना न आ जाए               @–""विकास कुमार""–@

यूं तो नहीं हैं आसमान में इतने सितारे,जब भी तुम्हें ढूंढता हूं,तो मिलते हैं लाखों सितारे,बाकियों से नहीं बस इश्क़ है तुमसे,दिल से कहता है ये तुम्हारा गौरव प्यारे।          &nb

एक व्यक्त के सिर पर टोकरी में फल रखे थे जो घूम-घूमकर बैच रहा था। कृपा के मन में बिचार किया कि शहर में किसी न किसी की मदद लेनी चाहिए। छोटे-मोटे काम करने बाले,फैरी लगाने बालो पर विश्वास कर सकते हैं।जैसे

विख्यात ने सुना कि किसन का अपहरण,तो चुप न रहा।....नहीं नहीं ऐसा नहीं कर सकता हूँ।किसन मेरा भाई हैं। मित्र:-अरे मित्र यह क्या सचमुच का अपहरण थोड़े ही हैं।हमको पैसे चाहिए,बस पैसे मिले हम छोड़ देगें।हम सबस

ग्रामबासी कर भी क्या सकते थें।सब बदुआ और कोस रहे थें।बच्चे बुरे रास्ते पर चलने का होसला माँ-बाप की सह का ही परिणाम हैं।आज यहाँ कुकर्म किया जाने और कहाँ क्या-क्या करेगा। द्रोण ने कृपा को दर-दर भटकने को

सुनैना ने हाथ पकड़ लिया।का सटिया गये हैं जो अपने बेटे को कसाई के हाथों सोंपने चले हैं।खब़रदार जो तुमने काहु फोन के बारे में बताया,भनक तक न लगने देंना।कुछ दिन बाद सब ठ़ीक हो जायेंगा।सबसे चुन-चुनके बदला

माण्ड़वी और निशान्त कॉफी पीने लगें।माण्ड़वी ने निशान्त को देखकर मुस्कान दी और सोंचने लगीं।आज अभी इसी समय अपने मन की बात कह ही देती हूँ।...निशान्त...मैं...तुम्से कुछ कहना चाहती हूँ।मुझे गलत मत समझना।बहुत

माण्ड़वी और निशान्त कॉफी पीने लगें।माण्ड़वी ने निशान्त को देखकर मुस्कान दी और सोंचने लगीं।आज अभी इसी समय अपने मन की बात कह ही देती हूँ।...निशान्त...मैं...तुम्से कुछ कहना चाहती हूँ।मुझे गलत मत समझना।बहुत

सुनैना की जुबान लड़खडा़ने लगी....मैं ...क्यों दूँ। साधु:-तो तुम्हें अधिकार किसने दिया किसी के ऊपर भी आक्षेप लगाना। सुनैना मुँह टेड़ा करके अपने घर चली गई। ग्रामबासी एक साथ कहने लगें।:-महाराज मुझसे भूल हो

मैंने तो कोई तार टेलीफोन नहीं किया।जानकर तू परेशान हो जायेगी।जो होना था वो हो चुका।जाने बाले कभी लौट कर नहीं आते है।बस जो है उसको सभाल कर रखना हैं। पापा मुझे फोन ताऊँजी ने किया था। मुझे पता था,यह सब भ

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